रविवार, 7 नवंबर 2010
लाईन चरित मानस
वर्ष १८५९,दिन और समय मालूम नहीं,स्थान रंगून.भारत के निर्वासित शायर बादशाह बहादुर शाह ज़फर का मन व्याकुल है.वे अपनी जिंदगी का हिसाब-किताब करने में लगे हैं.धीरे-धीरे फिंजा में उनकी रेशमी आवाज गूंजती है-लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में, किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में; उम्र-ए-दराज़ मांग के लाये थे चार दिन;दो आरजू में काट गए दो इंतज़ार में.कहते हैं इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं.लेकिन हर किसी को कभी-न-कभी इंतज़ार करना पड़ता है.कभी ट्रेन के आने का तो कभी उसके जाने का,तो कभी पत्नी के चुप होने का,किसी को इंतज़ार रहता है माशूक की हामी का तो किसी को क़यामत (सुहागरात) के आने का.कोई अगर बुद्धिजीवी हुआ और साथ में समझदार भी तो उसे इंतज़ार रहता है देश की जनसंख्या के नियंत्रित होने का और नेताओं के सच्चे हो जाने का.निश्चित रूप से इनके इंतजार में भी काफी सब्र रखना पड़ता है लेकिन इंतज़ार की घड़ियाँ सबसे ज्यादा लम्बी और कष्टकारी तब लगती हैं जब हम लाईन में लगे हों और काफी पीछे हों.अगर आप पैसे वाले हैं तो लाईन में खड़े हुए बिना भी आपका काम हो सकता है लेकिन हम तो ठहरे आम आदमी.वर्षों पहले जब मैं महनार के अमरदीप सिनेमाघर में सिनेमा देखने गया तब मुझे पहली बार लाईन में खड़ा होना पड़ा.लेकिन तब टिकट खिड़की खुलने के साथ ही लाईन समाप्त हो जाती थी और शारीरिक बल का प्रदर्शन करके मुझे टिकट लेना पड़ता था.उन्हीं दिनों अख़बार में पढ़ा और फिल्मों में भी देखा कि महानगर मुम्बई में बस में चढ़ने के लिए लाईन में लगना पड़ता है.हंसी भी आई यार ये कैसे लोग हैं जो बस में चढ़ने के लिए लाईन में लगे हैं.अपन तो बस की सीढ़ी,गेट कुछ भी पकड़कर लटक जाते हैं और वो भी मुफ्त में.एक और जगह भी उन दिनों मेरा साबका लाईन से पड़ता था और वह जगह थी रेलवे स्टेशन.लेकिन लाईन छोटी हुआ करती थी.तब मैं कम दूरी की यात्रा ही करता था.लेकिन अब तो अनारक्षित टिकट खिडकियों पर भी लाईन बड़ी होने लगी है.शायद यह जनसंख्या बढ़ने का असर है या फ़िर लोगों ने ज्यादा यात्रा करनी शुरू कर दी है,या फ़िर दोनों का संयुक्त प्रभाव है.अभी इसी गर्मी का वाकया है.मैं अपने मित्र धीरज के तिलकोत्सव से वापस आ रहा था.छपरा स्टेशन पर पाया कि तीन काउंटरों पर टिकट काटा जा रहा है और तीनों पर कम-से-कम ३००-३०० लोग लाईन में खड़े हैं.लाईन देखकर दिल बैठने लगा.फ़िर मन में अपना पुराना डायलाग दोहराया-सोंचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा.लाईन में लग गया यह सोंचते हुए कि अगर टिकट लेने से पहले ट्रेन आ जाती है तो टिकट लिए बिना ही यात्रा कर ली जाएगी.लेकिन खुदा के फजल से ट्रेन आने से चंद मिनट पहले टिकट मिल गया, हालांकि मैं पसीने में नहा चुका था.ये तो हुई बात उन लाईनों की जिनका लिंक से कुछ भी लेना-देना नहीं होता.असली परेशानी तो वहां होती है जहाँ आपका काम होने के लिए लिंक का होना आवश्यक होता है.मेरे साथ कई बार ऐसा हो चुका है और शायद आपका भी सामना हुआ हो.होता यूं है कि मैं किसी भी ए.टी.एम. पर २०-३० लोगों के पीछे लाईन में खड़ा हूँ.सूर्य देव पूरे गुस्से में हैं.लाईन में खड़े-खड़े एक घंटा या आधा घंटा बीत चुका है.भगवान की कृपा से मेरी बारी भी आ चुकी है लेकिन आलसी और लापरवाह बैंककर्मियों की कृपा से लिंक फेल हो जाता है.सारे किये धरे पर गरम पानी.कभी-कभी आप बैंक के भीतर ही लाईन में खड़े होते हैं और लिंक अंतर्धान हो जाता है और आपके पास सिवाय लाईन में खड़े होकर इंतजार करने के कोई उपाय नहीं होता.अभी कुछ ही महीने पहले महनार (वैशाली)में सेन्ट्रल बैंक को लिंक से जोड़ा गया.जनता खुश थी कि अब वह कहीं से भी पैसे की जमा-निकासी कर पाएगी.लेकिन १ महीने तक लिंक आँख मिचौली करता रहा.सैंकड़ों लोग रोजाना आते लाईन में खड़े होते और शाम ढलने के बाद खाली हाथ वापस चले जाते,सरकार और बैंक को मीठी-मीठी गालियाँ देते हुए.तब लाईन देखते ही उनके मन में लाचारी मिश्रित क्रोध उमड़ने-घुमरने लगता.कुछ ऐसा ही अनुभव प्राप्त करने का सुअवसर आपको तब प्राप्त हो सकता है जब आप रेलवे आरक्षण काउंटर पर घन्टे-भर लाईन में खड़े होते हैं और लिंक शरारत पर उतारू हो जाता है.मैंने अभी जिन संभावनाओं का जिक्र किया है उससे हम सबका सामना होता रहता है.वैसे आज के भारत में लाईन सर्वव्यापी सत्य है.आपको लाईन में लगने का सौभाग्य अस्पताल से श्मशान तक में कहीं भी प्राप्त हो सकता है.आपने शायद कभी हिसाब नहीं लगाया होगा कि आपका कितना समय लाईन में लगे-लगे गुजरता है यानी जन्म से मृत्यु तक हमारे जीवन का एक बड़ा भाग लाईन में लगे-लगे बीतता है.हम कभी नहीं चाहते कि लाईन में लगें लेकिन काम करवाने के लिए लगना ही पड़ता है.हम लाईन से भाग सकते हैं पर बच नहीं सकते.सिर्फ यमराज की कृपा आप पर हो जाए तभी आप लाईन से मुक्ति (मोक्ष) पा सकते हैं.आज अगर तुलसीदास होते तो क्या कर रहे होते कल्पना कीजिए.कहाँ खो गए?मैं बताता हूँ वे किसी लाईन में खड़े होकर या तो भगवान राम से लाईन से मुक्ति देने की प्रार्थना कर रहे होते या फ़िर लाईन चरित मानस लिख रहे होते.इस कमबख्त मोबाईल को भी अभी ही बजना था.पिछले एक घन्टे से ए.टी.एम.पर लाईन में हूँ और अब जब मेरी बारी आ गई है तब बॉस का फोन आ रहा है.समझ नहीं पा रहा फोन काटकर नौकरी जाने का खतरा उठाऊँ या फोन उठाकर फ़िर से एक घन्टे के लिए लाईन में खड़े होने की फजीहत झेलूं.लीजिये मैंने ये फोन कट कर दिया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें