मंगलवार, 30 नवंबर 2010
मुझे मस्त माहौल में जीने दो
पूरा भारत इस कालखंड में मस्त है.कोई गांजा पीकर तो कोई अफीम खाकर तो कोई बिना कुछ खाए-पिए.चारों तरफ मस्ती है.मेरी पड़ोसन भी इन दिनों अपने तीनों सयाने हो चुके बेटों के साथ 'मुन्नी बदनाम हुई' गाना सुन-सुनकर मस्त हुई जा रही है.नेताओं,अफसरों और जजों की मस्ती तो हम-आप कई बार टेलीविजन पर देख चुके हैं.जनता भी कम मस्त नहीं.मस्ती की बहती गंगा में वो क्यों न डुबकी लगाए?देश की मस्त हालत को देखकर यदि बाबू रघुवीर नारायण आज जीवित होते तो मस्ती में फ़िर से गुनगुनाने लगते लेकिन कुछ परिवर्तन के साथ:-सुन्दर मस्त देसवा से भारत के देसवा से मोरे प्राण बसे दारू के बोतल में रे बटोहिया.महनार में जब मैं रहता था तो मेरे एक पड़ोसी के तीन बेटे थे.पड़ोसी भी राजपूत जाति से ही था.तीनों बेटे माता-पिता की तरह ही मस्त थे.न तो नैतिकता की चिंता और न ही किसी भगवान-तगवान का डर.पड़ोसी के बेटी नहीं थी. जिस पर मेरे एक मित्र का मानना था कि भगवान ने कितना अच्छा किया कि इन्हें बहन नहीं दिया वरना ये उससे ही शादी कर लेते.खैर भगवान को जो गलती करनी थी की.लेकिन इन्होंने उनकी गलती में जरूर सुधार कर दिया.बड़े लड़के ने अपनी सगी फूफी की लड़की से शादी कर ली.अब तो उसके कई बच्चे अवतरित भी हो चुके हैं जो दिन में मेरे पड़ोसी को दादा कहते हैं और रात को नाना.आज का पिता पुत्र को शराब पीने से रोकता नहीं है बल्कि उसके साथ में बैठकर पीता है और पिता का कर्त्तव्य बखूबी निभाता है.वो संस्कृत में कहा भी तो गया है कि प्राप्तेषु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रं समाचरेत.मैं अपनी दादी के श्राद्ध में जब वर्ष २००८ में गाँव गया तो सगे चाचाओं को मस्ती में लीन पाया.भोज समाप्त हो चुकने के बाद रोजाना लाउदस्पिकर पर अश्लील भोजपुरी गीत बजाकर नाच-गाने का कार्यक्रम होता.शराब की बोतलें खोली जातीं और घर के बच्चों को भी इस असली ब्रम्ह्भोज में सम्मिलित किया जाता.कबीर ने ६०० साल पहले मृत्यु को महामहोत्सव कहा था और चाचा लोग अब जाकर इसे चरितार्थ कर रहे थे.गाँव-शहर जहाँ भी मैं देखता हूँ लोग मस्त हैं.स्कूल-कॉलेज के बच्चों से तो मैंने बोलना ही छोड़ दिया है.न जाने कौन,कब मस्त गालियाँ देने लगे या शारीरिक क्षति पहुँचाने को उद्धत हो जाए.एक नया प्रचलन भी इन दिनों बिहार में देखने को मिल रहा है.अधेड़ या कुछ बूढ़े भी इतना मस्त हो जा रहे हैं कि पुत्र जब विवाह कर घर में पुत्रवधू लाता है तो उस पर कब्ज़ा जमा ले रहे हैं.ऐसे महान पिता का पुत्र भी कम महान नहीं होता.वह भी जहाँ नौकरी कर रहा होता है वहीँ अपनी मस्ती का इंतजाम कर लेता है.मैं सोंचता हूँ कि इस मस्त माहौल में जब मेरे लिए साँस लेना भी दूभर हो रहा है कैसे जीवित रह पाऊँगा या फ़िर जब मेरे बच्चे होंगे तो उन्हें कैसे मस्त होने से बचा पाऊँगा?मैं मस्त तो नहीं हो सकता (पुराने संस्कारों वाला जो ठहरा) और न ही संन्यास ही ले सकता हूँ (मैं अपने माता-पिता का ईकलौता पुत्र हूँ).तो फ़िर क्या करुँ समझ में नहीं आ रहा.चलिए एक लाईफलाईन का ही प्रयोग कर लेता हूँ.तो औडिएंस आप बताईये मुझे इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए.राय देने के लिए आपका समय शुरू होता है अब.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें