रविवार, 14 अक्टूबर 2012

बिहार में रावण राज


मित्रों,कई दशक गुजर गए। हमने महनार के गंगा टॉकिज में एक फिल्म देखी थी। कथित रूप से वह फिल्म 'सी' ग्रेड की थी परन्तु मुझे बहुत अच्छी लगी थी। उसमें मिथुन चक्रवर्ती हीरो थे और खलनायक थे आदित्य पंचोली। फिल्म मानव-अंगों चोरी और तस्करी की सच्ची घटना पर आधारित थी। फिल्म का नाम फिल्म की कहानी को पूर्णतया प्रतिबिंबित करता था। फिल्म का नाम था रावण राज।
              मित्रों,इन दिनों बिहार राज्य के 483 किलोमीटर लंबे और 345 किलोमीटर चौड़े विशालकाय रंगमंच पर वही फिल्म मंचित हो रही है। इस बार खलनायक डॉक्टर सिर्फ अभिनय नहीं कर रहे बल्कि वास्तव में मानव अंगों की चोरी कर रहे हैं। इस सजीव फिल्म में गुर्दे नहीं निकाले जा रहे हैं बल्कि निकाले जा रहे हैं गर्भाशय। पिछले कुछ सालों में बिहार में एक साथ हजारों विवाहित-अविवाहित महिलाओं के शरीर से बिनावजह गर्भाशय को काटकर हटा दिया गया है। जैसे हरेक घटना या अपराध की एक वजह होती है इस घिनौने और मानवता के नाम कलंक का भी एक कारण है। कारण यह है कि इन दिनों भारत की केंद्र सरकार ने देश के गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना चला रखी है जिसके तहत बीपीएल परिवारों के सदस्यों द्वारा बीमा कम्पनी द्वारा सूचीबद्ध अस्पतालों में भर्ती होकर ईलाज कराने पर सालाना ३०,००० रूपये तक का ईलाज का खर्च बीमा कम्पनी द्वारा अस्पतालों को भुगतान किया जाता है। साथ ही लाभुकों को अस्पताल तक आने जाने के लिए प्रति बार १०० रूपये एवं अधिकतम सालाना १,००० रूपये का भुगतान अस्पताल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अधीन निबंधित लाभुकों के मुखिया सहित पाँच सदस्यों का सालाना ३०,००० रूपये का मुफ्त में स्वास्थ्य बीमा किया जाता है। यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित है, बीमा की ७५ प्रतिशत राशि का भुगतान केन्द्र सरकार द्वारा एवं २५ प्रतिशत राशि का भुगतान राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
                  मित्रों, बिहार तो हमेशा से जुगाड़ुओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। सो धरती के भूतपूर्व भगवानों बिहारी डॉक्टरों ने यहाँ भी लगा-भिड़ा दिया जुगाड़। कोई विवाहित-अविवाहित महिला जब भी जैसे ही उनके पास बीमार होकर ईलाज करवाने आई चाहे उसका रोग कुछ भी हो सिर में दर्द हो,पेट खराब हो,पेट में दर्द हो या फिर सर्दी-जुकाम ही क्यों न हो उन्होंने बस उसका एक ही ईलाज किया कि ऑपरेशन करके उनका गर्भाशय निकाल दिया। बार-बार छोटा-छोटा ईलाज करके क्यों पैसा बनाया जाए? एक ही बार सर्जरी की और सालभर की अधिकतम बीमा की राशि 30000 रुपया बना लिया। अधिकतर बीपीएल परिवारों के सदस्य ठहरे अनपढ़ उस पर डॉक्टर पर संदेह भी जल्दी कोई नहीं करता। डॉक्टर ने कहा है तो ठीक ही कहा होगा यह सोंचकर ऑपरेशन करवा लिया जबकि इसकी जरुरत थी ही नहीं। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कई अविवाहित लड़कियों का जीवन ही हमेशा के लिए निरर्थक हो गया और कई विवाहित और बालबच्चेदार महिलाएँ हमेशा के लिए बीमार। कई बार तो महिलाओं और उनके परिजनों को यह बताया भी नहीं गया कि उनका गर्भाशय निकाला जा रहा है और चुपके-से ऑपरेशन कर दिया गया। यह क्रम अभी भी रूका नहीं है बदस्तूर जारी है।
                मित्रों, रावण राज फिल्म में तो राम और अच्छाई के प्रतीक मिथुन ने दुनिया के इस सबसे घृणित व्यवसाय को बंद करवाया था और फिल्म के अंत में जल्लाद डॉक्टर को "ऑन द स्पॉट" मृत्युदंड देकर उसके किए की सजा दी थी। परन्तु बिहार में रावण राज नामक जीवंत फिल्म का तो अभी कोई अंत ही नहीं दिख रहा। फिल्म बहुत लंबी हो चुकी है,दर्शक सह भोक्ता सह बिहार की जनता अब उबने और व्याकुल होने लगी है हीरो (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) की मौजूदगी में कुर्सियाँ तोड़ने और उस पर उछालने लगी है, उसको चप्पल दिखाकर उत्तेजित भी कर रही है लेकिन हीरो है कि उसे ताव ही नहीं आ रहा। उल्टे वह अपने शुभचिंतक व चाहनेवाले दर्शकों अर्थात् जनता पर ही नाराज हो जा रहा है। फिल्म में तो सिर्फ एक ही रावण था यहाँ तो हजारों रावण हैं। इन रावणों के खिलाफ़ किसी स्वतंत्र जाँच एजेंसी (हालाँकि यह तो अपने देश में रही नहीं) या किसी न्यायिक आयोग से जाँच होनी चाहिए थी। इंसाफ के तकाजे से पीड़ितों को मुआवजा भी मिलना चाहिए था। इसके साथ ही रावणों को उनके किए की सजा भी मिलनी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा। हो रही है तो सिर्फ लीपापोती। माफ करना मेरे गरीब, मजलूम दोस्तों अभी आपको न जाने कितने समय तक बिहार में रावण राज फिल्म देखनी पड़ेगी। अपना राम शायद रावण से मिल गया है।

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