शनिवार, 11 दिसंबर 2010
कैंसर के चंगुल में राघोपुर प्रखंड
मैं पिछले एक सप्ताह से अपने सबसे छोटे ४५ वर्षीय चाचा के श्राद्ध के सिलसिले में अपने गाँव में था.पटना के पार्श्व में स्थित राघोपुर प्रखंड के जुड़ावनपुर बरारी गाँव में.एक ऐसे प्रखंड और गाँव में जहाँ कैंसर (हिंदी में केंकड़ा) धीरे-धीरे महामारी का रूप लेता जा रहा है.यहाँ के चापाकल अमृत के बदले नीला जहर आर्सेनिक उगल रहे हैं.मेरे चाचा सहित कुछ की इसके चलते अकालमृत्यु हो चुकी है तो कुछ की जिंदगी में अब चंद दिन ही शेष बच गए हैं.दुर्भाग्यवश इस बीमारी से ग्रस्त और मृत व्यक्तियों में ज्यादा संख्या किशोरों,युवाओं और अधेड़ो की है.उदाहरण के लिए मेरे पड़ोसी पंचायत चकसिंगार के मुखिया जवाहरलाल राय का १८ वर्षीय भतीजा कारू के कैंसर का ईलाज इस समय महावीर कैंसर अस्पताल,पटना में चल रहा है.यह किशोर इन दिनों कीमोथेरेपी के दर्दनाक दौर से गुजर रहा है.मेरे चाचा की तरह ही उसके पेट में भी भयंकर दर्द हो रहा था.जांच के बाद पता चला कि उस नौनिहाल को कैंसर हो गया है.अभी तो उसने जिंदगी जीना शुरू भी नहीं किया था कि अचानक जिंदगी की शाम हो गई.डॉक्टर अभी भी इसको लेकर निश्चिन्त नहीं हैं कि वह कुछ और सालों के लिए भी ठीक हो पाएगा कि नहीं.इसी प्रकार मेरे गाँव में ही कई अन्य लोग अचानक पेट दर्द और बुखार होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं.यहाँ मैं यह भी बताता चलूं कि लगभग मेरे पूरे गाँव में लोगों के सिरों और पैरों पर वैसे चकत्ते उभर रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध आर्सेनिक युक्त जल से हो सकता है.बांग्लादेश में भी देखा गया है कि बाद में यही चकत्ते विकसित होकर कैंसर में बदल जाते हैं.मेरे मृत चाचा के शरीर पर भी पिछले कई सालों में ऐसे ही चकत्ते उभर आए थे.कुछ ही महीने पहले जब जढुआ,हाजीपुर में जहाँ मैं इस समय निवास करता हूँ में पेय जल की जाँच की गई थी तो उसमें आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित सुरक्षित मात्रा से ५० गुना ज्यादा पाई गई थी.यहाँ बर्तनों में धीरे-धीरे हल्की उजली परत जम जाती है.लेकिन मैंने अपने गाँव में पाया कि पानी इतना ज्यादा प्रदूषित है कि मात्रा महीने-२ महीने में ही बाल्टियों में मोटी नीली-पीली परत जम जाती है.इस बात से भी यह अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है कि वहां के पानी में कितना ज्यादा आर्सेनिक है.गाँव के कुछ लोगों ने बताया कि आर्सेनिक रहित पेयजल के लिए कई विशेष प्रकार के चापाकल भी सरकार की तरफ से गडवाए गए हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि इनका पानी और भी ज्यादा गन्दा और प्रदूषित है.विशेष चापाकल लगाने के बाद अब तक कोई डॉक्टर या अधिकारी पानी की जाँच करने नहीं आया है और न ही सरकार की तरफ से कैंसर रोगियों की जाँच के लिए चिकित्सा-शिविर ही लगाया गया है.केंद्र सरकार ने तो संसद में भी स्वीकार किया है कि समस्त गांगेय क्षेत्र के पानी में कहीं कम तो कहीं ज्यादा मात्रा में आर्सेनिक आ रहा है.फ़िर भी न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार की तरफ से ही इस नीले जहर से दियारे में रहनेवाले लाखों लोगों को बचाने का कोई प्रयास किया जा रहा है.पिछले दो सालों से बरसात नहीं होने से इस अति पिछड़े ईलाके की अर्थव्यवस्था तो पहले से ही चौपट हो चुकी है.फ़िर ऎसी स्थिति में कैंसर जैसी महँगी बीमारी का ईलाज लोग कहाँ से करवाएं?इसलिए खुद मेरे चाचा ने ईलाज नहीं करवाना और बिना किसी को बताए मौत को गले लगाना ज्यादा श्रेयस्कर समझा.अगर केंद्र और राज्य सरकार अब भी नहीं जागती है और आर्सेनिक-रहित पानी का ईंतजाम नहीं हो पाता है तो वह समय भी जल्दी ही आ जाएगा जब राघोपुर में लाशों को जलाए बिना ही गंगा में फेंकना पड़ेगा क्योंकि इस दियारे में वैसे ही लकड़ी की किल्लत रहती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें