बुधवार, 11 अगस्त 2021
अश्विनी उपाध्याय की गिरफ़्तारी
मित्रों, क्या आपने कभी देश की स्थिति के बारे में सोंचा है? क्या देश की दुरावस्था को देखकर कभी किसी रात आपकी नींद गायब हुई है? क्या आपके मन में कभी अंग्रेजी राज को देश से मिटा देने की ईच्छा आई है? आपने एकदम सही समझा है मैं गोरे अंग्रेजों की बात नहीं कर रहा बल्कि काले अंग्रेजों की बात कर रहा हूँ.
मित्रों, मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसे देश में छाई अराजकता के कारण सचमुच रातों में नींद नहीं आती. मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसने देश की समस्त बिमारियों का ईलाज ढूंढ निकाला है. मैला आंचल के डागदर बाबू ने तो सबसे बड़ी बीमारी की खोज की थी इस व्यक्ति ने उस बीमारी अर्थात गरीबी का ईलाज भी निकाल लिया है. और उस आदमी को जिसे हम पीआईएल मैन के नाम से भी जानते हैं का नाम है अश्विनी उपाध्याय.
मित्रों, यह आदमी सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठ अधिवक्ता है. इस आदमी ने जंतर मंतर और देश भर में अंग्रेजी राज से चले आ रहे कानूनों को समाप्त करने की मांग करते हुए पिछले ८ अगस्त को जुलूस निकाला था. जंतर मंतर के जुलूस में कुछेक लुम्पेन यानि लम्पट लोग भी घुस आए या घुसा दिए गए और मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगा दिए. अब मुसलमान तो ठहरे होली काऊ पवित्र गाय सो अश्विनी उपाध्याय जी को उस अपराध के लिए आनन-फानन में उन्हीं कानूनों के अंतर्गत जेल भेज दिया गया जिनको समाप्त करने की उन्होंने मांग की थी. इस देश की राजधानी में मौलाना शाद और अमानतुल्ला खान को ५६ ईंच की दाढ़ीवाले बाबा की पुलिस पकड़ना तो दूर छू भी नहीं पाती लेकिन अपनी ही पार्टी के एक निर्दोष और देशभक्त नेता को झटपट पकड़ लेती है. वाह री सरकार!
मित्रों, पकडे भी क्यों न? ऐसा करके सरकार ने एक तीर से दो शिकार जो किए हैं. मुसलमानों को बता दिया कि हम भी नमाजवादियों की तरह ही तुष्टीकरण की नीति पर चलने को तैयार हैं और अपने गले में अटकी हुई हड्डी को निगल भी गई.
मित्रों, ऐसा नहीं है कि अश्विनी जी को यह पता नहीं था कि उनकी पार्टी और उनकी पार्टी की संघ सरकार किसी भी तरह के कानूनी, प्रशासनिक या न्यायिक सुधार के खिलाफ है अर्थात यथास्थितिवादी है. फिर भी अश्विनी उपाध्याय जी ने हिम्मत नहीं हारी. ऐसा भी नहीं है कि अश्विनी जी अचानक सड़क पर उतर गए. बल्कि जब उन्होंने देखा कि उनकी पार्टी की सरकार ही उनकी देशहित के लिए नितांत आवश्यक मांगों पर भी कान नहीं दे रही है तब वे सड़क पर उतरे. अश्विनी जी बार-बार जनसंख्या-नियंत्रण कानून की मांग करते रहे. एक बार प्रधानमंत्री के समक्ष कानून के ड्राफ्ट को प्रदर्शित भी किया लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय भी गए लेकिन वहां भी सरकार ने कह दिया कि वह ऐसे किसी कानून के समर्थन में नहीं है. इसी तरह अश्विनी जी सर्वोच्च न्यायालय में अकेले लम्बे समय से हिन्दू अल्पसंख्यकों की लडाई लड़ते आ रहे हैं.
मित्रों, आज देश में बिना घूस दिए कोई काम नहीं होता तो इसके लिए दोषी कौन है-अंग्रेजी राज वाले कानून. वो कानून जिनका निर्माण अंग्रेजों ने भारत को लूटने और भारतीयों का दमन करने के लिए किया था. हम जानते हैं कि नारेबाजी तो बस एक बहाना है, अश्विनी उपाध्याय नामक ऊंट को पहाड़ के नीचे लाना है. लेकिन हम सरकार को आगाह करना चाहेंगे कि अश्विनी जी ने जो आन्दोलन शुरू किया है, जो मशाल जलाई है वो अब बुझेगी नहीं बल्कि और भी तेजी से धधकेगी और अंततः उसे अंग्रेजी राज के कानूनों को समाप्त करना ही होगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानून बनाने ही होंगे, समान शिक्षा, समान चिकित्सा, समान कर संहिता, समान पेंशन, समान दंड संहिता, समान श्रम संहिता, समान पुलिस संहिता, समान नागरिक संहिता, समान धर्मस्थल संहिता और समान जनसंख्या संहिता को लागू करना ही होगा. #IsupportAshwiniUpadhyay
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