गुरुवार, 10 अप्रैल 2025
ट्रंप की गुगली में फंसा चीन
मित्रों, जबसे डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तभी से पूरे विश्व में हडकंप मचा हुआ है. दरअसल ट्रंप ने अमेरिका के लगातार बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए पूरी दुनिया के देशों के खिलाफ नौ अप्रैल से पारस्परिक कर लगाने का फैसला किया. देखते-देखते पूरी दुनिया में शेयर बाजार में कत्लेआम होने लगा. सबसे ज्यादा नुकसान खुद अमेरिका के निवेशकों को हुआ. जहाँ ट्रंप ने भारत 10 प्रतिशत बेस टैक्स के अतिरिक्त 26 प्रतिशत टैक्स लगाया वहीँ भारत पर 26% का अतिरिक्त टैरिफ होगा. चीन पर 34%, वियतनाम पर 46% और बांग्लादेश पर 37% अतिरिक्त टैरिफ लगाया. इसके अलावा इंडोनेशिया पर 32%, यूरोपीय संघ पर 20% और जापान पर 25% टैरिफ लगाया. इससे टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात ज्यादातर देशों के मुकाबले अमेरिका में सस्ता रहेगा, क्योंकि एक तो मुकाबले वाले देशों से भारत के सामानों पर कम टैक्स लगेगा और दूसरा जिन देशों के सामानों पर भारत से कम टैरिफ लिया जा रहा है उनकी तुलना में भारत के सामान सस्ते होते है.
मित्रों, जहाँ भारत ने इस पर वार्ता का रास्ता अपनाया वहीँ चीन ने ताव खाकर बदले में अमेरिकी सामानों पर 84 प्रतिशत का टैक्स लगा दिया. इस बीच चीन से अमेरिका को होनेवाला निर्यात लगभग शून्य हो गया. साउथ चाइना पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में लिस्टेड एक एक्सपोर्ट कंपनी के कर्मचारी ने कहा कि ट्रंप सरकार के नए टैरिफ के बाद उनकी अमेरिका को होने वाली डेली शिपमेंट 40-50 कंटेनर से गिरकर सिर्फ 3-6 कंटेनर रह गई है.
मित्रों, इस बीच अचानक यू टर्न लेते हुए ट्रंप ने कल भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया है. वहीं दूसरी तरफ टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया.
मित्रों, शांत दिमाग से काम करो और खुश रहो. लगता है भारत के लिए बड़े-बुजुर्गों की कही यह बात काम आ गई है. अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने की रणनीति और साथ ही अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई न करने के अपने संयम, दोनों का फायदा भारत मिलता दिख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार, 9 अप्रैल को भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया. उन्हें जुलाई तक केवल 10 प्रतिशत का बेसिक टैरिफ देना होगा. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए उसपर 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया. सवाल है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत 75 देशों पर यूटर्न क्यों लिया? ट्रंप का माइंडगेम क्या है? यह पूछे जाने पर कि उन्होंने 75 देशों को टैरिफ से राहत देने का आदेश क्यों दिया है, अमेरिकी राष्ट्रपति ने रिपोर्टरों से कहा: "लोग लाइन से थोड़ा बाहर जा रहे थे. वे चिड़चिड़े हो रहे थे."
मित्रों, दरअसल टैरिफ पर यह रोक सिर्फ दूसरे देशों की जरूरत नहीं थी बल्कि खुद अमेरिका इसके प्रेशर में दबा जा रहा है. जिस तरह से अमेरिका का स्टॉक मार्केट 90 दिन की रोक की घोषणा के बाद 10 प्रतिशत तक उछला है, यह बता रहा कि अमेरिका का मार्केट ट्रंप के टैरिफ नीति का दवाब साफ महसूस कर रहा है. यहां यह भी बात गौर करने वाली है कि ट्रंप ने इन 75 देशों पर अपने टैरिफ को खत्म नहीं किया है बल्कि उसपर केवल रोक लगाई है. यानी उनके पास अगले 90 दिन का वक्त है कि वह इन 75 देशों के साथ कैसे व्यापार करना है, उसपर कोई डील कर सकें. तो दूसरी तरफ ट्रंप और चीन दोनों अब ऐसे चिकन गेम में उलझ गए हैं कि दोनों ही पीछे नहीं हटना चाहते. यह दोनों में से जो पहले पीछे हटेगा, वह हारा हुआ दिखेगा, हारा हुआ माना जाएगा. चीन के पक्ष में सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि चीन अमेरिका पर जितना निर्भर है, उससे कहीं अधिक अमेरिका चीनी आयात पर निर्भर है. ऐसे में देखना होगा कि अमेरिका और चीन के बीच का टैरिफ युद्ध कितने दिनों तक चलता है और उसमें जीत किसकी होती है फ़िलहाल तो चीन को ज्यादा नुकसान होता हुआ साफ़ देखा जा सकता है.
शनिवार, 5 अप्रैल 2025
वक्फ बोर्ड में संशोधन का अभिनन्दन
मित्रों, बहुप्रतीक्षित वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित हो चुका है. अब जैसे-ही भारत की माननीय राष्ट्रपति इस विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगी विधेयक कानून बन जाएगा. कितने आश्चर्य की बात है कि पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में इतने सारे हिंदुविरोधी क़ानून बनाए गए और हिन्दुओं को पता तक नहीं चला जबकि अभी जब वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव किया जा रहा है तब किस तरह मुसलमानों ने आसमान को सर पर उठा रखा है.
मित्रों, मुसलमान कितने जागरूक हैं और हम कितने लापरवाह इस बात का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता. क्या कोई संस्था या कानून देश की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर हो सकता है? लेकिन वक्फ बोर्ड को भारत की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर बना दिया गया. एक बाबरी ढांचा नामक खंडहर के बदले कांग्रेस ने मुसलमानों को पूरा भारत दे दिया. मानों जमीन न हुई बस और ट्रेन की सीट हो गई. जिस पर भी वक्फ बोर्ड ने हाथ डाल दिया वही उसकी हो गई. उसके बाद आप कोर्ट भी नहीं जा सकते बल्कि आपको वक्फ बोर्ड के न्यायाधिकरण में ही जाना होगा. न सिर्फ मुसलमानों की जमीनें बल्कि हिन्दुओं, ईसाईयों सहित अन्य धर्मावलम्बियों के उपासना स्थलों और गांवों को हड़प लिया गया. यहाँ तक कि मात्र एक सूचना देकर सरकारी जमीनों पर भी दावा ठोंक दिया गया और सरकारी अधिकारी मजबूरन मुंह देखते रहे क्योंकि संसद द्वारा कानून बनाकर ऐसे प्रावधान ही कर दिए गए थे.
मित्रों, उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण तो यह रहा कि यथास्थिति बनाए रखने को 20 मुस्लिम सांसदों से भी ज्यादा बेचैन 210 कथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दू सांसद देखे गए. क्या इन हिन्दू सांसदों को पता नहीं है कि धार्मिक आधार पर 1947 में हिंसा के बल पर बनवाए गए पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ क्या-क्या हो रहा है और कैसे इन देशों में हिन्दुओं को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया गया? सबकुछ जानते हुए ये लोग कैसे भारत में जिहादी ताकतों को मजबूत करने में लगे हैं? हद तो यह है वही लोग हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा में अपने रक्त की एक-एक बूँद न्योछावर कर देनेवाले अनमोल वीरों को उल्टे गद्दार साबित करने में लगे हैं. कोई भय नहीं कि हिन्दू नाराज हो जाएँगे! भय हो भी कैसे जबकि हिन्दू खुद बंटे हुए हैं, जाति में, पांति में. यहाँ तक कि हिन्दू परिवारों तक में एकता नहीं है. पति-पत्नी, भाई-भाई में विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं फिर कोई उनसे क्यों डरे?
मित्रों, इतना ही नहीं हिन्दू धर्म का संगठन भी काफी असंगठित है. चारों शंकराचार्यों तक में मतैक्य नहीं है. वक्फ बोर्ड में संशोधन से तो सिर्फ लैंड जिहाद रूकेगा अन्य जिहादों में सबसे खतरनाक जनसँख्या जिहाद कैसे रूकेगा? जो धर्माचार्य सोने के सिंहासनों पर बैठकर हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान करते रहते हैं क्या वो उन बच्चों का खर्च उठाएंगे?
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
ईश्वर जजों का सर्वनाश करे
अब नहीं डरेंगे.. लिखेंगे ✊✊
मेरी कलम चलेगी.. ✍️
चला दो मुझपर अवमानना का केस, भगतसिंह डरे होते फांसी के फंदे से तो क्या आजादी मिल पाती.??
कलंकित होने के बाद भी....
न्यायपालिका के जज नहीं सुधर सकते -
ईश्वर सभी जजों का सर्वनाश करें - जजों की वजह से बलात्कार हो रहे हैं और वो जज ही दंगों के लिए दोषी हैं..!!
जस्टिस यशवंत वर्मा के घपले ने न्यायपालिका और उसमे बैठे जजों के मुख पर कालिख पोत दी,
न्यायपालिका को ऐसा हमाम साबित कर दिया जिसमें सब नंगे हैं....
पूरा लेख कमेंट में है, जरुर पढ़िए..
अब किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता..
-कलंकित होने के बाद भी जज अपने में कुछ सुधार लाने को तैयार नहीं लग रहे और इसलिए मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे सभी जजों का सर्वनाश करें।
वर्तमान न्यायपालिका का पुनर्निर्माण करने की जरूरत है और वह तब ही हो सकता है जब इस व्यवस्था को ख़त्म कर दिया जाए...
यानी नई सृष्टि का निर्माण करने के लिए
वर्तमान सृष्टि को मिटाना जरूरी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने 19 मार्च, 2025 के फैसले में कहा था कि-
“स्तनों को दबाना और लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश करने से रेप की कोशिश साबित नहीं होती - ऐसा करना रेप की तैयारी करना है, रेप करना नहीं है।”
मैंने अपने 20 मार्च के लेख में लिखा था “यानी जज साहब चाहते हैं कि रेप होना ही चाहिए था”
परसों जस्टिस मिश्रा के फैसले के खिलाफ किसी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की थी जिस पर सुनवाई जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की...
वकील ने अपनी दलील शुरू करते हुए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का जब जिक्र किया तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि वकील की तरफ से कोर्ट में कोई “lecture baji” नहीं होनी चाहिए और यह कह कर याचिका को खारिज कर दिया।
ये वही बेला त्रिवेदी हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश की एक 4 साल की बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे की फांसी की सजा उम्रकैद में बदलते हुए कहा था कि Every Sinner Has A Future...
इसका मतलब था उन्हें बच्ची के जीवन से कोई मतलब नहीं था और परसों याचिका को खारिज करने का भी मतलब यही निकलता है कि वह भी जस्टिस मिश्रा की तरह बच्चियों के रेप को सही मानती हैं।
और यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्यायपालिका में बैठे “कथित न्यायाधीश” ही बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं।
ऐसे बेशर्मों को ऊपर वाले से कुछ तो डरना चाहिए और इसलिए मैं कहता हूं ऐसे जजों का ईश्वर सर्वनाश करें...
परसों ही बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस वृषाली जोशी की पीठ ने नागपुर हिंसा के मुख्य आरोपी फहीम खान के घर पर बुलडोज़र चला कर गिराने को स्टे कर दिया...
लेकिन यह आदेश होने तक उसका घर गिर चुका था, फिर भी बेंच ने दूसरे अन्य मुख्य आरोपी युसूफ शेख के घर के अवैध हिस्से को गिराने के काम पर रोक लगा दी।
ये बेशर्म जज, मतलब दंगाइयों के साथ खड़े हो गए? उनके घर की रक्षा कर रहे हो कानूनी दावपेच से तो उन्होंने जो लोगों के घरों को और सरकार एवं निजी संपत्तियों को आग लगाई वह किस अधिकार से लगाई?
पहले भी दंगाइयों को कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट बचाते रहे हैं.. और इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यायपालिका में बैठे जज ही दंगों के लिए जिम्मेदार हैं।
मतलब ये जज ही बलात्कार को बढ़ावा दे रहे हैं और दंगे भी करा रहे हैं। नागपुर बेंच के जजों को चाहिए कि जितने भी दंगाई पुलिस ने पकड़े हैं, उन सभी को छोड़ दें।
पूरी न्यायपालिका का मुंह काला हुआ है लेकिन लगता है इन लोगों को काला मुंह बहुत पसंद है...
दंगाइयों और बलात्कारियों को संरक्षण देने से पहले ऐसे जजों को जवाब देना चाहिए कि बलात्कारी और दंगाई किस मौलिक अधिकार से ऐसा कुकर्म करते हैं?
आपने जाकर “दंगो” को स्टे क्यों नहीं किया??
“आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे, कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज” जब राम की लाठी पड़ती है तो आवाज़ नहीं होती, यह याद रहे..!!-साभार पंडित नेतन्याहू मिश्रा के एक्स ट्विट से
बुधवार, 19 मार्च 2025
भारत बना क्रिकेट जगत का चैम्पियन
भारत बना चैंपियंस चैंपियन
9 मार्च, 2025 की देर शाम जैसे ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ आलराउंडर रवीन्द्र जडेजा ने दुबई अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम में प्रतिष्ठित चैम्पियंस ट्राफी के फाइनल में विजयी चौका लगाया पूरा भारत ख़ुशी से झूम उठा और होली से पहले दिवाली मानाने लगा. ये जीत इसलिए तो विशेष थी ही कि भारत ने इसे 12 साल बाद जीता बल्कि इसलिए भी विशेष थी क्योंकि इस पूरे टूर्नामेंट में एकमात्र भारत ही ऐसी टीम थी जो अपराजेय रही. उससे भी बड़ी बात तो यह रही कि भारत ने किसी भी आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल में पहली बार न्यूजीलैंड को हराया. अपनी पूरी विजयी यात्रा में भारत ने २० फरवरी को बांग्लादेश को 21 गेंद शेष रहते 6 विकेट से, पाकिस्तान को 23 फरवरी को 45 गेंद शेष रहते 6 विकेट से और 2 मार्च को न्यूजीलैंड को मात्र 45.3 ओवरों में आल आउट कर ४४ रनों से हराया.
भारत की इस बेमिशाल जीत में कप्तान रोहित शर्मा का योगदान तो अप्रतिम रहा ही साथ ही प्रत्येक मैच में कोई न कोई खिलाडी भारत के लिए संकटमोचक बनकर आता रहा और मंझधार में फंसी पारी को पार लगाता रहा. जहाँ भारत के टॉस हारने के बाद बांग्लादेश के खिलाफ मोहम्मद शमी ने घातक गेंदबाजी करते हुए 10 ओवरों में 53 रन देकर 5 विकेट और हर्षित राणा ने 7.4 ओवरों में 31 रन देकर 3 बहुमूल्य विकेट प्राप्त किए वहीँ 229 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए शुभमन गिल ने 101, कप्तान रोहित शर्मा ने 41 और केएल राहुल ने 41 रन बनाकर जीत को आसान कर दिया. पाकिस्तान के खिलाफ महा मुकाबले में एक बार फिर भारत टॉस हारा लेकिन इसका टीम के मनोबल और प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा. कुलदीप यादव के 3, हार्दिक पांड्या के 2 और हर्षित राणा के 1 विकेट की मदद से भारत ने पाकिस्तान को 49.4 ओवरों में 241 रनों पर समेट दिया. बाद में 242 रनों के लक्ष्य को भारत ने विराट कोहली के 100, श्रेयस अय्यर के 56 और शुभमन गिल के 46 रनों की शानदार पारी की बदौलत मात्र 42.3 ओवरों में प्राप्त कर लिया. 2 मार्च को हुए मुकाबले में न्यूजीलैंड ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया. भारत ने श्रेयस अय्यर के 79, हार्दिक पांड्या के 45 और अक्षर पटेल के बहुमूल्य 42 रनों की सहायता से 9 विकेट पर 249 रन बनाए. जवाब में न्यूजीलैंड की पारी मात्र 45.3 ओवरों में 205 रनों पर सिमट गई. भारत की तरफ से वरुण चक्रवर्ती ने घातक गेंदबाजी करते हुए 5, कुलदीप यादव ने 2 और हार्दिक पांड्या ने 1 विकेट लिए.
इस तरह अपराजेय और अपने ग्रुप में टॉप पर रहते हुए भारत ने शानदार तरीके से उच्च मनोबल के साथ सेमीफाइनल तक का रास्ता तय किया. 2 मार्च वाले मैच में भारत अगर न्यूजीलैंड से हार जाता तो उसकी सेमीफाइनल में अपेक्षाकृत कमजोर टीम मानी जानेवाली द. अफ्रीका से टक्कर होती लेकिन भारत ने जानबूझकर हारने के बजाए मैच को जीतना तय किया और इस प्रकार सेमीफाइनल में उसकी टक्कर ऑस्ट्रेलिया से हुई. रोहित शर्मा एक बार फिर टॉस हार गए और ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 49.3 ओवरों में 264 रनों का चुनौतीपूर्ण स्कोर बनाया. भारत की तरफ से मोहम्मद शमी ने 3, रविन्द्र जडेजा ने 2 और वरुण चक्रवर्ती ने 2 विकेट लेकर मजबूत मानी जानेवाली ऑस्ट्रेलिया को आल आउट करके भारत को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाई. जवाब में भारत ने जीत के लक्ष्य को मात्र 48.1 ओवर में 6 विकेट गंवाकर आसानी से प्राप्त कर लिया. भारत की तरफ से विराट कोहली 84, श्रेयस अय्यर 45 और केएल राहुल 42 टॉप स्कोरर रहे.
इस प्रकार भारत की 9 मार्च को फाइनल में टक्कर होनी तय हुई न्यूजीलैंड से जो दूसरे सेमीफाइनल में द. अफ्रीका को हराकर फाइनल में पहुंचा था. फाइनल में भी एक बार फिर से भारत के कप्तान रोहित शर्मा टॉस हार गए लेकिन जियाले कब भाग्य के भरोसे रहा करते हैं उनको तो भरोसा होता है अपने प्रदर्शन और हौसले पर. ग्रुप मैच की हार से भयभीत न्यूजीलैंड ने इस बार बल्लेबाजी करने का फैसला किया और 50 ओवरों में 7 विकेट खोकर 251 रन बनाए जिसको क्रिकेट विशेषज्ञ चुनौतीपूर्ण बता रहे थे. भारत की तरफ से एक बार फिर से स्पिनरों का दबदबा रहा. कुलदीप यादव ने 2, रविन्द्र जडेजा ने 1 और वरुण चक्रवर्ती ने 1 विकेट लेकर न्यूजीलैंड की बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी. जवाब में भारत ने तेज शुरुआत की. रोहित शर्मा ने कई आकर्षक शॉट लगाकर शमा बाँध दिया. रोहित शर्मा ने 76, श्रेयस अय्यर ने 48 और केएल राहुल ने नाबाद रहते हुए महत्वपूर्ण 34 रन बनाए और भारत ने एक ओवर शेष रहते हुए चैम्पियंस ट्राफी अपने नाम कर लिया. मैच और ट्राफी भले भारत ने जीता हो लेकिन अपने जवाब से न्यूजीलैंड के कप्तान मिचेल सेंटनर ने यह कहकर कि वे एक बेहतर टीम से हारे हैं दुनिया भर में फैले क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीत लिया। कुछ लोगों ने यह कहकर कि दुबई की पिच स्पिनरों के अनुकूल थी भारत की अश्वमेधी जीत को कम करके आंकने की नापाक कोशिश भी की लेकिन सवाल उठता है कि पिच तो सबके लिए एक ही थी। साथ ही ऐसा कब हुआ कि कोई टीम एक बार भी टास न जीत पाए फिर भी पूरे टूर्नामेंट में अपराजेय रहे?
जहाँ भारत के लिए चैम्पियंस ट्राफी खुशियों का पैगाम लेकर आया वहीँ पाकिस्तान के लिए यह शर्म का विषय बन गया और पाकिस्तान पहले 5 दिनों में ही बगैर कोई मैच जीते टूर्नामेंट से बाहर हो हुआ ही साथ ही अंतिम क्षणों में उससे फाइनल की मेजबानी भी छिन गई. कहते हैं कि इस टूर्नामेंट की मेजबानी के चक्कर में कंगाल पाकिस्तान को 870 करोड़ रूपये का घाटा हुआ. चौथी बार चैम्पियंस ट्राफी अपने नाम कर भारत इसे सबसे ज्यादा चार बार जीतनेवाला देश बन गया है साथ ही रोहित शर्मा ने तीन आईसीसी टूर्नामेंट जीतकर महेंद्र सिंह धोनी की बराबरी कर ली है. आशा है भारत की टीम आगे भी न सिर्फ सीमित ओवर के खेल में बल्कि टेस्ट मैचों में भी अविस्मरणीय प्रदर्शन करके भारतीय प्रशंसकों को होली से पहले होली और दिवाली से पहले दिवाली मनाने के अवसर देती रहेगी.
सोमवार, 10 फ़रवरी 2025
कौन बनेगा दिल्ली का सुल्तान?
मित्रों, दिल्ली यानि भारत का दिल, भारत की राजधानी.दिल्ली वही दिल्ली जो कई बार बसी और उजड़ी. वही दिल्ली जिसको कई बार तैमूर, गोरी, अब्दाली, बाबर, नादिरशाह और इंदिरा गांधी ने ईन्सानों और इंसानियत के खून से नहलाया. वही दिल्ली जिसने दारा शिकोह को हाथी पर उल्टा बैठा, पराजित और अपमानित देखा. दिल्ली जिसने कई राजाओं का राज्याभिषेक भी देखा और कई राजाओं को तख़्त से उतरते भी देखा. वही दिल्ली जिसके बारे में कवि रामावतार त्यागी ने कहा है कि
मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं।
अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं॥
मैंने बलशाली राजाओं के, ताज उतरते देखे हैं।
मैंने जीवन की गलियों से तूफ़ान गुज़रते देखे हैं॥
देखा है; कितनी बार जनम के, हाथों मरघट हार गया।
देखा है; कितनी बार पसीना, मानव का बेकार गया॥
मैंने उठते-गिरते देखीं, सोने-चाँदी की मीनारें।
मैंने हँसते-रोते देखीं, महलों की ऊँची दीवारें॥
वही दिल्ली जिसके ऊपर व्यंग्य करते हुए महाकवि नागार्जुन ने आपातकाल के समय कहा था कि
लूटपाट के काले धन की करती है रखवाली,
पता नहीं दिल्ली की देवी गोरी है या काली।
उसी दिल्ली में इन दिनों विधानसभा चुनावों की जबरदस्त सरगर्मी है और इतनी ज्यादा सरगर्मी है कि लगता ही नहीं चुनाव सिर्फ कुछ सौ वर्ग किलोमीटर में सिमटे दिल्ली के लिए मुखिया चुनने के लिए हो रहा है बल्कि लगता है जैसे चुनाव पूरे भारत के लिए प्रधान चुनने के लिए होने जा रहा है. बिगुल फूंका जा चुका है और राजनैतिक महारथियों की ओर से तीरों पर तीर चलने लगे हैं.
पिछले चार चुनावों की तरह इस बार भी यहाँ मुख्यतया तीन पार्टियाँ चुनाव मैदान में हैं. इस बार भी पिछले १२ सालों से दिल्ली पर राज कर रही अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है वहीँ इसे त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कांग्रेस पार्टी कर रही है जिसका पिछले दो विधानसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुला.
मित्रों, अगर हम बात करें आम आदमी पार्टी की तो वह इस बार भी इस चुनाव को प्रदेश के बजाए देश का चुनाव बना डालने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है. उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि वो दिल्ली में अपनी पार्टी बचाने की नहीं देश बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
दूसरी तरफ उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रस उम्मीदवार संदीप दीक्षित उनके इस दावे पर सवाल उठाते हुए तल्खी से कहते हैं "जब केजरीवाल अन्ना के साथ लोकपाल के नाम पर देश को बेवकूफ बना रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब 34 करोड़ के अय्याश महल में गुलछर्रे उड़ा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब 7 लाख के स्कूल कमरे 24 लाख में बनवा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब विज्ञापनों पर हजारों करोड़ उड़ा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब शराब की दलाली करके 2000 करोड़ डकार रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब कोविड के दौरान लोग ऑक्सीजन और बेड के लिए तड़प रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब पराली जलाने का ठीकरा किसानों पर फोड़ रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब यमुना को साफ करने का झूठा वादा कर रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब कांग्रेस और शीला दीक्षित के किए गए हर काम को बिना शर्म अपने नाम पर बता रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब झूठे एफिडेविट से जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब हर राज्य चुनाव में कांग्रेस के वोट काटकर बीजेपी को जिता रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब शीला जी के बारे में बेशर्मी से 1000 झूठ फैला रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब सोनिया गांधी को जेल भेजने की धमकी दे रहे थे, तो देश बचा रहे थे? इतनी बड़ी लिस्ट है कि लोग थक जाएं पढ़ते-पढ़ते।" उन्होंने कहा कि केजरीवाल देश नहीं बचा रहे बल्कि देश को केजरीवाल से बचाने की जरुरत है।
मित्रों, इस चुनाव में जो बात सबसे ज्यादा केजरीवाल के खिलाफ जा रही है वो है सरकार की विफलताएं और उनसे उत्पन्न जनता की नाराजगी. दिल्ली की जनता उनसे इसलिए नाराज है क्योंकि जब 1761 के बाद पहली बार दिल्ली में हिंदुओं का नरसंहार हुआ तब नरसंहार करनेवालों के सरगना ताहिर हुसैन केजरीवाल के स्नेहिल थे. दिल्ली की जनता उनसे इसलिए नाराज है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल को १२ सालों में सिर्फ मौलाना याद थे अब जाकर पंडित और ग्रंथी याद आ रहे हैं. मोहल्ला क्लिनिक गायब-से हो गए हैं, १५ लाख सीसीटीवी लापता है. हर चुनाव में केजरीवाल ने एक ही वादे किए कि यमुना साफ करेंगे, सड़कें चकाचक करेंगे, नालियां बनवाएंगे, दिल्ली को झीलों का शहर बनाएंगे लेकिन किया यही कि किया कुछ भी नहीं. पहले केजरीवाल एमसीडी पर काम नहीं करने देने के आरोप लगाते थे लेकिन अब एमसीडी पर भी उनका ही कब्ज़ा है और दिल्ली के हालात इतने ख़राब हैं कि न तो नलों से साफ़ पानी आ रहा है, न तो सड़कें दुरुस्त हैं और हवा तो इतनी प्रदूषित है कि आप खुले में साँस तक नहीं ले सकते. केजरीवाल का दावा है कि अगर दिल्ली पुलिस उनके हाथों में होती तो दिल्ली चैन से सोती लेकिन पंजाब में जहां उनकी सरकार है और उनकी पुलिस है वहां पुलिस चौकियां तक सुरक्षित नहीं हैं। केजरीवाल पहले भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते थे अब तिहाड़ जेल से सरकार चलाकर शर्मनाक उदहारण पेश कर चुके हैं। उस पर उनकी सहयोगी दिल्ली की सिंघम स्वाति मालीवाल ने अलग उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
मित्रों, दिल्ली चुनावों में केजरीवाल के सामने सबसे मजबूती से जो दल इस बार भी खड़ा है पूरे भारत में विजय पताका फहरा चुकी भारतीय जनता पार्टी जिसकी आँखों में दिल्ली उसी तरह चुभ रही है जैसे कभी सम्राट अशोक की आँखों में कलिंग चुभता था. पार्टी ने इस बार दिल्ली में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री मोदी कई जनसभाएं कर चुके हैं और आप सरकार को आपदा का नाम दे चुके हैं. भाजपा का उत्साह हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत के बात सातवें आसमान पर है. भाजपा की तरफ से मोदीजी के अलावा परवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, वीरेंद्र सचदेवा, विजेंद्र गुप्ता, मनोज तिवारी, जेपी नड्डा, कपिल मिश्रा जैसे दिग्गज दिन-रात दिन-रात एक किए हुए हैं. साथ ही उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने बटेंगे तो कटेंगे के नारे के साथ प्रचार में जुटे हूए हैं। केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश और बिहार मूल के मतदाताओं के खिलाफ बयान देकर येन चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी को बैठे-बिठाए बहुत बड़ा भावनात्मक मुद्दा दे दिया है. भाजपा जानती है कि यह चुनाव केजरीवाल के लिए जीवन और मरण का चुनाव है और अगर भाजपा ने दिल्ली जीत लिया तो कमजोर विपक्ष और भी कमजोर हो जाएगा जो इनदिनों एक बार फिर से विभाजित दिखाई दे रही है.
मित्रों, रही बात कांग्रेस की तो कदाचित राजनीति को उत्सव माननेवाले राहुल गाँधी अब जाकर चुनाव में उतरे हैं. परवेश वर्मा के अनुसार "जब बीजेपी और आम आदमी पार्टी आधा पेपर लिख चुकी तब राहुल गांधी एग्जामिनेशन हॉल में घुसे हैं."
जाहिर है कांग्रेस चुनाव लड़ नहीं रही है सिर्फ लडती हुई दिखाई दे रही है वो भी इसलिए क्योंकि इंडी गठबंधन में कांग्रेस पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है और कहीं-न-कहीं एक बार फिर से तीसरा मोर्चा आकार लेने लगा है जो भविष्य में भाजपा के लिए फायदेमंद और कांग्रेस के लिए प्राणघातक साबित होगा. ईधर मैदान में कांग्रेस देर से तो आई ही है साथ ही राहुल गांधी ने इंडियन स्टेट से लड़ने की बात करके एक नये विवाद को जन्म दे दिया है जिसकी गूंज भविष्य में दूर तक जानेवाली है।
मित्रों, ऐसे में दिल्ली की जनता इस बार किस पार्टी के गले में जयमाला डालेगी इसका पता ८ फरवरी को चलेगा. उसी दिन पता चलेगा कि केजरीवाल की काठ की हांडी चौथी बार भी आग पर चढ़ती है या भी जलकर राख हो जाती है. उसी दिन पता चलेगा कि इस बार भी कांग्रेस का खाता खुलता है या नहीं और उसी दिन पता चलेगा कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का विगत २७ सालों से चल रहा वनवास समाप्त होता है या नहीं.
नोट-इस आलेख को मैंने १६ जनवरी को ही लिखा था लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से इसे अब प्रकाशित करने जा रहा हूँ. कैसा लिखा था आपकी राय का इंतजार रहेगा.
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