सोमवार, 6 सितंबर 2021
जातीय जनगणना की बेतुकी मांग
मित्रों, अगर आप भारत के किसी छोटे बच्चे से भी पूछेंगे कि देश को किसने बर्बाद किया तो वो छूटते ही कहेगा नेताओं ने. दुर्भाग्य की बात है कि जैसे-जैसे नेताओं की नई पीढी आ रही है वैसे-वैसे नेताओं का देशहित से सरोकार कम होता जा रहा है। अब स्थिति इतनी खराब हो गई है कि हमारे नेता सिर्फ लोक लुभावन देश नशावन मुद्दों को ही हवा देने लगे हैं. मध्यकाल में जहाँ संत कबीर ने कहा था कि जाति न पूछो साधू की, केवल देखिए ज्ञान; मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान वहीँ हमारे वर्तमान काल के नेताओं ने जाति नाम परमेश्वर बना दिया है.
मित्रों, हमारे नेता इतने पर ही रूक जाते तो फिर भी गनीमत थी. उन्होंने यह जानते हुए पहले जातीय आरक्षण लागू किया कि हर जाति में गरीबी है. फिर पंचायत व शहरी निकाय चुनावों में यह जानते हुए जाति आधारित आरक्षण लागू किया कि लोकतंत्र बहुमत का शासन है. जाति के नाम पर पार्टी को पारिवारिक संस्था में बदल देनेवाले नेताओं का प्रतिभा का गला घोंटने के बाद भी जी नहींं भरा और अब वो जातीय जनगणना की मांग करने लगे हैं.
मित्रों, यह बात किसी से छिपी हुई नहींं है कि जब कांग्रेस राज में परिवार नियोजन का महा अभियान चला था तब सबसे ज्यादा बंध्याकरण सवर्णों ने ही करवाया था जिससे उनकी संख्या में भारी गिरावट आई. ऐसे में अगर जातीय जनगणना होती है तो सबसे ज्यादा नुकसान में वही लोग होंगे जिन्हें सबसे ज्यादा देश की चिंता होती है.
मित्रों, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि जाति नाम परमेश्वर वाले नेतागण लगे हाथों जनसंख्या के अनुपात में जातीय आरक्षण की मांग करेंगे. फिर पचास प्रतिशत आरक्षण की सीमा को तोड़ दिया जाएगा और देश शत प्रतिशत आरक्षण की ओर अग्रसर हो जाएगा. फिर प्रतिभा और गुणवत्ता का कोई मायने नहीं रह जाएगा और इस तरह भारत कभी भी विश्वगुरू नहीं बन पाएगा.
मित्रों, अत: जातीय जनगणना का जमकर विरोध किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक पश्चगामी कदम है. इससे न सिर्फ जातीय राजनीति को बढावा मिलेगा वरन प्रतिभावानों का मनोबल भी गिरेगा.
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