सोमवार, 27 फ़रवरी 2023
लफंगों के राष्ट्रकवि कुमार विश्वास
मित्रों, तुलसी रामचरितमानस में कह गए हैं कि पंडित सोई जो गाल बजाबा. निश्चित रूप से गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसा व्यंग्यपूर्वक कहा होगा लेकिन आज के कई कवि सिर्फ गाल बजाकर महाकवि बन गए हैं और ऐसे कवियों में सबसे अग्रगण्य हैं कुमार विश्वास. इन श्रीमान ने न जाने कौन-सी महान कविता लिखी है लेकिन ये लच्छेदार बातें करने में माहिर जरूर हैं और यही इनकी एकमात्र योग्यता भी है. इसी योग्यता के कारण इनको कथित कवि सम्मेलनों में मंच संचालन का भार दिया जाता है. कभी किसी कवि का परिचय देते हुए ये कहते हैं कि इन्होंने कविता लिखते समय दिमाग नहीं लगाया है तो कभी श्रोताओं को छिछोरों की तरह खींसे निपोरते हुए कहता है कि जो लोग दूसरों की पत्नियों के साथ आए हैं.
मित्रों, इतना ही नहीं इन श्रीमान को यह भी पता नहीं है कि कबीर अकबर के समकालीन नहीं थे फिर भी टीन टप्पर ठोक पीट कर ट्रेन में चनाजोर बेचनेवालों की तरह घटिया तुकबंदी करनेवाला यह घटिया आदमी खुद को महान कबीर की परंपरा का महान कवि बताता है. कभी महादेवी वर्मा ने कहा था कि कवि सम्मलेन थकान मिटाने के साधन बनकर रह गए हैं लेकिन कुमार विश्वास जैसे बड़बोलों ने कवि सम्मेलनों का स्तर इतना ज्यादा गिरा दिया है कि कवि सम्मेलनों में ईज्जतदार लोगों ने जाना ही छोड़ दिया है. मैं नोएडा में रहने के दौरान कई बार इस व्यक्ति को मंच संचालित करते और कविता पाठ करते हुए देख चुका हूँ और इस व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर भी कह सकता हूँ कि यह आदमी पैसों पर नाचनेवाली रूपजीवाओं से ज्यादा कुछ भी नहीं है. इस व्यक्ति की तुलना कबीर से तो कदापि नहीं हो सकती अगर हो भी सकती है तो रीतिकाल के छिछोरे कवि बिहारी से हो सकती है.
मित्रों, कुछ दिनों के लिए यह आदमी भारत का दूसरा सबसे महान राजनेता भी बना था और अन्ना हजारे के मंच से चीख-चीख कर भारत के सबसे घटिया नेता अरविन्द केजरीवाल को एशिया का सबसे योग्य युवा बता रहा था. बाद में जब उस एशिया के कथित सबसे योग्य युवा ने राज्य सभा में भेजने से मना कर दिया तबसे ये पागलों की तरह उसको गालियां देता फिरता है. इसकी इस हरकत की तुलना मंदिर के बाहर भीख मांगनेवाली उस बुढ़िया से की जा सकती है जो भीख न मिलने पर आगंतुक को बद्दुआएं देने लगती है.
मित्रों, इस व्यक्ति को एक और लाईलाज बीमारी है और वो बीमारी है जबरदस्ती का संतुलन बनाने की. आपने देखा होगा कि कुछ लोग कहते हैं कि पीएफआई की तरह आरएसएस पर भी प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए वे लोग भी इसी बीमारी से ग्रस्त हैं. कुमार विश्वास का मानना है कि सिर्फ दानवों को बुरा-भला नहीं कह सकते बल्कि उनके साथ-साथ देवताओं में भी जबरन छिद्रान्वेषण करना होगा. इन साहिबान को आरएसएस और उसकी सेवा भावना के बारे में कुछ भी पता नहीं लेकिन इनकी सोच है कि आप सिर्फ रावण को गाली नहीं दे सकते राम को भी देना होगा या आप सिर्फ राम की बड़ाई नहीं कर सकते रावण की भी प्रशंसा करनी ही होगी. और अपनी इसी घटिया सोंच को ये बुद्धिहीन बुद्धिजीवी धर्मनिरपेक्षता का नाम देते हैं.
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