मित्रों,कभी प्रसिद्ध अमेरिकी उपन्यासकार पर्ल एस. बक ने उन महिलाओं को जिनका निकट-भविष्य में बलात्कार हो सकता है,को अमूल्य सलाह देते हुए कहा था कि यदि यह निश्चित हो कि आपका बलात्कार होकर रहेगा और विरोध करने का कोई फायदा नहीं रह जाए तो बेहतर यही है कि उक्त महिला इसका आनंद उठाए.मैं नहीं जानता कि श्रीमती बक को कितनी बार इस तरह का परमानन्द प्राप्त करने का पुण्य अवसर मिला.यहाँ आलेख के आरम्भ में उन स्वर्गीया का उल्लेख मैंने यह बताने के लिए किया है कि कई बार बड़ी शक्सियतें भी किस तरह अपनी मर्यादाओं की सीमाओं को लाँघ जाया करते हैं और उन्हें इसके असर का पता तक नहीं होता.जिस तरह बक महोदय को बलात्कार का दर्द क्या होता है;कदाचित पता नहीं था;शायद ममता शर्मा जो दुर्भाग्यवश या सौभाग्यवश पता नहीं इसमें से क्या हम भारतीय के लिए सही है;इस समय राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के पद पर हैं;को भी यह मालूम नहीं है कि जब किसी गरीब-लाचार महिला के साथ छेड़खानी की घटना होती है तब उसके मन-मस्तिष्क पर क्या गुजरती है और वो उस एक क्षण में कितनी बार कितनी मौतें मरती है.उनकी पीड़ा की अगर स्वानुभूति करनी है तो ममता जी को किसी लम्पट साईनी आहूजा के घर घरेलू नौकरानी के तौर पर कार्य करना चाहिए या फिर किसी बेहया सुपरवाईजर के मातहत किसी फैक्टरी में साधारण मजदूर की नौकरी करनी चाहिए और अगर ईट-भट्ठे पर काम मिल गया तो क्या कहना.तब उन्हें पता चलेगा कि सेक्सी शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है अथवा क्या कभी-कभी शब्दों का वह मतलब होता भी है जिसका जिक्र शब्दकोशकार शब्दकोशों में करते हैं क्योंकि हमेशा छेडनेवाले की निगाहें कहीं और होती हैं और निशाना कहीं और.
मित्रों,किसी शब्द का अर्थ काल और देश के अनुसार कैसे एकदम-से बदल जाता है मैं इसे एक बेहद दिलचस्प उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करना चाहूँगा.उस समय यानि वर्ष २००८ में दैनिक हिंदुस्तान,पटना में जेनरल डेस्क में कार्यरत था.एक दिन यूं ही उत्सुकतावश प्रिंट आउट वाली मशीन पर पड़ी सम्पादकीय पृष्ठ का प्रिंट आउट उठा लिया और पढ़ने लगा.मुख्य सम्पादकीय चन्द्रमा पर पानी के मिलने के सन्दर्भ में लिखा गया था जिसका समापन चंदामामा दूर के,पुए पके बूर के गीत से किया गया था.पंक्ति बिल्कुल सही थी और मुंगेर और खगड़िया के लिए अख़बार भेजा भी जा चुका था लेकिन बिहार में तो बूर का अर्थ योनि होता है भले ही गीतकार प्रेम धवन के पंजाब में इसका कोई और अर्थ होता हो.मैंने उस समय के समाचार संपादक कमल किशोर सक्सेना जी को इस तथ्य से अवगत कराया.फिर क्या था मशीन पर चल रही छपाई रोक दी गयी और आगे के संस्करणों में बूर को गुड़ कर दिया गया.ठीक इसी तरह हो सकता है कि सेक्सी शब्द का पश्चिमी देशों के सेक्स फ्री समाज में ज्यादा प्रयोग सुन्दर के अर्थ में होता हो लेकिन भारत में तो इसका सीधा मतलब होता है कामुक या सेक्स करने लायक.दोनों अर्थ सही हैं परन्तु जिस तरह बिहार में बूर शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक की श्रेणी में आता है उसी तरह भारत में सेक्सी शब्द का प्रयोग मानसिक प्रताड़ना या छेड़खानी के लिए किया जाता है.ऐसे में ममता जी की सलाह को मानकर लड़कियां कैसे उस स्थिति में अपने को खुशनसीब मान सकती हैं जब कोई चौक-चौराहे पर खुलेआम उससे कहे कि तुम तो आज बड़ी सेक्सी लग रही हो?साथ ही छेड़खानी के वक़्त ऐसा करनेवाले के हाव-भाव पर गौर करना होता है और तब न तो शब्दों के अर्थ को लेकर ही कोई संशय शेष रह जाता है और न ही प्रयोगकर्ता के उद्देश्य को लेकर ही.
मित्रों,मुझे लगता है कि चूंकि ममता जी का लालन-पालन अंग्रेजी वातावरण में हुआ होगा इसलिए उन्हें शायद चौक-चौराहे पर रोजाना होनेवाली छेडखानियों से रूबरू होने का सुअवसर मिला ही नहीं है अन्यथा उन्हें पता होता कि जब कोई कामांध किसी अबला नारी के लिए सेक्सी शब्द का प्रयोग करता है तो उसका मतलब सिर्फ और सिर्फ कामुक होता है और उद्देश्य भी केवल और केवल एक होता है उस स्त्री का शीलहरण.उसका उद्देश्य अपने शिकार की सुन्दरता की प्रशंसा करना तो कदापि नहीं होता.इस तरह अगर ममता जी को प्रत्येक लम्पट में एक प्रशंसक भी नजर आने लगा तब तो हो चुका उनके सेक्सी हाथों से भारतीय महिलाओं का भला.हो सकता है कि वो कल किसी बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटना के बाद यह भी कह डालें कि बलात्कारी निरपराध है क्योंकि वह तो पीडिता की सुन्दरता का अनन्य प्रशंसक है.
मित्रों,आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा कि सुपर प्रधानमंत्री सोनिया गाँधी ने कैसे-कैसे लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा रखा है.इटली से आयातित नेता से हम और उम्मीद भी क्या रख सकते हैं?एक बात तो निश्चित है कि सोनिया जी किसी भी तरह भारतीय संस्कृति का भला नहीं चाहती हैं तभी तो लगातार इसकी जड़ों पर केंद्र सरकार द्वारा सायास प्रहार किया जा रहा है.कभी राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता शर्मा छेड़खानी और यौनापराध-उत्प्रेरक बयान दे डालती हैं तो कभी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भारतीय संस्कृति में अतिवार्जित समलैंगिकता का समर्थन करने लगती है.जो कुछ भी इन दिनों देश में संस्कृति के मंच पर हो रहा है मुझे तो लगता है कि ऐसा सरकार द्वारा साजिशन किया या करवाया जा रहा है.चाहे वह सन्नी लियोन का भारत आगमन ही क्यों न हो.स्थिति बड़ी गंभीर है और निकट-भविष्य में और भी ज्यादा गंभीर हो जानेवाली है.अगर हम भारतीय अब भी नहीं संभले तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हमारी लचीली संस्कृति में इतनी तब्दीली आ जाएगी कि सत्य सनातन भारतीय संस्कृति में कुछ भी भारतीय नहीं रह जाएगा.
मित्रों,किसी शब्द का अर्थ काल और देश के अनुसार कैसे एकदम-से बदल जाता है मैं इसे एक बेहद दिलचस्प उदाहरण के द्वारा स्पष्ट करना चाहूँगा.उस समय यानि वर्ष २००८ में दैनिक हिंदुस्तान,पटना में जेनरल डेस्क में कार्यरत था.एक दिन यूं ही उत्सुकतावश प्रिंट आउट वाली मशीन पर पड़ी सम्पादकीय पृष्ठ का प्रिंट आउट उठा लिया और पढ़ने लगा.मुख्य सम्पादकीय चन्द्रमा पर पानी के मिलने के सन्दर्भ में लिखा गया था जिसका समापन चंदामामा दूर के,पुए पके बूर के गीत से किया गया था.पंक्ति बिल्कुल सही थी और मुंगेर और खगड़िया के लिए अख़बार भेजा भी जा चुका था लेकिन बिहार में तो बूर का अर्थ योनि होता है भले ही गीतकार प्रेम धवन के पंजाब में इसका कोई और अर्थ होता हो.मैंने उस समय के समाचार संपादक कमल किशोर सक्सेना जी को इस तथ्य से अवगत कराया.फिर क्या था मशीन पर चल रही छपाई रोक दी गयी और आगे के संस्करणों में बूर को गुड़ कर दिया गया.ठीक इसी तरह हो सकता है कि सेक्सी शब्द का पश्चिमी देशों के सेक्स फ्री समाज में ज्यादा प्रयोग सुन्दर के अर्थ में होता हो लेकिन भारत में तो इसका सीधा मतलब होता है कामुक या सेक्स करने लायक.दोनों अर्थ सही हैं परन्तु जिस तरह बिहार में बूर शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक की श्रेणी में आता है उसी तरह भारत में सेक्सी शब्द का प्रयोग मानसिक प्रताड़ना या छेड़खानी के लिए किया जाता है.ऐसे में ममता जी की सलाह को मानकर लड़कियां कैसे उस स्थिति में अपने को खुशनसीब मान सकती हैं जब कोई चौक-चौराहे पर खुलेआम उससे कहे कि तुम तो आज बड़ी सेक्सी लग रही हो?साथ ही छेड़खानी के वक़्त ऐसा करनेवाले के हाव-भाव पर गौर करना होता है और तब न तो शब्दों के अर्थ को लेकर ही कोई संशय शेष रह जाता है और न ही प्रयोगकर्ता के उद्देश्य को लेकर ही.
मित्रों,मुझे लगता है कि चूंकि ममता जी का लालन-पालन अंग्रेजी वातावरण में हुआ होगा इसलिए उन्हें शायद चौक-चौराहे पर रोजाना होनेवाली छेडखानियों से रूबरू होने का सुअवसर मिला ही नहीं है अन्यथा उन्हें पता होता कि जब कोई कामांध किसी अबला नारी के लिए सेक्सी शब्द का प्रयोग करता है तो उसका मतलब सिर्फ और सिर्फ कामुक होता है और उद्देश्य भी केवल और केवल एक होता है उस स्त्री का शीलहरण.उसका उद्देश्य अपने शिकार की सुन्दरता की प्रशंसा करना तो कदापि नहीं होता.इस तरह अगर ममता जी को प्रत्येक लम्पट में एक प्रशंसक भी नजर आने लगा तब तो हो चुका उनके सेक्सी हाथों से भारतीय महिलाओं का भला.हो सकता है कि वो कल किसी बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटना के बाद यह भी कह डालें कि बलात्कारी निरपराध है क्योंकि वह तो पीडिता की सुन्दरता का अनन्य प्रशंसक है.
मित्रों,आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा कि सुपर प्रधानमंत्री सोनिया गाँधी ने कैसे-कैसे लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा रखा है.इटली से आयातित नेता से हम और उम्मीद भी क्या रख सकते हैं?एक बात तो निश्चित है कि सोनिया जी किसी भी तरह भारतीय संस्कृति का भला नहीं चाहती हैं तभी तो लगातार इसकी जड़ों पर केंद्र सरकार द्वारा सायास प्रहार किया जा रहा है.कभी राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता शर्मा छेड़खानी और यौनापराध-उत्प्रेरक बयान दे डालती हैं तो कभी सरकार सुप्रीम कोर्ट में भारतीय संस्कृति में अतिवार्जित समलैंगिकता का समर्थन करने लगती है.जो कुछ भी इन दिनों देश में संस्कृति के मंच पर हो रहा है मुझे तो लगता है कि ऐसा सरकार द्वारा साजिशन किया या करवाया जा रहा है.चाहे वह सन्नी लियोन का भारत आगमन ही क्यों न हो.स्थिति बड़ी गंभीर है और निकट-भविष्य में और भी ज्यादा गंभीर हो जानेवाली है.अगर हम भारतीय अब भी नहीं संभले तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हमारी लचीली संस्कृति में इतनी तब्दीली आ जाएगी कि सत्य सनातन भारतीय संस्कृति में कुछ भी भारतीय नहीं रह जाएगा.
हमें भी अक्सर आवारा छिछोरे लोगों के मुंह से सेक्सी सुनना पड़ता है.सुन क्र खुशी तो नहीं होती, जी जल जाता है. दिल करता है बोल दें-"अपनी अम्मा का सेक्सीपन नापो जाकर."
जवाब देंहटाएंबहन आश्चर्य होता है कि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के पद पर सोनिया जी ने कैसी महिला को बिठा रखा है.छि:
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