शनिवार, 27 अगस्त 2011

क्या अन्ना की मौत चाहती है केंद्र सरकार?

मित्रों,जैसा कि मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूँ कि हम स्वतंत्रता सेनानियों का पाला इस बार लोमड़ियों से पड़ा है.आज अन्ना के अनशन का ११वां दिन है लेकिन सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल कानून लाने और पास कराने को लेकर बिलकुल भी संजीदा नहीं दिख रही.उसे इस बात की जरा-सी भी चिंता नहीं है कि अगर अनशन की शरशैय्या पर लेटे अन्ना की मौत हो गई तो क्या होगा?सरकार शायद यह सोंचती है कि देश की जनता अन्ना की मौत को हल्के में लेगी और जल्दी ही अन्ना और भ्रष्टाचार को इस तरह भूल जाएगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो.
                   मित्रों,कुछ इसी तरह का भ्रम सरकार को अन्ना की गिरफ़्तारी को लेकर भी था.उसे लग रहा था कि वह अन्ना को भी बाबा रामदेव की तरह गिरफ्तार कर जबरन महाराष्ट्र भेज देगी और देश में आदमी के जुबान खोलने की बात तो दूर रही दिल्ली की गली का कुत्ता भी नहीं भूंकेगा.परन्तु उसकी ग़लतफ़हमी को हम भारत के लोगों ने किस तरह दूर कर दिया अब यह इतिहास का विषय है.यह समय ही इतिहास बनाने और बनते हुए देखने का है.आज कांग्रेस के युवराज,भारत के राष्ट्रीय तोता राहुल बबुआ ने भी इतिहास बनाया.अन्ना का आदर करते हुए उन्हें गालियाँ भी दीं जिसे वे फुर्सत से लिखकर लाए थे और उनके आन्दोलन को कथित भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक बता दिया जबकि हमलोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अन्ना का पूरी तरह से अहिंसक आन्दोलन अगर किसी के लिए खतरनाक है तो वे हैं सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचारी.पूरी की पूरी केंद्र सरकार के रूख में पिछले ११ दिनों में अगर कोई परिवर्तन आया है तो वो यह है कि अब वो अन्ना को ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ नहीं मानती है और उनका अपमान करने के बदले सम्मान करने लगी है.वो और उसके युवराज एक तरफ तो कहते हैं कि हम अन्ना द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़े जा रहे जंग का सम्मान करते हैं परन्तु अन्ना की किसी भी ऐसी मांग को मानेंगे भी नहीं जिससे भ्रष्टाचार को किंचित भी क्षति पहुँचती हो.
                                     मित्रों,इस सरकार ने अन्ना को पड़ोसी देश पाकिस्तान समझ लिया है जिसके साथ सालोंभर खुले और सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत चलती रहती है और नतीजा कुछ भी नहीं निकलता.अगर सरकार आमरण अनशन पर बैठे हुए अन्ना के साथ इस तरह की बातचीत करना चाहती है तो इसका साफ़ मतलब है कि अन्ना जियें या मरें इससे उसका कुछ भी लेना-देना नहीं है.वैसे भी मरता कौन नहीं है?जो आया है उसे एक-न-एक दिन जाना ही है.अन्ना की जिंदगी तो कुछेक राजनेताओं को छोड़कर पूरे देश के लिए एक मिसाल रही ही है और अगर वर्तमान अनशन के दौरान उनकी मौत हो जाती है तो मौत भी मिसाल बन जाएगी.अब शायद ऐसा अवश्यम्भावी है.केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी के रूख से नहीं लगता कि उन्हें भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कोई जल्दीबाजी है.बल्कि ४२ साल तक इस विधेयक के लटके रहने के बावजूद उन्हें तो यही लगता है कि हमें किसी तरह की जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.
              मित्रों,क्या आपने कभी यह सोंचा है कि अगर राहुल गांधी के अनुसार समाज के लिए खतरनाक बन चुके अन्ना की अनशन के दौरान मौत हो जाती है तो देश की क्या हालत हो सकती है?वैसे अभी तो यह परिकल्पनात्मक प्रश्न है लेकिन इतना तो निश्चित है कि तब जो कुछ भी देश में होगा उसकी कांग्रेसियों के पूर्वजों ने भी कल्पना नहीं की होगी.सबकुछ अप्रत्याशित होगा.जनता तब महात्मा गांधी पथ को छोड़कर शिवाजी मार्ग पर आ जाएगी और शासन की बागडोर भ्रष्ट राजनेताओं के हाथों से सीधे अपने हाथों में ले लेगी.तब न तो लोकतंत्र का कथित प्रहरी संसद रहेगा और न ही संसद की दुहाई देनेवाले भ्रष्टाचारी सत्ता में रह जाएँगे;कहाँ रहेंगे या रहेंगे भी कि नहीं कह नहीं सकता.

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