शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

दुर्घटना ने मिटाया हिन्दू-मुसलमान का फर्क

24 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपके शहर में भी बहुत सारे ऐसे विक्षिप्त और अर्द्धविक्षिप्त लोग होंगे जिनको अपना होश ही नहीं है। कोई नहीं जानता कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान। इनके लिए न तो कोई सुख है और न ही कोई दुःख। कहीं भी कुछ भी खा लिया और कहीं भी धरती को बिछावन और ईंटों को सिरहाना बनाकर टांग पसारकर सो गए।
मित्रों,अभी-अभी शाम ढलने से पहले एक टेम्पोवाले ने एक ऐसे ही स्थिरबुद्धि वृद्ध विक्षिप्त के पैरों को रगड़ दिया। बेचारा अपनी मस्ती में हाजीपुर के चौहट्टा चौक स्थित चबूतरे पर पांव लटकाए किसी दुकानदार के दिए सिगरेट को मजे ले-लेकर पी रहा था कि एक टेम्पोवाला उसके पैर को घायल करता हुआ निकल गया। पैर फट गया था इसलिए काफी तेजी से रक्तस्राव होने लगा। लेकिन बेचारा न तो चीखा और न ही नाराज हुआ बस अंदर-ही-अंदर दर्द को पीता हुआ लेट गया। कई लोग दौड़े सड़क के दक्षिण से मैं गया तो उत्तर से पान दुकानदार मुमताज और साईकिल मिस्त्री मकसूद भी दौड़ा। हमने चौक पर स्थित सिन्हा मेडिकल हॉल के सुनील कुमार से विनती की कि रोजगार तो रोज ही होता है आज परोपकार का काम कर लो और बेचारे की मरहम-पट्टी कर दो। सुनील ने पट्टी तो कर दी लेकिन सूई देने से हिचक रहा था।
मित्रों,मुमताज तो जैसे पागल ही हुआ जा रहा था। बार-बार जख्मी वृद्ध के पास आता और फिर सुनील के पास कहने को जाता। फिर मैंने सुनील की दुकान के मालिक प्रमोद कुमार सिन्हा से निवेदन किया तो उन्होंने सुनील को इसकी अनुमति दे दी। मुमताज ने न केवल सूई देने के लिए वृद्ध का आस्तीन ऊपर किया और सूई देने के समय हाथ पकड़ा बल्कि सुनील के सूई देने के बाद काफी देर तक सूई के स्थान को सहलाता भी रहा। इसके बाद सुनील ने पानी डालकर जमीन पर गिरे खून को साफ कर दिया। फिर वृद्ध की जान-में-जान आई और वो उठकर बैठ गया। लेकिन सवाल उठता है कि आगे उसकी पट्टी को बदलेगा कौन? क्या यह घाव उस वृद्ध की जान ले लेगा?
मित्रों,यह सच्चाई है कि हर आदमी मूल रूप से न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान। मैंने या मुमताज या मकसूद ने इस बात की चिन्ता नहीं की कि वह वृद्ध हिन्दू है मुसलमान या कुछ और। उसके बहते खून ने हम सबकी करुणा को जगा दिया। लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे करने या करवाने की भी एक सीमा थी और है। कोई ऐसी व्यवस्था तो होनी चाहिए जिससे कि ऐसे बेसहारा लोगों की समुचित देखभाल हो सके। चाहे वह व्यवस्था सरकार द्वारा हो या कुकुरमुत्ते की तरह पूरे हाजीपुर में उग आए घपलेबाज गैर सरकारी संगठनों द्वारा। अपनों के लिए तो हर कोई करता है कोई परायों के लिए भी तो करे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

अपने खिलाफ कब धरना पर बैठेंगे नीतीश?


21 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अपने केजरीवाल जी बड़े भाग्यशाली हैं। पहले उनको पाकिस्तान में बड़ा भाई मिला और अब भारत में भी हमारे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी केजरिया गए हैं। दोनों की शैली में फर्क बस इतना है कि केजरीवाल जी ने पहले धरना दिया फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी को यानि अपनी किस्मत को लात मारी और नीतीश जी ने इसके उलट पहले इस्तीफा दिया और अब धरने पर बैठ रहे हैं। श्री कुमार को शिकायत है कि पिछले 4 महीने में केंद्र सरकार ने बिहार की घनघोर उपेक्षा की है जैसी कि दस सालों में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भी नहीं की थी। तब तो सुशासन बाबू यह आरोप कांग्रेस पर लगा रहे थे और अब उसी के हाथ से उन्होंने हाथ मिला लिया है। अब इसे अवसरवाद न कहा जाए तो क्या कहा जाए?

मित्रों,पाकिस्तानी शायर मोहसिन नकवी ने क्या खूब कहा है कि बस एक ही गलती हम सारी ज़िन्दगी करते रहे मोहसिन, धूल चेहरे पर थी और हम आईना साफ़ करते रहे। बस नीतीश कुमार जी की भी इतनी-ही इतनी-सी ही समस्या है। जनता बार-बार उनको आईना दिखा रही है लेकिन श्री कुमार अपने चेहरे के बदले आईना को ही साफ करने में लगे हैं। पहले एक हवाई-परिकल्पित मुद्दे को लेकर 18 साल पुराना सुख-दुःख में जाँचा-परखा गठबंधन तोड़ा,फिर उसी लालू की गोद में छोटा भाई बनकर बैठ गए जिनके खिलाफ लड़ते हुए तमाम उम्र गुजरी थी। बिहार के शासन को जब 18 मंत्रालयों को एकसाथ देखते हुए संभाल नहीं सके और जनता ने जब गठबंधन तोड़ने और फिर से कुशासन और अराजकता फैलाने की सजा दी तो बजाए स्थिति को संभालने के रूठकर और मैदान छोड़कर ही भाग गए। जनाब चले थे प्रधानमंत्री बनने और त्यागपत्र दे दिया मुख्यमंत्री से भी। अभी हरियाणा विधानसभा चुनावों में दस जनविहीन जनसभाएँ करने के बाद भी पार्टी के एक उम्मीदवार को 114 और दूसरे को 38 वोट मिलते हैं लेकिन जनाब फिर भी अभी भी खुद को राष्ट्रीय नेता और प्रधानमंत्री पद का सबसे सुयोग्य उम्मीदवार मानते हैं। लोकसभा चुनावों में तो नीतीश जी के भाग्य ने उनका साथ दिया वरना तमाम विश्लेषक तो यह मान रहे थे कि जदयू भी बसपा की तरह ही शून्य पर आउट होने जा रही है।

मित्रों,वैसे सच्चाई यह भी है कि जब भाजपा सरकार में शामिल थी तब भी सरकार ने कई नीतिगत गलतियाँ कीं। एक के बाद एक पागलपन भरे कदमों से सरकारी शिक्षा का सर्वनाश कर दिया,गांव-गांव में शराब के ठेके खोल दिये और पूरे शासन-प्रशासन को अफसरों के हवाले कर दिया मगर ये विभाग शुरू से ही जदयू कोटे के मंत्रियों के पास थे। बाद में गठबंधन टूटने के बाद नीतीश जी को मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया और 8-नौ महीनों तक एकसाथ वे 18 विभागों के मंत्री बने रहे जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रही। बहुचर्चित दवा घोटाला भी उसी कालखंड की देन है।

मित्रों,मान लिया कि नीतीश जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी के खटमल बहुत परेशान करने लगे थे लेकिन यह क्या कि उन्होंने एक बेदिमागी को अपने स्थान पर बैठा दिया जो मांझी नाम को निरर्थक साबित करते हुए पार्टी के साथ-साथ प्रदेश की नैया को भी डुबाने पर लगा हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपनी हालत के लिए नीतीश कुमार जी खुद ही जिम्मेदार हैं लेकिन लगातार जबर्दस्ती यह साबित करने में लगे हैं कि इन्हीं लोगों ने छीना दुपट्टा मेरा (मुख्यमंत्री की कुर्सी)। जबतक जनता को उनका शासन अच्छा लगा,विकासवादी लगा जनता ने उनको सिर-आँखों पर बिठाया और जब जनता को लगने लगा कि नीतीश कुमार जी रावण की तरह अभिमानी और स्वेच्छाचारी होने लगे हैं तो बिहार की जनता ने उनको अपने सिर से आहिस्ते से उतारा नहीं बल्कि सीधे जमीन पर पटक दिया। इसलिए नीतीश जी को अगर धरना देना ही है तो उनको खुद के खिलाफ,अपनी भूतकाल की नीतिगत और अवसरवादी गलतियों के खिलाफ धरना देना चाहिए। वे कहेंगे तो हम भी उस धरने में उनका दिलो-जान से साथ देंगे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

नहीं टूटा है अभी भी जनता का भरोसा,मोदी लहर चालू आहे

19 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि भारत की जनता न सिर्फ राज्यों में बल्कि केंद्र में भी मजबूत सरकार चाहती है। इतना ही नहीं इन परिणामों से यह भी सिद्ध हो गया है कि भारत की जनता का विश्वास अभी भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में बना हुआ है। इन सुखद चुनाव-परिणामों से दो अन्य राज्यों में भी राष्ट्रवादी सरकारें बन जाएंगी इसके साथ ही राज्यसभा में भी भाजपा के सदस्यों की संख्या बढ़ेगी जिससे मोदी सरकार के कदम और भी मजबूत होंगे। चुनाव-परिणामों से यह भी स्पष्ट हो गया है देश की जनता का बहुमत राष्ट्रवादी है और उसके लिए नेशन ही फर्स्ट एंड लास्ट है। यह जीत न तो भाजपा की जीत है और न ही नरेंद्र मोदी की बल्कि जातिवाद,संप्रदायवाद और परिवारवाद पर राष्ट्रवाद की जीत है। थोड़ी-सी चिंता का सबब अगर है तो वह है महासांप्रदायिक ओबैसी की पार्टी को महाराष्ट्र के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में मिली भारी सफलता।

मित्रों,हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद यह पहला बड़ा चुनाव था। शायद इसलिए अधिकतर आलोचक और विश्लेषक इन चुनावों को मोदी सरकार के प्रति जनता का लोकमत सर्वेक्षण मान रहे थे। जाहिर है कि परिणामों के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि जनता नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रदर्शन से फिलहाल खुश है लेकिन इसका यह मतलब हरगिज नहीं लगाया जाना चाहिए कि सबकुछ सही हो गया है। अभी तो भारत के असली निर्माण का सफर शुरू ही हुआ है। अभी तो भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है और इसके लिए मोदी सरकार को लगातार कई सालों तक त्वरित गति से सुधार करने होंगे,अनथक प्रयास करने होंगे। भारत को अभी चीन को प्रत्येक मोर्चे पर पछाड़ना है और ऐसा करना कतई आसान नहीं होनेवाला है। नरेंद्र मोदी ने भारत की जनता से अपील भी की है कि जनता को दिवाली में भारत में बनी चीजों को व्यवहार में लाना चाहिए जिसका पूरे भारत में निश्चित रूप से स्वागत करना चाहिए और न सिर्फ इसका मौखिक स्वागत हो बल्कि इसको व्यवहार में भी लाया जाए। मोदी जानते हैं कि चीन तभी झुकेगा और नरम पड़ेगा जब भारत में उसके सामानों की बिक्री को झटका लगे और भारत तभी वैश्विक महाशक्ति बनेगा जब दुनिया के सबसे बड़े दूसरे बाजार भारत के लोग भारत में बने सामानों का उपयोग करें।

मित्रों,यह हमारा और हमारे देश का सौभाग्य है कि हमें नरेंद्र मोदी जैसा नेता मिला है। जनता ने अपने निर्णय द्वारा मोदी जी को आश्वस्त किया है कि मोदी जी इसी तरह से अच्छा काम करते रहिए हम आपके हाथों को और भी मजबूत करते जाएंगे। यहाँ मैं मोदी जी और भाजपा को चेताना चाहूंगा कि वो सोंच-समझकर महाराष्ट्र में सरकार बनाए। अगर भाजपा एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाती है तो फिर इस सरकार का जन्म ही देश की सबसे भ्रष्ट पार्टी के समर्थन से होगा जिसका प्रादेशिक के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं जाएगा।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

एक बार फिर से वोट फॉर मोदी,वोट फॉर इंडिया

14 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। महाराष्ट्र और हरियाणा के मित्रों,एक बार फिर से गेंद आपके पाले में है,बाजी आपके हाथों में है। लोकसभा चुनावों के समय जिस तरह आपलोगों ने बाँकी देश के साथ मिलकर कदमताल किया उसके लिए हम आजीवन आपके आभारी रहेंगे। यह आपकी बुद्धिमानी का ही प्रतिफल है कि आज केंद्र में देश के लिए कुछ भी कर गुजरनेवाले व्यक्ति के नेतृत्व में सरकार सत्ता में है। केंद्र में आज मजबूर नहीं मजबूत सरकार है लेकिन यह सरकार अभी भी पूरी तरह से मजबूत नहीं है। वह इसलिए क्योंकि राज्यसभा में इसको बहुमत प्राप्त नहीं है और यह तो आप भी जानते हैं कि कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है जब उसको राज्यसभा भी पारित कर दे।
मित्रों,हमारे संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई है कि विधानसभा सदस्य ही राज्यसभा सदस्यों का चुनाव करते हैं। जाहिर है कि एनडीए को तभी राज्यसभा में बहुमत मिल सकेगा जब देश की सारी विधानसभाओं में उसका बहुमत हो। यह आप दो राज्यों के निवासियों का सौभाग्य है कि इस दिशा में पहला कदम उठाने का सुअवसर आपलोगों को मिला है। आपने लोकसभा में तो एऩडीए को मजबूत कर दिया आईए राज्यसभा में भी उसको मजबूती प्रदान करें जिससे कि वह सचमुच में मजबूत सरकार सिद्ध हो सके और उसको राज्यसभा में जया,ममता,माया और मुलायम जैसे भ्रष्टों और देशविरोधियों का मुँहतका न बनना पड़े। देश का भविष्य आपके हाथों में है। देश का भविष्य आपको पुकार रहा है। तो आईए दोस्तों,घर से निकलिए भारी-से-भारी संख्या में मतदान करिए-एक बार फिर से वोट फॉर मोदी,वोट फॉर इंडिया।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

कैसे कहूँ हैप्पी बर्थ डे वैशाली जिला?

13-10-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक जमाना था जब वर्तमान वैशाली जिला क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को किसी भी काम के लिए हाजीपुर से 55 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर जाना पड़ता था। लोग सत्तू-चूड़ा-ठेकुआ लेकर निकलते और 15-15 दिन के बाद घर आते। कई लोग तो पैदल ही मुजफ्फरपुर का रास्ता नाप देते थे। रास्ते में अगर रिश्तेदारों का घर स्थित हो तो सोने पर सुहागा। दो दिन बुआ के घर ठहर लिया तो दो दिन दीदी के घर। इसी तरह कभी गोविन्दपुर सिंघाड़ा से मुकदमा लड़ने मुजफ्फरपुर का बार-बार चक्कर लगानेवाला एक युवक बार-बार के आने-जाने से इतना परेशान हो गया कि उसने मुजफ्फरपुर में अपना घर ही बसा लिया और उसका वही घर आज एक गांव बन गया है-कन्हौली का राजपूत टोला।
मित्रों,लोग लंबे समय तक मांग करते रहे कि उनको अलग जिला बना दिया जाए। आंदोलन हुए,धरना-प्रदर्शन हुआ और अंततः वह दिन आया 1972 में 12 अक्तूबर के दिन जब वैशाली को मुजफ्फरपुर जिला से अलग कर दिया गया और हाजीपुर को बनाया गया जिला मुख्यालय। अब लोगों को बार-बार मुजफ्फरपुर नहीं जाना पड़ता था। एक ट्रेन से आए अपना काम किया और फिर शाम की दूसरी ट्रेन से घर वापस हो गए। जिस इलाके में ट्रेन नहीं जाती वहाँ के लिए भी उसी कालखंड में बसें चलनी शुरू हो गईं। तब हाजीपुर एक कस्बा था आज महानगर बनने की ओर अग्रसर है। आज हाजीपुर में क्या नहीं है? आईआईएमएच है,नाईपर है,सीपेट है,कई उद्योग-धंधे हैं,महाविद्यालय हैं,कोचिंग हैं,आईटीआई हैं,ट्रेनिंग कॉलेज हैं और सबसे बढ़कर है पूर्व मध्य रेल का मुख्यालय। इनमें से अधिकतर हाजीपुर के हमारे सांसद रामविलास पासवान के प्रयासों का नतीजा हैं।
मित्रों,फिर भी कुछ तो ऐसा है जिसकी हमें कमी लग रही है और लगता है कि जैसे वही समय अच्छा था जब मुजफ्फरपुर हमारा भी जिला मुख्यालय हुआ करता था। हमारा आज का प्रशासन बेहद संवेदनहीन हो गया है। हाजीपुर में कई तरह के प्रशासनिक कार्यालय तो खुल गए हैं लेकिन वहाँ अब आम और निरीह जनता की सुनी नहीं जाती। वहाँ शरीफों को जलील किया जाता और चोरों की आरती उतारी जाती है। जो सड़कें पहले निर्माण के 10-10 साल बाद तक जस-की-तस रहती थीं आज साल-दो-साल में ही इतनी जर्जर हो जा रही हैं कि उन पर पैदल तक नहीं चला जा सकता। स्कूलों की बिल्डिंगों में अब पाँच साल में ही दरार पड़ने लगती है। पूरे जिले में कहीं भी पेय जलापूर्ति की समुचित व्यवस्था नहीं है,लगभग सारे-के-सारे सरकारी नलकूप बंद हैं,संत परेशान हैं और हर जगह चोरों का राज है। पुलिस का तो हाल ही नहीं पूछिए आज चोरी-डकैती होती है तो एक महीने बाद भी थानेदार आपका हाल पूछने आ जाएँ तो इसको उसकी मेहरबानी ही समझिए। पुलिसिया अनुसंधान का हाल ऐसा है कि ठीक नए साल के दिन थानेदार की थाने में घुसकर अपराधी हत्या कर देता है और पुलिस न तो हत्या में प्रयुक्त हथियार ही बरामद कर पाती है और न ही सहअभियुक्तों को गिरफ्तार ही कर पाती है और अंत में होता वही है जो इस अवस्था में होना चाहिए। मुख्य अभियुक्त शान से हाईकोर्ट से जमानत लेकर गांव लौटता है हाथी पर सवार होकर।
मित्रों,आज हमारे जिले की जो हालत है उसमें निश्चित रूप से दिन-ब-दिन भ्रष्ट से भ्रष्टतर और भ्रष्टतम होते जा रहे प्रशासन का भी काफी अहम योगदान है। आज पूरे वैशाली जिले में जिधर देखिए उधर अपराधियों का बोलबाला है। कभी हम गर्व करते थे कि हमारा जिला बहुत शांत जिला है। तब हमारे जिले में न तो लूट-मार थी और नक्सलवाद का तो कहीं नामोनिशान भी नहीं था। लेकिन क्या इस हालत के लिए सचमुच सिर्फ प्रशासन ही दोषी हैं? क्या हमारा अंतर्मन उतना ही शुद्ध है जितना कि हमारे उन पूर्वजों का था जिन्होंने इस जिले में एक-एक कर एक-एक गांव और एक-एक कस्बे को बसाया? कदापि नहीं। फिर जबकि सामाजिक,मानवीय और प्रशासनिक हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते ही जा रहे हों तो आप ही बताईए कि मैं किस मुँह से कहूँ कि हैप्पी बर्थ डे माई डियर वैशाली डिस्ट्रिक्ट,मुझे तुम पर गर्व है?


(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

क्या बिहार नीतीश कुमार की निजी जमींदारी है?

6-10-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,पिछले कुछ समय में बिहार की राजनीति ने जिस तरह से यू-टर्न लिया है आज से दो साल पहले कोई उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था। जो व्यक्ति कभी हमेशा दिन-रात मूल्यों और सिद्धांतों का राग अलापा करता था वही सबसे बड़ा अवसरवादी निकला। राम निकला तो था रावण से लड़ने के लिए लेकिन युद्धभूमि में जाकर उसने पाला बदल लिया और सीता (बिहार) अपने उद्धार की बाट ही जोहती रह गई। पहले उसने अपने उस गठबंधन सहयोगी को सरकार से निकाल बाहर कर दिया जिसके साथ मिलकर उसने 2010 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। उसकी पार्टी को जो भी मत मिले थे वे अकेले उसकी पार्टी के नहीं थे बल्कि जनता ने दोनों पार्टियों को एक मानकर उसकी गठबंधन सरकार को बंपर बहुमत दिया था। फिर उस नीतीश कुमार को किसने यह अधिकार दे दिया कि वे अकेले की सरकार चलाएँ? जनता ने तो उनको गठबंधन सरकार चलाने के लिए मत दिया था। क्या बिहार नीतीश कुमार जी की निजी जमींदारी थी और है? अगर नहीं तो नैतिकता का तकाजा तो यह था कि वे गठबंधन तोड़ने के तत्काल बाद ही विधानसभा को भंग करके आम चुनाव करवाते।
मित्रों,नीतीश कुमार जी की बिहार और बिहार की जनता के साथ खिलवाड़ यहीं पर नहीं रुका। भाजपा को सरकार और गठबंधन से निकालबाहर करने के बाद नीतीश जी ने लगभग एक साल तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया और एक साथ उन सभी  विभागों सहित जो भाजपा के पास थे 18 विभागों के मंत्री बने रहे जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरे बिहार में अराजकता व्याप्त हो गई। सारे नियम-कानून की माँ-बहन होने लगी जिसका परिणाम यह हुआ कि नीतीश जी की पार्टी को बिहार में जीत के लाले पड़ गए। अगर नीतीश जी में थोड़ी-सी भी नैतिकता होती उनको लोकसभा चुनावों के तत्काल बाद ही विधानसभा चुनाव करवाने चाहिए थे। लेकिन नीतीश जी ने एक बार फिर से बिहार को अपनी निजी जमींदारी समझते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और खुलकर जातीयता का गंदा खेल खेलते हुए एक निहायत अयोग्य महादलित को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। इस तरह बिहार के साथ जानलेवा प्रयोग-पर-प्रयोग करने का अधिकार नीतीश कुमार जी को किसने दिया है? चिड़िया की जान जाए बच्चों का खिलौना?
मित्रों,जबसे बिहार में जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया है तबसे बिहार के शासन-प्रशासन ने जो थोड़ी चुस्ती थी वह भी जाती रही। अब आप बिहार पुलिस को घटना के समय या घटना के बाद लाख फोन करते रहें वह तत्काल घटनास्थल पर नहीं आती है जबकि वर्ष 2005 में जब जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार नई-नई आई थी तब पुलिस सूचना मिलते ही घटनास्थल पर हाजिर हो जाती थी और समुचित कार्रवाई भी करती थी। अब अगर आप बिहार में रहते हैं तो अपने जान व माल सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी-पूरी आपकी है। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी में वह योग्यता है ही नहीं कि वे प्रशासनिक अराजकता को दूर कर सकें। वे तो बस विवादित बयान देते रहते हैं और इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनका जन्म छोटी जाति में हुआ है इसलिए लोग उनका मजाक उड़ाते हैं। पिछले कुछ समय में श्री मांझी ने इतने मूर्खतापूर्ण बयान दिए हैं कि इस मामले में उनके आगे बेनी प्रसाद वर्मा का कद भी बौना हो गया है।
मित्रों,यह तो आप भी मानेंगे कि इस प्रकार के अतिमूर्खतापूर्ण बयान वही व्यक्ति दे सकता है जो महामूर्ख हो। पुत्र-विवाहेतर संबंध विवाद,विद्यालय उपस्थिति विवाद,...... और अब पटना गांधी मैदान भगदड़ पर उटपटांग बयान कि इसमें गलती भीड़ की भी हो सकती है,.....। श्री मांझी किस तरह के मुख्यमंत्री हैं कि इतनी हृदयविदारक घटना के घंटों बाद तक घटना से पूरी तरह से बेखबर रहते हैं? और जब मुँह खोलते भी हैं तो मृतकों के परिजनों के जख्मों पर मरहम लगाने के बदले यह बोलकर कि गलती भीड़ की भी हो सकती है नमक छिड़कने का काम करते हैं। क्या श्री मांझी बताएंगे कि गलती किसकी थी उन दो दर्जन मासूम बच्चों की जिनके जीवन को खिलने से पहले ही पैरों तले कुचल दिया गया? उन बेचारों को तो अभी पता भी नहीं होगा कि गलती की कैसे जाती है या गलती शब्द का मतलब क्या होता है। क्या सिर्फ महादलित होने से ही किसी व्यक्ति में मुख्यमंत्री बनने की पात्रता आ जाती है?
मित्रों,बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के प्रयोगवादी पागलपन जीतनराम मांझी को बहुत बर्दाश्त किया मगर अब पानी सिर के ऊपर से बहने लगा है। जो व्यक्ति एक ट्राफिक हवलदार तक बनने के काबिल नहीं था उसको नीतीश कुमार ने बिहार को दिशा देने का काम सौंप दिया? जब 1 ग्राम भी बुद्धि है ही नहीं तो श्री मांझी शासन कैसे चलाएंगे और इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे उठाएंगे? जाहिर है कि ऐसा कर पाना उनके बूते की बात नहीं है। हाजीपुर टाईम्स ने तब भी जब मांझी को बिहार के सीएम की कुर्सी दी गई थी अपनी सामाजिक व राजनैतिक जिम्मेदारी को निभाते हुए नीतीश जी को चेताया था लेकिन तब नीतीश जी ने जो कि एक वैद्य के बेटे हैं एक मरणासन्न रोगी की तरह हमारे रामवाण नुस्खे को नहीं माना था।
मित्रों,हमारा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि नीतीश कुमार जी को देर आए मगर दुरुस्त आए पर संजीदगी से अमल करते हुए तत्काल बिहार में विधानसभा चुनाव करवा कर फिर से जनादेश प्राप्त करना चाहिए। बिहार की जनता को अगर उनके महाअवसरवादी महागठबंधन में विश्वास होगा तो वे दोबारा मुख्यमंत्री बन जाएंगे और अगर नहीं होगा तो विपक्ष की शोभा बढ़ाएंगे लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में बिहार को एक पागल,बुद्धिहीन के शासन से तो मुक्ति मिलेगी। इसके विपरीत अगर नीतीश जी श्री मांझी को हटाकर किसी दूसरे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाते हैं तो यह एक बार फिर से उनकी अनाधिकार चेष्टा होगी। जनता ने 2010 में उनको इसलिए बहुमत नहीं दिया था कि वे बिहार को चूँ-चूँ का मुरब्बा बनाकर रख दें बल्कि उनको बिहार के समग्र विकास के लिए वोट दिया था। वैसे भी लोकसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर वे बिहार के विकासपुरुष की अपनी जिम्मेदारियों से भाग चुके हैं लेकिन वे एक बिहारी होने की जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकते हैं। इसलिए बिहार का एक शुभचिंतक होने के नाते,एक बिहारी होने के नाते उनको अपने सारे प्रयोगों को विराम देते हुए बिहार में तत्काल विधानसभा चुनाव करवाना चाहिए वरना उनके 8 साल के सुशासन से पहले बिहार जहाँ से चला था अगले एक साल में उससे भी पीछे चला जाएगा।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)