मित्रों, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां सत्ता के लिए क्या कुछ नहीं कर सकती. दुर्भाग्यवश इस मामले में हमारे देश में कोई भी पार्टी विथ डिफरेंस नहीं है. चूँकि कुछ ही दिन बाद कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होनेवाला है इसलिए वहां के दल एक से एक गन्दा खेल खेलने में लगे हुए हैं.
मित्रों, सारी हदों को तोड़ते हुए कल कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा कर दी है. यहाँ हम आपको बता दें पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी अपने समय में राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा की थी लेकिन आलोचना होने के बाद उसे वापस ले लिया था.
मित्रों, सवाल उठता है कि जब देश एक है, एक संविधान है और राष्ट्रीय ध्वज भी एक है फिर कर्नाटक को अलग क्षेत्रीय झंडा क्यों चाहिए? सवाल यह भी उठता है कि यदि राज्य का झंडा अलग होगा तो क्या यह हमारे राष्ट्रिय ध्वज के महत्त्व को कम नहीं करेगा? क्या ऐसा होने पर लोगों में प्रांतवाद की भावना नहीं बढ़ेगी? प्रश्न यह भी उठता है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित कैसे करेगी कि अलग क्षेत्रीय झंडे के बावजूद वहां के नागरिकों की आस्था राष्ट्रीय ध्वज के प्रति पूर्ववत बनी रहे?
मित्रों, हालाँकि इन सवालों का जवाब जानना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी यह समझना है कि क्षेत्रीय झंडे को महत्त्व देने का मतलब राष्ट्रीय झंडे को अस्वीकृति देना कतई नहीं होता. अमेरिका, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे संघीय व्यवस्था वाले अनेक देशों में राष्ट्रीय अस्मिता के साथ राज्यों को अलग क्षेत्रीय पहचान बनाए रखने की छूट दी गई है. म्यांमार में तो हर क्षेत्र के अलग झंडे हैं.
मित्रों, इस आधार पर है देखते हैं तो कर्नाटक मांग जायज लगती है लेकिन दूसरी तरफ प्रश्न यह भी उठेंगे कि एक राष्ट्रीय झंडे से राज्य सरकार को परेशानी क्या है? झंडे के प्रति प्रेम और आदर का भाव होना जरूरी है जब, तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं रह पा रही है तो, उस लाल-पीले झंडे के प्रति कैसे रहेगी, जिसे अपनाने के लिए कर्नाटक सरकार संविधान का हवाला तक दे रही है. कर्नाटक के बाद अन्य राज्य भी ऐसी मांग करेंगे. इस तरह देश में क्षेत्रीयता की भावना हावी होती जाएगी और राष्ट्र के तौर पर हम भीतर से खोखले होते जाएंगे.
कहना न होगा इस तरह की विभाजनकारी राजनीति राष्ट्रीय एकता और प्रगति में बाधक साबित होगी.
मित्रों, प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक चिन्ह या प्रतीक होता है,जिससे उसकी पहचान बनती है. राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र के गौरव तथा देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता का प्रतीक भी होता है. राष्ट्रीय ध्वज एक ही तो और उनके प्रति आस्था बनी रहनी चाहिए. वैसे हमें यह भी देखना होगा कि भारत के एकमात्र राज्य जम्मू और कश्मीर जिसका अलग झंडा है में तिरंगे के प्रति प्रेम और आस्था का क्या हाल है.
मित्रों, अंत में मैं भाजपा को पूर्वोत्तर में मिली ऐतिहासिक जीत के लिए बधाई देते हुए देशभर में महापुरुषों के मूर्तिभंजन की घटनाओं की घोर निंदा करता हूँ चाहे वो लेलिन ही क्यों न हो हालाँकि सत्य यह भी है उसके नेतृत्व में रूस में बड़े पैमाने पर नरसंहार की घटनाओं को अंजाम दिया गया था.
मित्रों, सारी हदों को तोड़ते हुए कल कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा कर दी है. यहाँ हम आपको बता दें पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी अपने समय में राज्य के लिए एक अलग झंडे की घोषणा की थी लेकिन आलोचना होने के बाद उसे वापस ले लिया था.
मित्रों, सवाल उठता है कि जब देश एक है, एक संविधान है और राष्ट्रीय ध्वज भी एक है फिर कर्नाटक को अलग क्षेत्रीय झंडा क्यों चाहिए? सवाल यह भी उठता है कि यदि राज्य का झंडा अलग होगा तो क्या यह हमारे राष्ट्रिय ध्वज के महत्त्व को कम नहीं करेगा? क्या ऐसा होने पर लोगों में प्रांतवाद की भावना नहीं बढ़ेगी? प्रश्न यह भी उठता है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित कैसे करेगी कि अलग क्षेत्रीय झंडे के बावजूद वहां के नागरिकों की आस्था राष्ट्रीय ध्वज के प्रति पूर्ववत बनी रहे?
मित्रों, हालाँकि इन सवालों का जवाब जानना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी यह समझना है कि क्षेत्रीय झंडे को महत्त्व देने का मतलब राष्ट्रीय झंडे को अस्वीकृति देना कतई नहीं होता. अमेरिका, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे संघीय व्यवस्था वाले अनेक देशों में राष्ट्रीय अस्मिता के साथ राज्यों को अलग क्षेत्रीय पहचान बनाए रखने की छूट दी गई है. म्यांमार में तो हर क्षेत्र के अलग झंडे हैं.
मित्रों, इस आधार पर है देखते हैं तो कर्नाटक मांग जायज लगती है लेकिन दूसरी तरफ प्रश्न यह भी उठेंगे कि एक राष्ट्रीय झंडे से राज्य सरकार को परेशानी क्या है? झंडे के प्रति प्रेम और आदर का भाव होना जरूरी है जब, तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं रह पा रही है तो, उस लाल-पीले झंडे के प्रति कैसे रहेगी, जिसे अपनाने के लिए कर्नाटक सरकार संविधान का हवाला तक दे रही है. कर्नाटक के बाद अन्य राज्य भी ऐसी मांग करेंगे. इस तरह देश में क्षेत्रीयता की भावना हावी होती जाएगी और राष्ट्र के तौर पर हम भीतर से खोखले होते जाएंगे.
कहना न होगा इस तरह की विभाजनकारी राजनीति राष्ट्रीय एकता और प्रगति में बाधक साबित होगी.
मित्रों, प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक चिन्ह या प्रतीक होता है,जिससे उसकी पहचान बनती है. राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र के गौरव तथा देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता का प्रतीक भी होता है. राष्ट्रीय ध्वज एक ही तो और उनके प्रति आस्था बनी रहनी चाहिए. वैसे हमें यह भी देखना होगा कि भारत के एकमात्र राज्य जम्मू और कश्मीर जिसका अलग झंडा है में तिरंगे के प्रति प्रेम और आस्था का क्या हाल है.
मित्रों, अंत में मैं भाजपा को पूर्वोत्तर में मिली ऐतिहासिक जीत के लिए बधाई देते हुए देशभर में महापुरुषों के मूर्तिभंजन की घटनाओं की घोर निंदा करता हूँ चाहे वो लेलिन ही क्यों न हो हालाँकि सत्य यह भी है उसके नेतृत्व में रूस में बड़े पैमाने पर नरसंहार की घटनाओं को अंजाम दिया गया था.
हिंदी ब्लॉग और किताबों की खोज में इस साईट पे आ गया. अच्छा लगा की हिंदी में काफी नियमित रूप से आप ब्लॉग लिख रहें हैं. और भी अच्छा लगा की आप उस जगह से हैं जिसको मैं काफी अच्छे तरह से जानता हूँ. :)
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