सोमवार, 30 सितंबर 2024

बिहार में पीके फिरकी तो नहीं ले रहा?

मित्रों, दस साल हो गए एक फिल्म आई थी और सुपर डुपर हिट भी रही थी. नाम था पीके. उस फिल्म में भगवान, खुदा और गॉड के नाम दुनिया में व्याप्त झूठ और पाखण्ड पर व्यंग्य किया गया था. अगर आपने वो फिल्म देखी है तो देखा होगा कि उस फिल्म का नायक पीके जो सुदूर दूसरे ग्रह से आया है धर्माधिकारियों को लेकर एक बात बार-बार कहता है कि ये फिरकी ले रहा है मतलब धोखा दे रहा है. मित्रों, इन दिनों बिहार में भी एक पीके यानि प्रशांत किशोर आए हुए हैं और वे कतई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं. श्रीमान इन दिनों गाँधी की तस्वीर लिए पूरे बिहार में घूम रहे हैं. उनका कहना है कि वे बिहार का कायाकल्प कर देंगे और बिहार सबसे निचले पायदान से सबसे ऊपर के पायदान पर पहुँच जाएगा. लोअर बर्थ से अपर बर्थ पर. उनका पूरा तौर-तरीका वही है जो २०१३-१४ में केजरीवाल का था. जहाँ केजरीवाल ने कथित जीवित गाँधी अन्ना हजारे को यूज किया वहीँ ये पीके गाँधी और गाँधीवाद के बल पर बिहार को जीतना चाहता है. मित्रों, कहना न होगा कि भारत की आजादी के बाद से ही भारत को जितना गाँधीवादियों ने लूटा है किसी और ने नहीं लूटा. इतिहास साक्षी है कि पूरी मानवता के इतिहास में गाँधी से बड़ा कोई ढोंगी और पाखंडी हुआ ही नहीं. वह महान व्यक्ति दिन में महात्मा बना फिरता था और रातों में खुलेआम नंगी औरतों के साथ नंगा सोकर अपनी अतृप्त वासना को तृप्त करता था. इतना ही नहीं गाँधी ने भाईचारा की जिद में जितना हिन्दुओं और हिंदुस्तान को मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से नुकसान पहुँचाया आज किसी से छिपा हुआ नहीं है. मित्रों, इन दिनों पीके भी उसी गाँधी की तरह खुलकर मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें कर रहा है. इसने तो घोषणा भी कर दी है कि वो टिकट वितरण में मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से कई गुना अधिक टिकट देगा. एक गाँधी ने भारत का बंटाधार कर दिया और अब पीके दूसरा गाँधी बनने का दावा करता फिर रहा है. सवाल उठता है कि क्या बिहार और भारत को एक और गाँधी की आवश्यकता है? मित्रों, एक कहावत है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली. सवाल उठता है कि २०१५ में क्यों पीके को बिहार का हित-अहित नजर नहीं आया जब वे बिहार में महागठबंधन को जिता रहे थे? तब उनको इस बात की चिंता क्यों नहीं थी कि महागठबंधन की जीत के बाद तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बनेंगे? क्या तब तेजस्वी यादव नौवीं फेल नहीं थे? इसी तरह आज के पश्चिम बंगाल में जो अराजकता और अत्याचार का माहौल है और जिस प्रकार बिहार के लालू राज की तरह आईएएस की पत्नी तक सुरक्षित नहीं है क्या उसके लिए प्रशांत किशोर की जिम्मेदारी नहीं बनती है जो पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के लिए रणनीति बना रहे थे? मित्रों, आज वही प्रशांत किशोर जो पैसों के लिए किसी भी चोर-डाकू को चुनाव जितवा सकता था दांत में तिनका दबाकर खुद को पाक-साफ़ बताता फिर रहा है. कोई क्यों यकीन करे उस पर? कभी मुक्तिबोध में कहा था कि जो है मुझे उससे बेहतर चाहिए, पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए. प्रश्न उठता है कि क्या प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से बेहतर विकल्प हैं? हम पहले ही केजरीवाल को चुनकर दिल्ली में धोखा खा चुके हैं जो २०१३-१४ में पीके की तरह ही मीठी-मीठी बातें करते थे और अब १५६ दिनों तक जेल से शासन चलाकर अनचाहा और शर्मनाक विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं. तो क्या प्रशांत किशोर भी केजरीवाल साबित होने वाले हैं? उन्होंने सत्ताग्रहण के पंद्रह मिनट के भीतर बिहार में शराबबंदी समाप्त करने की घोषणा करके इस बात के संकेत भी दे दिए हैं। सवाल तो यह भी उठता है कि गांधी तो मद्यपान के विरोधी थे फिर ये प्रशांत किशोर किस प्रकार का गांधीवादी है? मित्रों, एक समय बिहार के लोगों ने जगन्नाथ मिश्र की सरकार को हटाकर लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाया था पर मिला क्या? जंगलराज? इसी तरह क्या केजरीवाल शीला दीक्षित से बेहतर साबित हो रहे हैं? इसमें कोई संदेह नहीं कि नीतीश कुमार के शासन में बिहार का विकास हुआ है और तमाम कमियों के बावजूद स्थिति में सुधार हुआ है और निरंतर हो रहा है. मित्रों, एक बात और इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार का लोकसभा चुनाव परिणाम बिहार के लिए अनंत संभावनाएं लेकर आया है. विपक्ष तो आरोप भी लगा रहा है कि इस साल का आम बजट भारत का कम बिहार का बजट ज्यादा है. फिर क्यों न बिहार में डबल ईंजन की सरकार बनी रहने दी जाए? क्यों वर्तमान व्यवस्था के साथ छेड़-छाड़ की जाए और वो भी एक अविश्वसनीय पीके के कहने पर? आखिर क्यों बेवजह का जोखिम लिया जाए? बल्कि क्यों न वर्तमान सरकार को ही प्रभावी सुधार करने के लिए बाध्य किया जाए?

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