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गुरुवार, 3 सितंबर 2009
ताज़ी हवा
कलम चले तो जिगर खुश भी हो और छलनी भी
कलम रुके तो निजाम ऐ ज़िन्दगी भी रुक जाये
कलम उठे तो उठे सर तमाम दुनिया का
कलम झुके तो खुदा की नज़र भी झुक जाए
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ताज़ा हवा
से साभार
1 टिप्पणी:
sansingh
ने कहा…
इसी तरह कलम चलते रहो और दुनिया को बताते रहो......
3 सितंबर 2009 को 7:41 pm बजे
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1 टिप्पणी:
इसी तरह कलम चलते रहो और दुनिया को बताते रहो......
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