शनिवार, 16 अक्टूबर 2021
अराजक होता किसान आन्दोलन
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि भारत में लोकतंत्र है और भारतीय संविधान ने भारत के प्रत्येक नागरिक को सरकार या सरकारी नीतियों का विरोध करने की आजादी और अधिकार दिया है. यद्यपि यह आजादी या अधिकार पूरी तरह से असीम नहीं है बल्कि इसकी कुछ सीमाएं हैं. आप आन्दोलन करिए या अपने किसी अन्य अधिकार का प्रयोग करिए लेकिन आप ऐसा करते हुए किसी और के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते.
मित्रों, पिछले कुछ समय से ऐसा देखा जा रहा है कि कई सरकार विरोधी आन्दोलन देशविरोधी स्वरुप अख्तियार कर ले रहे हैं. पहले एनआरसी के खिलाफ जो आन्दोलन हुए और अब जो तथाकथित किसान आन्दोलन चल रहा है दोनों ने ही बारी-बारी से अराजक रूप ग्रहण किया है. एनआरसी आन्दोलन अंततः हिन्दूविरोधी दंगों में परिणत हो गया वहीँ किसान आन्दोलन भी राह से भटकता हुआ परिलक्षित हो रहा है.
मित्रों, पहले तो तथाकथित किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवागमन को बाधित किया, यहाँ तक कि सेना की गाड़ियों को भी गुजरने से रोका और अब किसान हत्या भी करने लगे हैं. पहले लखीमपुर खीरी में उन्होंने चार लोगों को पीट-पीट कर मार डाला और अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सिन्धु बॉर्डर पर एक दलित के हाथ काटकर उसकी बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी. इन घटनाओं से ऐसा लगने लगा है कि जैसे उनको भारतीय कानून और न्यायालय का कोई डर ही नहीं है.
मित्रों, सवाल उठता है कि संघ सरकार कब तक हाथ-पर-हाथ धरे बैठी रहेगी या मूकदर्शक बनी रहेगी? मान लिया कि पंजाब में चुनाव होनेवाले हैं लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है कि दिल्ली को एक बार फिर जलने दिया जाए. कहना न होगा अगर संघ सरकार ने २०१९-२० में समय रहते शाहीन बाग़ के अवैध धरने को समाप्त करवा दिया होता तो दिल्ली में सुनियोजित हिन्दूविरोधी-देशविरोधी दंगे नहीं हुए होते. लेकिन दंगों के बाद भी केद्र सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ बनी रही और धरने की स्वाभाविक समाप्ति की प्रतीक्षा करती रही.
मित्रों, यह देखकर काफी दुःख होता है एक बार फिर से हमारी केंद्र सरकार कथित किसान आन्दोलन को लेकर असमंजस में है. इस आन्दोलन को लेकर कोई बच्चा भी बता देगा कि इसके पीछे विदेशी फंडिंग हो रही है और किसान आन्दोलन का बस बहाना है. वास्तव में इसका उद्देश्य देश में अराजकता उत्पन्न करना है. फिर से खालिस्तानी आतंकवाद को जीवित करना है. लेकिन न तो केंद्र सरकार और न ही सुप्रीम कोर्ट को कुछ भी दिखाई दे रहा है और न ही वे इसे समाप्त करने की दिशा को कोई कठोर कदम उठाते दिख रहे हैं. क्या टिकैत के दूसरा भिंडरावाला बनने का इंतजार हो रहा है? आज से लगभग ढाई हजार साल पहले आचार्य चाणक्य ने कहा था कि दीमक लकड़ी को और रोग जिस प्रकार शरीर को खा जाते हैं उसी प्रकार अराजकता से राष्ट्र का विनाश हो जाता है अतः राज्य को हर स्थिति में कानून और व्यवस्था को बनाए रखना चाहिए. राज्य को न सिर्फ अराजकतावादियों से बल्कि राज्याधिकारियों और राज्यकर्मियों से भी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए.
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