शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

विराट कोहली और नरेंद्र मोदी

मित्रों, इन दिनों भारतीय क्रिकेट टीम द. अफ्रीका के दौरे पर है. तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला में भारत पहले दोनों मैच हारकर बाहर हो चुका है लेकिन भारतीय कप्तान को इसका जरा भी मलाल नहीं है और वे अपने आलोचकों के ऊपर ही भड़क रहे हैं.
मित्रों, ठीक यही हालत इस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है. नाच न जाने आँगन टेढ़ा और अगर कोई नाचने पर टिपण्णी कर दे तो बंटाधार. पहले टेस्ट मैच में भुवनेश्वर कुमार ने शानदार प्रदर्शन किया तो कोहली ने उन्हें अगले मैच में बाहर ही बैठा दिया. न तो मोदी और न ही कोहली को ही पता है कि उनको करना क्या है और उनको चाहिए क्या. अपनी जिद में दोनों ने अच्छे खिलाडियों और नेताओं को बाहर बिठा रखा है मगर चाहते हैं कि टीम हर मैच को जीते. टीम मोदी में शामिल जो लोग ख़ामोशी से अपना काम रहे हैं वे हाशिए पर हैं और जो मोदी की ठकुरसुहाती छोड़ और कुछ नहीं कर रहे या नहीं कर सकते वे मजे में हैं. कोहली तो रेफरी तक से होटल के कमरे में जाकर झगड़ने लगते हैं. वैसे यह काम अभी टीम मोदी नहीं बल्कि विपक्ष कर रहा है जो बार-बार चुनाव आयोग और ईवीएम पर आरोप लगाता रहता है.
मित्रों, भारतीय क्रिकेट टीम और मोदी टीम दोनों में ही आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सिर्फ इस कारण से टीम में हैं क्योंकि वे मोदी और कोहली को पसंद हैं भले ही उनका प्रदर्शन कितना भी ख़राब क्यों न हो. कोहली और मोदी दोनों ही कदाचित चाहते हैं कि सिर्फ उनको ही वाहवाही मिले और कोई उनसे अच्छा खेलने या प्रदर्शन करने की हिमाकत न करे जबकि क्रिकेट मैच खेलना हो या देश को चलाना दोनों टीम वर्क होता है और इसके लिए अच्छी टीम की आवश्यकता होती है.
मित्रों, इस समय शेयर बाजार पूरे उफान पर है लेकिन मेरा हमेशा से मानना रहा है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आईना नहीं हो सकता। ऐसा हमने तब भी कहा था जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. एक बार फिर से कर्णाटक में भाजपा दूसरे दलों से नेताओं का आयात करने में जुट गई है जैसा कि वो हर राज्य के चुनाव से पहले करती है. मोदी जी और भाजपा को समझना पड़ेगा कि येन-केन-प्रकारेण सिर्फ चुनाव-दर-चुनाव जीत लेने से देश न तो बदल जाएगा और न ही आगे हो जाएगा. यह घनघोर निराशाजनक है कि मोदी भी वोट बैंक की गन्दी राजनीति के कीचड़ में कूद गए हैं. काम बहुत कम हो रहा है और दिखावा बहुत ज्यादा. शोर मचाकर और आक्रामकता दिखाकर मोदी कोहली की तरह यह साबित करने में लगे हैं कि सब कुछ शानदार है जबकि परिणाम बता रहे हैं कि हालात चिंताजनक है.
मित्रों, वैसे प्रदर्शन के मामले में दोनों टीमों की हालत बिलकुल उलट है. जहाँ मोदी की विदेश नीति शानदार है वहीँ टीम कोहली का विदेशों में प्रदर्शन शून्य रहा है वहीँ टीम कोहली का घरेलू मैदानों पर प्रदर्शन अच्छा है लेकिन टीम मोदी का आतंरिक क्षेत्रों में प्रदर्शन चिंताजनक है. गंगा माँ आज भी मोदी जी को बुला रही हैं किन्तु भाजपा स्वयं गंगा बन गई है डुबकी लगाई नहीं कि भ्रष्टाचारी से परम पवित्र हो गए देश तो बदला नहीं भाजपा जरूर बदल गयी. मंदी और बेरोजगारी पहले से भी ज्यादा है, सरकारी कर्मियों तक को कई-कई महीनों तक वेतन नहीं मिल रहा, बैंक ब्याज देने के बदले खाता खाली कर रहे हैं, चारों तरफ भुखमरी है लेकिन मोदी सरकार कह रही है आप खुश होईए क्योंकि आप मोदी राज में रह रहे हैं. जैसे कोहली कहते हैं कि आप खुश होईए क्योंकि आपके देश की क्रिकेट टीम का कप्तान मेरे जैसा महान खिलाडी है भले ही टीम शर्मनाक तरीके से मैच हारती रहे. 

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

बहरीन में राहुल गाँधी का बेहया भाषण

मित्रों, हमारे बुजुर्गों ने फ़रमाया है कि किसी भी संगठन का चेहरा बदल जाने से कोई जरुरी नहीं है कि उसका चाल और चरित्र भी बदल जाए. उदाहरण के लिए अलकायदा या लश्कर का कमांडर कोई भी रहे करेगा तो वही जो उनका संगठन करता आया है. कुत्ता जब भी पेशाब करेगा तो खम्भे पर ही चाहे वो विलायती ही क्यों न हो. ठीक यही बात कांग्रेस के ऊपर भी लागू होती है. जब माँ अध्यक्ष थी तब पार्टी देशविरोधी गतिविधियों में लीन थी और आज जब बेटा अध्यक्ष बन गया है तब भी पार्टी वही कर रही है.
मित्रों, क्या आपको याद है कि इससे पहले किसी विपक्षी नेता ने विदेश जाकर देश के खिलाफ कोई बयान दिया है या देश के खिलाफ कोई अभियान छेड़ा है? दरअसल कांग्रेस मोदी विरोध और भारत विरोध का अंतर पूरी तरह से भूल गई है. नहीं तो क्या कारण था कि राहुल गाँधी विदेशी धरती पर जाकर यह कहते कि इस समय भारत में संकट की स्थिति है और प्रवासी भारतीय देश की मदद कर सकते हैं. पता नहीं राहुल जी को बहरीन से कैसी मदद चाहिए. कहीं उनको वैसी मदद तो नहीं चाहिए जैसी मदद मांगने मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान गए थे?
मित्रों, राहुल जी का कहना है कि वे ऐसे भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते, जहां देश का हर नागरिक खुद को देश का हिस्सा न समझे. राहुल जी कल्पना तो हम भी नहीं करना चाहते लेकिन यही सच है कि एक खास विचारधारा और एक खास मजहब में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो खुद को भारत का नागरिक नहीं समझते. उनको कल तक राष्ट्र गीत से परेशानी थी, आज राष्ट्र गान से है और कल भारत राष्ट्र से होगी. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके लिए राष्ट्रवादी दोषी हैं? अगर कोई वानी सरकारी सुविधाओं से लाभ उठाकर अलीगढ मुस्लिम विवि में पीएचडी की पढाई करने के बावजूद हिजबुल में शामिल हो जाता है या कोई उमर खालिद वर्षों सरकारी सब्सिडी पर जेएनयू में गुलछर्रे उड़ाने के बाद भी भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार का नारा लगाता है तो इसके लिए कौन दोषी है? राहुल जी क्या किसी के ह्रदय में जबरदस्ती देशप्रेम पैदा किया जा सकता है? क्या आपके ह्रदय में ही पैदा किया जा सकता है? कदापि नहीं. इसी तरह से किसी के ह्रदय में जबरदस्ती देश के प्रति नफरत भी नहीं भरी जा सकती बल्कि प्रेम हो या नफरत ये तो उधो मन माने की बात होती है. अब कोई अगर अपने को देश का हिस्सा नहीं समझता है तो हमारी पहली कोशिश होती है समझाने की, सुविधा देकर मुख्य धारा में लाने की और अगर फिर भी वो नहीं मानता तो न माने अपनी बला से. और अगर फिर वो एक कदम आगे बढ़कर किसी देशविरोधी गतिविधि में संलिप्त पाया जाता है तो फिर हम देश की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकते हैं. 
मित्रों, राहुल जी फरमाते हैं कि भारत में रोजगार सृजन पिछले आठ सालों के निम्नतम स्तर पर है. सही है लेकिन इस साल ऐसी स्थिति नहीं रहेगी और रोजगार के इतने अवसर पैदा होंगे जितने पहले कभी किसी खास वर्ष में पैदा नहीं हुए. दरअसल राहुल जी अधूरा सच बोल रहे हैं. उनको सिर्फ खाली गिलास दिख रहा है या फिर वे जानबूझकर सिर्फ खाली गिलास को ही देखना और दिखाना चाहते हैं.
मित्रों, सच्चाई तो यह है कि आज तक भारत में जितना भी विदेशी पूँजी निवेश हुआ है उसका आधा सिर्फ पिछले ३ सालों में हुआ है. जाहिर है कि पैसा आ रहा है तो रोजगार भी आएगा ही. यह जानते हुए कि फैक्ट्रियों को स्थापित करने में समय लगता है राहुल गाँधी धूर्तता का प्रदर्शन करते हुए सरकार को बिलकुल भी समय नहीं देना चाहते.
मित्रों, राहुल जी को यह तो दिख रहा है कि देश में बैंक क्रेडिट ग्रोथ पिछले 63 सालों के निम्नतम स्तर पर है लेकिन यह नहीं दिख रहा कि इस समय नई रेल लाईनों के निर्माण, रेल लाईनों के दोहरीकरण, राष्ट्रीय उच्च पथ के निर्माण, शिपिंग क्षमता वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की गति पिछली सरकार के मुकाबले दोगुनी है. वे इतनी हारों के बाद भी जिद पर अड़े हैं कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है. झटका तो लगा जरुर है लेकिन कालेधन की अर्थव्यस्था को लगा है न कि देश की अर्थव्यवस्था को.
मित्रों, राहुल जी फरमाते हैं कि सड़कों पर लोग गुस्से में दिखाई दे रहे हैं. विभाजनकारी ताकतें तय कर रही हैं कि लोगों को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं. चारों ओर नफरत फैलाई जा रही है. कैसी नफरत भाई? जातीय विभाजन तो कांग्रेस ही कर रही है. गोहत्या पर तो रोक लगाने की बात स्वयं गाँधी जी करते थे और यही कारण था कि संविधान के अनुच्छेद ४८ में इसकी व्यवस्था भी की गई है. तो क्या राहुल अब हिन्दू नहीं रहे? गाँधी तो वो कभी नहीं थे. उनका जनेऊ कहाँ गया? कहीं उन्होंने उसका पाजामे का नाडा तो नहीं बना लिया? आखिर कोई भी सच्चा हिन्दू और उसमें भी ब्राह्मण गोहत्या का समर्थन कैसे कर सकता है?
मित्रों, राहुल जी का कहना है कि दलितों को पीटा जा रहा है, पत्रकारों को धमकाया जा रहा है और जजों की रहस्यमयी हालतों में मौत हो रही है. इक्का-दुक्का घटनाओं को चलन कैसे माना जा सकता है? लड़ाई-झगडे में कभी एक पक्ष भारी पड़ता है तो कभी दूसरा. कौन-सा जज मर गया पता नहीं. क्या पहले जज नहीं मरते थे,अमर होते थे? पत्रकार अगर कानून तोड़ेंगे तो फिर कानून उनको तोड़ेगा क्योंकि वे कानून से ऊपर तो होते नहीं हैं.
मित्रों, जब भी कोई किसी को धमकाता है कानून अपना काम करता है. कई बार तो प्रधानमंत्री ने बडबोले नेताओं को चुप रहने की हिदायत दी है. क्या राहुल बताएँगे कि जब इमरान मसूद ने पीएम को बोटी-बोटी करके काटने की धमकी दी थी तब उन्होंने उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की और उसको कांग्रेस का टिकट क्यों दे दिया?
मित्रों, क्या इमरान मसूद जैसे बयानों से देश में फिर से भाईचारा आएगा और अहिंसा फैलेगी? अगर राहुल ऐसा समझते हैं तो हमें उनकी समझ पर तरस आता है. क्या गुजरात में पटेल हिंसा और महाराष्ट्र में दलित हिंसा को बढ़ावा देकर राहुल जी ने देश में सहिष्णुता को बढ़ावा दिया है?
मित्रों, मेरा मानना है कि राहुल जी को अगर अपने देश की सरकार से कोई शिकायत थी तो उनको संसद में सरकार को घेरना चाहिए था न कि विदेश में जाकर अपने ही देश के खिलाफ माहौल बनाना चाहिए था. लेकिन उनकी पार्टी संसद को तो चलने ही नहीं देती फिर चर्चा कैसे होगी. घर के झगडे को घर में ही निपटाया जाता है दूसरा देश इसमें क्या कर लेगा सिवाय दो के झगडे से लाभ उठाने के? बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि कांग्रेस बेवफा तो पहले से ही थी लेकिन अब लगता है कि वो बेहया भी हो गई है और अपने-पराए का अंतर भूल गई है.

शनिवार, 6 जनवरी 2018

कांग्रेस की भारतविरोधी गन्दी राजनीति

मित्रों, हम पहले भी कह चुके हैं कि कांग्रेस भारत के लिए खतरनाक थी और अब पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो गयी है. हम पहले भी कह चुके हैं कि कांग्रेस जो दिखाती है सिर्फ वही उसका चेहरा नहीं है बल्कि एक के भीतर एक उसके कई सारे घूंघट हैं. हमेशा उसकी निगाहें जाहिर तौर पर कहीं और होती हैं और निशाना कहीं और होता है.
मित्रों, भारत में कई सौ राजनैतिक दल हैं. इन दलों को हम दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं. पहली श्रेणी में वे हैं जिनकी प्राथमिकता में देश भले ही पहले स्थान पर नहीं हो लेकिन है जरूर और दूसरी श्रेणी में वैसे दल आते हैं जिनकी प्राथमिकता में सिर्फ सत्ता और देश को लूटना है देश कहीं है ही नहीं. दुर्भाग्यवश इस समय पहली श्रेणी में भाजपा आती है तो वहीँ दूसरी श्रेणी में वो कांग्रेस आती है जिसका इतिहास १३२ साल पुराना है.
मित्रों, आज की कांग्रेस न तो गाँधीजी वाली कांग्रेस है और न ही तिलक या पटेल वाली बल्कि आज की कांग्रेस राहुल-सोनिया वाली कांग्रेस है. यह हमारा दुर्भाग्य है कि इंदिरा के समय से ही कांग्रेस पारिवारिक संपत्ति बनकर रह गई है. पिछले २० सालों का इतिहास गवाह है कि जब भी कांग्रेस सत्ता में होती है तब तो देश को दोनों हाथों से लूटती है और जब विपक्ष में होती है तो वापस फिर से सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार होती है फिर चाहे उससे देश को कितना भी बड़ा नुकसान ही क्यों न हो जाए. १९९९ में कांग्रेस ने कथित ताबूत घोटाले को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव के बाद मुद्दे को ही भूल गयी क्योंकि सारे आरोप फर्जी और मनगढ़ंत थे.
मित्रों, २०१९ के लिए कांग्रेस ने जो रणनीति बनाई है वो देश को १९९९ से भी ज्यादा महँगी पड़नेवाली है. कांग्रेस ने हिन्दुओं को जहाँ तक हो सके आपस में लड़ाने-भिड़ाने की कुत्सित योजना बनाई है और उसके इस काम में सारे छद्मधर्मनिरपेक्ष और साम्यवादी शक्तियां उसकी मदद कर रही हैं. कांग्रेस ने पटेलों के नाम पर पहले गुजरात को जलाया और अब महाराष्ट्र को जला रही है आगे पता नहीं कौन-कौन सा जिला जलेगा क्योंकि कांग्रेस को पता है कि हिन्दू अगर संगठित रहे तो भारत मजबूत होगा और महाशक्ति बन जाएगा. कांग्रेस को पता है कि मुसलमान हर स्थिति में झक मारकर उसको ही वोट देंगे और चीन-पाकिस्तान के साथ-साथ कांग्रेस को भी पता है कि मोदी की ताक़त का राज मशरूम नहीं है बल्कि हिन्दुओं की चट्टानी एकता है.
मित्रों, कांग्रेस को तो यह भी पता था कि भीमा कोरेगांव में भारत की हार और अंग्रेजों की जीत का जश्न मनाने का क्या असर होगा. आखिर इस महोत्सव को मनाने की जरुरत ही क्या थी? इतिहास गवाह है कि सिखों के खिलाफ अंग्रेजों ने पूर्वी भारत के सैनिकों को लडवाया और बाद में १८५७ के विद्रोह के समय पूर्वी भारत के सैनिकों को दबाने के लिए सिखों का प्रयोग किया. अंग्रेजों की तो नीति ही यही थी कि फूट डालो और शासन करो तो क्या सिखों और पूर्वी भारतियों को एक-दूसरे के खिलाफ जीत का जश्न मनाना चाहिए?
मित्रों, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद शुरू से ही कांग्रेस को लाभ पहुँचाने की दिशा में काम करते रहे हैं, भले ही ये कांग्रेस के कागजी सदस्य नहीं हैं. इतने सालों में तो कोई बड़ा कांग्रेस नेता इस मौके पर भीमा कोरेगांव नहीं गया फिर इस साल इन दोनों को क्या आवश्यकता थी दलितों के कथित विजयोत्सव में शामिल होकर तनाव को बढाने की?
मित्रों, कांग्रेस और उसके समान विचारधारा वाली पार्टियों के एजेंडे को समझिए. उनके निशाने पर न तो राजपूत हैं, न ही जाट, न ही गुज्जर या ब्राह्मण या यादव या पटेल या सिख या जैन या बनिया बल्कि उनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ भारत है. कांग्रेस पहले भी सत्ता के लिए भारत के टुकड़े कर चुकी है और आज भी भारतीय समाज को विभाजित कर रही है. कही भी पहले विभाजन की रेखा ह्रदय और मन में खींची जाती है बाद में जमीन पर. इसलिए भारत के सारे देशप्रेमियों को सचेत रहने की जरुरत है. इतना ही नहीं भारत के सबसे बड़े शत्रु चीन के प्रति कांग्रेस की प्रीति भी संदेह पैदा कर रही है. वैसे भी जैसे अभी पाकिस्तान के नेता विदेश भाग रहे हैं ये भारतीय अंग्रेज भी अपने पूरे कुनबे और चमचों के साथ जब देश बर्बाद हो चुका होगा क्वात्रोची की तरह इटली या माल्या की तरह लन्दन निकल लेंगे लेकिन हमें और हमारे वंशजों को तो इसी मिट्टी की खाक में मिलना है और यहीं पर रहना है इसलिए सचेत रहिए कि कहीं कांग्रेस आपके प्रदेश में भी जातीय विभाजन का गन्दा खेल तो नहीं खेल रही. जनेऊ-मंदिर धोखा है, दरअसल रावण साधू के वेश में घात लगाए घूम रहा है.