मित्रों,यह मजाक भी अजीब चीज है। मजाक का यह सबसे बड़ा अवगुण है कि वो मर्यादाएँ नहीं जानता और अक्सर मजाक-मजाक में मजाक की सीमाओं को लांघ जाता है। यद्यपि उसमें एक गुण भी है जो इस अवगुण से कदापि न्यून नहीं है और वह गुण यह है कि यह बड़ी-से-बड़ी गलती को छिपा जाती है। कुछ भी बोल दीजिए,कुछ भी कर डालिए और कह दीजिए कि मैंने तो मजाक किया था। लेकिन कभी-कभी व्यक्ति का ज्यादा मजाकिया होना उसको खुद ही मजाक की साक्षात् प्रतिमा बना देता है। कुछ ऐसा ही हो रहा है इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू के साथ। हम सभी जानते हैं कि उन्होंने बिहार के बारे में जो भी कहा है वह मजाक में कहा है क्योंकि वे तो खुद ही भारत की न्यायपालिका के लिए,न्यायाधीश के नाम पर बहुत बड़ा मजाक हैं।
मित्रों,इन दिनों बिहार के सारे राजनीतिज्ञ काटजू साहब के पीछे नहा-धोकर पड़े हुए हैं। वे भी जिन्होंने अपने कुशासन रूपी सुशासन से बिहार को ही एक बार फिर से मजाक बना दिया है और वे भी जो विपक्ष में हैं और जानते हैं कि काटजू साहब ने जो भी कहा है कोई गलत नहीं कहा। भले ही काटजू साहब ऐसा कहते समय बिल्कुल भी मजाक के मूड में नहीं हों।
मित्रों,एक बिहारी होने और जन्म से लेकर अबतक कुछेक सालों को छोड़कर लगातार बिहार में रहने के कारण हम जानते हैं कि बिहार के लोग काफी मजाकिया प्रवृत्ति के होते हैं। वो इस दर्जे तक मजाकिया होते हैं कि बहुधा खुद अपना ही मजाक बनाते रहते हैं। हमने यह जानते हुए भी कि बड़े भाई-छोटे भाई मिलकर बिहार की बैंड बजा डालेंगे बैंड-बाजे के साथ फिर से उनको ही चुन लिया। कुछ इसी तरह के मनमौजी यूपी के भैया लोग भी होते हैं। सबकुछ पहले से पता होने के बावजूद वे बार-बार ऐसे दलों के हाथों में अपने प्रदेश का भविष्य सौंपते रहते हैं जिनका भूतकाल काफी डरावना और भयानक है। मै दावे के साथ कहता हूँ कि यूपी-बिहार वाले जिस दिन अपना मजाक खुद बनाना छोड़े देंगे कोई माई लाल उनके साथ मजाक में भी मजाक कर सकने की हिम्मत नहीं करेगा। आज बिहार के लोग भले ही अधपगले काटजू को फाँसी पर चढ़ा दें लेकिन क्या वे बताएंगे कि उन्होंने क्या सोंचकर लालू-नीतीश को वोट दिया था? इन दोनों ने आज बिहार की क्या गत कर दी है? क्या आज बिहार में फिर से शहाबुद्दीन,राजवल्लभ,बिंदी जैसे दुर्दांतों का राज नहीं है? लालू और उनके बेटों का राजदेव रंजन के हत्यारों के साथ खड़ा होना क्या यह साबित नहीं करता कि बिहार फिर से अपने उन्हीं पुराने दिनों में वापस आ गया है जिसकी मांग नीतीश जी चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के अच्छे दिनों के वादे का मजाक उड़ाने के लिए कर रहे थे? आज सुप्रीम कोर्ट भी नीतीश जी से पूछ रहा है कि एक बार जब आपने जानबूझकर शहाबुद्दीन जैसे नरपशु को 45 मुकदमों में थोक में जमानत दिलवा दी तो अब ऐसा क्या हो गया है कि आप उसकी जमानत रद्द करने के लिए हमारे पास अपील कर रहे हैं और अगर अपील करनी ही थी तो उसके बाहर आने के तत्काल बाद क्यों नहीं की?
मित्रों,खुदा झूठ न बोलवाए सच्चाई तो यही है कि आज के नीतीश कल के जीतन राम माँझी से भी ज्यादा आदर्श कठपुतली बनकर रह गए हैं। चंदन कुमार जी का उपमुख्यमंत्री जो चारा,अलकतरा इत्यादि घोटक श्री-श्री भुजंग प्रसाद जी का सुपुत्र है और थेथरीलॉजी में अपने पिता का भी पिता है बीमारी का बहाना करके उनको नीचा दिखाने के लिए कैबिनेट की मीटिंग में नहीं जाता लेकिन 300 किमी दूर भागलपुर दौड़कर चला जाता है और नीतीश कुमार कैबिनेट की बैठक के बाद डरे-सहमे से गठबंधन सदस्यों को आश्वासन देते हैं कि उनके चलते अब उनको समस्या नहीं होगी। आखिर क्या मतलब है इस बेमांगे दिए गए आश्वासन का? क्या नीतीश कुमार यह कहना नहीं चाहते कि जो तुमको हो पसंद वही काम करेंगे भले ही बिहार फिर से अपने-आपमें मजाक बन जाए तो बन जाए? इतनी ठकुरसुहाती तो माँझी भी अपने किंगमेकरों की नहीं करते थे। निष्कर्ष यह कि काटजू साहब भले ही बेदिमागी हों और शर्तिया तौर पर बेदिमागी बातें करने में उनका पूरी वसुधा में भले ही कोई जोड़ा नहीं हो लेकिन सच्चाई तो यही है कि हम बिहारियों ने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारकर उनको ऐसा करने का सुअवसर दे दिया है। पता नहीं अगले साल यूपी वाले भैया लोग अपने भविष्य के साथ क्या खिलवाड़े करने वाले हैं? वे अपने-आपके साथ ही फिर से एक बार मजाक करेंगे या मजाक उड़ानेवालों को ही मजाक का पात्र बना डालेंगे?
मित्रों,इन दिनों बिहार के सारे राजनीतिज्ञ काटजू साहब के पीछे नहा-धोकर पड़े हुए हैं। वे भी जिन्होंने अपने कुशासन रूपी सुशासन से बिहार को ही एक बार फिर से मजाक बना दिया है और वे भी जो विपक्ष में हैं और जानते हैं कि काटजू साहब ने जो भी कहा है कोई गलत नहीं कहा। भले ही काटजू साहब ऐसा कहते समय बिल्कुल भी मजाक के मूड में नहीं हों।
मित्रों,एक बिहारी होने और जन्म से लेकर अबतक कुछेक सालों को छोड़कर लगातार बिहार में रहने के कारण हम जानते हैं कि बिहार के लोग काफी मजाकिया प्रवृत्ति के होते हैं। वो इस दर्जे तक मजाकिया होते हैं कि बहुधा खुद अपना ही मजाक बनाते रहते हैं। हमने यह जानते हुए भी कि बड़े भाई-छोटे भाई मिलकर बिहार की बैंड बजा डालेंगे बैंड-बाजे के साथ फिर से उनको ही चुन लिया। कुछ इसी तरह के मनमौजी यूपी के भैया लोग भी होते हैं। सबकुछ पहले से पता होने के बावजूद वे बार-बार ऐसे दलों के हाथों में अपने प्रदेश का भविष्य सौंपते रहते हैं जिनका भूतकाल काफी डरावना और भयानक है। मै दावे के साथ कहता हूँ कि यूपी-बिहार वाले जिस दिन अपना मजाक खुद बनाना छोड़े देंगे कोई माई लाल उनके साथ मजाक में भी मजाक कर सकने की हिम्मत नहीं करेगा। आज बिहार के लोग भले ही अधपगले काटजू को फाँसी पर चढ़ा दें लेकिन क्या वे बताएंगे कि उन्होंने क्या सोंचकर लालू-नीतीश को वोट दिया था? इन दोनों ने आज बिहार की क्या गत कर दी है? क्या आज बिहार में फिर से शहाबुद्दीन,राजवल्लभ,बिंदी जैसे दुर्दांतों का राज नहीं है? लालू और उनके बेटों का राजदेव रंजन के हत्यारों के साथ खड़ा होना क्या यह साबित नहीं करता कि बिहार फिर से अपने उन्हीं पुराने दिनों में वापस आ गया है जिसकी मांग नीतीश जी चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के अच्छे दिनों के वादे का मजाक उड़ाने के लिए कर रहे थे? आज सुप्रीम कोर्ट भी नीतीश जी से पूछ रहा है कि एक बार जब आपने जानबूझकर शहाबुद्दीन जैसे नरपशु को 45 मुकदमों में थोक में जमानत दिलवा दी तो अब ऐसा क्या हो गया है कि आप उसकी जमानत रद्द करने के लिए हमारे पास अपील कर रहे हैं और अगर अपील करनी ही थी तो उसके बाहर आने के तत्काल बाद क्यों नहीं की?
मित्रों,खुदा झूठ न बोलवाए सच्चाई तो यही है कि आज के नीतीश कल के जीतन राम माँझी से भी ज्यादा आदर्श कठपुतली बनकर रह गए हैं। चंदन कुमार जी का उपमुख्यमंत्री जो चारा,अलकतरा इत्यादि घोटक श्री-श्री भुजंग प्रसाद जी का सुपुत्र है और थेथरीलॉजी में अपने पिता का भी पिता है बीमारी का बहाना करके उनको नीचा दिखाने के लिए कैबिनेट की मीटिंग में नहीं जाता लेकिन 300 किमी दूर भागलपुर दौड़कर चला जाता है और नीतीश कुमार कैबिनेट की बैठक के बाद डरे-सहमे से गठबंधन सदस्यों को आश्वासन देते हैं कि उनके चलते अब उनको समस्या नहीं होगी। आखिर क्या मतलब है इस बेमांगे दिए गए आश्वासन का? क्या नीतीश कुमार यह कहना नहीं चाहते कि जो तुमको हो पसंद वही काम करेंगे भले ही बिहार फिर से अपने-आपमें मजाक बन जाए तो बन जाए? इतनी ठकुरसुहाती तो माँझी भी अपने किंगमेकरों की नहीं करते थे। निष्कर्ष यह कि काटजू साहब भले ही बेदिमागी हों और शर्तिया तौर पर बेदिमागी बातें करने में उनका पूरी वसुधा में भले ही कोई जोड़ा नहीं हो लेकिन सच्चाई तो यही है कि हम बिहारियों ने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारकर उनको ऐसा करने का सुअवसर दे दिया है। पता नहीं अगले साल यूपी वाले भैया लोग अपने भविष्य के साथ क्या खिलवाड़े करने वाले हैं? वे अपने-आपके साथ ही फिर से एक बार मजाक करेंगे या मजाक उड़ानेवालों को ही मजाक का पात्र बना डालेंगे?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पाकिस्तान पर कूटनीतिक और सामरिक सफलता “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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