किताबों में लिखा है कि जब रोम जल रहा था तब नीरो चैन की बंशी बजा रहा था.नीरो बंशी बजाना जानता था इसलिए बंशी बजाता था अब हमारे प्रधानमंत्री तो बंशी बजाना जानते नहीं इसलिए जब भारत के गरीब महंगाई की आग में जल रहे हैं तब वे ऊँघने और सोने में लगे हैं.कुछ मिनट की फ़ुरसत मिली नहीं कि लगे ऊँघने और सोने.कहा तो यह भी जाता है कि घोड़ा बेचने के बाद गहरी नींद आती है .लेकिन मनमोहन जी का तो दूर-दूर तक घोड़ों से कुछ भी लेना देना नहीं है .कल जब विपक्षी दल भाजपा के नेताओं ने उन्हें जगाया तो वे बोले यार हमें भी मालूम है कि देश में महंगाई बढ़ रही है और शाम होते-होते एक सरकारी कमेटी बनाने की घोषणा भी कर दी गई जो महंगाई से निपटने में सरकार की सहायता करेगी. इस सरकार की सबसे बड़ी विशेषता भी तो यही है कि ये कमेटी बहुत जल्दी बनाती है और फ़िर सारी जिम्मेदारी उसके हवाले करके प्रधानमंत्रीजी निद्रालीन हो जाते हैं.इसी सरकार में एक मंत्री हैं शरद पवार.उनकी ही जिम्मेदारी है महंगाई पर नियंत्रण रखने की.लेकिन वे अपनी इस जिम्मेदारी को भूलकर भविष्यवाणियाँ करने में लगे हैं.और उनकी भविष्यवाणी हमेशा किसी खाद्य वस्तु के दाम बढ़ने के बारे में होती है.लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि दाम घटेंगे कब तब वे कहते हैं मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ जो बता दूं.सरकार चाहे तो मौद्रिक उपाय भी कर सकती है.लेकिन उसे ऐसा करने से उद्योगपति-पूंजीपति रोक रहे हैं.इससे ऋणों पर ब्याज दर जो बढ़ जाएगी और उनके लिए व्यापार करना ज्यादा महंगा हो जायेगा.सरकार जब कुछ कर ही नहीं सकती सिवाय कमेटी बनाने के तो कह दे कि हे जनता-जनार्दन यह रोग मेरे बस का नहीं है आपही इससे निपटिये.प्रधानमंत्री जी का यह भी दावा है कि किसानों को ज्यादा अच्छा मूल्य मिलने के कारण दाम बढ़ रहे हैं.कितना बड़ा झूठ है ये!असली लाभ तो बिचौलिए ले जाते है.हरी मिर्च जो हमारे हाजीपुर में २० रूपये किलो बिकती है किसानों को आढ़ती इसके बदले सिर्फ सात रूपये किलो का दाम देते हैं.हरी मिर्च का दाम किसने बढाया किसानों ने या इन बिचौलियों ने?कल फ़िर महंगाई विभाग के मंत्री ने अपना छोटा मुंह खोला और बड़ी बात कही कि चूंकि उत्तर भारत में दूध का उत्पादन कम हो गया है इसलिए उसका दाम बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव पड़ रहा है. ठण्ड में मवेशी दूध देना कम कर देते हैं, यह जानी हुई बात है.माना कि सरकार पर दबाव है दाम बढ़ाने का. क्या उस पर दाम घटाने का दबाव नहीं है?क्यों वह मुट्ठीभर पूंजीपतियों के हित में ब्याज दर बढा नहीं रही है?ऐसा नहीं कि गरीबों के बारे में यह मनमोहिनी-जनमोहिनी सरकार नहीं सोंचती है.उसने नरेगा योजना चलाई है लेकिन इसके अन्तर्गत काम हो रहा है कि नहीं देखना किसकी जिम्मेदारी है.गरीबी हटाने की योजनायें पैसे के अभाव में फेल नहीं होती, वो फेल होती है निगरानी के अभाव में.अगर ऐसा नहीं होता तो आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारत में इतनी गरीबी नहीं होती.तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की ७७ % आबादी २० रूपये प्रतिदिन से भी कम में गुजारा कर रही है.पिछले डेढ़ साल में जिस रफ़्तार में महंगाई बढ़ी है उसने इस ७७ % जनसंख्या की थाली में जीने लायक भोजन भी नहीं छोड़ी है.उदाहरण के लिए दिल्ली में पिछले साल जनवरी में जो टमाटर १० रूपये किलो था इस साल २० से भी ऊपर है.एक साल में दोगुना.चीनी सहित अन्य सभी खाद्य पदार्थों के दाम भी इसी रफ़्तार से बढे हैं.जब मानसून सामान्य नहीं रहा तभी चीनी सहित सभी खाद्य पदार्थों का आयात कर लेना चाहिए था.लापरवाही की हद तक देरी क्यों की गई?पिछले दो सालों में ४८ लाख टन चीनी के सस्ते दामों पर निर्यात की अनुमति सरकार ने क्यों दी जबकि गन्ने और खाद्यान्नों-दलहनों-तिलहनों की उपज में कमी आने की पूरी आशंका थी? मैं जानता हूँ कि पवार और मनमोहन के पास इन प्रश्नों का कोई जवाब नहीं है.लेकिन कथित रूप से आम आदमी की इस सरकार को पॉँच साल बाद आम आदमी के पास जाना भी पड़ेगा और तब इन सवालों के जवाब देने ही होंगे. तब वह इन प्रश्नों से भाग नहीं पायेगी.
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