शनिवार, 23 नवंबर 2019

शून्य पर सवार भारतीय राजनीति


मित्रों, जबकि इस घनघोर कलियुग में भगवान की भक्ति तक को गंदा धंधा बना दिया गया है राजनीति के गन्दा हो जाने को बिलकुल भी अनपेक्षित नहीं कहा जा सकता. एक समय था जब दिल्ली में सोनिया माता का शासन था और उनका स्पष्ट रूप से मानना था कि दाग बुरे नहीं बल्कि अच्छे हैं. शायद इसलिए उनदिनों कांग्रेस में जो जितना ज्यादा बदनाम था वो सरकार में उतने ही बड़े पद पर था. फिर अन्ना हजारे केजरीवाल नामक स्वघोषित महासत्यवादी को साथ लेकर आए जिन्होंने अपने बच्चों की कसम खाकर अन्ना के मंच से घोषणा की कि वे कभी राजनीति में नहीं जाएंगे. लेकिन सारे कसमों को तोड़ते हुए केजरीवाल राजनीति में आ गए और यह कहते हुए आए कि उन्होंने ऐसा मजबूरी में किया है क्योंकि वे राजनीति से गंदगी को साफ़ करने आए हैं. बहुत जल्द उनकी बार-बार की बन्दरगुलाटी से जनता उब गयी और जो केजरीवाल केंद्र में सरकार गठन के सपने देख रहे थे सिर्फ दिल्ली में सिमट कर रह गए.
मित्रों, इस बीच जो शून्य भारतीय राजनीति में पैदा हुआ उससे जमकर लाभ उठाया भारतीय जनता पार्टी ने और मोदी ने २०१४ के लोकसभा चुनावों के समय वादों की झड़ी लगा दी. लगा जैसे अब भारत और भारतीय राजनीति में राम राज्य आकर रहेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं और भारत में रामराज्य के बदले अम्बानी-अडानी राज आ गया. जो सरकारी कंपनियां कभी नवरत्न थी आज नौ-नौ पैसे में बेची जा रही हैं. मोदी ने चुनावों के समय कांग्रेस पर देश में भ्रष्टाचार फ़ैलाने का आरोप लगाते हुए देश को कांग्रेसमुक्त करने का वादा किया था लेकिन चुनावों के बाद उन्होंने भाजपा को जैसे गंगा बना दिया. कांग्रेस के लोग झुण्ड-के-झुण्ड भाजपा के घाट पर आने लगे और डुबकी लगाकर पवित्र होने लगे.
मित्रों, आज की तारीख आते-आते देश की राजनीति में ऐसी स्थिति हो गयी है कि भाजपा विधायकों को खरीद कर हारा हुआ चुनाव भी जीत जा रही है. जैसे हमारे देश के राजनीतिज्ञों के शब्दकोश में नैतिकता शब्द है ही नहीं. बस येन-केन-प्रकारेण भाजपा को कुर्सी चाहिए. वैसे आज सुबह महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसके लिए सिर्फ भाजपा ही दोषी हो ऐसा भी नहीं है. जब शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो उसे चुनावों के बाद भी भाजपा के साथ ही रहना चाहिए था लेकिन उसने जनादेश का अपमान करते हुए एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया.
मित्रों, आज सुबह जो खेल महाराष्ट्र में हुआ उसमें अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी को हुआ है वो है कांग्रेस पार्टी. शिवसेना को तो नुकसान हुआ ही है मगर कांग्रेस ने यह दिखा दिया कि सत्ता के लिए वो अपनी विचारधारा से भी समझौता कर सकती है. पवार फिर से महाराष्ट्र की राजनीति के सिकंदर बनकर उभरे हैं और सबसे ज्यादा फायदा उनको ही हुआ है. भाजपा के खेमे आ जाने से उनका पूरा परिवार अनगिनत घोटालों के आरोपों से रातोंरात मुक्त हो गया है. जहाँ तक भाजपा का सवाल है तो भाजपा के लिए महाराष्ट्र में सरकार का गठन भले ही तात्कालिक लाभ देनेवाला हो दीर्घकालिक रूप से उसके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा क्योंकि अब उसका असली चेहरा भारत की जनता के समक्ष उजागर हो गया है और वो यह है कि भाजपा कहीं से भी पार्टी विथ डिफरेंस नहीं है बल्कि वो बांकी पार्टियों के मुकाबले कहीं ज्यादा लालची, अनैतिक और राजनैतिक शुचिता और मूल्यों से विहीन है. आज की भाजपा अटल-आडवाणी वाली भाजपा नहीं है बल्कि देश को बेच डालनेवाली महाभ्रष्ट पार्टी है और देश और देश की गरीब जनता के लिए हानिकारक हो चुकी है. निस्संदेह देश की राजनीति में फिर से बहुत बड़ा शून्य पैदा हो गया है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें