रविवार, 2 जनवरी 2011
हिन्दू आतंकवाद सच्चाई कम साजिश ज्यादा
कुछ साल पहले तक मैं अपने हिन्दू होने पर गर्व करता था और सार्वजनिक रूप से कहा करता था कि मेरे धार्मिक स्थलों पर तो हजारों सालों से आतंकी हमले होते रहे हैं लेकिन हमने कभी ऐसा करके आतंक का जवाब आतंक से देने की कोशिश नहीं की.लेकिन जबसे केंद्र में यूपीए की सरकार काबिज हुई है बार-बार उसके मंत्रियों और कांग्रेस के उच्च पदाधिकारियों द्वारा भगवा या हिन्दू आतंकवाद की रट लगाई जा रही है.मैंने इससे पहले भी मुट्ठीभर पथभ्रमित मुस्लिमों की बदमाशी को इस्लामिक आतंकवाद या जेहाद की संज्ञा देने का विरोध किया था.हो सकता है कुछ हिन्दू ऐसे असामाजिक कृत्यों में लिप्त भी हों लेकिन मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर यह सच भी है तो उनकी संख्या गंगा नदी में नमक की मात्रा से भी कम है.फ़िर भी सरकार बार-बार भगवा आतंक की रट लगाकर सारे हिन्दुओं को आतंकी घोषित करने में जुटी है.सरकार को क्या लगता है कि गोब्यल्स की तरह बार-बार झूठ बोलने से झूठ सच में बदल जाएगा.सिर्फ हिन्दुओं की ही नहीं बल्कि समग्र भारतीय संस्कृति सहस्तित्व की नीव पर खड़ी है.हमारे यहाँ धर्म के प्रचार के लिए तलवार का सहारा कभी नहीं लिया गया.मतभिन्नता को हम अपराध नहीं मानते बल्कि समाज का स्वाभाविक गुण मानते हैं,मुंडे मुंडे मति भिन्नाः और हमारे देश में मतभिन्नता शस्त्र द्वारा नहीं वरन शास्त्रार्थ द्वारा दूर की जाती रही है.इसलिए उँगलियों पर गिने जा सकने वाले आततायियों के चलते सभी हिन्दुओं को आतंकवादी कहना शरारत ही नहीं है बल्कि अपराध भी है.क्यों किया जा रहा है ऐसा?इसके पीछे कौन-सी सोंच काम कर रही है और ऐसा करनेवालों को इससे क्या लाभ मिल सकता है?एक साथ कई प्रश्न हिन्दू अस्मिता के आगे मुंह बाये खड़े हैं.अगर हम इतिहास के आईने में झांकें तो १८३५ में भारत में नई शिक्षा नीति और अंग्रेजी शिक्षा को लागू करनेवाले लॉर्ड मैकाले ने इंग्लैंड में बैठे अपने आकाओं से दावा और वादा किया था कि उसकी शिक्षा नीति से प्रभावित होकर अगले ५० सालों में भारत में हिन्दू धर्मं का कोई नामलेवा तक नहीं बचेगा और पूरा भारत ईसाई हो जाएगा.कुछ इसी तरह की मंशा से मिशनरी लॉर्ड कैनिंग को १८५६ में भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया था.वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व द्वारा जिस तरह पूरे हिन्दू धर्म को बेवजह बदनाम किया जा रहा है उससे प्रत्येक हिन्दू मन में इस तरह के संदेह उत्पन्न हो रहे हैं और ऐसा होना अस्वाभाविक भी नहीं है कि कहीं गर्व से कहो हम हिन्दू हैं के नारे को शर्म से कहो हम हिन्दू हैं के नारे में बदलने के प्रयास के पीछे भी कहीं इसी तरह की सोंच तो नहीं काम कर रही है?कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस प्रोपेगेंडा के निर्माता और निर्देशक सोनिया एंड कंपनी यह समझती है कि बदनाम करने से हिन्दू अपने धर्म को लेकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाएँगे और धड़ल्ले से करोड़ों की संख्या में ईसाई धर्म अपनाने लगेंगे और अगले १००-५० सालों में भारत से इस धर्म का नामोनिशान ही मिट जाएगा.अगर ऐसा है तो फ़िर यह भी निश्चित है कि सोनिया एंड कंपनी को एक बार फ़िर निराश होना पड़ेगा जैसे भूतकाल में मैकाले और कैनिंग को होना पड़ा था.हिन्दू धर्म कोई गाजर-मूली नहीं है कि कोई भी देसी-विदेशी आए और इसे उखाड़ फेंके बल्कि यह तो खट्ठा-कांरा का वह पौधा है जिसकी पत्तियों में तलवार की धार की तरह की तेजी होती है.मैं ऐसा करनेवालों को सावधान करना चाहूँगा कि इसे उखाड़ने की कोशिश करने की सोंचे भी नहीं क्योंकि उन्होंने अगर ऐसा किया तो उनके खुद के ही हाथ (यह कांग्रेस का चुनाव-चिन्ह भी है) जख्मी हो जाएँगे.
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