गुरुवार, 28 जुलाई 2011

पिट्ठी के गहिर और कान से बहिर

manmohan

मित्रों,आप मेरे शीर्षकों को देखकर सोंच रहे होंगे कि मुझे आजकल क्या हो गया है.अगर आप ऐसा नहीं सोंच रहे हैं तो यह आपकी भलमनसाहत ही है.खैर,मेरे हिसाब से शीर्षक पूरी तरह सही है और जो मैं कहना चाहता हूँ उसकी पूरी व्यंजना भी करता है.
          मित्रों,अगर आपने कभी बिहार में बसयात्रा की होगी तो निश्चित रूप से आपका पाला बस के ड्राइवरों,कंडक्टरों और खलासियों से पड़ा होगा.जैसे ही आप उसकी गाड़ी के इर्द-गिर्द पहुंचे होंगे उसने आपसे कहा होगा कि बैठिए न सर अब गाड़ी बस खुलने ही वाली है;अब आपके बैठने की ही देरी है.उसके बाद आपके कई बार टोंकने के बाद ऊपर-नीचे पूरी तरह से भर जाने के बाद गाड़ी हिली होगी.चढ़ने से पहले आपने अगर भाड़ा फाइनल नहीं किया होगा तो फिर आपसे मनमाना भाड़ा मांगा गया होगा.आपका बना-बनाया मूड ख़राब हो गया होगा और बस से जब आप उतरे होंगे तो आपकी साफ़ जुबान पर इन ड्राइवरों-कंडक्टरों-खलासियों के लिए सिवाय गन्दी गालियों के कुछ भी नहीं रहा होगा.अगर आप दबंग होंगे तो गाड़ी रूकवाकर इन्हें पीता भी होगा.हो सकता है कि तब उसने डर के मारे आपसे लिया गया अतिरिक्त पैसा वापस भी कर दिया होगा.फिर बस सरकी होगी और ड्राइवर-कंडक्टर-खलासी सारे अपमानों को गीतोक्त स्थितप्रज्ञ की तरह भूलकर दूसरे यात्रियों से हिल-हुज्जत में लग गए होंगे.बिल्कुल इसलिए ड्राइवरी लाइन से जुड़े लोगों को हमारे बिहार में पिट्ठी (पीठ) के (का) गहिर (गहरा) और कान से बहिर (बहरा) कहा जाता है.
           मित्रों,इन दिनों दुर्भाग्यवश इसी कैटेगरी का एक आदमी भारतरूपी बस की ड्राइविंग सीट पर आ बैठा है.रफ गाड़ी चलाने में उसका जवाब नहीं.देशवासी लाख गालियाँ देते रहें यह सुनता ही नहीं.इस निर्लज्ज के कार्यकाल में घोटालों का नया वर्ल्ड रिकार्ड बन चुका है.घोटालों का असर देश में होनेवाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भी पड़ने लगा है और २०१०-११ में पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले १० अरब डॉलर कम निवेश हुआ है.अब तो इनका एक पूर्व मंत्री इन पर कुकृत्य में साथ देने का आरोप लगा रहा है लेकिन श्रीमान हैं कि या तो कुछ भी नहीं देखने-सुनने का नाटक कर रहे हैं या फिर देख-सुन कर भी अनदेखा-अनसुना कर रहे हैं.आखिर मैं पूछता हूँ कि किसी प्रधानमंत्री के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और कोई स्थिति हो भी सकती है क्या कि उसका ही पूर्व सहयोगी जेल में रहते हुए उस पर घोटालों में सहयोग करने का आरोप लगाए?फिर मनमोहन सिंह किस बात का इंतजार कर रहे हैं?वे क्यों नहीं दे रहे इस्तीफा जिससे कि जनता को उनसे और उनको जनता से छुटकारा मिल सके?
           मित्रों,मैं जानता हूँ और आप भी जानते हैं कि ईमानदार को वास्तविक परिभाषा क्या है लेकिन भारत के तमाम राजनीतिक दलों ने इसकी अपनी-अपनी परिभाषा बना रखी है.कांग्रेस के अनुसार और कुछ हद तक भाजपा के अनुसार भी बेशर्मी ही ईमानदारी है.कौआ टरटराता रहे धान की फसल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.जनता जिए या मरे,देश रसातल में चला जाए तो जाए  ड्राइवर की कुर्सी बरक़रार रहनी चाहिए.तो क्या हम इस बेशर्म पिट्ठी के गहिर और कान से बहिर ड्राइवर को चुपचाप बर्दाश्त करते रहेंगे?क्या हम सब मिलकर इसे ड्राइविंग सीट पर से हटा नहीं सकते?पर हम एकजुट हो पाएँगे क्या?होना तो पड़ेगा नहीं तो ये बेशर्म-सनकी ड्राइवर-कंडक्टर और खलासी हमारे देश को दुर्घटनाग्रस्त करा देंगे.हो सकता है और निश्चित रूप से हो सकता है कि ये बस को गहरी खाई में ही गिरा दें.आप कहीं अवश्यम्भावी दुर्घटना का इंतजार तो नहीं कर रहे हैं?          

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें