मंगलवार, 2 मार्च 2021

आदमी, पैसा और भगवान

मित्रों, एक जमाना था, शायद नेहरु जी का जमाना जब लोग भगवान और कर्मफल के सिद्धांत पर विश्वास रखते थे. तब भगवान ही भगवान थे और पैसा साधन मात्र था. लेकिन आज जब मोटी चमड़ीवाले मोदी जी का शासन है हमने पैसे को ही सबकुछ बना दिया है. जैसे भगवान को हमने मृत्युदंड दे दिया है. यथा राजा तथा प्रजा. मित्रों, आज पैसा साधन है पैसा साध्य है, पैसा ईश्वर है पैसा आराध्य है; पैसा स्वर्ग है पैसा मंजिल है, पैसा नाव है पैसा साहिल है; पैसा वात्सल्य है पैसा अनुराग है, पैसा पति है पैसा सुहाग है; पैसा ख़ुशी है पैसा प्रकाश है, पैसा उड़ान है पैसा आकाश है; पैसा दिल है, पैसा पैसा धड़कन है, पैसा महफ़िल है पैसा जीवन है; पैसा शक्ति है पैसा भक्ति है, पैसा आदर है पैसा तृप्ति है; पैसा मंदिर है पैसा तीर्थ है, पैसा सम्बन्धी है पैसा मित्र है; पैसा ही कविता है पैसा ही रस है, पैसे के बिना उत्तम साहित्य भी नीरस है; पैसा अपनापन है पैसा ही प्यार है, पैसा ही डिग्री है पैसा ही पढाई है, पैसा के बिना जीवन ढलान है, पैसा है तो चढ़ाई ही चढ़ाई है; पैसा प्रेम है पैसा इन्साफ है, पैसेवाले को सौ खून माफ़ है.; यहाँ तक कि पैसा इंसानियत है पैसा इन्सान है, फिर इन्सान क्या है? पैसा है तो भगवान है वर्ना कुछ भी नहीं है. मित्रों, सोंचिए-हम क्या थे, क्या है और क्या होंगे अभी? लोग कहते हैं कि एक दिन धरती इंसानों के रहने लायक नहीं रहेगी. मगर क्या आज इन्सान धरती पर रहने लायक रह गया है? पैसों के लिए खुद मेरे रक्तसम्बंधियों ने मेरी पीठ में कई-कई बार छुरा भोंका है और हर बार सिर्फ कबीर के इस दोहे को दोहरा कर अपने दिल को दिलासा देता रहा कि कबीरा आप ठगाईए और न ठगिए कोई, आप ठगे सुख उपजै और ठगे दुःख होई.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें