रविवार, 24 अप्रैल 2022

कबीरा आप ठगाईए

मित्रों, मुझे पूरा यकीन है कि आप भी संत कबीर के इस दोहे से परिचित होंगे- कबीरा आप ठगाईए और न ठगिए कोय, आप ठगे सुख उपजे और ठगे दुख होय. सो मैंने बचपन में जबसे इस दोहे को पढ़ा इसे अपना जीवन-मंत्र बना लिया. बार-बार मुझे ठगा गया लेकिन मैंने कभी किसी को नहीं ठगा. लेकिन अब तो स्थिति भयावह हो चली है. अब ठगी एक कला बन गई है, योग्यता का पैमाना बन गई है और इस कला को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है भारत के सॉफ्टवेयर ईंजिनियरों ने. एक वेबसाइट बना लिया और हफ्ते-दो-हफ्ते तक लोगों को लूटने के बाद बंद कर दिया. झारखण्ड का जामतारा इनकी राजधानी है. वैसे तो मुझे अभिमान था कि मेरे साथ अब तक साईबर ठगी नहीं हो पाई है लेकिन पिछले वर्ष वह अभिमान भी खंड-खंड हो गया. मित्रों, वैसे तो मेरा पूरा जीवन धूप में छाँव के ठंडे साए खोजते हुए बीता है लेकिन साल २०२१ में तो जैसे मुझ पर गम के इतने पहाड़ एक साथ टूटे कि रोजाना मुझे रिश्तों के नए-नए रूप देखने को मिले. पिताजी इस नाफानी दुनिया से दूर जा चुके थे कुल ८५ हजार की जमा पूँजी यानी अपने एक महीने के पेंशन के बराबर पैसा छोड़कर. माँ के बक्से से मात्र १९ हजार रूपये निकले. किसी तरह से हमने अपने बल पर पिताजी का श्राद्ध किया लेकिन उसके तत्काल बाद मेरे सामने वही सबसे बड़ा सवाल मुंह बाए खड़ा था कि अब आगे दाल-रोटी कैसे चलेगी. मेरी बेचैनी चरम पर थी. पिताजी के पिछले माह के पेंशन में से तीस हजार रूपये मेरे खाते में थे लेकिन हमारा एक महीने का मकान का किराया ही १० हजार था, फिर खाने-पीने, कपड़े, बच्चे की स्कूल फीस. ऐसा लगता था जैसे किसी भी समय मेरे सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे. मित्रों, फिर मैंने सोंचा कि क्यों न टाइम्स जॉब से संपर्क किया जाए सो मैंने टाइम्स जॉब की वेबसाइट पर जाकर नौकरी के लिए आवेदन दिया. अभी चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे कि १ फरवरी, २०२१ को मेरे पास 7440268569 नंबर से एक लड़की का फोन आया कि क्या आपने कल टाइम्स जॉब पर नौकरी के लिए आवेदन दिया था? फिर उसने वो सारे विवरण मुझे बताए जो मैंने अपने आवेदन में भरे थे. फिर उसने बताया कि आपके लिए कई सारे ऑफर आए हैं बस आपको हम एक लिंक एसएमएस कर रहे हैं आप उस पर जाकर १०० रूपये का ऑनलाइन पेमेंट कर दीजिए. फिर मुझे इसी नंबर से एक लिंक timejobsservice.com भेजा गया. जब मैंने सौ रूपये का पेमेंट करने के लिए मेरे बैंक आईसीआईसीआई द्वारा भेजा गया ओटीपी डाला तब मेरे खाते से १०० रूपये के बदले १९८५६ रूपये कट गए. सबसे आश्चर्य की बात तो यह थी कि बैंक द्वारा भेजे गए ओटीपी वाले एसएमएस में खाते से कितनी राशि निकलनेवाली है का जिक्र ही नहीं था जबकि सरकारी बैंकों से आनेवाले इस तरह के एसएमएस में राशि का भी जिक्र होता है. जैसे ही आईसीआईसीआई बैंक से १९८५६ रूपये कटने का एसएमएस आया मैं समझ गया कि मेरे साथ साईबर फ्रॉड हुआ है. इसके बाद जब मैंने 7440268569 पर फोन किया तो लड़की जो अपना नाम नेहा बता रही थी मुझे पैसा वापस कर देने का झूठा दिलासा देने लगी. जब मैं उस पर नाराज हो गया तो बोली जाओ नहीं करते पैसे वापस क्या कर लोगे? मित्रों, फिर मैं भागा-भागा आईसीआईसीआई की हाजीपुर शाखा में गया लेकिन मैनेजर ने किसी भी तरह का आवेदन लेने से मना कर दिया. फिर मैंने बैंक के कस्टमर केयर पर फोन कर मेरे साथ हुई घटना की सूचना दी. कस्टमर केयर ने बताया कि आपकी शिकायत जांच के लिए दर्ज कर ली गई है कुछ दिनों में समाधान भी हो जाएगा. इस बीच मेरे खाते में १९८५६ रूपये भी डाल दिए गए मगर वो पैसा सिर्फ दीखता था मैं उसे निकाल नहीं सकता था. मित्रों, इसके बाद मैं नगर थाना हाजीपुर गया और मामले की एफआईआर कर जाँच करने के लिए आवेदन दिया. मुंशी बोले कि अभी थानेदार फिल्ड में हैं आवेदन दे दीजिए और कल आकर पता कर लीजिएगा. फिर तो जैसे टहलाने का सिलसिला ही चल पड़ा. पहले तो थानेदार सुबोध सिंह ने कहा कि मामला छोटा है, बीस हजार का ही है, मुंशी से पता कर लीजिए कि एफआईआर हुआ कि नहीं. जब मैं मुंशी के पास गया तो उसने कहा कि उसे कुछ भी पता नहीं है थानेदार से पूछिए. कई दिनों की भागदौड़ के बाद जब मैं थानेदार पर बरस पड़ा तो उसने टका-सा जवाब दिया कि शहर में इतनी हत्या-चोरी-लूटपाट की घटनाएँ हो रही है हम उनको देखें या आपके केस को देखें. फिर मैंने बिहार पुलिस से उम्मीद ही छोड़ दी. मैं कोई प्रधानमंत्री की भतीजी तो था नहीं कि थानेदार मेरे पैसों को वापस दिलाने का जीतोड़ प्रयास करता. मित्रों, इससे पहले मैं घटना की शाम ही हाजीपुर के हिंदुस्तान कार्यालय का दरवाजा भी खटखटा चुका था. २००००रू की रकम पुलिस की नजर में भले ही बहुत छोटी हो लेकिन मेरे लिए काफी बड़ी थी. मैंने सोंचा कि पहले मैं हिंदुस्तान, पटना में रहा हूँ और हाजीपुर, हिंदुस्तान के कई स्टाफ तब मेरे सहकर्मी थे इसलिए पुलिस न सही मेरे पुराने साथी तो मेरे लिए कुछ-न-कुछ अवश्य करेंगे. लेकिन वहां भी मुझसे सारी सूचनाएँ ले ली गईं मगर मेरे साथ हुई घटना को अख़बार में स्थान नहीं दिया गया. शायद उनको मुझसे भी पैसों की उम्मीद थी. मित्रों, मेरे भीतर क्रोध का ज्वालामुखी फट रहा था. मैंने तत्काल घर लौटते ही पहले 1 फरवरी को नमो ऐप पर और फिर २ फरवरी को केन्द्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर साईबर क्राइम सेल में अपनी शिकायत दर्ज कराई. मित्रों, इस बीच दिनांक ६ फरवरी को मेरे खाते से बैंक ने १९८५६ रूपये निकाल लिए. फिर मैंने बैंक के नोडल अधिकारी के पास ऑनलाइन शिकायत की. लेकिन दिनांक १९ फरवरी को उन्होंने भी मेरे पैसा वापस करने के आवेदन को रद्द कर दिया. फिर मैंने पटना स्थित रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के बैंकिंग लोकपाल के पास शिकायत की. लेकिन ३१ जुलाई, २०२२ को उन्होंने भी मेरे दावे को नकार दिया. मैंने उससे यह भी निवेदन किया था कि वो बैंक को आदेश दे कि वो ओटीपी के साथ निकलनेवाली राशि को भी एसएमएस में शामिल करे लेकिन उसने ऐसा कोई आदेश भी नहीं दिया. मित्रों, इस बीच १४ फरवरी को मुझे वैशाली लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने फोन करके बुलाया और कहा कि आपने जो केन्द्रीय गृह मंत्रालय के साईबर अपराध सेल में शिकायत की थी उसका निस्तारण कर दिया गया है. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि ऐसे मामलों में कुछ नहीं होता है. मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस समय भारत की स्थिति क्या है मेरा मामला इसका लिटमस टेस्ट है? वर्तमान भारत में सबकुछ जैसे माया है, दिखावा है. अगर आप प्रधानमंत्री की भतीजी नहीं हैं तो देश में आपकी कोई सुननेवाला नहीं है. मुझे अपने पैसे खोने का गम तो है लेकिन उससे भी बड़ा गम इस बात का है कि भविष्य में दूसरे लोगों के साथ ऐसा न हो इसके लिए इंतजाम भी नहीं किए जा रहे हैं. क्या कोई टाइम्स जॉब से पूछेगा कि जो सूचना उनके पास थी ठगों के पास कैसे चली गई? क्या कोई भारत के बैंकों को इस बात के निर्देश देगा कि भविष्य में जब ओटीपी भेजी जाए तो उसके साथ खाते से निकलनेवाली राशि का ब्यौरा भी भेजा जाए? या फिर ग्राहकों के साथ ठगों द्वारा फ्रॉड होने के बाद सरकार द्वारा भी फ्रॉड किया जाता रहेगा? सिर्फ औपचरिकता से कुछ नहीं होगा सरकार को अपनी नीयत ठीक करनी पड़ेगी. मोदी जी को यह साबित करना होगा कि अब तक जो चल रहा था वो सचमुच नहीं चलेगा. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्.

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

मोदी गांधी हैं या सावरकर

मित्रों, हमारे इतिहास में एक काला अध्याय है तुगलक वंश. इस वंश ने दिल्ली पर १३२० से लेकर १४१४ तक शासन किया. इस वंश का सस्थापक गयासुद्दीन तुगलक था जिसका मकबरा आज भी दिल्ली के तुगलकाबाद में है. गयासुद्दीन जब खिलजियों का सेनापति था तब उसने बहुत सारे मंदिर तोड़े, देव प्रतिमाएं खंडित की, हजारों निर्दोष, निरपराध हिन्दुओं को बेवजह मारा, हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार किए और करवाए, हजारों हिन्दू महिलाओं को सरेबाजार बेचा, हजारों हिन्दू बच्चों को हवा में उछाल कर भालों से बींध कर मार डाला और इन सभी अमानवीय क्रूर कर्म के बदले में गाजी तुगलक का ख़िताब पाया. लेकिन जब १३२० में वही गाजी तुगलक अर्थात गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली के तख़्त पर बैठा तो अचानक अजीबोगरीब हरकतें करने लगा. वो सिंहासन पर सर रखकर रोने लगता और बलबन और अलाउद्दीन खिलजी का नाम ले-लेकर छाती पीटने लगता. उसके परिजन और सिपहसलार आश्चर्यचकित और परेशान थे कि जो गाजी तुगलक कभी काफिरों यानि हिन्दुओं के लिए कहर था वो रोंदू कैसे हो गया? हालाँकि इस बात के प्रमाण नहीं मिलते कि गयासुद्दीन कभी हिन्दुओं के प्रति उदार भी हुआ था. मित्रों, मुझे लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी भी इस समय इसी बीमारी यानि गाजी तुगलक सिंड्रोम से ग्रस्त हैं. मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे तब तक मुंहजबानी ही सही हिन्दुओं के कट्टर पैरोकार रहे और उन मुसलमानों के खिलाफ लगातार बोलते रहे जिनका कुरान हिन्दुओं को लूट लेने, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने और हिन्दुओं को जान से मार देने का खुला और स्पष्ट आदेश देता है. जुमलावीर मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे अपने जुमलों में सावरकर के अनन्य प्रशंसक और भक्त रहे. उन सावरकर के जिन्होंने कहा था कि मुस्लिम तुष्टिकरण बंद होना चाहिए और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए लेकिन वही मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनका एक अलग ही रूप दिखाई देता है. मोदी अचानक सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का नारा लगाने लगते हैं. ठीक उसी तरह वे विरोधाभासी बातें करने लगते हैं जैसे कभी गाजी तुगलक करता था. लगता है जैसे मोदी के भीतर गाजी तुगलक की आत्मा घुस गई है. मित्रों, आज तक कांग्रेस पार्टी जिन मुसलमानों को मिठाई दिखाकर लोलीपोप चटा रही थी उन्हीं मुसलमानों को मोदी आईएएस-आईपीएस बनाने लगे, जिन मुसलमानों को पैसों को लाले थे उन्हीं मुसलमानों के लिए भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पैसों की बरसात कर दी. छात्रवृत्ति, पक्का मकान, सस्ता लोन, मुफ्त का राशन आदि. लेकिन उससे हुआ क्या? मेरे एक छात्र ने जो मुज़फ्फरनगर की मशहूर फ़िल्मी हस्ती का बेटा है ने पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब मुझे फोन कर बताया था कि इस बार यूपी में योगी वापसी नहीं करने वाले क्योंकि भाजपा को मुसलमानों का एक भी वोट नहीं मिलनेवाला है. इस दौरान बात करते हुए उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. मैंने उससे पूछा कि फिर तो मुसलमान नमकहराम हैं तो उसने कहा कि आपको जो समझना है समझिए लेकिन योगी-मोदी मुसलमानों को फूटी आँख नहीं सुहाते. मैं सन्नाटे में था क्योंकि एक धनाढ्य परिवार से होते हुए भी उस छात्र को योगी सरकार से हजारों रूपये की छात्रवृत्ति मिली थी. बाद में मैंने पढ़ा कि जिस बूथ पर भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी ने मतदान किया था वहां भाजपा को मात्र दो मत मिले. इसका मतलब साफ़ था कि स्वयं नकवी के परिजनों ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया. इतना ही नहीं भाजपा की जीत का जश्न मनानेवाले कई मुसलमानों की खुद मुसलमान ही हत्या कर चुके हैं. फिर भी मोदी न जाने किन सपनों में खोये हुए हैं सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास. शायद इस तरह के सपनों को ही अंग्रेजी में फूल्स ड्रीम कहते हैं. मित्रों, मोदी मुसलमानों को एक हाथ में कुरान और दूसरे में लैपटॉप पकडाने वाले हैं और सोंच रहे हैं कि ऐसा कर देने भर से वो पूंछविहीन पशु इन्सान बन जाएँगे जबकि सच्चाई यह है कि जबतक उनके एक हाथ में कुरान है वो न तो सर्वधर्मसमभाव का पालन करेंगे और न ही भारत को अपनी पुण्यभूमि ही मानेंगे बल्कि यही कहते रहेंगे कि करदे फकत इशारा अगर शाहे खुरासान सजदा न करूं हिंद की नापाक जमीन पर. अभी-अभी हमने गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर पर हमला होते हुए देखा है. एक बेहद कुशाग्र बुद्धिवाले आईआईटी से स्नातक मुसलमान ने जन्नत के लालच में आकर यह हमला किया. उसके भी एक हाथ में कुरान था और दूसरे में लैपटॉप लेकिन दिमाग में सिर्फ कुरान था, जहर था. आधुनिकता और उदारता उसे छू तक नहीं गयी थी. असली चीज दिमाग को बदलना है जो कुरान होने नहीं देगा. ये लोग लैपटॉप से अच्छी बातें नहीं सीखेंगे बल्कि बम बनाना सीखेंगे. पूरे देश में जहाँ भी बम बनाते हुए लोग मारे जाते हैं वे सारे-के-सारे मुसलमान होते हैं क्यों? मुसलमान चाहे भारत का उपराष्ट्रपति बना दिया जाए या उच्च पदाधिकारी वो मूलत: जिहादी होता है। एकाध अपवाद भी हैं कलाम साहेब की तरह लेकिन वे एकाध ही हैं। मित्रों, इतना ही नहीं हम देख रहे हैं कि दिल्ली के क़ुतुब-परिसर से इस बात के सबूत मिटाने के प्रयास हो रहे हैं कि वहां की इमारतें हिन्दू-मंदिरों को तोड़ कर बनाए गए थे. समझ में नहीं आता कि मोदी चाहते क्या हैं? मुसलमानों को खुश करने के लिए जो काम गाँधी नामधारी कान्ग्रेस के नेता नहीं कर पाए वो काम मोदी कर रहे हैं. जबकि वो भी जानते हैं कि उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये। पयःपानं भुजंगानां केवल विषवर्धनम्।। जो पत्थरबाजी पहले सिर्फ कश्मीर तक सीमित थी अब मोदी राज में पूरे भारत में हो रही है. भारत की राजधानी दिल्ली तक में ऐसा कोई महीना ऐसा कोई हफ्ता नहीं जाता जब मुसलमानों के हाथों किसी हिन्दू की हत्या न हुई हो लेकिन इन्द्रेश कुमार और मोहन भागवत जी मुसलमानों में हिन्दुओं का डीएनए ढूँढने में लगे हैं. जिस तेजी से इस्लाम के बारे में सच बोलने पर यति नरसिंहानन्द सरस्वती को जेल में बंद कर दिया जाता है उससे तो यह लगने लगा है कि मोदी जी ने भारत को पाकिस्तान बना दिया है जहाँ ईश निंदा कानून लागू है. गजब तो यह है कि जब तक एक भारतीय वसीम रिजवी रहता है तब तक कुरान पर सवाल उठाने के बावजूद आजाद रहता है मगर जैसे ही वो जीतेंद्र नारायण त्यागी बन जाता है भाजपा सरकार द्वारा जेल में डाल दिया जाता है. मित्रों, हमारे देश में न तो गांधियों की कमी रही है और न ही उन गाँधी के अनुयायियों की जिनके तुष्टिकरण के कारण भारत के तीन टुकड़े हुए. फिर मोदी क्यों गाँधी बनना चाहते हैं? हमें न तो और पाकिस्तान चाहिए और न ही गाँधी. हमें तो सावरकर चाहिए जो एक ही हुए हैं. हमें नहीं चाहिए भगवान राम की शोभायात्रा पर पत्थरों की बरसात बल्कि हमें तो पत्थरबाजों के घरों पर बुलडोजर चलानेवाला नेता चाहिए. अब तो गुजरात में भी जेहादी फिर से सर उठाने लगे हैं और कई मुस्लिमबहुल ईलाकों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं. मोदी ने २००२ के गोधरा दंगों के बाद गुजरात में बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ताओं पर जिस तरह की कठोर कार्रवाई की विशेषज्ञों का मानना है कि यह उसी का परिणाम है कि आज गुजरात में हिन्दुओं को क्रूरकर्मा मुसलमानों से बचानेवाला कोई बचा ही नहीं. बंगाल और केरल में हिन्दुओं को मरता देख कर भी जिस तरह मोदी ने अपनी दोनों आँखों और कानों को मूँद रखा है उससे भी यही लगता है कि मोदी सावरकर कम गाँधी ज्यादा हैं और थोडा-थोडा जिन्ना भी.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

तेजस्वी सो रहे हैं कृपया हॉर्न न बजाएँ

मित्रों, कहते हैं कि लोकतंत्र में जनता मालिक होती है लेकिन बिहार में लोकतंत्र और जनता की दशा को देखकर तो ऐसा लगता है कि लोकतंत्र में जनता भिखारी होती है. फिर एक समय बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू जी ने मंच से यह कहा था कि अब राजा रानी के पेट से पैदा नहीं होगा लेकिन वास्तविकता यह है कि लालू जी ने खुद अपने बाद पहले अपनी पत्नी को बिहार की महारानी बना दिया और अब अपने बेटे को महाराजा बनाने की फ़िराक में हैं. मित्रों, यह हमारे विधानसभा क्षेत्र राघोपुर का दुर्भाग्य है कि लालूजी के वही छोटे बेटे जिनको लालू जी बिहार का महाराजा बनाना चाहते हैं हमारे विधायक हैं लेकिन सिर्फ कहने को विधायक हैं. राघोपुर प्रखंड में सरकारी योजनाओं और सुविधाओं की स्थिति पूरे बिहार में सबसे ज्यादा ख़राब है लेकिन तेजस्वी यादव को इससे कोई मतलब नहीं. वो तो न जाने किस दुनिया में खोये हुए हैं. राघोपुर प्रखंड में शिक्षा की स्थिति इतनी ख़राब है कि रोजाना स्कूलों का ताला खुल जाए तो गनीमत समझिए. शिक्षक आते ही नहीं फिर ताला खोलेगा कौन? शिक्षा निजी शिक्षकों और ट्यूटरों के भरोसे किसी तरह अंतिम सांसें ले रही है. एक समय बिहार के तदनुसार राघोपुर प्रखंड के सरकारी विद्यालय पूरे भारत के लिए उदाहरण थे. आज वे बदहाली के प्रतीक बन गए हैं. मित्रों, इसी तरह से स्वास्थ्य-सुविधाओं के क्षेत्र में भी राघोपुर प्रखंड की हालत काफी पतली है. यहाँ के अस्पतालों को अस्पताल कहना अस्पताल की परिभाषा को गाली देने के समान है. न बेड, न उपकरण और न ही डॉक्टरों का आगमन. जैसे विद्यालय कागज पर चल रहे वैसे ही अस्पताल भी कागज पर न सिर्फ चल रहे हैं बल्कि दौड़ रहे हैं. कई बार अधिकारी भटकते हुए अस्पताल में विशेष रूप से मोहनपुर रेफरल अस्पताल में पहुँच भी जाते हैं. बदहाली पर नाराजगी जताते हैं. सुधार लाने के निर्देश देते हैं और सो जाते हैं. एकाध बार तो तेजस्वी भी ऐसा कर चुके हैं. मित्रों, इसी तरह राघोपुर प्रखंड में स्थापित ४० सरकारी नलकूपों में से एक भी चालू नहीं है लेकिन इससे तेजस्वी यादव का क्या सरोकार? उनको थोड़े ही राघोपुर में गेंहूँ-धनिया की खेती करनी है. वो तो वोटों की खेती करते हैं और इस नए तरह के राजतन्त्र में बिहार की सबसे बड़ी राजनैतिक रियासत के राजकुमार हैं. मित्रों, अब हम आते हैं राघोपुर प्रखंड के किसानों की सबसे बड़ी समस्या पर. हुआ यह कि जब आजादी के बाद बिहार में भूमि-सर्वेक्षण चल रहा था तब राघोपुर के बहुत सारे किसानों की जमीन गंगा नदी में थी. सरकार ने उसे गंगशिकस्त घोषित कर अपने नाम कर लिया और किसानों से कहा कि जब जमीन पानी से बाहर निकलेगी तब किसानों को लौटा देंगे. मगर ऐसा हुआ नहीं. वो जमीन आज भी बिहार सरकार के पास है. अब कुछ समय के बाद जब राघोपुर प्रखंड में भूमि-सर्वेक्षण होगा तब अगर ये जमीन किसानों को लौटाई नहीं गई तो राघोपुर के किसानों की लाखों एकड़ जमीन छिन जाएगी, लुट जाएगी. लेकिन इससे भी कदाचित तेजस्वी जी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि न तो वे राघोपुर के निवासी हैं और न ही राघोपुर में उनकी ऐसी कोई जमीन है जो गंगशिकस्त की श्रेणी में आती हो. मित्रों, कुल मिलाकर राघोपुर की जनता के दोनों ही हाथ खाली हैं. सांसद पशुपति कुमार पारस भी गायब हैं और विधायक तेजस्वी तो गायब हैं ही. यह हमारा दुर्भाग्य है कि दोनों आधुनिक राजपरिवार से हैं. दोनों मानते हैं कि जनता जाति-पांति और विरासत के नाम पर उनको ही जिताएगी. जहाँ तक हम समझते हैं कि लोकतंत्र में नेता नेतृत्वकर्ता होता है इसलिए उसे सबसे आगे होना चाहिए. जनता जो मन ही मन सोंचे नेता को उसकी गर्जना करनी चाहिए, जहाँ जनता के कदम जाकर रूकें नेता को वहां से शुरुआत करनी चाहिए. नेता को जनता के आगे चलना चाहिए लेकिन यहाँ तो नेता सोया हुआ है. दुर्भाग्यवश हमारे विधायक बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. सवाल उठता है कि जो व्यक्ति अपनी विधानसभा तक का यानि कुछेक वर्ग किलोमीटर का ख्याल नहीं रख सकता हो वो भला कैसे पूरे बिहार का ख्याल रखेगा? फिलहाल तो हम आपसे यही कहेंगे कि जब भी आप तेजस्वीजी के आवास के पास से गुजरें तो कृपया हॉर्न न बजाएं क्योंकि तेजस्वी सो रहे हैं.

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

नाथ अनाथन की सुध लीजै

मित्रों, मैं कई वर्षों से बराबर बिहार के अख़बारों में यह खबर पढता चला आ रहा था कि पोल पर करंट लगने से फलाने गाँव के फलाने बिजली मिस्त्री की मौत हो गयी. मेरी समझ में नहीं आता था कि ऐसा हो कैसे जाता है. लेकिन जब परसों मेरी ससुराल वैशाली जिले के देसरी थाने के भिखनपुरा में ऐसी ही घटना घट गई तब समझ में आया कि वास्तव में हो क्या रहा है और पोल पर करंट लगने से मरनेवाले हैं कौन. मित्रों, हुआ यह कि परसों सुबह से ही पूरे भिखनपुरा पंचायत की बिजली गई हुई थी. सुबह से ही लोग बिजली आपूर्ति कंपनी के दफ्तर में फोन पर फोन किए जा रहे थे. दोपहर में जेई और सरकारी लाइन मैन चकमगोला के मुकेश सिंह के घर पहुंचे. मुकेश निजी तौर पर बिजली मिस्त्री का काम करता था. बिहार में बेरोजगारी इतनी ज्यादा है कि प्रत्येक सरकारी बिजली मिस्त्री कई सारे निजी बिजली मिस्त्रियों को अपने साथ रखते हैं और ज्यादातर मामलों में ये निजी मिस्त्री ही पोल पर चढ़कर यांत्रिक त्रुटि को दूर कर बिजली आपूर्ति की पुनर्बहाली को सुनिश्चित करते हैं. मित्रों, पेट जो न कराए. मुकेश उन दोनों के साथ दौड़ा-दौड़ा भिखनपुरा आया. पोल पर चढ़ने से पहले उसने जेई और लाइन मैन से पूछा कि शट डाउन तो ले लिया है न? उनदोनों के हामी भरने के बाद वो जैसे ही पोल पर चढ़ा उसे करंट लग गया क्योंकि शट डाउन नहीं लिया गया था. बेचारा ऊंचाई से सर के बल पक्की सड़क पर आ गिरा. उसके गिरते ही जेई और लाइन मैन भाग गए. गांववालों ने उसे आनन-फानन में अस्पताल पहुँचाया लेकिन तब तक मुकेश दम तोड़ चुका था. मित्रों, बिजली कम्पनी का सितम यहीं तक नहीं रूका. कंपनी ने उलटे मुकेश पर पोल पर चढ़कर तार चुराने का मुकदमा थाने में दर्ज करवा दिया. कल जब मुकेश के गाँववालों ने सड़क जाम कर दिया तब प्रशासन ने लाइन मैन कृष्ण कुमार सिंह और जेई के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया और मृतक मिस्त्री के परिजनों को ४ लाख रूपया मुआवजा देने का आश्वासन दिया. मित्रों, सवाल उठता है कि क्या ४ लाख में मुकेश के परिवार की जिंदगी पार लग जाएगी? चार लाख का मुआवजा तो बिहार में उन आम आदमी के परिजनों को भी दिया जाता है जो करंट लगते से मरते हैं. फिर क्या अंतर है पोल पर चढ़नेवाले बिजली मिस्त्रियों और आम आदमी में? सवाल उठता है कि जिन निजी मिस्त्रियों से बिजली कंपनी काम ले रही है उनका रजिस्ट्रेशन कर उनका बीमा क्यों नहीं करवाती? आखिर कब तक मुकेश जैसे पेट के मारे निजी मिस्त्री बेमौत मरते रहेंगे और कब तक उनको आम आदमी की तरह ४ लाख का मुआवजा दिया जाता रहेगा? मेरा मानना है कि जो समाज के लिए, समाज के हित के लिए, समाज के सुख के लिए अपनी जान पर खेलता है और जान कुर्बान करता है वो शहीद है फिर चाहे वो सीमा पर खड़ा सैनिक हो या पोल पर चढ़नेवाला बिजली मिस्त्री. आखिर कब तक इन गुमनाम शहीदों के साथ, उनके मानवाधिकारों के साथ अन्याय होता रहेगा? क्या बिहार और भारत सरकार इन अनाथों की सुध लेगी या फिर जैसे चलता आ रहा है चलता रहेगा?