गुरुवार, 31 जनवरी 2019

अबकि बार अगर मोदी जी गए हार

मित्रों, इस समय देश की हालत काफी नाजुक है. न तो केंद्र की वर्तमान सरकार और न ही विपक्ष देश की वास्तविक समस्याओं के प्रति गंभीर है. दोनों तरफ से ही बेसिर-पैर की बातें हो रहीं हैं. कल राहुल जी ने कैंसरग्रस्त मनोहर पर्रिकर से हुई शिष्टाचारवश की गई मुलाकात का घटिया
राजनीति के लिए इस्तेमाल करके स्तरहीनता के प्रत्येक संभव स्तरों को भी पार कर लिया. आज अगर हमारी आजादी की लडाई के शहीदों की आत्मा कहीं होगी तो वो जरूर वर्तमान भारत के हालात पर रो रही होंगी. मित्रों, हमारी केंद्र सरकार कहती है कि हमारी नीयत पर शक मत करो. क्यों नहीं करो?
क्या इसलिए क्योंकि आपके मंत्रिमंडल में गिनती के लोग ही योग्य हैं और बहुमत आपकी चापलूसी करनेवालों का है. हमने तो समझा था कि आप बांकियों से अलग हैं और आपको चापलूसी के स्थान पर काम पसंद है फिर गिरिराज सिंह, स्मृति ईरानी, अल्फ़ान्सो जैसे लोग आपके मंत्रिमंडल
में क्या कर रहे हैं? क्यों वित्त मंत्रालय, सांख्यिकी आयोग, रिजर्व बैंक आदि महत्वपूर्ण संस्थानों से योग्य लोग इस्तीफा देकर भाग रहे हैं? क्यों आपको या तो आंकड़े बदलने पड़ रहे हैं या फिर उनको दबाना पड़ रहा है? क्यों मेरा देश बदल रहा है वाला गाना अब आपलोगों के मधुर कंठ से सुनाई नहीं दे रहा?
मित्रों, मैं यह नहीं कह रहा कि मोदी सरकार ने बिलकुल भी काम नहीं किया है लेकिन उसने जो सबसे बड़ा काम किया है वो यह है कि उसने हम जैसे उसके हितचिंतकों की सीख पर कान देना बंद कर दिया है. हमने कई साल पहले कहा था कि जेटली जी को वित्त मंत्री से हटाओ नहीं तो ये
देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ तेरी भी बाट लगा देंगे लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई. आज हालत तो देखो खजाना खाली, बेरोजगारी चरम पर. इसे कहते हैं न खाया न पीया और गिलास तोडा पूरे सवा रूपये का. खजाना अगर बेरोजगारों को रोजगार देने में खाली होता, शिक्षा और स्वास्थ्य के
विश्वस्तरीय संस्थान बनाने में खर्च हुआ होता तो एक उपलब्धि होती लेकिन खजाना खाली हुआ बिना कोई तैयारी किए जनता को सरप्राईज देने वाली स्वप्निल योजनाओं नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में. उद्योग और व्यापार की तो दुर्गति की ही गई सबसे तेजी से बढ़ोतरी कर रहे रियल स्टेट सेक्टर का तो
जैसे गला ही दबा दिया गया. अब जब व्यापार ही नहीं होगा तो कर कहाँ से आएगा वो तो घटेगा ही न. पता नहीं क्यों जब पहले से भी ज्यादा नोट छापने थे तो क्यों नोटबंदी की? अब क्या फिर से २००० के नोट बंद करेंगे प्रधानसेवक जी? वैसे भी प्रधानसेवक जी सिर्फ अपने मन की करने और अपने मन की कहने के अभ्यस्त रहे हैं. मन की बात, केवल अपने मन की बात. न जाने ये कैसे सेवक हैं कि वे चाहते ही नहीं कि मालिक उनसे कोई सवाल करे इसलिए शायद उन्होंने आजतक एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया.
मित्रों, कहाँ तो कहा जाता था कि भारत के लिए बढती जनसँख्या वरदान साबित होगी. सबको प्रशिक्षित करो, सबके सब उद्यमी बनेंगे कोई उपभोक्ता होगा ही नहीं, सबके-सब उद्यमी. सबके-सब मालिक कोई नौकर नहीं. साथ ही किसी को नौकरी भी नहीं. अगर इस सरकार को वास्तव में देश की चिंता होती तो वो सबसे पहले जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाती, आवारा पशुओं की समस्या से निबटती. मैंने मानता हूँ कि गायों की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन यह भी तो ठीक नहीं कि मरते हुए आदमी को अस्पताल बाद में पहुँचाया जाए और राजस्थान पुलिस गायों को भोजन पहले करवाए. अगर गायों की इतनी ही चिंता है तो क्यों राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारी और सरकार द्वारा वित्तपोषित गौशालाओं में एक साथ सैकड़ों गाएँ दम तोड़ रही हैं? देश में ईन्सानियत के आंकड़ें रोजाना जमीन सूंघ रहे हैं लेकिन उसकी चिंता किसी को नहीं है. बालिका संरक्षण गृहों में
नेताओं द्वारा छोटी-छोटी बच्चियों का बलात्कार किया जा रहा है, डॉक्टर बेवजह आपरेशन कर रहे हैं, हर आदमी के भीतर एक बलात्कारी पल रहा है लेकिन सरकार को कोई चिंता नहीं. विपक्ष को भी सिर्फ कुर्सी नजर आ रही है और कुर्सी से प्राप्त होनेवाले लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी पांच राज्यों के चुनावों में से तीन सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव जीते २ महीने भी नहीं हुए और कांग्रेस पार्टी की सरकारों ने काफी तेज गति से २००० करोड से भी बड़ा घोटाला कर दिया. किसान कह रहे कि हमने तो लोन लिया ही नहीं और सरकार कह रही कि तुम चुप रहो हमने वादा किया है इसलिए हम
तुम्हारा भी लोन माफ़ करेंगे और करके रहेंगे.
मित्रों, कुल मिलाकर देश की स्थिति ऐसी है जैसी चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की थी. न तो आगे जाना संभव और न हो पीछे हटना मुमकिन. इसलिए हमारा सुझाव है कि मोदी जी के स्थान पर भाजपा नया सेनापति नियुक्त करे. भाजपा सरकार की खुद की रिपोर्ट के अनुसार राजनाथ
सिंह का काम पूरे मंत्रिमंडल में सबसे अच्छा रहा है तो या तो भाजपा राजनाथ को सेनापति बनाए या फिर गडकरी जी को जिनका काम भी शानदार रहा है क्योंकि मुझे अभी तक ऐसा लग नहीं रहा है कि मोदी जी सवर्ण आरक्षण, राम मंदिर के लिए पहल के बावजूद चुनाव जिता सकने की स्थिति में हैं. पिछले कुछ समय में हुए सर्वेक्षण भी मेरे
मत की तस्दीक करते हैं. यह सही है कि पहले मैंने योगी आदित्यनाथ जी का समर्थन किया था लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी लोकप्रियता में काफी कमी आ चुकी है लोग उनसे उबने लगे हैं. वैसे सच पूछिए तो मुझे कल आनेवाले मोदी सरकार के अंतिम मगर अंतरिम बजट से भी
कोई खास उम्मीद नहीं है क्योंकि जब दिशाज्ञान ही नहीं तो फिर मंजिल मिलने की सोंचना ही व्यर्थ है.
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.
अबकि बार अगर मोदी जी गए हार,
तो न जाने फिर कब बने राष्ट्रवादी सरकार.

शनिवार, 26 जनवरी 2019

भारत का संविधान हूँ मैं

जिससे बनी पूरी दुनिया में तेरी पहचान हूँ मैं,
मुझे फालतू न समझना
भारत का संविधान हूँ मैं.
टूटा हूँ उदास भी हुआ हूँ
जब मेरे ही पन्नों पर बैठकर
उड़ाई गई है मेरी मर्यादा की धज्जियाँ
जब-जब ली है मानवता के हत्यारों ने
मेरे नाम की शपथ
और आ बैठे हैं संवैधानिक पदों पर
मेरी छाती पर मूंग दलते हुए
तब-तब लगा है मुझे
जैसे टूटा हुआ अरमान हूँ मैं,
भारत का संविधान हूँ मैं. 

मैंने कई बार खुद को
बेकार समझा है
जब किसी थाने के हाजत 
में बंद किया गया है कोई निर्दोष
कई बार रोया हूँ मैं जब घोषित हत्यारे 
को न्यायमूर्ति ने बताया है निर्दोष   
कई बार मेरे शब्द मुझे लगे हैं बेबस 
जब सदन में महीनों तक हुआ है 
सिर्फ हंगामा 
जैसे कि उनका निर्माण सिर्फ 
इसी एक काम के लिए हुआ हो 
यकीं नहीं होता मगर सच यही है
आजादी के दीवाने शहीदों की राख 
पर उपजा वर्तमान हूँ मैं,
भारत का संविधान हूँ मैं.

रविवार, 20 जनवरी 2019

जागो मोदी जागो

मित्रों, आपने जागो ग्राहक जागो वाला प्रचार काफी बार टीवी,रेडियो और समाचार-पत्रों में देखा होगा. पहले यह प्रचार पेट्रोल पम्पों पर भी लगा रहता था पर अब वहां सिर्फ मोदी जी नजर आते हैं वो भी खिलंदड अंदाज में हँसते-मुस्कुराते हुए. तो मैं कह रहा था कि आपको हमारे इस आलेख के शीर्षक को लेकर कतई परेशान नहीं होना चाहिए. दरअसल सरकार देश की जनता को जगाती है और हम बिगडैल पत्रकार सरकार को जगाते हैं. जब सरकार सो जाती है तब हमारी ड्यूटी शुरू होती है.
मित्रों,दरअसल हुआ यह कि पिछले दिनों मैंने फेसबुक पर फैक्ट्री सेल्स डॉट नेट नामक वेबसाइट का एक प्रचार देखा. कहा गया था कि ११०० रूपये में एक सैमसंग का २०५०० एमएएच का पॉवर बैंक और एक सैमसंग का ६४ जीबी का मेमोरी कार्ड प्राप्त करें. जब कूरियर वाले को भुगतान करने के बाद मैंने पैकेट फाड़ा तो पाया कि उसमें एमआई का १०००० एमएएच का पॉवरबैंक और सैमसंग का ६४ जीबी का मेमोरी कार्ड पड़ा था और दोनों ही नकली थे. दिल्ली में दोनों दो-तीन सौ रूपये में बिकते हुए देखे जा सकते हैं. खैर मैंने कंपनी के नंबर पर डायल किया तो वो भी बंद. फिर उसके ईमेल पर मेल किया मगर हफ़्तों तक कोई जवाब नहीं आया. फिर हमने नमो ऐप पर शिकायत कर दी. शिकायत करने के दो-तीन दिन के बाद एक नंबर से फोन आया और मुझसे ठगी का पूरा ब्यौरा माँगा गया. ट्रू कॉलर के अनुसार फोन जागो ग्राहक जागो से आया था. मुझे उन लोगों ने उपभोक्ता फोरम में जाने की सलाह दी. तब तक मैंने पूरा वृतांत फेसबुक पर डाल दिया था. शिकायत करनेवालों की लाईन लग गई कि मेरे साथ भी ऐसा हुआ है. मतलब कि लाइसेंस तो सरकार दे और मुकदमा लड़ते रहें हम. मुकदमा करने पर एक मेरा पैसा मिल भी जाता है तो बांकी लोग जो ठगे गए उनका क्या?
मित्रों, जाहिर है कि मैं अकेला नहीं ठगा गया था बल्कि मेरे जैसे हजारों थे और शायद ठगी करने वाली यह अकेली ऑनलाइन कंपनी भी नहीं है बल्कि कई सारी कंपनियां ऐसा कर रही होंगी. मैंने कहता हूँ कि ऑनलाइन ट्रेड को सरकार खूब बढ़ावा दे लेकिन ग्राहकों की सुरक्षा का भी इंतजाम करे. ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम जब शिकायत करें तो उसकी जांच करने के बदले हमें अदालत जाने को कहा जाए. मैंने पूछता हूँ कि फिर सरकार की जरुरत ही क्या है? सब कुछ बाजार के हवाले कर दो बाज़ार चाहे तो लोगों को लूट ले, मार दे या छोड़ दे.
मित्रों, मोदी सरकार की एक और भी कमजोरी है और वो यह है कि मोदी सरकार से कोई गलती हो जाए तो वो अपनी गलती मानती ही नहीं जैसे मोदी और उनके साथी इंसान नहीं भगवान हों जिनसे कभी कोई गलती हो ही नहीं सकती. अब जब गलती मानेंगे ही नहीं तो उसे सुधारेंगे कैसे? उदाहरण के लिए नोटबंदी को ही लें तो सर्वेक्षणों के अनुसार इसके चलते हजारों लघु उद्योग बंद हो गए और १५ लाख लोग पूरी तरह से बेरोजगार हो गए. इतना ही नहीं करीब ५० लाख लोगों को इसके चलते रोजगार में घाटा उठाना पड़ा लेकिन सरकार ने आज तक नहीं माना कि नोटबंदी से कोई नुकसान भी हुआ जबकि इसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ा. मेरी समझ में आजतक यह नहीं आया कि ५०० और १००० के नोट तब क्यों प्रचालन से बाहर कर दिए गए जबकि नए नोट छापे ही नहीं गए थे और उनकी जगह नए नोट लाये भी गए क्यों २००० के नोट लाये गए? मतलब पहले से भी बड़े नोट. इतना ही नहीं नोटबंदी के चलते पडोसी मुल्क नेपाल से भारत के सम्बन्ध ख़राब हो गए लेकिन सरकार को जैसे कोई मतलब ही नहीं, कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा. इसी तरह से बेवजह और मूर्खतापूर्ण तरीके से जीएसटी की दरों को ऊँचा रखा गया जिसे अब कम किया जा रहा है.साथ ही नोटबंदी की तरह ही जीएसटी को भी बिना किसी पूर्व तैयारी के अचानक लागू कर दिया गया.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के हालात ऐसे हैं कि इस समय जनता को जगाने की आवश्यकता कम खुद सरकार को जगाने की जरुरत ज्यादा है. गोया हमारे प्रधान सेवक अपने को २४ घंटे जागनेवाला चौकीदार बताते हैं मगर सरकार के काम-काज को देखकर लगता है कि सरकार कुम्भकर्णी निद्रा में सोयी पड़ी है. उसे अविलम्ब देश की सबसे बड़ी समस्या जनसँख्या-विस्फोट को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए था लेकिन नहीं बनाया गया, उसे भ्रष्टाचार पर प्रहार करना चाहिए था लेकिन वो खुद राफेल में उलझी पड़ी है, उसे न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए था जिससे लोगों के न्याय पाना संभव भी हो सके, उसे पुलिस के कामकाज में सुधार लाना चाहिए था, उसे न्यायाधीशों को जिम्मेदार बनाना चाहिए था, उसे राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए था, उसे कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए था, उसे १०० रूपये से ज्यादा के सारे नोटों के प्रचलन पर रोक लगा देनी चाहिए, उसे सीबीआई को पूरी तरह से स्वायत्तता से काम करने देना चाहिए था, उसे लोकपाल के पद की स्थापना करनी चाहिए थी, उसे मुख्य सूचना आयुक्त के आदेशों का पालन करना चाहिए था, उसे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाने थे, उसे राजनैतिक दलों को मिलनेवाले चंदों को पूरी तरह से पारदर्शी बना देना चाहिए था, उसे एमपी फण्ड और सांसदों-विधायकों को मिलनेवाले पेंशनों को समाप्त कर देना चाहिए था,उसे सरकारी नौकरियों का खजाना खोल देना चाहिए था, उसे ऐसे काम करने चाहिए थे जिससे करोड़ों नए रोजगार पैदा होते,उसे योग्य लोगों को मंत्री बनाना चाहिए था इत्यादि. मैं नहीं जानता कि आगे मोदी सरकार क्या करने जा रही है. वो जागेगी भी या नहीं या फिर इसी तरह नीम बेहोशी की अवस्था में पड़ी-पड़ी  रुखसत हो जाएगी. फिर पोस्टमार्टम,अफ़सोस और रोना-धोना. फिर, फिर से वही नाउम्मीदी और मायूसी का गहन और निरंतर गहन होते जानेवाला अंधकार.
नित बढ़ रही आत्ममुग्धता को घटाना है, अतिआत्मविश्वास को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है.  रिक्त हो रहा भरोसा पवित्र फिर से गंगा को लाना है, निज अभिमान को भगाना है, बहुत मेहनत करनी होगी हमें सरकार को जगाना है. सरकार को जगाना है. ......

रविवार, 13 जनवरी 2019

आरम्भ है प्रचंड देशद्रोहियों में हडकंप

मित्रों, २०१९ का लोकसभा चुनाव अब जैसे आने-आने को है. इस बार का रण अत्यंत भीषण होनेवाला है. स्थितियां २००४ जैसी ही हैं. तथापि जब द्वापर में हुए महाभारत में धर्म का पालन नहीं हो पाया तो फिर आज का युग तो घोर कलियुग का है इसलिए युद्धक्षेत्र में आज धर्म की बात करना तो दूर सोंचना भी पाप है. माना कि अटल बिहारी वाजपेयी ने छल और प्रपंच का मार्ग चुनने के बदले अपनी सरकार का एक वोट से गिर जाना मन्जूर किया. लेकिन उसका खामियाजा देश को १० सालों के भ्रष्टतम शासन से चुकाना पड़ा हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए. मैं जानता था कि मोदी २०१९ को आसानी से २००४ नहीं बनने देंगे इसलिए मैंने कहा था और बार-बार कहा था कि २०१९ में पराजय संभावित तो है लेकिन हमें मोदी और वाजपेयी के फर्क को भी देखना होगा. मोदी कदापि वाजपेयी नहीं है फिर धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भी एक बार युधिष्ठिर को विजय का अन्य कोई मार्ग दिखाई नहीं देने की अवस्था में झूठ बोलना पड़ा था-अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा. इसलिए अगर आज धर्म के विजय के लिए मोदी साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करते हैं तो ऐसा करना उचित ही नहीं अपेक्षित भी होगा.

मित्रों, इस समय मोदी सरकार द्वारा अनारक्षित जातियों को दिए गए १० प्रतिशत आरक्षण से पूरा-का-पूरा राजनैतिक परिदृश्य ही बदल गया है. ऐसा करके मोदी ने कदाचित आरक्षण की पूरी राजनीति को ही समाप्त कर दिया है. लगभग देश की सारी जनता,सारे धर्म और सारी जातियां अब आरक्षण के दायरे में आ गए हैं. अब ऐसा कोई बचा ही नहीं जिसे आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा हो बस उसके परिवार की सालाना आय ८ लाख से कम होनी चाहिए.
मित्रों, यह भी सत्य है कि मोदी और शाह की जोड़ी ५ राज्यों में मिली चुनावी हार के बाद काफी कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही है. अभी दिल्ली के रामलीला मैदान से जो ख़बरें मिल रही हैं उसके अनुसार मोदी ने पहली बार अपने भाषण में लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम लिया है. मैदान में चल रहे भाजपा के राष्ट्रीय सम्मलेन में सारे क्षत्रपों को भी पोस्टरों में भरपूर स्थान दिया गया है. उधर गडकरी जी और आरएसएस के बदलते तेवरों ने भी मोदी-शाह की जोड़ी को बैक फुट पर ला दिया है. परन्तु मुझे पहले भी लगता था और अब भी लगता है कि मोदी बिना लड़े हार माननेवालों में से हैं ही नहीं. यह सही है कि उन्होंने पिछले ५ सालों में कई सारी गलतियाँ की हैं, चाहे वो मंत्रिमंडल के गठन के स्तर पर हो या आर्थिक मोर्चों पर लेकिन सत्य यह भी है कि मोदी आज भी देश की आवश्यकता हैं, जरुरत हैं. क्योंकि मोदी के नेतृत्व में देश ने बहुत कुछ पाया है और उसे आगे बहुत-कुछ पाना है
आज मोदी के नेतृत्व में भारत चीनी उत्पादन में नंबर एक, मोबाईल, स्टील उत्पादन और वस्त्र निर्यात में नंबर २, बिजली उत्पादन में नंबर ३, ऑटोमोबाइल उत्पादन में नंबर ४ और जीडीपी में नंबर ६ पर आ गया है. अगर मोदी हारते हैं तो यही नहीं पता कि उनकी जगह कौन प्रधानमंत्री बनेगा या बनेगी. फिर सारे चोर दलों का एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया जाएगा कि किस प्रकार मिलकर देश को लूटना है.
मित्रों, वैसे मोदी सरकार में मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से संसद में गर्जना करते हुए कहा है कि अभी और भी छक्के आने वाले हैं क्योंकि अभी तो खेल शुरू हुआ है उससे तो यही लगता है कि अभी तो अर्जुन की गांडीव से और भी दिव्यास्त्र छूटने वाले हैं जिनकी गर्मी से विपक्ष को इस प्रचंड सर्दी में भी पसीना आने लगेगा.इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या,
आगे-आगे देखिये होता है क्या.

बुधवार, 2 जनवरी 2019

राम लला हम न आएंगे, मंदिर नहीं बनाएंगे

मित्रों, जो लोग भी चाहते हैं कि राम मंदिर बने उन लोगों को कल भारी झटका लगा होगा जब भारत के प्रधान सेवक जी ने एक प्रवचन-सदृश साक्षात्कार में साफ़-साफ़ लफ्जों में कह दिया कि उनकी सरकार का राम मंदिर को लेकर अध्यादेश लाने का कोई ईरादा नहीं है. पता नहीं इस सरकार का ईरादा है क्या? वैसे भी जो व्यक्ति ५ साल में रामलला के दर्शन की हिम्मत नहीं जुटा पाया वो मंदिर क्या बनवाएगा.
मित्रों, अभी तक के मोदी सरकार के प्रदर्शन पर अगर हम नजर डालें तो घनघोर निराशा की अनुभूति होती है. पता नहीं ये गुजरात मॉडल होता क्या है जिसको लेकर २०१४ के चुनावों में जमकर ढिंढोरा पीटा गया था. तब तो हम भी उनके झांसे में आ गए थे. शायद मंत्रियों को किनारे कर अपने चापलूस अधिकारियों के बल पर मनमाना शासन करने और विकास के आंकड़े मन-माफिक प्राप्त नहीं होने पर आंकड़ों को ही बदल देने को ही गुजरात मॉडल कहा जाता होगा.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि मोदी सरकार के इस निर्णय पर खुश हुआ जाए या रोया जाए. पहली बार भारत के इतिहास में किसी दक्षिणपंथी दल को पूर्ण बहुमत मिला और फिर भी ५ साल के समय को यूं ही बर्बाद कर दिया गया. न तो कालाधन ही वापस आया, न तो पुलिस, न्यायपालिका या नौकरशाही में ही कोई बदलाव हुआ, न तो भ्रष्टाचार घटा और न ही धारा ३७० ही हटा और न ही समान नागरिक संहिता ही लागू हुआ. साथ ही, न तो जनसँख्या-नियंत्रण कानून ही आया. हाँ, इतना जरूर हुआ कि इस दौरान भाजपा ने कांग्रेस बनने का प्रयास खूब किया. एक तरफ तो जमकर कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल किया गया वो वहीँ दूसरी ओर अपने परंपरागत वोट-बैंक को अंगूठा दिखाते हुए दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में करने के मूर्खतापूर्ण प्रयास खूब किए गए जिसके दुष्परिणाम ५ राज्यों के चुनावों में सामने आ चुके हैं.
मित्रों, मैं बार-बार लिखता रहा हूँ कि जब भी भारत का इतिहास लिखा जाएगा तीन तलाक को लेकर भाजपा द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मोदी की मूर्खता का स्मारक लिखा जाएगा जैसे कि दीने ईलाही को हम अकबर की मूर्खता का स्मारक बताते हैं. समझ में नहीं आता कि जो मुसलमान मोदी को क्षणभर के लिए भी प्रधानमंत्री के पद पर देखना नहीं चाहते उनकी महिलाएँ क्यों मोदी को वोट देंगी? फिर जबकि मोदी सरकार का राज्यसभा में बहुमत है ही नहीं तो कैसे वो इसको वहां से पारित करवाएगी? पता नहीं कि यह सरकार किन मूर्खों की दुनिया में जी रही है? हम देखते कि सरकार अगर राम मंदिर, धारा ३७०, जनसँख्या-नियंत्रण कानून और समान नागरिक संहिता से सम्बंधित विधेयक संसद में लाती तो उसको कौन माई का लाल रोकता? हम ठीक कह रहे हैं न शिवराज जी?
मित्रों, हम बचपन से ही कहानी पढ़ते आ रहे हैं कि एक चालाक कौए ने हंस की चाल चलने की कोशिश की और अपनी ही चाल भूल गया. लगता है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यह कहानी नहीं पढ़ी है. या हो सकता है कि गुजराती में यह कहानी होती ही नहीं होगी.  हम तो अब तक एक ही कांग्रेस से परेशान थे लेकिन मोदी जी ने कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते-करते भाजपा को ही कांग्रेस बना दिया. न जाने क्यों जबसे राहुल गाँधी मंदिर जाने लगा है मोदी जी ने मंदिर जाना बंद कर दिया है तो क्या मोदी जी का मंदिर जाना भी महज दिखावा था राहुल तो दिखावा कर ही रहा है?