एक बूढा-सा जीर्ण- शीर्ण कायावाला
तथाकथित भिखारी सो रहा है;
खुले आसमान के नीचे
सारी चिंताओं को कदाचित अपने
ईंट रुपी तकिये के नीचे दबाकर,
चेहरे पर लिए परम संतोष का भावः
जो शायद उसकी कंगाली से उपजा है;
वह बीच-बीच में मुस्कुराता भी है,
न जाने कौन- से सपने देखकर;
शायद भरपेट रोटी मिलने के सपने;
आती-जाती सांसों के साथ
गालों के फूलने और पिचकने से,
मालूम हो रहा है की वह जीवित है अब भी;
सीने में बंद यही एक मुट्ठी बंद हवा,
उसकी एकमात्र संपत्ति है;
वह सुख-दुःख, मान-अपमान
से ऊपर उठ चुका है,
और बन चुका है
दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति.
aap kavita bhi likhte hain vo bhi itni achchhi. chaliye aapke is roop ka bhi pata laga.
जवाब देंहटाएंalok, panipat