रविवार, 31 जुलाई 2011

समलैंगिकता एक अक्षम्य अपराध

homosexual


मित्रों,मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है यह आपको भी पता है.हम लोग बडभागी हैं जो हमें मानव-शरीर मिला है.शास्त्रों में कहा गया है कि शरीरमाद्यं धर्म खलुसाधनं यानि शरीर ही सभी धर्मों को करने का माध्यम है.
           मित्रों,मानव-शरीर ईश्वर की अतुलनीय कृति है.ईश्वर ने हमारे शरीर के सभी अंगों को अलग-अलग काम सौंपा हुआ है.उसने मुँह को खाने-पीने का,नाक को साँस लेने और सूंघने का,कानों को सुनने का,गुदा को मलत्याग का,योनि और शिश्न को प्रजनन का और यौनानन्द लेने का काम दिया है.
           मित्रों,प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में मृत्यु के भयानक तांडव को देखकर पश्चिम के लोग यह सोंचकर भोगवादी हो गए कि जब जीवन का कोई ठिकाना ही नहीं है तब फिर नैतिकता को ताक पर रखकर क्यों नहीं जीवन का आनंद लिया जाए?बड़ी तेजी से वहां के समाज में यौन-स्वच्छंदता को मान्यता मिलने लगी और इसी सोंच से जन्म हुआ सार्वजनिक-समलैंगिकता के इस विषवृक्ष का.बेशक समलैंगिक व्यवहार पहले भी समाज में प्रचलित था लेकिन ढके-छिपे रूप में.
             मित्रों,इन दिनों भारत में भी पश्चिम की संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के चलते समलैंगिकों की एक नई जमात खड़ी हो गयी है.ये लोग गुदा से मलत्याग के साथ-साथ यौनाचार का काम भी लेने लगे हैं.उनमें से कईयों ने तो आपस में शादी भी कर ली है.हद तो यह है कि भारत की केंद्र सरकार भी इन सिरफिरों के कुकृत्यों को मान्यता देने की समर्थक बन बैठी है.
             मित्रों,यह एक तथ्य है कि वर्तमान काल की सबसे भयानक बीमारी एड्स की शुरुआत और फैलाव में सबसे बड़ी भूमिका इन समलैंगिकों की ही रही है.गुदा-मैथुन से ई-कोलाई नाम जीवाणु जो आँतों में पाया जाता है के मूत्र-मार्ग में पहुँचने और गुर्दों के संक्रमित होने का खतरा भी रहता है.सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह बिलकुल ही अनुत्पादक और वासनाजन्य कार्य है.इससे सिर्फ काम-सुख मिलता है प्रजनन नहीं होता.
                मित्रों,जब हम मुंह से मलत्याग नहीं कर सकते,गुदा से भोजन ग्रहण नहीं कर सकते,नाक से सुन नहीं सकते,कान से बोल नहीं सकते,हाथ पर चल नहीं सकते तो फिर गुदा से मैथुन की जिद क्यों?यहाँ मैं आपको यह भी बताता चलूँ कि हिन्दू शास्त्रों में गुदा-मैथुन में संलिप्त रहनेवाले लोगों को सूअर की संज्ञा दी गयी है जो मेरे हिसाब से बिलकुल सही है.
              मित्रों,मानव ही वह जैविक प्रजाति है जिसको दुनिया में सबसे लम्बे समय तक प्रजनन-काल ईश्वर ने प्रदान किया है.यही कारण है कि हम अपनी जनसंख्या में पर्याप्त वृद्धि कर सके और धरती पर आज हमारा राज है.यह प्रजनन-शक्ति हमें संतानोत्पत्ति के लिए दी गयी है न कि निरा भोग के लिए.जो भारत सहस्राब्दियों से विश्व को संयम और ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाता रहा है और इसलिए विश्वगुरु भी कहलाता रहा है;उसी हिंदुस्तान के कुछ लोग पश्चिम का अन्धानुकरण करने के चक्कर में समलैंगिकता का खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन कर रहे हैं.जरा सोंचिये,इनके परिवारवालों पर क्या गुजरती होगी जब उन्हें यह पता चलता होगा कि उनका बेटा समलैंगिक हो गया है.उनके सारे सपनों पर तो अकस्मात् तुषारापात हो जाता होगा न!
                मित्रों,कुल मिलाकर मेरे कहने का लब्बोलुआब यह है कि समलैंगिकता व्यक्ति,परिवार,समाज और राष्ट्र सबके लिए हानिकारक है;सबके प्रति अपराध है.यह नितांत भोगवादी प्रवृत्ति है जैसे कि अफीम का सेवन.इसका परिणाम हमेशा बुरा ही होनेवाला है इसलिए ऐसे समाज-विरोधी लोगों के प्रति सरकार को अत्यंत कठोरता के साथ पेश आना चाहिए और यदि ऐसा करने के लिए वर्तमान कानून पर्याप्त नहीं हों तो बिना देरी किए ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें