शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

नालों में शहीद होते सफाईकर्मी


मित्रों, पिछले दिनों लोकसभा चुनावों के समय जब भारत के प्रधानमंत्री ने मीडिया के सामने समाज के सबसे निचले पायदान पर आने वाले सफाईकर्मियों के पांव पखारे तो पूरा भारतवर्ष जैसे रोमांचित हो उठा। इतना सम्मान,अद्भुत, अभूतपूर्व!
मित्रों, सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित होने के बाद हूं इन सफाईकर्मियों की जिंदगी में कोई बदलाव भी आया है?अगर खबरों की मानें तो नहीं। बल्कि इन निरीह सफाईकर्मियों की जिन्दगी का कल भी कोई ठिकाना नहीं था और आज भी नहीं है. इनमें से कोई भी नहीं जानता कि नाले की सफाई करते हुए कब इनकी मौत दम घुट जाने से हो जाए. कभी-कभी तो नालियां इन बेचारों की सामूहिक कब्र भी बन जाती है. फिर घंटे-दो-घंटे तक मीडिया में शोर और फिर सब कुछ सामान्य जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो या फिर इनका मरना कोई रोजाना घटित होनेवाली अतिसामान्य घटना हो.
मित्रों, प्रधानमंत्री जी क्या समझते हैं कि इन बेचारों को सिर्फ सम्मान की आवश्यकता है? निश्चित रूप से इनको सम्मान भी चाहिए लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरूरी है इनकी प्राण-रक्षा और मैं समझता हूँ कि इसमें खर्च भी कोई ज्यादा नहीं लगेगा. बस इनको गोताखोरों वाला गैस-सिलेंडर उपलब्ध करवा दिया जाए. प्रधानमंत्री जी कोई भी व्यक्ति जब तक पेट से बहुत लाचार न हो,निरुपाय न हो इस तरह के काम नहीं करेगा. हम जैसे ऊंचीं जाति के लोग तो मर जाएँगे किन्तु ऐसा काम नहीं करेंगे. फिर ये बेचारे तो पीढ़ियों से समाज को साफ़-सुथरा रखने का महान कार्य करते आ रहे हैं. क्या हमारी नगरपालिकाएं या नगर-निगम इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछेक लाख रूपये खर्च नहीं कर सकते? क्या ऐसा करना सरकार और निगमों और पालिकाओं का कर्तव्य नहीं होना चाहिए?
मित्रों, हमारे यहाँ एक कहावत है कि जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीड पराई. आपने कभी गंदे नाले में डुबकी लगाई हो या मल की टंकी में उतरे हों तब आपको पता चलेगा कि सफाईकर्मी कितना बड़ा काम करते हैं. इसी तरह जब एक साथ १०-१० सफाईकर्मियों की नाली में दम घुटने के कारण सामूहिक मौत हो जाती है तब उनके परिजनों पर क्या गुजरती है यह उनके परिजन ही बता सकते हैं हम जैसे दूर दर्शक तो बस उनके दर्द को महसूस भर कर सकते हैं.
मित्रों, अब मैं प्रधानमंत्री जी से इन सफाईकर्मियों से सम्बद्ध सबसे बड़ा सवाल पूछने जा रहा हूँ. प्रधानमंत्री जी सच-सच बताईएगा कि आपने जो लोकसभा चुनावों के समय इन सफाईकर्मियों के पाँव पखारे थे क्या ऐसा आपने भावनाओं में बह कर सच्ची श्रद्धा से किया था या फिर यह दलितों का वोट प्राप्त करने का एक उपाय मात्र था? मैं ऐसा इसलिए पूछ रहा हूँ कि लगभग हर रोज कहीं-न-कहीं सफाईकर्मी नालियों में दम तोड़ रहे हैं लेकिन आपका एक बयान तक नहीं आ रहा सुरक्षा के उपाय करना तो दूर की बात रही. कहीं आपका सफाईकर्मियों के प्रति प्यार ठेठ बिहारी भाषा में छूंछ दुलार की श्रेणी में तो नहीं आता? यहाँ मैं पाठकों को बता दूं कि छूंछ दुलार का मतलब दिखावे वाला, फुसलाने-बहलानेवाला प्यार होता है. 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  2. बहुत अच्छा, वाज़ि‍ब सवाल उठाए हैं

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  3. यथार्थ सटीक प्रश्न उठाती अभिव्यक्ति ।

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