रविवार, 30 अक्तूबर 2016

हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट और बिहार के बाहुबली

मित्रों,कई साल पहले एक दिन हम हाजीपुर कोर्ट परिसर में एक वरिष्ठ अधिवक्ता के पास बैठे थे। हमने जिला अदालतों भ्रष्टाचार पर चर्चा छेड़ दी। वकील साहब ने बताया कि सबसे कम भ्रष्टाचार जिला अदालतों में है,इससे कई गुना ज्यादा उच्च न्यायालयों में है और सबसे ज्यादा सर्वोच्च न्यायालय में। मैं सुनकर सन्न था। उन दिनों मेरा एक मुकदमा हाजीपुर कोर्ट में चल रहा था और हर तारीख पर मुझसे भी रिश्वत ली जा रही थी।
मित्रों,आश्चर्य होता है कि जब लिखित कानून एक है तो फिर अलग-अलग जज अलग-अलग और एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत फैसले कैसे देते हैं? थोक में अपराधियों को हाईकोर्ट कैसे जमानत देता जाता है और कैसे सुप्रीम कोर्ट जमानत को रद्द करता जाता है? पहले शहाबुद्दीन,फिर बिंदी,फिर राजवल्लभ,फिर टुन्ना जी पांडे,फिर रॉकी। लगता है जैसे पटना हाईकोर्ट बिहार के बाहुबलियों के लिए कोई पैकेज लेकर बैठा हुआ है। लगता है जैसे हाईकोर्ट के जजों का इस सिद्धांत में अटूट विश्वास है कि पाप से घृणा करो पापियों से नहीं या फिर मी लॉर्ड को लगता है कि बाहुबलियों को जेल में रखने से राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति और भी खराब हो जाएगी। या फिर वे मानते हैं कि जंगलराज के शेरों को जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण और शिकार करने देना चाहिए।
मित्रों,लेकिन न्यायपालिका के लिए और भी ज्यादा हास्यास्पद स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब एक-एक करके उन सारी जमानतों को सर्वोच्च न्यायालय रद्द करता जाता है।
मित्रों,सवाल उठता है कि ऐसी कौन-सी न्याय की मूर्ति पटना हाईकोर्ट में बैठी हुई है जो अपराधियों के ऊपर हद से ज्यादा मेहरबान है और क्यों? अगर सुप्रीम कोर्ट किसी खास हाईकोर्ट के फैसले को लगातार बदल दे रहा है तो निश्चित रूप से कहीं-न-कहीं कोई झोल है और यही सब वे कारण हैं जिनके चलते मैं वर्षों से मांग करता रहा हूँ कि न्यायपालिका की भी जिम्मेदारी निश्चित की जानी चाहिए और गलत फैसलों के लिए जिम्मेदार जजों के ऊपर अनुशासनात्मक व दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। जहाँ तक बिहार सरकार का सवाल है तो जब लालूजी की पार्टी सरकार में होगी तो स्वाभाविक रूप से राज्य में बाहुबलियों के लिए,बाहुबलियों द्वारा और बाहुबलियों की ही सरकार होगी।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

मुलायम परिवार का महाभारत असली या फेमिली ड्रामा

मित्रों,देखते-देखते चार साल बीत गए। चाहे समय अच्छा हो या बुरा बीत ही जाता है। 4 साल पहले मुलायम परिवार ने बड़ी चालाकी से यूपी की जनता को उल्लू बनाया था। भदेशी बाप की जगह विदेश में जबरन पढ़ाए गए बेटे को आगे कर चुनाव लड़ा गया और जीता भी गया। काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती लेकिन अपने देश में कुछ भी संभव है।
मित्रों,हम बुद्धिहीनों को जैसी आशंका थी ठीक उसी तरह से समाजवाद के नाम पर 4 साल तक शासन चलाया गया। लगा जैसे हम जार्ज ओरवेल के उपन्यास द एनिमल फार्म का जीवंत मंचन देख रहे हों। कहने का मतलब कि समाज के शासन के नाम पर परिवार का शासन लादा गया ठीक उसी तरह से जैसे द एनिमल फार्म में कहा गया कि सारे जानवर समान हैं लेकिन सूअर उनमें ज्यादा समान (श्रेष्ठ) हैं और सूअरों में भी नेपोलियन नाम का सूअर सबसे ज्यादा समान है।
मित्रों,मुझे तो पिछले पाँच साल के अकललेश (अखिलेश) के शासन और उससे पहले उनके पिता के शासन में कोई फर्क महसूस नहीं हुआ। वही जातिवाद, वही पार्टीवाद,वही अराजकता,वही नमाजवाद और वही गुंडाराज। अंतर बस इतना है कि पहले जहाँ मुलायम परिवार एकजुट था वहीं अब टूटता हुआ दिख रहा है। चार साल पहले हमें आश्चर्य होता था जब रामगोपाल और शिवपाल अखिलेश को मंच से माननीय मुख्यमंत्री कहकर संबोधित करते थे। हमारे बिहार में कहावत है कि लड़िका मालिक बूढ़ दरबान,ममला चले साँझ-बिहान। यद्यपि मेरे कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि योग्यता और उम्र में अनिवार्य रूप से समानुपातिक संबंध होता है लेकिन मुझे अकललेश की योग्यता पर हमेशा से संदेह रहा है।
मित्रों,फिर भी मैं अकललेश की कोई गलती नहीं मानता क्योंकि जिस पार्टी या परिवार के एजेंडे में वास्तविक तौर पर विकास और सुशासन कभी रहा ही नहीं हो उसका कोई सदस्य प्रदेश को सुख-शांति और विकास दे भी कैसे सकता है? आज से चार साल पहले आश्चर्य मुझे अकललेश की जीत पर नहीं हुआ था बल्कि यूपी की महान जनता के बुद्धि-विवेक पर हुआ था। आखिर किस उम्मीद में और क्या सोंचकर वहाँ की जनता ने नमाजवादी (समाजवादी) पार्टी को वोट दिया था? ऐसा नहीं था कि यूपी में समाजवादी पार्टी पहली बार सत्ता में आई थी। हमने तब भी अपने आलेख द्वारा वहाँ की जनता को सचेत किया था कि माया-मुलायम की पार्टी को चुनने में क्या-क्या खतरे हैं लेकिन वहाँ कि जनता ने हमारी बातों पर ठीक उसी तरह कान नहीं दिया था जैसे कि पिछले साल के बिहार चुनावों में बिहार की जनता ने नहीं दिया।
मित्रों,हालाँकि जाहिर तौर पर मुलायम परिवार में सत्ता-संघर्ष अपने शिखर पर है फिर भी मेरा दिल मान नहीं रहा कि हम जो देख रहे हैं वही सच है। आज भी हमें लग रहा है कि जो हमें दिखाया जा रहा है वह यथार्थ नहीं छलावा है और कोरा छलावा है। संदेह होता है कि मुल्लायम (मुलायम) परिवार पिछली बार की तरह इस बार भी नाटक द्वारा यूपी की जनता को धोखा तो नहीं देना चाहती है? पिछले 4 साल गवाह हैं कि सरकार का चेहरा बदलने चरित्र नहीं बदल जाता,चाल नहीं बदल जाती फिर मुलायम को तो जनता पहले भी देख चुकी है। फिलहाल तो यूपी की जनता को यही कहा जा सकता है कि यूपी के भैया तू सोये मत जईहअ,पसीना के कमईया मुफत न गमईहअ.....। माया-मुलायम औ खूनी पंजा से बच के भैया।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

हम दीन ब्लॉगवालन पर कृपा कीजै सरकार

परम आदरणीय नरेंद्र मोदी जी,
समाचार जगत का हिस्सा होने के कारण हमें ज्ञात है कि आप कुशल और स्वस्थ हैं। साथ ही हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आपको हमेशा स्वस्थ और कुशल बनाए रखें।
बाद समाचार यह है कि आप जानते हैं कि हम ब्लॉगर हैं और नई मीडिया या सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। दिन-रात देश व विश्वहित में लिखते रहते हैं। इस प्रकार हमारा परिश्रम और देश-दुनिया की बेहतरी में योगदान किसी भी अन्य मीडिया से कमतर नहीं है बल्कि ज्यादा ही है।
परंतु हमारा दुर्भाग्य यह है कि हमें यह काम पेट पर पत्थर बांधकर करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम दिन-रात अपने घर का आटा गीला करते रहते हैं। मैं अपने 9 साल लम्बे ब्लॉगिंग कैरियर में ऐसे कई बेहतरीन लेखकों-पत्रकारों को जानता हूँ जिन्होंने सिर्फ इसी कारण से ब्लॉगिंग छोड़ दी। आप ही सोंचिए कि कोई आखिर कब तक भूखे भजन करता या करता रहेगा?
अतः मैं आप और आपकी सरकार से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि ब्लॉगों को सरकारी विज्ञापन देकर अन्य क्षेत्रों की तरह मीडिया के क्षेत्र में भी एक नई शुरुआत की जाए। इससे देश-दुनिया को तो लाभ होगा ही हमारे वीबी-बच्चे भी आपको दुआएं देंगे।
अंत में एक बार फिर शुभकामनाओं सहित।
आपका अनुज-
ब्रजकिशोर सिंह,brajkiduniya.blogspot.com