रविवार, 21 मार्च 2010
तुगलक के हाथों में बिहार
भारतीय इतिहास का नेकनाम सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक बहुत ही विद्वान आदमी था.लेकिन व्यावहारिक तौर पर वह कभी सफल नहीं रहा.उसकी योजनायें शानदार होती थीं लेकिन उसका क्रियान्वयन उतना ही घटिया होता था.इसलिए उसे हर बार अपनी योजनायें वापस लेनी पड़ती थी.हमारे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश जी और तुगलक में काफी साम्य है.इनके दिमाग में भी तरह-तरह की योजनायें कुलबुलाती रहती हैं.हाल में उन्होंने अपने शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाया है.उन्होंने बाबुओं का बी.डी.ओ. आदि के रूप में प्रोमोशन कर दिया है.क्या शानदार कदम है!जो बाबूलोग विभिन्न सरकारी योजनाओं की अधिकतर राशि बिना डकार लिए निगल जाते थे पदाधिकारी के रूप में कितना शानदार काम करेंगे.क्या आईडिया है सरजी!आपकी बेजोड़ कल्पना शक्ति का प्रथम परिचय हमें मिला था तब जब आपने २००६ में बिना परीक्षा के शिक्षा मित्रों की बहाली करने का निर्णय लिया था.आपने मुखियों को बहाली का अधिकार देकर उनको कमाने और अपने भाई-भतीजों को नौकरी देने का नायाब अवसर भी तो दिया था.भाई-भतीजावाद रोकने का कितना मौलिक तरीका था आपका!बाद में आपने शिक्षा मित्रों की परीक्षा भी ली लेकिन इतने आसान प्रश्न पूछे गए कि असफल होनेवालों के नाम ऊंगलियों पर गिनाये जा सकते थे.अब आप फ़िर दौलताबाद से दिल्ली वापस जाने यानी परीक्षा लेकर स्थाई शिक्षकों को नियुक्त करने पर विचार कर रहे हैं.इसके बाद आपने जनवितरण प्रणाली के माध्यम से वितरण के लिए कूपन देने की घोषणा की.कूपन वितरण में लूट मच गई और कई जगहों पर तो बी.डी.ओ. साहब भी पिट गए.अब फ़िर से आपकी सरकार राशन कार्ड के पुराने विकल्प पर लौट आई है.पंचायतों में आरक्षण आपका ऐसा निर्णय था जिसकी तुलना तुगलक की किसी भी करनी से नहीं की जा सकती.आपने पंचायतों में पचास प्रतिशत आरक्षण कर दिया.स्थितियां इस तरह की हो गई कि जिन पंचायतों में ९९ प्रतिशत तक सवर्ण थे वहां से भी दलित और अति पिछड़े चुने जाने लगे.मैंने तो सुना था कि लोकतंत्र बहुमत से चलता है लेकिन आपने लोकतंत्र के इस मौलिक सिद्धांत की ऐसी-तैसी कर दी.अब पंचायती लोकतंत्र बहुमत से नहीं बल्कि आरक्षण से चलता है.क्या मौलिक सोंच है!बहुमत का अपमान होता है तो हो आपका वोट बैंक बढ़ते रहना चाहिए.इतना ही नहीं आपने विधान-सभा में घोषणा की कि हम विश्वविद्यालय शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु बैक डेट से ६५ वर्ष करने को तैयार हैं.लेकिन अब आप बैक डेट से ऐसा करने को कतई तैयार नहीं हैं.बहुत अच्छा यू-टर्न लिया है आपने.इसके लिए निश्चित रूप से आपकी प्रशंसा की जानी चाहिए.आप बराबर सुशासन की बात करते रहते हैं और पंचायतों में तो सुशासन आ भी गया है.नरेगा समेत सारी योजनायें धरातल पर चल ही नहीं रही हैं.कागज पर ही तालाब खुद रहे हैं, मछलियाँ भी पाली जा रही हैं.सारे ग्रामीण मजदूर अचानक अनपढ़ हो गए हैं और उन्होंने अंगूठा का निशान लगाना शुरू कर दिया है ठीक उसी तरह जैसे वोट गिराने के समय जनता अनपढ़ हो जाया करती है खासकर तब जब बूथ कब्ज़ा हो जाता है.लेकिन आप को तो काम से मतलब है नहीं आपको तो बस साल में दस-बीस पुरस्कार मिलते रहने चाहिए.हमारे इतिहास-पुरुष तुगलक पर समय से आगे होने का आरोप लगाया जाता है ऐसा ही आरोप आप पर भी लग सकता है.लेकिन आप जैसे लोग समय से आगे रहते ही क्यों हैं?क्या आपलोग समय के साथ नहीं चल सकते?कौन रोकता है आपको बी.पी.एस.सी. की परीक्षा हर साल लेने से?कोई भी नहीं.लेकिन यहाँ तो आप समय से पीछे हैं आगे भी हो सकते हैं मैं उपाय बताता हूँ.आप एडवांस में परीक्षा ले लीजिये.आपकी महिमा तो इतनी अनंत है कि आपकी तुलना में तुगलक कहीं नहीं ठहरता है.निश्चिन्त रहिये आपको कहीं-न-कहीं से बहुत जल्द तुगलक पुरस्कार भी मिल जायेगा लेकिन इससे आपका नहीं बल्कि स्वयं पुरस्कार का ही सम्मान बढेगा.
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