सोमवार, 6 जून 2016

राहुल को कुछ भी बना दो वो रहेगा तो राहुल ही

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह.मित्रों,हमारे एक दादाजी थे.नाम था शिवबल्लभ सिंह.उनके ही एक ग्रामीण मेरे पिताजी के साथ महनार के आर.पी.एस. कॉलेज में इतिहास के प्रोफ़ेसर थे.बेचारे बस नाम के ही प्रोफेसर थे.अकबर का बाप कौन था और भारत छोडो आन्दोलन कब हुआ ये भी उनको पता नहीं था.नाम था कामता सिंह.एक बार हमने दादाजी से मजाक में कहा कि कामता बाबू तो अब प्रिंसिपल बनने वाले हैं.सुनते ही दादाजी ने कहा कि कमतावा पनिसपल भी बन जतई त कमतवे न रहतई यानि कामता प्रिंसिपल भी बन जाएगा तो कामता ही रहेगा.
मित्रों,मैं इस उदाहरण द्वारा कांग्रेस के उन नेताओं को सचेत करना चाहता हूँ जो इन दिनों राहुल गाँधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने का रट्टा लगाने में लगे हैं.वे लोग यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि राहुल गाँधी पार्टी और देश को नेतृत्व देने के लायक हैं ही नहीं.क्या पार्टी अध्यक्ष बनते ही राहुल अचानक सुपर इंटेलिजेंट बन जाएंगे? फिर तो पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी न हुई जादू हो गया? अगर ऐसा है तो फिर सोनिया जी तो अब तक इंटेलिजेंट नहीं हुईं जबकि वे १८ साल से कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं?और अगर वे सचमुच इंटेलिजेंट थीं या अध्यक्ष बनने के बाद बन गयी हैं तो फिर उनको हटाने की जरुरत ही कया है?
मित्रों,वास्तविकता हो यह है कि कांग्रेस के दरबारी नेता नेहरु-गाँधी परिवार से आगे सोंच ही नहीं पाते हैं जबकि उनको भी पता है नेतृत्व का गुण आदमी अपने साथ लेकर पैदा होता है.न तो यह बाजार में बिकता है और न ही इसको जादू-मंत्र से किसी के अन्दर डाला जा सकता है.हमारे प्रधानमंत्री को तो नेतृत्व क्षमता प्राप्त करने के लिए किसी राजनैतिक परिवार में जन्म नहीं लेना पड़ा? उनमें यह गुण है और इतना ज्यादा है कि उन्होंने भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने की ओर भी बला की तेजी से कदम बढ़ा दिया है.
मित्रों,अगर सिर्फ किसी खास कुर्सी पर बैठने से आदमी का कायाकल्प हो जाता तो फिर क्या जरुरत भी स्कूल,कॉलेजों और प्रशिक्षण संस्थानों की?दरअसल गुण कुर्सी में नहीं होता उसपर बैठनेवाले व्यक्ति में होता है.वर्ना इसी भारत के पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय देश की क्या हालत थी और आज क्या है.
मित्रों,यूं तो मैं भविष्यवक्ता कतई नहीं हूँ लेकिन मुझे इस बात का आभास २०१४ के लोकसभा चुनाव के समय ही होने लगा था कि राहुल को अगर पीएम बनना है तो मनमोहन को हटाकर २४ घंटे के लिए भी बन जाएँ फिर ये दिन आए न आए.इसलिए तब ब्रज की दुनिया पर एक आलेख के द्वारा हमने उनसे ऐसा कर लेने की सलाह दी थी.लेकिन हमारी वे सुनने ही क्यों लगें?नहीं सुना तो अब तरसते रहिए अपने नाम से आगे प्रधानमंत्री लिखवाने के लिए.
मित्रों,अंत में मैं अपनी आदत के अनुसार कांग्रेसजनों को सलाह देना चाहूंगा कि भैये अध्यक्ष बनना तो खुद बन जाओ.काहे को बेचारे नादान परिंदे के पीछे पड़े हो?बेचारे को विदेश घूमने दो,दलितों के घर जाकर अपने साथ लाया खाना खाने दो और कुत्ते के द्वारा पवित्र किया हुआ बिस्किट खाने दो.काहे बेचारे की जिन्दगी ख़राब करने पर तुले हो? कहीं ऐसा न हो कि बिहारी टॉपर सौरभ श्रेष्ठ की तरह राहुल जी को भी कहना पड़ जाए कि अध्यक्ष बनाओगे कि मैं ......................

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