शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

देश को देखो जाति न देखो

मित्रों,बिहार में एक नेता हुए हैं कर्पूरी ठाकुर.परसों-तरसों उनकी जयंती भी थी.श्रीमान जब चुनाव प्रचार में जाते तो लोगों से कहते कि वोट बेटी जात को.श्रीमान के बारे में कहा जाता था कि भारी ईमानदार थे.होंगे भी लेकिन उन्होंने यह नारा देकर बिहार प्रदेश और देश को जरूर भारी नुकसान पहुँचाया.उनका साध्य भले ही ठीक हो लेकिन साधन गलत था.
मित्रों,कर्पूरी जी को मरे हुए आज २९ साल बीत चुके हैं.१९९० से ही यूपी-बिहार पर उनके चेलों का शासन है.लेकिन आज यूपी-बिहार है कहाँ.चुनाव देश-प्रदेश को विकास के मार्ग पर ले जाने का साधन होता है न कि किसी खास जाति के व्यक्ति को एमएलए-एमपी या मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बनाने का.जातिवादी नेता अपने परिवार की उन्नति के लिए काम करते हैं न कि जाति की. बिहार में लंबे समय तक लालू परिवार का शासन रहा है लेकिन मेरे शहर हाजीपुर में ही यादव लोग अगर एक दिन मजदूरी करने नहीं जाएँ तो शाम में चूल्हा ठंडा रह जाए.ऊपर आसमान नीचे पासवान का नारा देनेवाले रामविलास पासवान की जाति के लोग आज भी हाजीपुर में रिक्शा-ठेला खींच रहे हैं.स्वयं कर्पूरी की जाति के लोगों की दशा भिखारियों जैसी है. हालाँकि कर्पूरी के बेटे जरूर राज भोग रहे हैं और अरबपति हो गए हैं.इसी तरह राजपूतों ने १९८९ में जाति के नाम पर वीपी सिंह को एकतरफा वोट दिया था,क्या मिला?
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि जो भी नेता जाति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं वे हमें उल्लू बनाकर सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं.सवाल उठता है कि चुनावों में हम देश-प्रदेश चलाने के लिए शासक चुनते हैं या दामाद जो जाति को वोट दें? जब हम दामाद चुनेंगे तो फिर दामाद ही मिलेगा वो भी सिर्फ लूटनेवाला. आज भी जब कोई यूपी-बिहार का युवा मुम्बई-अहमदाबाद नौकरी करने जाता है तो उसे हिकारत की नजरों से देखा जाता है. आखिर हम क्यों जाते हैं मुम्बई-अहमदाबाद? क्यों हमारा प्रदेश आज भी उद्योग-विहीन है? क्या इसलिए नहीं क्योंकि हम लंबे समय से विकास की जगह जाति के नाम पर वोट डालते आ रहे हैं?
मित्रों,एक और बात.यूपी में सारी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर टिकट बांटे हैं. यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है? कोई मुस्लिम तुष्टीकरण करे तो धर्मनिरपेक्षता और कोई सर्वधर्मसमभाव की बात करे तो साम्प्रदायिकता? मैं पहले भी ताल ठोंक के कह चुका हूँ कि देश की चिंता अगर कोई कौम करेगा तो वो हिन्दू होगा मुसलमानों के लिए कभी भी नेशन फर्स्ट नहीं रहा है इंडिया फर्स्ट की तो बात ही दूर है.मैं आज फिर से डंके की चोट पर कहता हूँ कि अगर हम यूपी-बिहार के हिन्दू ऐसे ही दामाद जी को वोट देते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हर शहर हर बस्ती में धूलागढ़ और कैराना होगा.वैसे भी इन समाजवादियों की नज़रों में हमारी बेटियों की ईज़्ज़त की क्या कीमत है शरद यादव कर्पूरी जयंती के दिन अर्ज कर चुके हैं.आज पूरी दुनिया में भारत का झंडा फहरा रहा है और जनाब फरमाते हैं कि देश की ईज़्ज़त खतरे में है.

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

सिर्फ़ बीपीएल को मिले आरक्षण

मित्रों,प्रत्येक चुनाव की तरह पिछले कई दिनों से एक बार फिर से आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है.लोग कहते हैं कि काठ की हांड़ी एक बार ही आग पर चढ़ती है लेकिन कई अन्य चुनावी मुद्दों की तरह इसे भी बार-बार चुनावी चूल्हे पर चढ़ाया जाता रहा है.बिहार चुनावों से लेकर अब तक के अंतराल को अगर देखें तो आपने ध्यान दिया होगा कि इस बीच आरक्षण की पैदाईश लालू प्रसाद यादव जी जुबान पर एक बार भी आरक्षण शब्द नहीं आया.लेकिन यूपी चुनाव के आते ही फिर से वे शहीदी मुद्रा  में आ गए हैं. 
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि आरक्षण आज आर्थिक सशक्तिकरण से ज्यादा भ्रष्ट नेताओं के सशक्तिकरण का हथियार बना दिया गया है. वास्तविकता तो यह भी है कि वर्तमान काल में आरक्षण से इसके वास्तविक जरूरतमंदों को लाभ हो ही नहीं रहा है बल्कि इससे फायदा वे लोग उठा रहे हैं जो पिछड़ी और दलित जातियों में पैसेवाले हैं. फिर चाहे वो नौकरियों में आरक्षण हो या चुनावों में.
मित्रों,अच्छा तो रहता कि उपरोक्त दोनों तरह के आरक्षणों के लिए लाभार्थियों के निर्धारण के मानदंड को ही बदल दिया जाता.जिनका नाम बीपीएल सूची में हो केवल उनको ही आरक्षण का लाभ मिले.मायावती जैसी दौलत की बेटियाँ सामान्य सीट से चुनाव लड़ें। साथ ही बीपीएल सूची का निर्माण भी पूरी सावधानी से करना होगा अन्यथा क्रीमी लेयर की अवधारणा की तरह ही ये भी बेकार हो जाएगा.
मित्रों,अगर ऐसा किया जाता है तभी आरक्षण का कोई मतलब होगा. हालाँकि मैं जानता हूँ कि यह एक आदर्श स्थिति है और ऐसा हो पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है. इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि जाति और धर्म-आधारित राजनीति का भारत से अंत हो जाएगा.

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

नोटबंदी में चैम्पियन रहा यूको बैंक,इलाहाबाद बैंक सबसे फिसड्डी

मित्रों,यह स्वाभाविक था कि जब ८ नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा की गयी तो हाजीपुर में भी पैसों के लिए अफरातफरी का माहौल उत्पन्न हो गया.खुद हमारे पास भी तब हजार-१२०० से ज्यादा के खुल्ले नहीं थे.मैं भी ९ तारीख को नोट बदलने पहले प्रधान डाकघर फिर एसबीआई की मुख्य शाखा में गया लेकिन भारी भीड़ देखकर हिम्मत जवाब दे गयी.संयोगवश ८ नवम्बर को ही पिताजी का पेंशन आया था और हमलोग वो पैसा भी घर बनाने के लिए बैंक से निकाल चुके थे पर उसमें भी सिर्फ हजार और पांच सौ के नोट थे.सो मरता क्या न करता मैंने फिर से वो सारा पैसा और साथ ही गाँव की जमीन को बेचने से आया पैसा अपने बैंक अकाउंट में डाल दिया.फिर कसमकश शुरू हुई खाते से पैसा निकालने की.दुर्भाग्यवश शुरू के कई दिनों तक एसबीआई की मुख्य शाखा,यूको बैंक के एटीएम को छोड़कर सारे-के-सारे एटीएम बंद और खाली थे.इस दौरान मैंने यूको बैंक की गुदरी बाज़ार शाखा से कई बार पैसे निकाले.अभी तक मैंने यूको बैंक से न तो चेकबुक और न ही डेबिट कार्ड ही लिया था सो आनन-फानन में आवेदन दिया.दोनों ही चीजें मुझे तत्काल उपलब्ध भी करवा दी गईं.इस दौरान मैंने आईसीआईसीआई की हाजीपुर शाखा से भी कई बार पैसे निकाले.यहाँ हालाँकि यूको बैंक के मुकाबले ज्यादा भीड़ रहती थी लेकिन मुझे कभी खाली हाथ लौटना नहीं पड़ा.इस दौरान मैंने जमकर कार्ड से खरीदारी की और चेक का भी भरपूर उपयोग किया.
मित्रों,जब २००० के नोट बैंकों में आने लगे तो एक्सिस बैंक के एटीएम में भी नियमित रूप से पैसा निकलने लगा.इस दौरान मैंने पाया कि नोटबंदी के तत्काल बाद इलाहाबाद बैंक की आरएन कॉलेज शाखा में भीतर से ताला बंद कर दिया गया और ग्राहकों से लगातार कई हफ्ते तक कहा गया कि बैंक में नकद आ ही नहीं रहा है.कदाचित इस दौरान मैनेजर अपने निकटतम लोगों को खुश करने में लगा हुआ था.कई लोगों को मैंने देखा कि वे सुबह में ही आ जाते और फिर दिन ढलने के बाद उदास मन से वापस चले जाते.इनमें से कई तो वयोवृद्ध पुरुष और महिलायें भी होते थे. लगभग सारे बैंकों के ग्राहक सेवा केन्द्रों में जिन ग्राहकों के खाते थे वे और भी ज्यादा परेशान रहे.इस दौरान स्टेट बैंक में काफी भीड़ रही लेकिन फिर भी उसका काम सराहनीय रहा.
मित्रों,बैंक किसी भी अर्थव्यवस्था की धमनी होते हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है.मैं पहले भी अर्ज कर चुका हूँ कि बिहार के प्रति बैंकों का व्यवहार हमेशा से सौतेला रहा है.लेकिन इसके लिए बैंकों के बिहारी स्टाफ भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जो ग्राहकों के साथ भिखारियों जैसा व्यवहार करते हैं और रिश्वत की उम्मीद करते हैं.

रविवार, 22 जनवरी 2017

नेशन फर्स्ट से इंडिया फर्स्ट की ओर प्रयाण



मित्रों,आपने अगर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ-ग्रहण के बाद दिए गए पहले संबोधन को देखा-सुना होगा तो एक बात पर जरूर गौर किया होगा कि उन्होंने देशवासियों से एक बार फिर से अमेरिका को दुनिया का सिरमौर बनाने की दिशा में कार्य करने की अपील की.
मित्रों,सौभाग्यवश आज भारत में भी एक ऐसा स्वप्नदर्शी प्रधान सेवक है जो नेशन फर्स्ट की बात करता है.परन्तु सिर्फ नेशन फर्स्ट की बात करने से काम नहीं चलनेवाला है.वह समय आ गया है जब भारत भी नेशन फर्स्ट से इंडिया फर्स्ट की ओर प्रस्थान करे.सोंचनेवाली बात यह है कि अगर अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बन सकता है तो भारत क्यों नहीं बन सकता? भारत के पास ऐसा क्या नहीं है जो अमेरिका के पास है? मानव संसाधन से लेकर प्राकृतिक संसाधन तक प्रत्येक मामले में हमारा भारत प्राचीन काल से ही धनी रहा है.अगर हमारे पास कोई कमी है तो वो है जोश,ईमानदारी,एकता और निःस्वार्थता की और इन सब कमियों को पूरा करने के लिए हमें अपने ज्यादा-से-ज्यादा देशवासियों में नेशन फर्स्ट का जज्बा भरना होगा.दो-चार प्रतिशत लोग तो हर देश में यहाँ तक कि अमेरिका में भी हमेशा-से देशविरोधी रहे हैं.
मित्रों,जब हम २०१४ के लोकसभा चुनाव् के परिणामों को देखें तो हमें मानना ही पड़ता है कि आज भी देश की बहुसंख्यक जनसंख्या की प्राथमिकता सूची में कहीं-न-कहीं देश मौजूद है भले ही पहले स्थान पर नहीं हो.अगर केंद्र सरकार वास्तव में भारतीयों के लिए देश को सर्वोच्च स्थान पर लाना चाहती है तो उसे लगतार ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे जिससे ऐसा प्रतीत होता रहे कि वो वास्तव में नेशन फर्स्ट की नीति पर पूरी गंभीरता के साथ अग्रसर है.जिस दिन सवा सौ करोड़ भारतीयों में से सौ करोड़ लोगों के लिए राष्ट्र सर्वोपरि हो जाएगा भारत के दुनिया में सर्वप्रथम होने का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाएगा बस जरुरत पड़ेगी देश को सही दिशा देने की.तब किसी नरश्रेष्ठ नरेन्द्र को न तो राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए चिंता करनी पड़ेगी और न ही लोकसभा चुनाव परिणामों की.

सोमवार, 16 जनवरी 2017

मेरी सरकार मर गयी है हुजूर



मित्रों,मैंने ६ मार्च,२०१४ को एक आलेख लिखा था जिसका शीर्षक था मेरी सरकार खो गयी है हुजूर. यद्यपि वह आलेख भी मैंने बिहार सरकार की घनघोर अकर्मण्यता से परेशान होकर लिखा था तथापि उन दिनों मैं परेशान केंद्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और उसकी देशविरोधी नीतियों से भी था. नरेन्द्र मोदी जी और भारत की जनता-जनार्दन की कृपा से इन दिनों केंद्र में तो जरूर एक ऐसी सरकार आ गयी है जो सिर्फ और सिर्फ देश की भलाई के लिए काम कर रही है लेकिन बिहार में अभी भी न सिर्फ स्थिति वही है जो ६ मार्च,२०१४ को थी बल्कि उस समय की तुलना में और भी ख़राब ही हो गयी है.
मित्रों,हमारे गाँवों में जब कोई घर छोड़कर भाग जाता है और १२ सालों तक वापस नहीं आता है तो गाँव के लोग मान लेते हैं कि वो मर गया होगा और तब उसका श्राद्ध कर दिया जाता है. पता नहीं सरकार के लापता हो जाने के कितने दिनों के बाद मान लेना चाहिए कि सरकार मर गयी है. शास्त्र और स्मृति भी इस बारे में खामोश हैं. वैसे बिहार सरकार में मृतकों वाले सारे लक्षण मौजूद जरूर हैं. अब कोई डीका नौकरशाही द्वारा मुन्नीबाई के कोठे में बदल दिए गए अंबेकर छात्रावास में दुष्कर्म के बाद मार दी जाती है और प्रशासन पूरे मामले की लीपा-पोती कर देता है, गुजरात की देखा-देखी राज्य सरकार पतंग-उत्सव का आयोजन तो कर लेती है लेकिन लोग आयोजन-स्थल पर कैसे आएंगे-जाएंगे का इंतजाम नहीं करती और जब कई दर्जन परिवार तबाह हो जाते हैं तो बलि का बकरा गरीब-लाचार नाववाले को बना देती है. मार्च,२०१४ में लोग-बाग़ हमसे कहा करते थे कि बिहार की नौकरशाही इन दिनों सिर्फ मीडिया से ही डरती है. मगर आज स्थिति यह है कि राजदेव रंजन की दिनदहाड़े हत्या के बाद वो मीडिया का भय भी उसके मन से जाता रहा. मतलब कि अब बिहार की सरकार पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुकी है.
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि अबतक जो सरकार उलटी सांस ले रही थी उसकी पूरी तरह से मौत हो चुकी है. अब बिहार में ऐसी कोई संस्था नहीं रही जो जनता को नौकरशाही के क्रूर दमन-चक्र से बचा सके. अब तो हालत ऐसी है कि हम मीडियावाले खुद ही अफसरशाही से डरने लगे हैं. ऐसा भी नहीं है कि बिहार के लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि ऐसा परिवर्तन कैसे आया. सीधी-सी बात है कि जब राजा ने ही मीडिया पर ध्यान देना बंद कर दिया है और उसे बेकार में कांव-कांव करनेवाला कौआ मानकर पूरी तरह से अनसुना करना शुरू दिया है तो फिर अफसरशाही क्योंकर उसे भाव देगी. लेकिन राजा साब यह भूल गए हैं कि यह मीडिया को उनके द्वारा दिया जानेवाला महत्व ही था जो उसके शासन को जीवंत बनाता था. बात इतनी होती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन अब तो लगता है कि राजा साब ने मीडिया को अपना हितैषी तो दूर दुश्मन ही मानना शुरू कर दिया है. कदाचित राजा साब खुद को सचमुच में चुना हुआ नुमाईन्दा मानने के बदले राजा मानने लगे हैं. इतना ही नहीं वे लुई १४वें की तरह यह भी मानने लगे हैं कि वे हीं राज्य हैं और उनके कहे शब्द ही कानून. आगे मैं यह नहीं कह सकता कि बिहार में कब क्रांति होगी और किस रूप में और किस तरह होगी लेकिन होगी तो जरूर लुई १४वें न सही १६वें के समय ही सही लेकिन बास्तिल का किला ढहेगा,जरूर ढहेगा.

शनिवार, 14 जनवरी 2017

बिहार में धड़ल्ले से हो रही है शराब की होम डिलीवरी

मित्रों,यह तो आप भी जानते हैं कि हम हमेशा से पीने और पिलाने के खिलाफ रहे हैं. हमने तब शराब पीना समाज के लिए हानिकारक है शीर्षक से आलेख लिखा था. अच्छी बात है कि नीतीश कुमार जी ने हमारी बातों पर कान दिया और राज्य में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन बिहार ऐसे ही बिहार थोड़े है. सरकार डाल-2 तो बिहारी पात-2. सो शुरू हो गई तस्करी.
मित्रों,अब तो स्थिति ऐसी है कि कुआँ खुद प्यासे के पास आने लगा है. मतलब कि बांकी चीज़ों की तरह शराब की भी होम डिलीवरी होने लगी है. सेवा की गुणवत्ता के मामले में स्नैपडील भी इनकी बराबरी नहीं कर सकती है. इधर फ़ोन किया नहीं कि उधर माल हाजिर.
मित्रों,कुछ लोग तर्क देते हैं कि इस सुविधा का लाभ तो केवल अमीर लोग उठाते हैं ग़रीबों का तो पैसा बच रहा है न. अगर आप भी ऐसा मानते हैं तो ग़लत मानते हैं. बल्कि ग़रीबों की जेबों पर भी शराबबंदी भारी पड़ रही है. हम समझाते हैं आपको. पहले 20 रुपया के पॉलिथीन में उनका काम चल जाता था. अब उतना ही मिज़ाज बनाने के लिए उनको 3 बोतल ताड़ी पीनी पड़ती है जो 60 रुपए की आती है.
यहाँ हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि बिहार सरकार किसी भी कीमत पर ताड़ी की बिक्री को रोक नहीं सकती है क्योंकि इसके लिए उसको सारे ताड़ के पेड़ों को कटवाना पड़ेगा जो संभव नहीं है. फिर जो सरकार शराब की बिक्री को नहीं रोक पाई ताड़ी को क्या रोकेगी.
मित्रों,ऐसा नहीं है कि हम अब नशामुक्त समाज के समर्थन नहीं हैं लेकिन सरकार को उसकी विफलता के प्रति आगाह करना भी तो हमारा ही काम है. इसलिए अच्छा होगा कि नीतीश जी अपने हाथों अपना ढिंढोरा पीटने के बदले शराब की तस्करी और अवैध निर्माण को रोकें. इस आलेख को भी हमने इस उम्मीद में लिखा है कि नीतीश जी इस बार भी हमारी बातों पर कान देंगे.

बुधवार, 11 जनवरी 2017

मोदी जी कब चलेगा भ्रष्ट पुलिस पर सुधार का डंडा

मित्रों,यह बात सर्वविदित है कि पुलिस चाहे वो किसी भी राज्य की हो उस राज्य की सबसे भ्रष्ट संस्था है.बिहार में तो दारोगा शब्द का विशेष तरीके से शब्द-विस्तार भी किया जाता है कि द रो के या गा के.मतलब कि पुलिस का काम ही रिश्वत खाना है वो आज से नहीं अंग्रेजों के ज़माने से ही.हो भी क्यों नहीं भारतीय पुलिस का न सिर्फ ढांचा बल्कि उसको पावर देनेवाले कानून भी अंग्रेजों के ज़माने के हैं.और यह तो हम सभी जानते हैं कि अंग्रेजों ने भारत पर कब्ज़ा कोई परोपकार की भावना से ओतप्रोत होकर नहीं किया था बल्कि भारत को अनंत काल तक लूटने के लिए किया था.इसलिए जाहिर है कि हमारी पुलिस का ढांचा और हमारे कानून आज भी देश को लूटने की दृष्टि से वर्तमान हैं.
मित्रों,कई साल पहले मैंने राजनीतिक दलों को मिलनेवाले चंदे में होनेवाली गड़बड़ियों के बारे में ७ अप्रैल,२०११ को एक आलेख लिखा था कि कैसे बांधे बिल्ली खुद अपने ही गले में घंटी.यह ख़ुशी की बात है कि एक लंबे इंतज़ार के बाद लंबी तपस्या के उपरांत भारत में एक ऐसा प्रधान सेवक सत्ता में आया है जो अपने साथ-साथ सबके गले में घंटी बांधने को न सिर्फ तैयार है बल्कि तत्पर भी है.
मित्रों,हम अपने देश के उसी प्रधान सेवक से हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि देशभर की पुलिस को लुटेरी से सेविका बनाने के लिए संसद से कानून बनवाएं और देश की जनता की इन कथित रक्षकों के अत्याचार से रक्षा करें.वैसे भी पुलिस से परेशान गरीब,कमजोर और अनपढ़ लोग ही ज्यादा हैं क्योंकि पुलिस गांधीजी के ज़माने से लेकर आज तक अमीरों की रखैल है.प्रधानसेवक जी भ्रष्टाचार को अगर जड़ से उखाड़कर उसकी जड़ में मट्ठा डालना है तो पहली प्राथमिकता निश्चित रूप से इस सबसे भ्रष्ट विभाग को देनी होगी.हमें इंतज़ार रहेगा कि आप इस दिशा में क्या कदम उठाते हैं.देश को बदलना है तो देश के हर विभाग का कायाकल्प करना होगा.

शनिवार, 7 जनवरी 2017

भाजपा के लिए बहत कठिन है डगर यूपी की


मित्रों,यूं तो हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है लेकिन जब चुनाव यूपी में हो तो बात अलग हो जाती है.बात दरअसल यह है कि एक लम्बे समय तक ऐसा माना जाता रहा है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है.जनसंख्या के दृष्टिकोण से भी यूपी एक राज्य नहीं बल्कि महादेश है.चाहे केंद्र में किसी की भी सरकार क्यों न हो बिना यूपी का विकास किए भारत के विकास के बारे में वो सोंच भी नहीं सकती.सवाल है कि कैसे हो यूपी का विकास?तभी होगा जब वहां की जनता चाहेगी.विकास जबरदस्ती तो किया नहीं जा सकता.
मित्रों,सौभाग्यवश उसी यूपी में अगले महीने चुनाव होने जा रहा है.सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना भी ऑर्डर-ऑर्डर कर ले यूपी में चुनाव जाति और धर्म के नाम पर लडे जाते रहे हैं और इस बार भी लडे जाएंगे.मायावती ने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले ही सीटों का जातीय और सांप्रदायिक विभाजन करके इसकी विधिवत शुरुआत भी कर दी है.आगे यह यूपी की जनता को निर्णय लेना है कि उनको पिछले ७५ साल की तरह जाति चाहिए या विकास चाहिए.
मित्रों,यहाँ मैं भारतीय जनता पार्टी से उम्मीद रखता हूँ कि वो कम-से-कम उन गलतियों को तो नहीं दोहराए जो उसने बिहार विधानसभा चुनावों के समय की थी और बिहार को विनाश की राह पर धकेल दिया था.सबसे पहले तो भाजपा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए.साथ ही उम्मीदवारों का चयन बिहार की तरह पैसे लेकर नहीं बल्कि जीत की सम्भावना को देखते हुए करना चाहिए.इन दोनों कामों को करने के लिए गहन सर्वेक्षण की आवश्यकता होगी.बूथ मैनेजमेंट तो हर चुनाव में महत्वपूर्ण होता ही है.साथ ही भाजपा को अपने बूते पर चुनाव जीतने की तैयारी करनी होगी न कि दूसरे दलों में चल रहे कलह के बल पर चुनाव जीतने के सपने देखने चाहिए.हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए प्रशांत किशोर पूरी कोशिश करेगा कि यूपी में भी महागठबंधन हो जाए और अगर ऐसा होता है तो क्या करना है के लिए भी पूरी तैयारी रखनी होगी.हम जानते हैं कि रसायन शास्त्र में २ और २ बाईस होता है लेकिन बिहार चुनाव ने साबित कर दिया है कि २ और २ हर बार २२ ही नहीं होता शून्य भी हो सकता है.
मित्रों,साथ ही नोटबंदी के समय नकद निकासी की जो सीमा निर्धारित की गयी थी उसमें क्रमशः ढील देनी चाहिए क्योंकि मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ कि इससे काफी परेशानी हो रही है.अब बेनामी संपत्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाना चाहिए और सारे गड़े हुए कालेधन को पाताल से भी बाहर निकालना चाहिए क्योंकि अगर कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम को नोटबंदी से आगे नहीं बढाया जाता है तो जनता के बीच ऐसे संकेत जाएंगे कि मोदी सरकार ने भी सिर्फ दिखावा किया जिसके फलस्वरूप नोटबंदी के कारण अभी जो लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है वो समाप्त तो हो ही जाएगा साथ ही नुकसानदेह भी हो जाएगा.