बुधवार, 11 नवंबर 2009
सूचना के अधिकार को बेअसर करने की बिहार सरकार की साजिश
सूचना का अधिकार,२००५ भारत के इतिहास में ऐसा पहला कानून है जिसके तहत प्रशासन को निर्धारित समयसीमा के भीतर काम पूरा करने के लिए जवाबदेह बनाने की कोशिश की गयी है.इसके द्वारा अफसरों-कर्मचारियों को एक निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना देने को बाध्य किया गया है.अब तक बहुत-से अफसर-कर्मचारियों पर जुरमाना भी लगाया गया है. शुरू में तो सबकुछ ठीक रहा लेकिन बहुत जल्दी जब राजनेताओं के प्यारे नजदीकी अफसरों को भी इसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया तब वे ढूँढने लगे जनता के हाथ लगे इस बहुमूल्य हथियार को भोथरा बनाने का उपाय. केंद्र सरकार इस दिशा में पहले ही दो बार कोशिश कर चुकी है, लेकिन असफल रही है भारी विरोध के कारण. अब बारी है बिहार सरकार की जो इस मुद्दे पर अपनी सफलता का ढोल पीटती फ़िर रही है.बिहार सरकार अधिनियम में इस तरह से संशोधन की योजना बना रही है जिससे कि एक आवेदन पर अब एक ही सूचना मांगी जा सके. इसका परिणाम यह होगा कि इस अधिनियम की जान ही निकल जायेगी और यह अधिकार बस नाम का ही रह जायेगा. दूसरे शब्दों में अगर हम कहें कि क्या केंद्र और क्या राज्य सरकार दोनों इस महत्वपूर्ण अधिकार को शांतिपूर्ण मौत देने की फिराक में है. किसी एक मुद्दे पर सम्पूर्ता में सूचना चाहिए तो फ़िर भेजो १०-१५ आवेदन. किसके पास इतना पैसा होगा कि वह १००-१५० रूपये खर्च करेगा? बिहार सरकार ने पहले से ही अपील पर ५० रूपये का शुल्क लगा रखा है और बिडम्बना तो यह है कि अधिकतर बिहारी जनता को पता तक नहीं है कि अपील के आवेदन के साथ ५० रूपये का पोस्टल आर्डर भी भेजना है. परिणाम यह होता है कि लोग आवेदन को बिना शुल्क के भेज देते हैं और अपील ऐसे ही जाया हो जाती है.ऐसा खुद मेरे साथ भी हो चूका है.दूसरी ओर खुद बिहार सरकार भी नहीं चाहती कि जनता को इस बात का पता चले तभी तो आरटीआई सम्बन्धी बिहार सरकार की किसी भी होर्डिंग या विज्ञापन में आज तक इस तथ्य का जिक्र तक नहीं किया गया. कम-से-कम मैंने तो ऐसा ही पाया है.दूसरी ओर बिहार सरकार बार-बार दावे कर रही है कि इतने आवेदनों का निष्पादन किया गया या इतने लोगों ने सूचना प्राप्त की. अब सरकारी दावे का स्रोत क्या है ये तो वही जाने मुझे तो अपने एक दर्जन आरटीआई आवेदनों में से किसी में भी अपेक्षित सूचना प्राप्त नहीं हुई. दो मामलों में तो सूचना के एवज में मुझसे क्रमशः ३४४४६ और ७२८० रूपये की मांग भी की गई.आरटीआई को लेकर राज्य सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक लम्बे अरसे से बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली था और पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही इस पद को भरा गया. तब तक लंबित आवेदनों का अम्बार लग गया था और सरकार कान में तेल डाल कर पड़ी थी.खुद नवनियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त के अनुसार इन १०००० मामलों के निबटने में ही कम-से-कम छह महीने लगनेवाले हैं.
आनलाइन हस्ताक्षर करके विरोध जतायें
जवाब देंहटाएंविष्णु राजगढ़िया
बिहार में सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने की काफी शिकायतें आ रही हैं। अब बिहार सरकार ने सूचना पाने के नियमों में अवैध संशोधन करके एक आवेदन पर महज एक सूचना देने का नियम बनाया है। अब गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सिर्फ दस पेज की सूचना निशुल्क मिलेगी, इससे अधिक पेज के लिए राशि जमा करनी होगी। ऐसे नियम पूरे देश के किसी राज्य में नहीं हैं। ऐसे नियम सूचना कानून विरोधी हैं। इससे सूचना मांगने वाले नागरिक हताश होंगे। इससे नौकरशाही की मनमानी बढ़ेगी। इस तरह बिहार सरकार ने सूचना कानून के खिलाफ गहरी साजिश की है। अगर सूचना पाने के नियमों में संशोधन हुआ तो नागरिकों को सूचना पाने के इस महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित होना पड़ेगा। एक समय बिहार को आंदोलन का प्रतीक माना जाता था। आज सूचना कानून के मामले में बिहार पूरे देश में सबसे लाचार और बेबस राज्य नजर आ रहा है। वहां सुशासन की बात करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दुशासन की भूमिका निभाते हुए कुशासन को बढ़ाना देने के लिए सूचना कानून को कमजोर किया है।
इसलिए आनलाइन पिटिशन पर हस्ताक्षर करके अपना विरोध अवश्य दर्ज करायें। इसके लिए यहां क्लिक करें- -
http://www.PetitionOnline.com/rtibihar/petition.html
-विष्णु राजगढ़िया
सचिव, झारखंड आरटीआइ फोरम
9431120500, vranchi@gmail.com
संशोधन के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए लिंक http://mohallalive.com/2009/11/19/nitish-government-changed-right-to-information-act/