मंगलवार, 25 जून 2019

मोदी, राष्ट्रवाद और दम तोड़ते बच्चे


मित्रों, आपको याद होगा कि मोदी जी ने २०१४ के लोकसभा चुनावों के भाषण में कहा था कि उनके समय में चलता है नहीं चलेगा और वे हर क्षेत्र में ऐसे इंतजाम करेंगे जिससे वही हो जो होना चाहिए. परन्तु हम देखते हैं कि मोदी जी के शासन के दूसरे कार्यकाल में भी वही सब हो रहा है जो मनमोहन सिंह के समय में हो रहा था. शासकों का वही ऐश-मौज और जनता के दुखों के प्रति वही अक्षम्य संवेदनहीनता.
मित्रों, बचपन में मैंने केनोपनिषद में एक बोध कथा पढ़ी थी कि एक बार लम्बे युद्ध के बाद देवताओं ने दानवों पर विजय प्राप्त की.  उस विजय से देवताओं को अहंकार हो गया । वे समझने लगे कि यह उनकी ही विजय है। उनकी ही महिमा है और वे अपने कर्तव्यों को भूलकर मौज-मस्ती में डूब गए. यह देखकर वह (ब्रह्म) उनके सामने प्रादुर्भूत हुआ और वे (देवता) उसको न जान सके कि ‘यह यक्ष कौन है’
तब उन्होंने (देवों ने) अग्नि से कहा कि, ‘हे जातवेद ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । अग्नि ने कहा – ‘बहुत अच्छा’. अग्नि यक्ष के समीप गया । उसने अग्नि से पूछा – ‘तू कौन है’ ? अग्नि ने कहा – ‘मैं अग्नि हूँ, मैं ही जातवेदा हूँ’. ‘ऐसे तुझ अग्नि में क्या सामर्थ्य है ?’ अग्नि ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूँ’. तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे जला’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को जलाने में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका.  तब उन्होंने ( देवताओं ने) वायु से कहा – ‘हे वायु ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । वायु ने कहा – ‘बहुत अच्छा’. वायु यक्ष के समीप गया । उसने वायु से पूछा – ‘तू कौन है’ । वायु ने कहा – ‘मैं वायु हूँ, मैं ही मातरिश्वा हूँ’. ‘ऐसे तुझ वायु में क्या सामर्थ्य है’ ? वायु ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे उड़ा सकता हूँ’.
तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे उड़ा’। अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को उड़ाने में समर्थ न होकर वह लौट गया। इस प्रकार वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका. 
तब उन्होंने (देवताओं ने) इन्द्र से कहा – ‘हे मघवन् ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । इन्द्र ने कहा – ‘बहुत अच्छा’ । वह यक्ष के समीप गया । उसके सामने यक्ष अन्तर्धान हो गया.
वह इन्द्र उसी आकाश में अतिशय शोभायुक्त स्त्री, हेमवती उमा के पास आ पहुँचा, और उनसे पूछा कि ‘यह यक्ष कौन था’. उसने स्पष्ट कहा – ‘ब्रह्म है’ । ‘उस ब्रह्म की ही विजय में तुम इस प्रकार महिमान्वित हुए हो’ । तब से ही इन्द्र ने यह जाना कि ‘यह ब्रह्म ही है जो सारी शक्तियों का मूल है.'
मित्रों, मुझे लगता है कि कुछ ऐसी ही स्थिति इन दिनों मोदी सरकार की है. मोदी और उनके साथी यह भूल गए हैं कि लोकतंत्र में जनता ही ब्रह्म है और जनता ने उनकी जीत में अपनी जीत को देखा तभी उनको यह प्रचंड जीत मिली है. एक तरह बिहार में बच्चे मर रहे हैं और दूसरी तरफ मोदी पांच सितारा होटल में पार्टी कर रहे हैं. क्या इससे भी बड़ी कोई संवेदनहीनता हो सकती है? क्या सभी चौक-चौराहों और रेलवे स्टेशनों पर १००-१०० फीट ऊंचा तिरंगा फहरा देने मात्र से देश की सारी समस्याएँ दूर हो जाएंगी. मैंने बचपन में देखा है कि जब श्रीमती इन्दिरा गाँधी का शासन था तब सरकारी स्कूल में पढाई का स्तर गजब का था. इसी तरह सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी. आज सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की हालत क्या है और क्यों है  और इसमें सुधार लाना किसकी जिम्मेदारी है? क्या सबकुछ निजी क्षेत्र के हाथों सौंप देने से देश की जनता का भला हो जाएगा? मैंने खुद भी अनुभव किया है कि निजी क्षेत्र को सिर्फ लाभ से मतलब होता है नैतिकता के लिए उसके पास कोई जगह नहीं होती. कार्ल मार्क्स ने जो कहा था कि पूँजी हृदयहीन होती है कोई गलत नहीं कहा था. ऐसी स्थिति में मोदी कैसे देश को पूँजी यानि निजी क्षेत्र के कदमों में डालकर कह सकते हैं कि अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों.
मित्रों, सबसे दुखद स्थिति तो यह है कि जिस बिहार ने मोदी के एक आह्वान पर ४० में से ३९ सीटें उनके झोले में डाल दिया उसी बिहार के बच्चे समुचित व्यवस्था के बिना दम तोड़ते रहे और मोदी जी के मुंह से सहानुभूति के एक शब्द तक न फूटे. मोदी जी होंगे आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति लेकिन शक्तिशाली तो बगदादी भी है और लादेन भी था. हमने तो आपको राम समझ के वोट किया था. वही राम जिसके लिए प्रजा का सुख ही अपना सुख था और प्रजा का हित ही अपना हित था. जिसका सबकुछ प्रजा का था जिसका सबकुछ प्रजा थी. आप खुद ही निर्णय लीजिए मोदी जी कि आपको क्या बनना है राम या बगदादी. भूलिएगा नहीं कि देव जनता आपके पतंग को एक चुनाव में आसमान दिखा सकती है तो दूसरे चुनाव में जमीन भी सूंघा सकती है.

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