सोमवार, 15 फ़रवरी 2021
मोदी राज में लगातार कठिन होता जीवन
मित्रों, एक जमाना था जब भारत में २०१४ के लोकसभा चुनाव प्रगति पर थे. तब एक गीत और नारा बार-बार भारत की फिजाओं में गूँज रहा था कि अच्छे दिन आनेवाले हैं. हमें भी लगा कि शायद इस बार ऐसा होकर रहेगा. कारण यह कि लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचार से काफी नाराज और परेशान थे. फिर जब चुनाव परिणामों की घोषणा हुई और भाजपा को अकेले बहुमत मिला तब लोगों की उम्मीदों को और भी बल मिला.
मित्रों, इसके बाद जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल की घोषणा हुई तब थोड़ी-सी निराशा हुई क्योंकि जिन लोगों को मंत्री बनाया गया था उनमें से कई पूरी तरह से अयोग्य थे. साल-दो-साल होते-होते देश की जनता में निराशा घर करने लगी. लेकिन मोदी जनमानस को समझते थे इसलिए एक-के-बाद-एक ऐसे कदम उठाते रहे जिससे जनता की उम्मीदों का गुब्बारा फूलता ही चला गया. पता नहीं यह कब फूटेगा और उसके बाद भाजपा और भारत का क्या होगा? पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी को लागू करना ये दो ऐसे कदम रहे जिनसे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ के स्थान पर हानि हुई. जो बेरोजगारी पहले से ही काफी बढ़ी हुई थी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. लेकिन यहाँ भी कमाल दिखाया भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने और देश की जनता को अपने शब्द-जाल में उलझाए रखा. चुनाव-दर-चुनाव जीतते रहे.
मित्रों, फिर आया कोरोना और सरकार द्वारा बिना तैयारी के किए गए लौकडाउन का दौर जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी. कहना न होगा कि इस दौरान अगर भारत का वित्त मंत्री किसी अर्थशास्त्री को बनाया गया होता तो भारतीय जीडीपी आज ऋणात्मक नहीं होती.
मित्रों, अगर हम देश की आम जनता के जीवन को देखें और पिछली मनमोहन सरकार से तुलना करें तो उनके लिए अच्छे दिन के बदले बुरे दिन आ गए हैं. नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना के कारण आमदनी घट गई है. उस पर जले पर नमक का काम कर रही है कमरतोड़ महंगाई. ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड अलग जनता को लूट रहा है जिससे निबटने के लिए भी मोदी सरकार बिलकुल भी तैयार नहीं है. कहने का तात्पर्य यह कि मोदी सरकार में देशवासियों का जीवन पहले से कहीं ज्यादा कठिन हो गया है. खाने-पीने से लेकर घर बनाने की सामग्री तक सबकुछ भयंकर महंगाई रुपी चक्रवात की तरह जन-जीवन को तहस-नहस करने पर तुली है लेकिन मोदी सरकार का जैसे इस तरफ ध्यान ही नहीं है. पहले के मुकाबले रेलयात्रा भी काफी महँगी की जा चुकी है. पेट्रोलियम पदार्थ जहाँ पहले रुला रहे थे अब झुलसा रहे हैं. अर्थव्यवस्था इस समय आईसीयू में है. हालात इतने ख़राब हैं कि सरकार जमीन, बैंक, रेलवे स्टेशन और एअरपोर्ट बेचने पर मजबूर हो गई है. उस पर गजब यह कि अपनी महारत के अनुसार मोदी सरकार ने देश के लोगों को राम मंदिर में उलझा रखा है जिससे देश के वास्तविक मुद्दे इस समय भी गौण हैं. जाहिर-सी बात है कि इस समय कहीं भी अच्छे दिन आनेवाले हैं गाना या नारा कहीं सुनाई नहीं देता. हाँ, जनता जरूर यह समझ चुकी है कि आगे और भी बुरे दिन आनेवाले हैं.
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