मंगलवार, 9 नवंबर 2010
ग़लतफ़हमी नहीं पाले भारत
ओबामा अपनी चार दिन की यात्रा पूरी कर पूर्वी एशिया के लिए रवाना हो चुके हैं.ओबामा जब तक भारत में रहे,भारत की स्तुति में लगे रहे.हम भारतीयों की यह पुरानी बीमारी है कि हम किसी भी तथ्य को तभी सत्य मानते हैं जब कोई विदेशी उसकी पुष्टि कर दे.चाहे वो वैज्ञानिक हो या कोई लेखक-कवि उसे अपने देश में तभी मान्यता मिलती है जब किसी पश्चिमी देश ने उसे पुरस्कृत कर दिया हो.ओबामा हमारी धरती पर खड़े होकर बार-बार हमें वैश्विक महाशक्ति कह रहे हैं और हम भी मस्त हुए जा रहे हैं.क्या उनके कहने से ही हम महाशक्ति होंगे या फ़िर नहीं होंगे?हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानव विकास सूचकांक में हम काफी नीचे हैं.स्वच्छ शासन के मामले में भी हमारी स्थिति शर्मनाक है.हमारी जनसंख्या का बड़ा भाग २० रूपये प्रतिदिन से भी कम में गुजारा कर रहा है.सुरक्षा के क्षेत्र में हम पूरी तरह दूसरे देशों पर निर्भर हैं.हम अभी अपने पड़ोसियों से भी निबट पाने में सक्षम नहीं हैं.हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पिछले ६०-६५ सालों से चीन और पाकिस्तान के कब्जे में है और हम आज भी उसे छुड़ा पाने की स्थिति में नहीं हैं.फ़िर हम किस तरह की महाशक्ति हैं?ओबामा इस समय याचक की भूमिका में हैं और ठकुरसोहाती करना उनकी जरुरत ही नहीं मजबूरी भी है.इसलिए हमें अतिरिक्त सावधान रहने की जरुरत है.हो सकता है हम भुलावे में आकर ऐसी गलती कर बैठें जिसका खामियाजा हमें लम्बे समय तक भुगतना पड़े.इंग्लैण्ड की तरह अमेरिका भी बनियों का देश है और बनिया कोई भी काम बेवजह नहीं करता.कल की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका को एक अन्य महाशक्ति चीन ने सस्ते मालों से पाटकर उत्पादकों के बदले उपभोक्ताओं के देश में बदल दिया है.अमेरिका में एक तरफ उत्पादन में कमी आ रही है तो वहीँ दूसरी ओर आश्चर्यजनक तरीके से मुद्रा-स्फीति में भी कमी देखने को मिल रही है.जी.डी.पी. बढ़ने के बजाए कम हो रही है और बेरोजारी बढ़कर ९ प्रतिशत पर पहुँच गई है.दूसरी ओर चीन दिन-ब-दिन ताकतवर होने के साथ आक्रामक होता जा रहा है.उसकी शक्ति इतनी बढ़ चुकी है कि अकेले अमेरिका उससे नहीं निबट सकता.यह कारण भी है कि ओबामा भारत समेट चीन द्वारा प्रताड़ित अन्य देशों की यात्रा पर हैं.अमेरिका का इतिहास स्वार्थ का इतिहास रहा है.जब भी जैसे भी उसका मतलब साधा है उसने अन्य देशों से दोस्ती-दुश्मनी की है.सद्दाम हुसैन भी कभी उसके दोस्तों में थे.तालिबान भी उसी का मानस पुत्र है.उसने यह कभी नहीं देखा कि जिस देश से उसका हित सध रहा है वहां तानाशाही है या लोकशाही.आज जब उसका हित भारत से सध रहा है तो वह लोकतंत्र का पैरोकार बन गया है.क्या आज से पहले भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं था?ठीक एक साल पहले ओबामा चीन की धरती पर चीन का गुणगान करने और उसे अपना स्वाभाविक मित्र बताते थक नहीं रहे थे.तब क्या चीन में लोकतंत्र था?भारत को ओबामा के गुणगान में बह नहीं जाना चाहिए और वास्तविकताओं को समझना चाहिए.भारत निश्चित रूप से तेज गति से विकास कर रहा है लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि समय रहते अगर हमने बढ़ते भ्रष्टाचार और गरीबी को नियंत्रित नहीं किया तो यह गति कायम नहीं रहनेवाली.अगर ऐसा हुआ तो हमसे ज्यादा दुर्भाग्यशाली कोई और नहीं होगा.हमारे गाँव में एक मंदबुद्धि का युवक था.लोग उसे बराबर चढ़ा-बढ़ा देते-यार तुम तो जन्मजात बहादुर हो.तुम चाहो तो क्या नहीं कर सकते.तुम चाहो हो आसानी से मुक्का मारकर जलते लालटेन को भी फोड़ सकते हो और वह व्यक्ति बहकावे में आकर अक्सर लालटेन को फोड़ डालता.आर्थिक नुकसान तो होता ही था बाद में डांट और मार पड़ती सो अलग.आज भारत के साथ भी ओबामा यही कर रहे हैं.हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हमारी सरकार उनके बहकावे में नहीं आएगी और कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी जिससे हमारा दीर्घकालीन हित प्रभावित होता हो.मैं इस लेख का अंत अपने एक संस्मरण से करना चाहूँगा.उन दिनों मैं विद्यार्थी था.मुझे हर सप्ताह साथ में पढनेवाली किसी-न-किसी लड़की से एकतरफा प्यार हो जाता था और लगता था कि वह लड़की भी मुझे प्यार करती है.जब मैं इस बात का जिक्र अपने सहपाठी अनुज सदृश संतोष उरांव से करता तो वह कहता-क्या भैया आप भी!अच्छा हो कि कुत्ता पाल लीजिए,बिल्ली पाल लीजिए अगर फ़िर भी मन नहीं माने तो सूअर पाल लीजिए लेकिन कभी ग़लतफ़हमी नहीं पालिए.
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