शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

क्या मोदी मजबूत प्रधानमंत्री है?

मित्रों, अगर आपने मोदी सरकार के काम करने के तरीके को देखा होगा तो जरूर गौर किया होगा कि इस सरकार में सारे मंत्री हरफनमौला हैं. रक्षा विभाग से जुडा मामला हो तो वित्त मंत्री जवाब देते हैं और जब वित्त मंत्रालय से जुडा मामला आता है तो उत्तर कानून मंत्री देते हैं. इसी प्रकार जब मुद्दा विदेश मंत्रालय से सम्बंधित हो तो जवाब गृह मंत्री देते हैं. अब हम इसे अतिशय जिम्मेदारी से काम करना कहें या फिर इसे गैर जिम्मेदारी का नाम दें? वैसे अगर यह मंत्रिमंडल की जगह क्रिकेट टीम होती तो जरूर विश्वकप जीत चुकी होती लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. शायद इसलिए मोदी जी की सरकार विकास, नेशन फर्स्ट, देश बदल रहा है जैसे शब्द बोलना जैसे भूल ही गई है और वो सिर्फ और सिर्फ जातीय समीकरणों को साधने में जुटी हुई है.
मित्रों, हरफनमौला बनने की यही संक्रामक बीमारी शायद अजित डोभाल जी को लग गई है. आपने भी अजित डोभाल जी का नाम तो सुना ही होगा. मज्बूजी के प्रतीक डोभाल जी हैं तो भारत सरकार के सुरक्षा सलाहकार लेकिन वे इन दिनों इस तरह भाषण देने लगे हैं जैसे वे बहुत बड़े नेता हों. उनका देश की जनता से कहना है कि देश को अगले १० वर्षों तक मजबूत सरकार की जरुरत है. कदाचित वे यह कहना चाहते हैं कि अगले १० सालों तक मोदी को ही भारत का प्रधानमंत्री रहना चाहिए. मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या यह बताना कि जनता को किसको वोट देना चाहिए बतौर भारत का सुरक्षा सलाहकार डोभाल जी के कर्तव्यों में शामिल है? अगर नहीं तो वे किस हैसियत से ऐसा कर रहे हैं? पहले के किसी भी सुरक्षा सलाहकार ने तो ऐसा नहीं किया. तो क्या उनको अपनी ड्यूटी मालूम नहीं थी?
मित्रों, इसके साथ ही मैं श्रीमान जासूस जी से पूछना चाहता हूँ कि वे आखिर किस आधार पर यह कह रहे हैं यह सरकार एक मजबूत सरकार है? क्या सिर्फ प्रचंड बहुमत मिल जाने से कोई सरकार मजबूत कहलाने की अधिकारिणी हो जाती है? फिर तो राजीव गाँधी की सरकार को भारत की सबसे मजबूत सरकार कहा जाना चाहिए लेकिन देश में शायद ही कोई ऐसा मानता हो. क्या डोभाल जी ऐसा मानते हैं कि सिर्फ अपने कैडर का राज कायम कर देने से कोई सरकार मजबूत हो जाती है? फिर तो पश्चिम बंगाल की वो साम्यवादी सरकार जिसने बंगाल को साम्यवाद के नाम पर बर्बाद करके रख दिया को सबसे मजबूत सरकार कहा जाना चाहिए.
मित्रों, डोभाल जी से पूछा जाना चाहिए कि जिस तरह मोदी नेपाल, मालदीव और श्रीलंका में फेल हुए हैं क्या उससे साबित होता है कि मोदी मजबूत प्रधानमंत्री हैं? क्या इन दिनों सीबीआई जिस तरह से काम कर रही है वह मोदी जी सरकार की मजबूती का परिचायक है? या फिर जिस तरह पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं
उससे पता लगता है कि मोदी जी मजबूत राजनेता हैं? न तो देश की शिक्षा व्यवस्था, न ही पुलिस व्यवस्था, न ही स्वास्थ्य व्यवस्था, न ही भ्रष्टाचार, न ही न्याय व्यवस्था और न ही नौकरशाही में मोदी जी कोई बदलाव ला पाए. ये सारी चीजें वैसी-की-वैसी हैं जैसी अंग्रेजों के समय थी फिर डोभाल जी किस आधार पर कह सकते हैं कि मोदी जी मजबूत नेता हैं? अभी-अभी उनके गृह राज्य गुजरात में हिन्दीभाषियों पर हमले हो रहे थे और मोदी जी मौन साधना में लीन थे क्या ये मजबूती के लक्षण हैं? साल में २ करोड़ रोजगार तो दिए नहीं और नौजवानों को पकौड़े तलने को बोल रहे क्या इसलिए मोदी को मजबूत मान लेना चाहिए? देश को कमजोर करनेवाली आरक्षण व्यवस्था को मोदी सरकार ने मजबूत किया है तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में जो समुचित व न्यायसंगत बदलाव किए गए थे उनको समाप्त कर उसे फिर से अन्यायपूर्ण और एकतरफा बना दिया है क्या इसलिए मोदी को मजबूत मान लेना चाहिए? पिछले चार सालों में मोदी मस्जिद और दरगाहों से तो हो आए लेकिन राम जन्मभूमि एक बार भी नहीं गए फिर मोदी कैसे मजबूत प्रधानमंत्री हैं? प्रधानमंत्री को शायद खुद पता नहीं कि प्रधानमंत्री वे हैं या अमित शाह जो उनके मंत्रियों के साथ-साथ अब सुप्रीम कोर्ट को आर्डर देने लगा है और आप कहते हैं कि मोदी जी मजबूत प्रधानमंत्री हैं? या फिर जो दुग्गल साहब की तरह रोज-रोज नए-नए रोल करता हो कभी पटेल, कभी अम्बेदकर तो कभी गाँधी और कभी सुभाष का तो उसे मजबूत मान लेना चाहिए, फिर तो अभिनेताओं को सबसे मजबूत नेता मान कर प्रधानमंत्री बना देना चाहिए? जवाब का इंतज़ार रहेगा डोभाल जी.

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

सीबीआई में सर्जिकल स्ट्राइक की आवश्यकता

मित्रों, एक जमाना था कि प्रधानमंत्री भी सीबीआई के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते थे. याद आता है मुझे वो जमाना जब लालूजी जनता दल के अध्यक्ष हुआ करते थे. उन दिनों देश के प्रधानमंत्री थे देवगौड़ा. लालू जी चारा घोटाले में फंस गए. उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात के समय माँगा. जब वे मिले तो देवगौड़ा ने स्पष्ट रूप से कह दिया आई कैन नॉट डू अनिथिंग. बाद में गुजराल ने भी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में यह कहकर कुछ भी करने से मना कर दिया कि यह प्रधानमंत्री की गरिमा के खिलाफ होगा. और इस प्रकार किंग मेकर लालूजी को दिल्ली में अपनी सरकार होने के बावजूद जेल जाना पड़ा। 
मित्रों, बाद में जब मनमोहन की सरकार आई तो उसने भी ब्याज दर कम करने के मामले में आरबीआई से कुछ भी कहने से मना कर दिया. लेकिन न जाने क्यों मोदी सरकार को किसी भी संस्था की स्वायत्तता मंजूर ही नहीं है. पहले नोटबंदी के समय भाईयों एवं बहनों करके आरबीआई की स्वायत्तता को खतरे में डाला और अब सीबीआई में हस्तक्षेप करके उसकी स्वायत्तता को भी समाप्त कर रहे हैं. वैसे मैं यहाँ स्पष्ट कर दूं कि पहले भी सीबीआई का दुरुपयोग हुआ है अन्यथा माया, मुलायम, टाइटलर, साधू यादव, पप्पू यादव आदि आज आजादी के साथ राज भोग नहीं रहे होते.
मित्रों, मैं कहता हूँ कि इन दिनों भी सीबीआई में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा. वो तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी नहीं चल रहा लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से रात के पौने दो बजे सीबीआई के निदेशक को हटाया गया उसे किसी भी तरह से यथोचित नहीं ठहराया जा सकता. कदाचित यही काम दिन के उजाले में भी किया जा सकता था. अब बात निकली है तो स्वाभाविक तौर पर दूर तलक जाएगी और जा भी रही है. जितने मुंह उतनी बातें.
मित्रों, मैं अपने पिछले कई आलेखों में इस बात का जिक्र कर चुका हूँ कि मेरी नजरों में सीबीआई जो मनमोहन के समय पिंजरे का तोता थी इस सरकार के समय वो मरा हुआ तोता हो गई है. हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि लोग मानने लगे हैं कि किसी मामले को दबाना है तो सीबीआई को दे दो. स्वाभाविक है कि ऐसे में रिश्वतखोरी भी हो रही होगी और पैसों का लेन-देन भी. मुझे नहीं लगता कि इन रिश्वतखोरी में सिर्फ खाकी ही अपनी मुट्ठी गरम कर रही होगी और खादी के हाथ कुछ नहीं आता होगा. मतलब कि कुछ-न-कुछ तो ऐसा गड़बड़झाला जरूर हो रहा है जिसके कारण बाज से तोता बना यह पक्षी बिलकुल ही मरे के समान व्यवहार कर रहा है. सवाल उठता है कि किसकी शह पर नंबर दो अस्थाना नंबर एक अलोक वर्मा के आदेशों की लगातार अवहेलना कर रहे थे? क्या उनको ऐसा करने का अधिकार भी था? किसके कहने पर सीवीसी ने वर्मा के खिलाफ पक्षपात किया? आखिर अस्थाना इतना शक्तिशाली क्यों है? क्योंकि वो गुजरात कैडर का है और प्रधान सेवक जी की सेवा में रह चुका है?
मित्रों, सवाल उठता है कि जिस तरह रात के पौने दो बजे सीबीआई पर सर्जिकल स्ट्राइक किया गया क्या वो शुद्ध मन से किया गया है या फिर उसकी आवश्यकता थी और क्या आगे सीबीआई फिर से अपने वही रुतबा प्राप्त कर पाएगी जो एक समय उसकी थी. मुझे नहीं लगता कि ऐसा होनेवाला है क्योंकि सीबीआई सहित पूरी नौकरशाही की लगाम इन दिनों जिन लोगों के हाथों में है उनका मन साफ़ नहीं है. वे भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह सिर्फ इसका इस्तेमाल करना चाहते है अपने निजी स्वार्थों के लिए. देशहित, देशहित को तो उन्होंने कब का कचरे के डिब्बे में फेंक दिया है. वैसे जो विकल्प हैं उनसे तो देशहित की उम्मीद करना ही बेवकूफी होगी क्योंकि उनके शब्दकोश में यह शब्द कभी था ही नहीं. निश्चित रूप से मोदी देश की जनता की आखिरी उम्मीद थे लेकिन उन्होंने भी निराश किया है. कम-से-कम सीबीआई के मामले में तो जरूर. हमें तो लगा था कि जब मोदी सत्ता में आएंगे तो सीबीआई को उतना ही शक्तिशाली बनाएँगे जितनी अमेरिका में एफबीआई है परन्तु हुआ इसका उल्टा. 

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

आशिफाओं को समर्पित कविता

इन दिनों
जब भी मैं खिडकियों से बाहर झांकता हूँ,
तो पाता हूँ कि हवा पेड़ों को झंकझोर रही है,
और कह रही है मानों
यूं कि मैं तुम्हें जगा रही हूँ
फिर भी तुम सो रहे हो?
तुम इस तरह कैसे सो सकते हों?
तभी मुझे खुद की स्थिति पर दया आने लगती है
यूं कि मैं भी तो सदियों से सोये हुए और
आज सोशल मीडिया में खोये हुए
लोगों को पिछले कई सालों से
जगा ही तो रहा हूँ
लेकिन लोग जाग नहीं रहे.

इन दिनों भारत के मुक्ताकाश मंच पर
जेसिका लाल हत्याकांड का जीवंत मंचन
हो रहा है,
एक साथ हजारों स्थानों पर
बलात्कार हो रहे हैं, हत्याएं हो रही हैं
लेकिन पोस्टमोर्टेम करनेवाले डॉक्टर से लेकर
जाँच करनेवाले पुलिसवाले तक बता रहे हैं कि
न तो कहीं किसी का रेप हुआ
और न ही कहीं किसी की हत्या ही हुई.
पीडिता जमीन पर चलती हुई पैदल-पैदल
पांव फिसलने से गिर पड़ी
जिससे कुल्हाड़ी से काटने जैसा घाव लग गया;
या सिर में जो सुराख़ थी वो १९६५ की भारत-पाकिस्तान
की लडाई में गोली के लगने से हुई है शायद;
हमारे देश में ट्रेन लेट हो सकती है,
डाक लेट हो सकती है
तो क्या गोली लेट नहीं हो सकती?

इन दिनों भारत के कई महान नेता बता रहे हैं कि
रेप में दुष्कर्मियों की कोई गलती नहीं,
गलती है तो लड़कियों की जो कम कपडे पहनती हैं
खासकर उन लड़कियों की ज्यादा;
जो पालने में झूलते समय सिर्फ डाईपर पहने रहती हैं.
सिर्फ डाईपर.