रविवार, 12 दिसंबर 2010
दिग्विजय के जूते दिग्विजय के ही सिर पर
कई बार हमारे महान नेताओं की बेवकूफी के कारण हम अधकच्चे लेखकों के सामने धर्मसंकट उत्पन्न हो जाया करता है.एक साथ कई-कई मुहावरे उनकी मूर्खता पर सटीक बैठने लगते हैं.कल भी ऐसा ही कठिन अवसर तब हमारे सामने अपना पैरियादार मुंह फाड़े खड़ा हो गया जब कांग्रेस के महासचिव,इल्जामों के राजा दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी राजा ने मुम्बई हमले के शहीद हेमंत करकरे की शहादत पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया.अगर हम अपने बडबोलेपन से अनगिनत बार फजीहत झेल चुके दिग्गी राजा की बातों पर बेमन से विश्वास कर लें तो उन्होंने मुम्बई हमलों से १-२ घन्टे पहले ही शहीद करकरे से फोन पर बातचीत की थी जिसमें बाद में साहस के प्रतीक बनकर उभरे करकरे ने हिंदूवादी संगठनों से अपनी जान को खतरा बताया था.जाहिर है कि दिग्विजय यह कहना चाह रहे हैं कि करकरे पाकिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों से शहीद नहीं हुए बल्कि हिंदूवादी संगठनों ने जो पाकिस्तानी आतंकियों में घुसे हुए थे ने उनकी हत्या की.अब इस बेवकूफी को हम क्या नाम दें?इसका तो सीधा मतलब यह हुआ कि २६-११ के हमलों के सारे टी.वी. फूटेज झूठे थे और अजमल कसाब की गिरफ़्तारी भी झूठी थी.क्या मूर्ख शिरोमणि दिग्विजय यह बताने का कष्ट करेंगे कि उन्होंने किसलिए करकरे को फोन लगाया था,उन्हें ऐसा करने की जरूरत क्यों आन पड़ी?कहीं वे मालेगांव विस्फोट की जाँच को प्रभावित करने का प्रयास तो नहीं कर रहे थे?उधर वे जाँच एजेंसियां जो करकरे के फोन रिकार्ड्स को कई बार खंगाल चुकी हैं हमले के दिन उनसे दिग्विजय की किसी भी तरह की टेलीफोनिक बातचीत से ही इन्कार कर रही है.अब प्रश्न उठता है कि दिग्विजय झूठ बोल रहे हैं तो क्यों बोल रहे हैं?क्या वे मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए झूठ बोल रहे हैं?क्या उनका यह मानना नहीं है कि भारत के मुसलमान बंटवारे और आजादी के ६३ साल बाद भी पाकिस्तान के समर्थक हैं?इससे पहले दिसंबर,२००८ में २६-११ में कुछ ही दिनों बाद अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री ए.आर.अंतुले ने भी शहीद करकरे की शहादत को सवालों में घेरे में लाने का असफल प्रयास किया था और सिरफिरे हिन्दुओं पर उनकी हत्या करने का आरोप लगाया था.वे जब तक इस पद पर रहे उनका ध्यान अल्पसंख्यकों के कल्याण पर कम हिन्दुओं को गरियाने पर ज्यादा रहा.मानों उन्हें इस काम के लिए ही यह मंत्रालय सौंपा गया था.दिग्विजय सिंह इससे पहले भी बटाला हाऊस मुठभेड़ में शहीद मोहनचंद शर्मा की शहादत पर भी विवादित बयान दे चुके हैं.मुट्ठीभर कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए घटना के तत्काल बाद उन्होंने न सिर्फ मुठभेड़ को फर्जी ठहराने का कुत्सित प्रयास किया बल्कि मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के गांवों की सांत्वना-यात्रा भी कर डाली थी.फिलहाल यह अपने-आपमें बेहद हास्यास्पद स्थिति है कि जहाँ हमारी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार २६-११ के हमलावरों और पाकिस्तानी षड्यंत्रकर्ताओं को सजा दिलाने के लिए लगातार पाकिस्तान पर दबाव बना रही है वहीँ कांग्रेस महासचिव दिग्गी राजा इस मामले में पाकिस्तान को क्लीन चिट देने और अपने ही पाले में गोल दागने पर तुले हुए हैं.इस तरह के मामलों में जैसा कि पहले भी होता आया है कांग्रेस ने व्यक्तिगत विचार कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है और इल्जामों के दिग्गी राजा शहीद करकरे की पत्नी कविता सहित पूरे भारत की आलोचनाओं के घेरे में आ गए हैं.मुहावरों की भाषा में कहें तो उन्होंने अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली है.इसी तरह का एक वाकया महाभारत में भी वर्णित है जब द्रौपदी-स्वयंवर में अंगराज कर्ण का वाण प्रत्यंचा से फिसल जाता है और लक्ष्य-भेदन करने के बजाए उन्हें ही घायल कर जाता है.अंत में मैं अपनी आदत के आगे लाचार होकर दिग्गी राजा को दो सलाह और वो भी बिलकुल मुफ्त में देना चाहूँगा.पहली यह कि यार जहाँ तक हो सके मौनव्रत रखो.यह तुम्हारी शारीरिक सेहत के साथ-साथ तुम्हारे राजनैतिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा रहेगा और दूसरी जब पेट में बोलने की खुजली होने लगे तो बोलो मगर सोंच-समझकर.अब इस उम्र में तो ऎसी गलती मत करो कि तुम्हारे द्वारा उछाले गए जूते तुम्हारे ही सिर पर आ लगें.
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