रविवार, 8 मई 2011

घघ्घो रानी कितना पानी

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घघ्घो रानी कितना पानी?इतना;नहीं इतना.मित्रों,एक समय था जब बिहार के गांवों के बच्चे काल्पनिक नदी के पानी की थाह लगानेवाला यह खेल खूब खेला करते थे.तब बिहार में बरसात भी खूब हुआ करती थी.गांवों में कुओं-तालाबों की भी कोई कमी नहीं थी.
         मित्रों,फिर समय आया जब आजादी के बाद वैज्ञानिक कृषि के नाम पर चारों तरफ बोरिंग गाड़े जाने लगे और कुएँ-तालाबों को भरने का काम शुरू हुआ.फिर भी स्थिति नियंत्रण में थी क्योंकि अब भी इन्द्रदेव मेहरबान बने हुए थे और पाताल का पानी प्राकृतिक रूप से ही रिचार्ज हो जा रहा था.
          मित्रों,एक समय यह भी है जो अभी हमारे साथ-साथ गुजर रहा है.पिछले दो सालों से बिहार की प्यासी धरती बरसात की एक-एक बूँद के लिए तरस रही है.कुएँ-तालाब जैसे पारंपरिक जलस्रोत जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि कबके इतिहास का विषय बन चुके हैं.लगातार पाताल से पानी खींचने के चलते जलस्तर में तेजी से कमी आ रही है.पिछले २ सालों में लगभग पूरे बिहार में भूमिगत जल के स्तर में १० से २० फीट की कमी आई है.हुआ तो ऐसा भी है कि जिन लोगों ने पिछले साल बोरिंग करवाई इस साल उन्हें पाईप को और धंसवाना पड़ा.दोनों तरह के सरकारी चापाकल यानि एक तो वे जिनमें निर्धारित लम्बाई का पाईप सचमुच में गाड़ा गया है और दूसरे वे जिनको निर्धारित लम्बाई से कम पाईप लगाकर ही चालू कर दिया गया (बांकी का पाईप अधिकारी गटक गए);सूखने लगे हैं या फिर बहुत कम पानी दे रहे हैं.
             मित्रों,बिहार के २० से भी अधिक जिलों में बड़े-बड़े वृक्ष तक सूख रहे हैं.बिहार का तीव्र गति से राजस्थानीकरण हो रहा है.लेकिन बिहार और राजस्थान में बहुत अंतर है.बिहार की आबादी बहुत घनी है.साथ ही यहाँ की अर्थव्यवस्था भी कृषि-आधारित है.सोंचिए स्थिति कितनी खतरनाक हो सकती है?जब पीने के पानी की ही किल्लत होने लगी है तब फिर खेती के लिए पानी कहाँ से आएगा?उधर बिहार की नदियों में भी पानी नहीं है.आप चाहें तो कहीं-कहीं भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा को भी बिना तैरे पार कर सकते हैं.नदियों में पानी भी नहीं है और नहर-प्रणाली भी कुछेक जिलों को छोड़कर ध्वस्त है.सरकारी नलकूप पहले से ही बंद हैं और दो-चार चालू हैं भी तो भूमिगत जलस्तर भागने के प्रभाव से अछूते नहीं हैं.
              मित्रों,दक्षिण बिहार के कई जिलों में तो स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि गरीब गांववाले गड्ढों का गन्दा पानी पीने को विवश हो रहे हैं और जिनके पास पैसा है वे बोतलबंद पानी पीकर दिन काट रहे हैं और पानी का बाजारीकरण करनेवाली कम्पनियों को लाभ पहुंचा रहे हैं.आप सोंच रहे होंगे कि मैंने राज्य सरकार का तो जिक्र किया ही नहीं.क्या बिहार में इस समय सरकार नहीं है?है भाई है;सरकार है और खूब घोषणाएं करनेवाली सरकार है.
            मित्रों,घोषणावीर बाबू की सरकार अपनी आदत के अनुसार इस साल भी;इस आपदा के समय भी देर से जागी है.जो काम मार्च में ही शुरू हो जाना चाहिए था;अब उसकी घोषणा होनी शुरू हुई है.सरकार ने कहा है कि जिस गाँव में भी पानी की किल्लत है वहां के लोग निर्दिष्ट नंबर पर फोन करके पानी का टैंकर मंगवा सकते हैं.लेकिन सरकार के पास इतने टैंकर हैं ही कहाँ?इतनी देरी से टैंकर के लिए निविदा भी आमंत्रित की गयी है कि जब तक प्रक्रिया पूरी होगी गर्मी का मौसम जा चुका होगा.यानि तब जागे जब अंधेरा.हमारी सरकार नदियों को जोड़ने की बात कर रही है लेकिन अगर ऐसा हो भी गया तो इसका लाभ हम तभी प्राप्त कर पाएँगे जब हमारी नहर-प्रणाली दुरुस्त होगी.हमारी लगभग सारी नहरें गाद भरने की समस्या के चलते दशकों पहले ही निष्प्रभावी हो चुकी हैं;पहले तो उन्हें दुरुस्त करना होगा.साथ ही करना होगा पारंपरिक जल-संग्रहण प्रणाली का पुनरुद्धार.इसके अलावा सरकार को रियल स्टेट क्षेत्र द्वारा ६ ईंच या इससे मोटी बोरिंग धंसाने पर रोक लगानी होगी.तब जाकर बिहार के बच्चे फिर से खेल पाएँगे घघ्घो रानी कितना पानी का वास्तविक खेल असली पानी में.

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