शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

अबकी बार आर या पार


मित्रों, कल जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला किया गया है जिसे कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है. मृतकों की संख्या ४४ हो चुकी है. पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली है.
मित्रों, अब समय आ गया है कि हम इस तरह की घटनाओं की सिर्फ निंदा करना बंद करें और आतंक की जड़ पर प्रहार करें क्योंकि यह लडाई किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से नहीं है बल्कि विचारधारा से है. उस विचारधारा से है जिसको सऊदी अरब वित्तपोषित करता है और फिर उन पैसों से पूरी दुनिया में मस्जिदों और मदरसों का जाल बिछाया जाता है जहाँ बच्चों को बचपन से ही जन्नत के सुनहरे सपने दिखाए जाते हैं.
मित्रों, मैं नहीं जानता कि इस धरती से अलग कहीं स्वर्ग या नरक है या नहीं क्योंकि अब तक तो कहीं और जीवन मिला ही नहीं है लेकिन इतना जानता हूँ कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने धरती को नरक बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है और विडंबना तो यह है कि उनको इस बात का लालच दिया जाता है कि निर्दोषों को मारने के जब वो मरेगा तो मरने के बाद उसे स्वर्ग मिलेगा. इन मूर्खों की समझ में यह क्यों नहीं आ रहा कि जब शरीर ही नहीं रहेगा तो सुख और दुःख का सवाल ही नहीं उठता. और अगर जीवनोपरांत जीवन होता भी है तो भगवान क्या पागल या राक्षस है जो निर्दोषों को मारने और सतानेवालों को ईनाम देगा?
मित्रों, अब कल के हमले की जिम्मेदारी जिस संगठन ने ली है उसके नाम पर गौर फरमाईए-जैश ए मोहम्मद अर्थात मोहम्मद की सेना. मतलब कि इस संगठन का निर्माण ही इस्लाम के प्रवर्तक मोहम्मद साहब के नाम पर हुआ है फिर भी इस्लामिक विश्व मौन है. अगर कुरान या इस्लाम में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है तो बहुत पहले पूरी दुनिया में इसके खिलाफ आवाज उठनी चाहिए थी और लोगों को सडकों पर उतरना चाहिए था लेकिन दुर्भार्ग्यावश ऐसा नहीं हो रहा है जबकि हम उस देश के वासी हैं जहाँ पाकिस्तान से भी ज्यादा मुसलमान रहते हैं. मैं पूछता हूँ कि कल से आज तक या उससे पहले कितनी मस्जिदों के ईमामों ने इस आतंकी हमले की निंदा की? अगर नहीं की तो क्यों नहीं की? मैं केजरीवाल से जो दिल्ली का मुख्यमंत्री है से पूछता हूँ कि क्या इसीलिए वो दिल्ली के मस्जिदों के ईमामों को वेतन देने जा रहा है जिससे कि वे ईमाम इस्लाम में होनेवाले हर सुधार का विरोध करें और आतंकवाद को मौन समर्थन दें?
मित्रों, इस बार हमें आर या पार चाहिए. हम देखना चाहते हैं कि यह सरकार वास्तव में ५६ ईंची है या नहीं. दुर्भाग्य है कि रोजाना हमारे जवान सीमा पार से होनेवाले हमलों में मारे जा रहे हैं. फिर क्यों नहीं एक युद्ध ही लड़ लिया जाए जब हम लगातार युद्ध जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं? साथ ही हमें अपने देश में कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे मस्जिदों और मदरसों की भी जाँच करनी होगी और जरुरत पड़ने पर तोडना होगा और बंद करना होगा अन्यथा भविष्य में भारत में भी जैश ए मोहम्मद जैसे संगठन बनने लगेंगे. केरल में इस तरह के संगठनों के बनने के समाचार मिल भी रहे हैं. साथ ही भारत सरकार को बिना कोई देरी किए जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना होगा क्योंकि जनगणना के आकडे बताते हैं कि मुसलमानों की जनसँख्या हिन्दुओं के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. साथ ही देश की राष्ट्रभक्त जनता से अपील करता हूँ कि वे #अबकीबारआरयापार के अंतर्गत जमकर पोस्ट करें जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके।

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