मित्रों,यूं तो हर
चुनाव महत्वपूर्ण होता है लेकिन जब चुनाव यूपी में हो तो बात अलग हो जाती है.बात
दरअसल यह है कि एक लम्बे समय तक ऐसा माना जाता रहा है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से
होकर जाता है.जनसंख्या के दृष्टिकोण से भी यूपी एक राज्य नहीं बल्कि महादेश है.चाहे
केंद्र में किसी की भी सरकार क्यों न हो बिना यूपी का विकास किए भारत के विकास के
बारे में वो सोंच भी नहीं सकती.सवाल है कि कैसे हो यूपी का विकास?तभी होगा जब वहां
की जनता चाहेगी.विकास जबरदस्ती तो किया नहीं जा सकता.
मित्रों,सौभाग्यवश
उसी यूपी में अगले महीने चुनाव होने जा रहा है.सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना भी
ऑर्डर-ऑर्डर कर ले यूपी में चुनाव जाति और धर्म के नाम पर लडे जाते रहे हैं और इस
बार भी लडे जाएंगे.मायावती ने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले ही सीटों का जातीय और
सांप्रदायिक विभाजन करके इसकी विधिवत शुरुआत भी कर दी है.आगे यह यूपी की जनता को
निर्णय लेना है कि उनको पिछले ७५ साल की तरह जाति चाहिए या विकास चाहिए.
मित्रों,यहाँ मैं
भारतीय जनता पार्टी से उम्मीद रखता हूँ कि वो कम-से-कम उन गलतियों को तो नहीं
दोहराए जो उसने बिहार विधानसभा चुनावों के समय की थी और बिहार को विनाश की राह पर
धकेल दिया था.सबसे पहले तो भाजपा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देना
चाहिए.साथ ही उम्मीदवारों का चयन बिहार की तरह पैसे लेकर नहीं बल्कि जीत की सम्भावना
को देखते हुए करना चाहिए.इन दोनों कामों को करने के लिए गहन सर्वेक्षण की आवश्यकता
होगी.बूथ मैनेजमेंट तो हर चुनाव में महत्वपूर्ण होता ही है.साथ ही भाजपा को अपने
बूते पर चुनाव जीतने की तैयारी करनी होगी न कि दूसरे दलों में चल रहे कलह के बल पर
चुनाव जीतने के सपने देखने चाहिए.हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए प्रशांत किशोर पूरी
कोशिश करेगा कि यूपी में भी महागठबंधन हो जाए और अगर ऐसा होता है तो क्या करना है
के लिए भी पूरी तैयारी रखनी होगी.हम जानते हैं कि रसायन शास्त्र में २ और २ बाईस होता है लेकिन बिहार चुनाव ने साबित कर दिया है कि २ और २ हर बार २२ ही नहीं होता शून्य
भी हो सकता है.
मित्रों,साथ ही नोटबंदी
के समय नकद निकासी की जो सीमा निर्धारित की गयी थी उसमें क्रमशः ढील देनी चाहिए
क्योंकि मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ कि इससे काफी परेशानी हो रही है.अब
बेनामी संपत्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाना चाहिए और सारे गड़े हुए कालेधन को पाताल
से भी बाहर निकालना चाहिए क्योंकि अगर कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम को नोटबंदी
से आगे नहीं बढाया जाता है तो जनता के बीच ऐसे संकेत जाएंगे कि मोदी सरकार ने भी सिर्फ
दिखावा किया जिसके फलस्वरूप नोटबंदी के कारण अभी जो लाभ भाजपा को मिलता दिख रहा है
वो समाप्त तो हो ही जाएगा साथ ही नुकसानदेह भी हो जाएगा.
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