मंगलवार, 18 जून 2019

साहेब, मौसम और गुलाम


मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि क्या उटपटांग शीर्षक लगाया है मैंने. साहेब हैं तो बीवी भी होनी चाहिए. लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं. साहेब की बीवी है मगर नहीं है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? साहेब, बीवी और गुलाम में बीवी साहेब के घर में रहती थी लेकिन यहाँ बीवी उनके साथ नहीं रहती. दोनों में दशकों से भेंट तक नहीं हुई. साहेब बीवी के बदले मौसम से काम चला रहे हैं.
मित्रों, ७०-८० के दशक में ही जब हम विज्ञान प्रगति पढ़कर विज्ञान की प्रगति करवा रहे थे तब पढने को मिलता था कि भविष्य बड़ा भयावह होनेवाला है. जलवायु परिवर्तन के कारण उन स्थानों पर सूखा पड़ेगा जहाँ बाढ़ आती है और उन स्थानों पर बाढ़ आएगी जहाँ मौसम सूखा रहता है. नदियों के ग्लेशियर सूख जाएँगे और गंगा-यमुना समेत सारी नदियाँ खुद पानी के लिए तरसेंगी. जब जल पुरुष राजेंद्र सिंह राजस्थान में हरियाली ला रहे थे तब देश के नेता वोटों की फसल काट रहे थे. अब जबकि भविष्यवाणी किसी तोतेवाले पंडित के बदले वैज्ञानिकों ने की थी तो मौसम ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है. पूरा बिहार जो एक समय अप्रैल के महीने से ही बरसात से सराबोर रहता था इन दिनों भयंकर लू की चपेट में है और दर्जनों लोग रोजाना सिर्फ लू से मर रहे हैं. हैण्ड पम्प सूख गए हैं. तालाबों और कुँओं को तो हमने वर्षों पहले ही सुखा दिया. हैण्ड पम्प और नलकूप के आगे उनकी क्या बिसात मगर सरकार यह भूल गयी कि हैण्ड पम्प जमीन से सिर्फ पानी निकालना जानते हैं रिचार्ज नहीं कर सकते.
मित्रों, अब जबकि लगभग पूरे देश में त्राहिमाम की स्थिति है तब साहेब ने एक वक्तव्य जारी करके पूरे भारत के ग्राम प्रधानों को निर्देश दिया है कि बरसात के पानी को जमा करने का इंतजाम किया जाए. इधर साहेब ने वक्तव्य दिया और उधर पानी जमा हो गया. उन सारे तालाबों का क्षण भर में पुनरूद्धार हो गया जिनमें जलकुम्भी ने अड्डा जमा लिया है और उन सारे तालाबों का अतिक्रमण भी समाप्त हो गया जिनमें मिटटी भर-भर के सरकारी दफ्तर और घर बना दिए गए हैं. साहेब इसी तरह से काम करते हैं और कहते भी हैं कि मोदी है तो मुमकिन है. पता नहीं यहाँ मुमकिन से उनका तात्पर्य है क्या आबादी या बर्बादी?
मित्रों, आबादी से याद आया कि भारत के लिए आबादी भी बहुत सारी बरबादियों का कारण है. ऐसा नहीं है साहेब को यह पता नहीं है लेकिन साहेब इस तरफ से आँखें पूरी तरह से बंद किए हुए हैं और उनलोगों को अपनी तरफ करने में लगे हुए हैं जो आबादी बढाने में सबसे ज्यादा योगदान कर रहे हैं. लगता है कि साहेब को मौसम की नहीं सिर्फ चुनावी मौसम की चिंता है.
मित्रों, हमारा क्या है हम तो ठहरे गुलाम और हमारा काम तो सिर्फ सिर हिलाना है और वो भी हाँ के स्वर में. नहीं में हिलाना भी चाहें तो नहीं हिला सकते क्योंकि साहेब को सम्मोहिनी विद्या आती है. तथापि मुझे पर्यावरणविदों की भविष्यवाणियों से चिंता हो रही है जो कहते हैं कि भविष्य में गरीब लोग जलवायु-परिवर्तन से उत्पन्न अकाल की स्थिति में अनाज और पानी नहीं खरीद पाएँगे और मर जाएँगे. इसी तरह अभी बिहार में जिनके पास कूलर और एसी है उनका लू क्या बिगड़ ले रही है लेकिन जो गरीब हैं वे मर रहे हैं और लू और मस्तिष्क ज्वर से केवल वही मर रहे हैं. ऐसे में अगर गुलामों को अपनी जान बचानी है तो जल-संरक्षण को जनांदोलन का रूप देना होगा और इसके लिए एक नहीं लाखों राजेंद्र सिंह की जरुरत होगी. क्योंकि पानी नहीं होगा तो पीयोगे क्या और खेती कैसे करोगे और खेती नहीं होगी तो खाओगे क्या? साहेब का क्या है अभी ग्राम-प्रधानों से आह्वान किया है और मानसून के आते ही भूल जाएंगे. फिर तो वे विमान और हेलीकाप्टर से बाढ़ग्रस्त ईलाकों का हवाई-सर्वेक्षण करेंगे. हर साल यही तो होता है.

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