बुधवार, 1 मई 2024

अबकी बार ४०० पार

मित्रों, इन दिनों पूरा भारत चुनावी बुखार से तप रहा है. भारतीय जनता पार्टी अपने दो चिर विलम्बित वादों को पिछले कार्यकालों में पूरा कर चुकी है और अब बारी है सबसे बड़े वादे की अर्थात समान नागरिक संहिता की. यह ऐसा वादा है जो वादा मूलतः हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की जनता से किया था. कांग्रेस पार्टी जिसकी संविधान सभा में सबसे बड़ी भागेदारी थी इस वादे को बहुत पहले भूल चुकी है और कई दशकों से भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने की बजाए गजवाए हिन्द लाने के कुत्सित प्रयास कर रही है. कांग्रेस पार्टी के इस बार के चुनावी घोषणा-पत्र को अगर हम देखें तो पाएँगे कि या तो वह स्वतंत्रता पूर्व मुस्लिम लीग का घोषणा-पत्र है या फिर वर्तमान पाकिस्तान का. उद्देश्य है हिन्दुओं में फूट डालना और मुसलमानों का शत-प्रतिशत मत प्राप्त करना. कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में हिन्दुओं के लिए कोई वादा किया ही नहीं है बल्कि उसके सारे वादे मुस्लिम-तुष्टिकरण की पराकाष्ठा हैं. राहुल गाँधी अपने भाषणों में जिस क्रांति का वादा कर रहे हैं वास्तव में वो इस्लामिक क्रांति है जो पिछली सदी में ईरान और अफगानिस्तान में देखने को मिली थी. मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अपना देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है. हमें शरियत और संविधान के मध्य चुनाव करना है. ५०० साल बाद मोदी जी की शुभेच्छा से रामलला अपने भवन में पधारे हैं और देश के माथे से धारा ३७० जिसने कश्मीर को हिन्दूविहीन बना दिया का कलंक मिटाया जा चुका है. भारत में पहली बार एक ऐसी सरकार सत्ता में है जिस पर दस साल तक लगातार सत्ता में रहने के बावजूद भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था नित नई ऊंचाई छू रही है, २५ करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं. पहली बार गरीबी मिटाना नारा न होकर एक हकीकत है. जो लोग सबसे ज्यादा जनसँख्या बढ़ाकर जनसँख्या जिहाद चला रहे हैं वही लोग सबसे ज्यादा बेरोजगारी का रोना रो रहे हैं. मित्रों, हजारों सालों की गुलामी और बर्बादी के बाद यह चुनाव नहीं है बल्कि अवसर है हजारों सालों के लिए देश का उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने का. चुनना आपको है कि आपको २०१४ से पहले वाला बम विस्फोटों, बलात्कारों, घोटालों वाला भारत चाहिए या फिर मौर्य और गुप्त काल वाला विश्वगुरु भारत चाहिए. मुसलमानों का एक भी वोट जाया नहीं जानेवाला है यह निश्चित है मगर क्या हम ऐसी ही गारंटी मोदी जी को हिन्दुओं के मतों को लेकर दे सकते हैं? इस बार कांग्रेस द्वारा अतीत में गजवाए हिंद की दिशा में उठाए गए सारे नापाक क़दमों चाहे वो मुस्लिम पर्सनल लॉ हो या वक्फ बोर्ड को मिटाने की बारी है और इसके लिए समान नागरिक संहिता लाना ही एकमात्र समाधान है सिर्फ उत्तराखंड से कुछ नहीं होनेवाला इसे पूरे भारत में लागू करना होगा और उसके लिए चाहिए ४०० पार. क्या हम गारंटी पुरुष मोदी जी को ४०० पार की गारंटी दे सकते हैं?

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

केके पाठक का बढ़ता पागलपन

मित्रों, दुनिया में कुछ लोग काम के पीछे पागल होते हैं तो कुछ नाम के पीछे। बिहार में एक आईएएस अधिकारी ऐसे ही हैं जो दिखावा तो काम का करते हैं लेकिन दरअसल उनका लक्ष्य सिर्फ नाम बटोरना है। मित्रों, बिहार के उस पागल अधिकारी का नाम है केके पाठक। श्रीमान अपनी मर्जी के मालिक हैं। मंत्री यहां तक कि मुख्यमंत्री विधानसभा में कुछ भी बोलें इनको कोई मतलब नहीं। श्रीमान को हम नौकरशाही की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं और निरंकुशता की चरम सीमा भी। मित्रों, आपने माता दुर्गा की प्रतिमा को देखा होगा। माता की सवारी सिंह है जो शक्ति का प्रतीक है लेकिन लोक जन रंजन पद पंकज रूपी माता के पैरों तले है। लोकतंत्र में भी शक्ति यानि नौकरशाही को जनप्रतिनिधियों के पैरों तले होना चाहिए लेकिन केके पाठक जी ने तो हद ही कर रखी है। ये तो मुख्यमंत्री तक की नहीं मानते। मित्रों, शिक्षा विभाग से पहले श्रीमान उत्पाद विभाग के सर्वेसर्वा थे। वहां भी इन्होंने हजारों ड्रोन खरीद डाले। कहा कि आसमान से शराब तस्करों की निगरानी करेंगे। मगर जब परिणाम शून्य बटा सन्नाटा रहा तब श्रीमान अधिकारियों के साथ गाली-गलौज करने लगे। शिक्षा विभाग में भी इन्होंने इन दिनों खूब बंदरकूद मचा रखी है लेकिन परिणाम अबतक शून्य बटा सन्नाटा ही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। अलबत्ता इन्होंने नाकारा शिक्षकों को बिहार सरकार का कर्मचारी जरूर बना दिया है। मित्रों, जब श्रीमान सरकारी स्कूलों में कुछ खास सुधार नहीं कर पाए तो विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को तंग करने लगे और उनका वेतन-पेंशन रोक दिया। इतना ही नहीं सीधे राज्यपाल से उलझ भी गए जबकि कानूनन विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्था होते हैं और राज्यपाल उनके कुलाधिपति होते हैं। न जाने कब बिहार के भूखे-प्यासे विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को वेतन-पेंशन मिलेगा तीन महीनों से तो नहीं मिला है। मित्रों, इतना ही नहीं अब तो श्रीमान ने चुनाव आयोग के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है जबकि पूरे देश में आचार-संहिता लागू है। मल्लब श्रीमान खुद को सबसे ऊपर समझते हैं. क्या पता कब सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री जी को भी कोई निर्देश दे डालें महामहिम राज्यपाल महोदय तक तो पहुँच ही गए हैं.

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग

मित्रों, यूं तो मैंने इन दिनों आलेख लिखना काफी कम कर दिया है. एक तो स्वास्थ्य साथ नहीं देता तो वहीँ दूसरी ओर निजी समस्याओं ने परेशान कर रखा है लेकिन पिछले दिनों घटी दो घटनाओं ने मुझे इस आलेख को लिखने के लिए बाध्य कर दिया है. पहली घटना १९ मार्च की है. मैं बता दूं कि मेरे घर के पीछे पहले महिला थाना था जो अब पुलिस लाइन, हाजीपुर के पास मुजफ्फरपुर रोड में चला गया है. जब तक मेरे पड़ोस में महिला थाना था तब तक मोहल्ले के दुसाधों की मौज रही. उनके ही बीच का एक दुसाध विनोद महिला थाने में दलाली जो करता था. तब भोर के ३-४ बजे से मोहल्ले के दुसाध थाना के शौचालय में शौच के लिए जाने लगते. दिनभर मोटर चलाते और ठंडा पानी से नहाते, कपडे धोते. कभी-कभी मोटर जल जाता तो विनोद बनवा देता, शौचालय भी साफ़ करवा देता. लेकिन हुआ यूं कि पिछले साल ५ सितम्बर को महिला थाना यहाँ से पुलिस लाईन में चला गया और यहाँ पहले साईबर थाना और बाद में जढुआ ओपी भी खुल गया. विनोद भी अब महिला थाना के नए परिसर में दलाली करने लगा. अब शुरू हुई परेशानी, नए पुलिसवाले दुसाधों को रोकने लगे जो स्वाभाविक भी था. क्योंकि दुसाधों को तो सिर्फ शौच करने से मतलब था साफ़ कौन करता या करवाता? मित्रों, १९ मार्च को जब कोई दुसाध थाना परिसर में शौच करने और कूड़ा फेंकने आया तो थानेदार धर्मेन्द्र ने उसे रोकने की कोशिश की. फिर क्या था एससी एक्ट की ऐंठन से ऐंठे युवक ने भाई के साथ मिलकर थानेदार को उठाकर पटक दिया. थानेदार जान बचाकर भागे क्योंकि उस समय थाना में मात्र २-३ पुलिसकर्मी ही थे जबकि कुछ ही मिनट में दुसाधों ने थाना को घेर लिया और पथराव करने लगे. साथ ही थाना के सामने की सड़क को जाम कर थानेदार को एससी-एसटी एक्ट में फंसा देने की धमकी देने के साथ-साथ भद्दी-भद्दी गालियाँ भी देने लगे. हंगामा बढ़ता देख नगर थाना को फोन किया गया. जब भारी संख्या में पुलिस फ़ोर्स जमा हो गई तब एक महिला सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया जिनको बाद में जेल भेज दिया गया. विनोद पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया. इन दिनों वो फरार चल रहा है. साथ ही थानेदार का तबादला कर दिया गया. मित्रों, अब आते हैं दूसरी घटना पर जो होली के दिन की है. हुआ यूं कि वैशाली जिले के ही महनार थाना के जगरनाथपुर में गाँव के ही चमारों ने एक पीपल के पेड़ पर नीला झंडा लगा दिया और वहां लिखकर टांग दिया कि यहाँ राजपूतों का प्रवेश निषेध है. चूँकि पीपल का पेड़ राजपूतों की जमीन पर था इसलिए जब राजपूत विरोध करने के लिए पहुंचे तब योजनाबद्ध तरीके से उनके ऊपर लाठी और ईट-पत्थरों से हमला कर दिया गया जिससे कई राजपूत युवक लहू-लुहान हो गए. गजब तो तब हुआ कि जब वे लोग थाना पर केस करने पहुंचे तो उलटे उन चारों राजपूतों को एससी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. मतलब कि मार भी उनको ही पड़ी और जेल भी उनको ही जाना पड़ा. साथ ही केस में नाम होने के चलते कई राजपूत बेवजह इन दिनों फरारी का जीवन जी रहे हैं जबकि किसानों के लिए यह समय काफी महत्वपूर्ण है. मित्रों, समझ में नहीं आता कि इस एससी-एसटी एक्ट को मोदी सरकार ने संशोधित क्यों किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके भारी संख्या में दुरुपयोग को देखते हुए इस एक्ट के मामले में जांच से पहले गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी? रोजाना उत्तर प्रदेश से इस एक्ट के दुरुपयोग की खबरें हम अब तक पढ़ते आ रहे थे लेकिन अब तो बिहार में भी इसका दुरुपयोग होने लगा और मेरी आँखों के आगे हो रहा है. यहाँ मैं पूछना चाहते हूँ कि अगर धर्मेन्द्र थानेदार नहीं होते तो इस समय जेल में कौन होता? उनके ऊपर हमला करनवाले दुसाध या खुद धर्मेन्द्र? इस तरह तो गैर अनुसूचित जाति के हिन्दुओं का खुद अपने ही गाँव में रहना मुश्किल हो जाएगा साथ ही नौकरी करने में भी समस्या आएगी. जब थानेदार को एक्ट के दम पर थाना में पीटा जा सकता है तो आम आदमी की क्या बिसात?

बुधवार, 20 मार्च 2024

सावधान इंडिया, शांतिप्रिय समाज से सावधान

मित्रों, इतिहास गवाह है कि पिछले १४०० सालों में जितने निर्दोषों की हत्या कथित शांतिप्रिय लोगों ने की है उतनी कदाचित हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित राक्षसों ने भी नहीं की होगी. सब जानते हैं कि दुनिया भर में चल रही जेहादी हिंसा के लिए कुरान की २६ आयतें जिम्मेदार हैं लेकिन सब चुप हैं. न तो कमलेश तिवारी के हत्यारों की उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी, न ही कन्हैयालाल के हत्यारों की कन्हैयालाल से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. जेहादी हिंसा के शिकार निर्दोष हिन्दुओं लिस्ट काफी लम्बी है इसलिए सीधे कल की बदायूं में घटी घटना पर आते हैं. हुआ यूं कि दो मुस्लिम पडोसी अपने हिन्दू पडोसी विनोद सिंह के घर पर ५००० रू. कर्ज मांगने के बहाने जाते हैं. स्वागत में जब उनकी पत्नी सुनीता चाय बनाने में लग जाती है तब साजिद नामक नमाजी दूसरी मंजिल पर चला जाता है और उनके तीनों बेटे आयुष (१२ वर्ष), हनी (८ वर्ष) और पीयूष पर उस्तरे से हमला कर देता है जिसमें आयुष और हनी गला काटे जाने के चलते तत्काल दम तोड़ देते हैं जबकि पीयूष किसी तरह भागने में सफल हो जाता है. इतना ही नहीं वह नरपिशाच गला काटने के बाद उन बच्चों का खून भी पीता है. उधर जावेद सुनीता के पास ही बैठा रहता है और उनकी खतरनाक योजना से अनजान सुनीता उसे 5000 रू दे भी देती है। मित्रों, पिछले १४०० सालों से जेहादियों ने पूरी दुनिया में निर्दोषों की हत्या का जैसे ठेका लिया हुआ है. भला १२ या ८ साल के बच्चे से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है? उनलोगों ने उनका क्या बिगाड़ा होगा सिवाय हिन्दू माता-पिता से जन्म लेने के सिवाय? ७ अक्तूबर २०२३ को इजरायल में हमास ने जिस तरह की राक्षसी हिंसा का नग्न प्रदर्शन किया उसे पूरी दुनिया ने देखा है. भारत में भी चाहे 1920 के दशक में मोपलाओं द्वारा किया गया हिन्दू नरसंहार हो या 16 अगस्त 1946 को कोलकाता नरसंहार हो या 1990 में कश्मीर में किया गया हिन्दुओं का नरसंहार हो या फिर 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस अग्रिकांड हो या फिर २०२० के दिल्ली के एकतरफा दंगे हों मानवता के हत्यारों द्वारा लगातार की गई रक्तरंजित हिंसा के बावजूद हम हिन्दुओं की आँखें बंद हैं और हम भाईचारे के गीत गाने में मगन हैं. हमें बहुत पहले सावधान हो जाना चाहिए था. हम यह नहीं कहते कि हमें उनपर हमला कर देना चाहिए लेकिन अपनी आत्मरक्षा के लिए हम पारंपरिक हथियार तो रख ही सकते हैं. साथ ही हमें झूठी धर्मनिरपेक्षता के खतरों को भी समझना होगा. इतना ही नहीं हमें आनेवाले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का हाथ मजबूत करना होगा और ४०० सीटों पर जिताना होगा अन्यथा भारत को भारत-विरोधी राक्षसी शक्तियों के हाथों में जाने से कोई नहीं रोक सकेगा. फिर हम हिंदुओं का वही होगा जो इन दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश में हो रहा है।

सोमवार, 29 जनवरी 2024

बिहार में दोषी कौन, नीतीश, लालू या कांग्रेस?

मित्रों, कई दशक बीत गए. पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह आर.पी.एस. कॉलेज, महनार, वैशाली के प्रधानाचार्य के पद से रिटायर हो चुके थे. बचे हुए शिक्षकों में प्रधानाचार्य बनने के लिए बड़ी मारा-मारी थी. तभी हमने सुना कि महाविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक गिरी चाचा ने प्रधानाचार्य बनने के बाद पहनने के लिए कोट भी सिलवा लिया है हालांकि वरीयता क्रम के अनुसार उनके प्रधानाचार्य बनने में अभी देरी थी. मित्रों, ठीक इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी साल २०१३-१४ से अचकन सिलाए बैठे हैं इस प्रतीक्षा में कि जब वो प्रधानमंत्री बनेंगे तब इसको पहनेंगे. इस तरह की एक और घटना महनार में रहते हुए हमें देखने को मिली थी. एक अधेड़ उम्र का बढ़ई बाल-बच्चेदार होते हुए भी शादी करने के लिए बेहाल था. महनार के माली टोला के युवकों ने एक बार उसको शादी करवा देने का लालच दिया. उन युवकों में से ही एक युवक को दुल्हन बना दिया गया. जमकर दावत हुई और सुहागरात के दिन जो होना था वही हुआ. जब पोल खुली तब बढ़ई ने लोगों को जमकर गाली दी. मित्रों, माननीय नीतीश जी की हालत न सिर्फ गिरी चाचा से बल्कि उस बुजुर्ग बढ़ई से भी मिलती है. कोई भी उनको प्रधानमंत्री बनाने के सपने दिखाकर बेवकूफ बना जाता है जबकि उनके पास सिर्फ १६ सांसद है हालाँकि बिहार के पड़ोसी झारखण्ड में निर्दलीय भी मुख्यमंत्री हो चुका है. मान लिया कि नीतीश जी को प्रधानमंत्री के पद के झूठे सपने दिखाकर धोखा दिया गया लेकिन उनको चने के झाड़ पर चढ़ने को किसने कहा था? क्या वो भी राहुल गाँधी की तरह पप्पू हैं? मित्रों, मैं यह नहीं कहता कि कल की नीतीश की पल्टी के लिए सिर्फ नीतीश जी ही दोषी हैं. उनको झूठे सपने दिखाकर मूर्ख बनानेवाले भी कम दोषी नहीं है लेकिन सबसे ज्यादा दोषी खुद नीतीश जी हैं इसमें कोई सन्देह नहीं. आखिर २०२० का विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ रहकर जीता था फिर उनको जनमत का अपमान करने का अधिकार किसने दिया था? इसी तरह उन्होंने २०१७ में भी जनमत को ठेंगा दिखाया था जो गलत था. खैर लौट के बुद्धू घर को आए और उम्मीद करता हूँ कि अब वो पलटी नहीं मारेंगे. शायद!

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

मेरे पिता स्व. डॉ. विष्णुपद सिंह

मित्रों, मेरे पिता स्व. डॉ. विष्णुपद सिंह को दुनिया से गए आज पूरे तीन साल हो चुके हैं. आज ही के दिन रात के ९ बजे उन्होंने स्थानीय गणपति अस्पताल में अंतिम सांस ली थी हालाँकि वे ५ जनवरी २०२१ से ही बेहोश थे. इन तीन सालों में मैं अपने ही पिता को शाब्दिक श्रद्धांजलि नहीं दे पाया जबकि गाहे-बेगाहे लिखना मेरी आदत रही है. दरअसल मेरे पिता मेरे सूर्य थे और उनका अस्त हो जाना जैसे मेरे जीवन में अकस्मात् शाम नहीं सीधे अर्द्धरात्रि ले आया. उस अँधेरे में मैं उन शब्दों को खोजता रहा जिन शब्दों द्वारा मैं अपने पिता के जीवन और मेरे जीवन में उनके महत्व को अभिव्यक्त कर सकूं. पिताजी को याद करते ही मेरा मन और मेरी लेखनी का भावुकता के मारे गला ही रूंध जाता और बात शुरू होने से पहले ही रूक जाती. मित्रों, मेरे पिता मेरे गुरु, मेरे आदर्श, मेरे मार्गदर्शक सबकुछ एक साथ थे. वो इस घनघोर कलियुग में भी घनघोर ईमानदार और आदर्शवादी थे. जाहिर है उनका और हमारा जीवन घनघोर अभावों में बीता. चाहते तो अपने ईमान का सौदा करके वैभवपूर्ण जीवन जी सकते थे लेकिन निहायत नरम, विनम्र और लचीले स्वभाव वाले मेरे पिता ने इस एक मुद्दे पर कभी समझौता नहीं किया. हमेशा कर्ज में रहे लेकिन देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण को चुकता करने में कभी कंजूसी नहीं की. पटना यूनिवर्सिटी के टॉपर होते हुए भी आरपीएस कॉलेज, चकेयाज, महनार जैसे देहात में शिक्षण किया. खुद का चूल्हा भले ही जले या न जले गरीब विद्यार्थियों की फीस बेफिक्र होकर अपनी जेब से भर देते यहाँ तक कि कर्ज लेकर भी. अपने ३५-४० साल लम्बे अध्यापन काल के आरंभिक १५ वर्षों तक जब तक कॉलेज सरकारी नहीं हुआ था मामूली वेतन पर काम किया पर विद्यार्थियों को फ्री में ट्यूशन, गेस और नोट्स देते रहे. उनके नोट्स गागर में सागर होते. होते भी क्यों नहीं पिताजी एक साथ अंकगणित, हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी के विद्वान जो थे, इतिहास के तो वो प्राध्यापक ही थे. मित्रों, उन्होंने एक साथ तीन पीढ़ियों को पढाया लेकिन उनका कॉलेज में कभी किसी से न तो झगडा हुआ और न ही बहस हुई. जब कभी छात्र आपस में मारा-मारी करने लगते तब पिताजी बिना कुछ कहे अपने कमरे से बाहर आकर बरामदे में खड़ा भर हो जाते क्षण भर में झगडा स्वतः बंद हो जाता. मित्रों, पिताजी अजातशत्रु थे फिर भी अपनी ससुराल में उनको जमीन का मुकदमा लड़ना पड़ा ठीक उसी तरह जैसे धर्मराज युधिष्ठिर को दुर्योधन से लड़ना पड़ा था. पिताजी विनम्र थे लेकिन दृढप्रतिज्ञ भी थे. जो धर्मयुद्ध मेरी नानी श्रीमती धन्ना कुंवर ने प्रारंभ किया था उसे उन्होंने अंजाम तक पंहुचा कर छोड़ा. साथ ही उन्होंने जिस तरह मेरी नानी का ख्याल रखा आज भी पूरे ईलाके में मिसाल है. मित्रों, मेरी पिताजी से कुछ शिकायतें भी हैं. उन्होंने कभी अपने परिवार और अपने परिवार के कल की चिंता नहीं की. साथ ही सिर्फ वो माँ को ही परिवार समझने लगे थे अपने एकमात्र पुत्र और पुत्रवधू की उन्होंने कभी क़द्र नहीं की. यही कारण था कि जब वे धराधाम से विदा हुए तब उनके सर पर अपनी छत नहीं थी और किराये के घर से ही उनका श्राद्ध हुआ और उनकी अटैची से सिर्फ ६०००० रू. ही निकले. फिर भी मैं अपने महान पिताजी को आज उनकी मृत्यु की तीसरी वार्षिकी पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. मुझे आज भी इस बात का मलाल है कि वे बिना कुछ कहे अचानक बेहोश हो गए और फिर होश में नहीं आए. मैं ८ दिनों तक अस्पताल की कुर्सी पर बैठे-बैठे माता भगवती से उनके फिर से उठ खड़े होने की प्रार्थना करता रहा लेकिन वो नहीं माने वर्ना माता उनकी बात काट ही नहीं सकती. पिताजी आप न सिर्फ मेरे पिता थे बल्कि आदर्श और गुरु भी थे और हमेशा रहेंगे. पिताजी मैं आपकी कमी रोजाना महसूस करता हूँ और प्रत्येक क्षण आपको याद करता हूं. आपको कोटिशः नमन बाबू. जब तक आप जीवित थे आपकी ख़ुशी में ही मैंने अपनी ख़ुशी समझी और अपना सबकुछ आपको समर्पित कर दिया. अब आप नहीं हैं तो मैं आपको अपने उद्गार चंद शब्दों के माध्यम से समर्पित करता हूँ. जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए, अब तुमने कितनी दूर ठिकाने बना लिए....