गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

क्या शादीशुदा औरतें बलात्कारियों से सुरक्षित होती हैं?


मित्रों,हरियाणा के खाप-पंचायतवाले और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मान्यवर ओमप्रकाश चौटाला इन दिनों एक सर्वथा नए राग 'राग बालविवाह' का आलाप लेने में लगे हैं। इन लोगों को न जाने क्यों आजकल ऐसा लग रहा है कि अगर राज्य के दलित अपनी बेटियों का कम उम्र में विवाह कर दें तो वहाँ के जाट युवक उनका बलात्कार करना बंद कर देंगे,उनको अपनी माँ-बहन जैसी मानते हुए सम्मान देने लगेंगे और उनकी तरफ पलटकर देखना तो दूर उनके घरों की तरफ मुँह करके सोयेंगे भी नहीं। उनकी नजरों में सारे बलात्कारों और यौनापराधों का एक ही रामवाण ईलाज है कि दलित व अन्य लड़कियों का बालविवाह कर दिया जाए।
        मित्रों,बीमारी कुछ और है और ईलाज इन जाटों द्वारा कुछ और ही सुझाया जा रहा है। ये इस बात पर विचार नहीं कर रहे कि लगभग सारे मामलों में दलित लड़कियों के साथ ही दुष्कर्म की घटनाएँ क्यों घट रही हैं? क्या जाटों की लड़कियाँ नहीं होतीं या क्या वे उनकी शादी छुटपन में ही कर देते हैं? अगर जाटों के घर में भी लड़कियाँ जन्म ले रही हैं और उनकी शादी भी उनके जवान होने के बाद ही होती है तो फिर जाट युवक उनका बलात्कार क्यों नहीं करते? कहीं-न-कहीं ऐसा नहीं होने के पीछे दलितों के बराबरी के ख्याल को कुचल डालने की मानसिकता काम कर रही है। कुछ जाट सोंचते हैं कि दलितों की बहू-बेटियों के साथ बलात्कार कर दो जिससे उनके अन्दर हीनभावना घर कर जाए। चूँकि वहाँ के जाट काफी शक्तिशाली और संगठित हैं इसलिए दलित प्रतिकार में कुछ कर नहीं पाते और कई बार तो लज्जावश सपरिवार आत्महत्या भी कर लेते हैं। यहाँ तक कि वहाँ की सरकार चाहे वो काँग्रेस की हो या चौटाला की खाप-पंचायतों से डरती हैं और इनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करतीं।
                         मित्रों,ताजा मामले में पीड़ित परिवार के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है कांग्रेस अध्यक्षा कथित त्यागमूर्ति,करूणायतन सोनिया गांधी ने यह कहकर कि बलात्कार कहाँ नहीं हो रहा है? उनके अनुसार यह तो एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। संवेदनहीनता की हद है यह। इसलिए शायद दलित साहित्यालोचक भोगे हुए यथार्थ को देखे हुए यथार्थ से ज्यादा प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण मानते हैं। यही बात कुछ अलग अंदाज में जब बाबा रामदेव ने कह दी है तो पूरा कांग्रेस और उसकी पिट्ठू मीडिया आसमान को सिर पे उठाए जा रहा है। बाबा के बयान के विवाद में बलात्कार का मूल मुद्दा पृष्ठभूमि में चला गया है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि बाबा ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। कुछ ऐसा ही बयान कभी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रीता बहुगुणा जोशी ने मायावती के लिए दिया था। तब तो कांग्रेस ने उनका बचाव किया था। क्या बाबा के बयान पर इसलिए हंगामा नहीं बरपा हुआ है क्योंकि सोनिया मायावती की तरह दलित न होकर प्रतिष्ठित नेहरू परिवार की बहू हैं?
                              मित्रों,वैसे सोनिया जी का कथन भी पूर्णतः असत्य नहीं है। सत्य है कि भारत में इस समय सर्वत्र बलात्कार की घटनाएँ घट रही हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर मामलों में बलात्कारी अपने रक्तसंबंधी ही होते हैं या फिर पास-पड़ोस के लोग होते हैं। लेकिन हरियाणा में तो जाति-विशेष की लड़कियों के साथ जाति-विशेष के लोग लक्ष्य करके ऐसी जघन्य घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। साथ ही हरियाणा में ऐसी घटनाओं की बारंबारता भी अन्य प्रदेशों से काफी ज्यादा है। अमूमन हर दो दिन पर एक दलित लड़की जाटों की कामुकता की शिकार हो रही हैं और कई बार तो शादीशुदा दलित महिलाओं को भी हवस का शिकार बनाया जाता है। इसलिए खाप-पंचायतों या चौटाला का फरमान या सुझाव एकदम वाहियात और हास्यास्पद है।
             मित्रों,अब इस बात पर विचार करते हैं कि ऐसी घटनाओं को रोका कैसे जाए? ऐसी घटनाओं को या तो समाज रोक सकता है या फिर सरकार। हम जानते हैं कि भारत में सबसे कम स्त्री-पुरुष अनुपात हरियाणा में ही है और उसमें भी जाटों में है। परिणामस्वरूप बहुत-से जाट लड़कों की शादी नहीं हो पाती और वे यौन-कुंठा के शिकार हो जाते हैं। फिर मौका मिलते ही दलित लड़कियों पर टूट पड़ते हैं। सबसे पहले तो वहाँ की खापों को भ्रूण-हत्या को रोकना होगा। यह काम सिर्फ वे ही कर सकते हैं सरकार से यह नहीं होगा। सरकार इस संबंध में जागरूकता जरूर पैदा कर सकती है। दूसरी बात बलात्कारियों के लिए सीधे मृत्युदंड की व्यवस्था की जाए और यह काम कर सकती है हमारी संसद। तीसरी बात बलात्कार के मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और पीड़ितों को प्रशासन पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराए। चौथी बात कि केंद्र-सरकार सरकार-विरोधी वेबसाईटों पर रोक लगाने के बदले पौर्न-साईटों को प्रतिबंधित करे। आज भी इंटरनेट पर हजारों पौर्न-साईट मौजूद हैं जिनको देखकर कोई भी बहक सकता है। पाँचवीं बात कि हमें अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालने चाहिए। इसके लिए खुद हमें उदाहरण बनना पड़ेगा। इसके साथ ही विद्यालयी-पाठ्यक्रम में भी नैतिक शिक्षा को पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
                   मित्रों,इस प्रकार अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कम उम्र में दलित या अन्य लड़कियों की शादी कर देने से बलात्कार तो रूकेगा या कम होगा नहीं उल्टे उनकी जान पर बन आएगी और उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। बलात्कारी उम्र या वैवाहिक-स्थिति देखकर बलात्कार नहीं करते बल्कि कई बार तो वे अपनी हवश अपनी माँ की उम्र की अधेड़ महिलाओं का भी बलात्कार कर पूरी करते हैं। इसलिए खाप-पंचायतों और चौटाला सरीखे नेताओं को बेसिरपैर की बातें नहीं करते हुए इस आलेख में बताए गए उन सुझावों पर विचार और अमल करना चाहिए जो तार्किक तो हैं ही सार्थक और सर्वहितकारी भी हैं।

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