शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

बिहार में रौलेट एक्ट

मित्रों, मैं जानता हूँ कि आप सभी रौलेट एक्ट से वाकिफ हैं. १९१८ में ब्रिटिश सरकार ने यह कानून हम भारतीयों के लिए बनाया था जिसके अंतर्गत प्रावधान किया गया था कि पुलिस किसी भी भारतीय को बिना न्यायालय में मुकदमा चलाए अनिश्चित काल के लिए जेल में रख सकती थी. आप लोग यह भी जानते हैं कि इसी रौलेट एक्ट के खिलाफ जालियांवाला बाग़ में जनसभा हो रही थी जिस पर गोलियां चलाकर हजारों निरपराध और निशस्त्र लोगों को बेमौत मार दिया गया था. मित्रों, इन दिनों बिहार की नीतीश सरकार ने भी कुछ इसी तरह के कानून लागू करने का निर्णय लिया है. इस कानून के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद १९ (क) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनने का जघन्य पाप किया गया है. बिहार के पुलिस प्रमुख अर्थात डीजीपी द्वारा जारी ३ फरवरी के आदेश के अनुसार अगर कोई व्यक्ति बिहार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन या सड़क जाम करता है तो उसे सरकारी नौकरी या टेंडर पाने का अधिकार नहीं रह जाएगा. मित्रों, सवाल उठता है कि बिहार के लोग आजाद हैं या अभी भी गुलाम हैं? लोकतंत्र में लोकतान्त्रिक विधि से चुनी गई सरकार भला कैसे लोगों से विरोध करने का अधिकार छीन सकती है? क्या नीतीश कुमार ने खुद १९७४ के प्रदर्शनों में भाग नहीं लिया था? नीतीश जी भूल गए कि तब देश में आपातकाल था अब नहीं है? मित्रों, अगर किसी सरकार के शासन में ऊपर से नीचे तक घूस की गंगा बह रही हो, बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता हो, जनता की कोई सुननेवाला नहीं हो, डीजीपी खुद मुख्यमंत्री का फोन नहीं उठाता हो, एफआईआर दर्ज करने में हफ़्तों लग जाते हों, बिना पैसे दिए एक भी नियुक्ति नहीं होती हो तो जनता खुश होगी या नाराज? ऐसे में असंतोष नहीं पनपेगा तो क्या पनपेगा? जनता सडकों पर नहीं आएगी तो और क्या करेगी? क्या अंग्रेजी राज के खिलाफ स्वातंत्र्यवीरों ने प्रदर्शन नहीं किया था? फिर आज के बिहार की हालत तो अंग्रेजों के समय से भी ज्यादा ख़राब है फिर जनता से विरोध करने का अधिकार क्यों छीना जा रहा है? अगर फिर भी बिहार में लोकतंत्र है तो फिर उत्तर कोरिया और चीन में क्या है? क्या इसलिए बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनाया था? नीतीश जी को अपने इस कार्यकाल में अपनी पुरानी गलतियों को सुधारना है या जनता के मुंह को बंद करना है? मैं यह भी जानता हूँ कि यह कानून न्यायालय में एक मिनट भी नहीं टिकेगा और शायद नीतीश जी भी इस तथ्य को जानते हैं फिर उन्होंने यह नई गलती क्यों की? कहीं यह दूसरे आंतरिक राष्ट्रीय आपातकाल की आहट तो नहीं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें