रविवार, 26 मई 2019

जीत की बधाई मगर .........


मित्रों, मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष की समस्त जनता को लोकसभा चुनाव-परिणामों के लिए बधाई देता हूँ. साथ भारत के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी को भी बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ. जिन लोगों ने मोदी जी की हार के बारे में कल्पना कर रखी थी उन लोगों के लिए यह चुनाव-परिणाम अवश्य आश्चर्यजनक है परन्तु मेरे लिए तो अवश्यम्भावी है क्योंकि मुझे कभी इस बात को लेकर कोई संदेह रहा ही नहीं कि श्री नरेन्द्र मोदी दोबारा पहले से भी प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतने जा रहे हैं.
मित्रों, ऐसा मेरा भी मानना रहा है कि जो जीता वही सिकंदर तथापि अपने भारतवर्ष में ऐसे-ऐसे नेता लगातार चुनाव जीतते रहे हैं जिससे यह साबित होता है कि कोई सिर्फ चुनाव जीत जाने से ही महान नहीं हो जाता बल्कि इसके लिए उसको महान कार्य भी करने होते हैं. उदाहरण के लिए बिहार को पिछले गियर में चला देनेवाले लालू प्रसाद यादव और उनकी अनपढ़ पत्नी ने मिलकर बिहार पर १५ साल तक एकछत्र राज किया. इसी तरह बंगाल को देश के सबसे अमीर राज्य से सबसे कंगाल राज्य में बदल देनेवाले ज्योति बसु ने भी पश्चिम बंगाल पर लगातार ३० सालों तक शासन किया. इसी तरह दुनिया के कई देशों में कई-कई दशकों तक तानाशाहों का शासन रहा है. कहने का मतलब यह है कि मोदी जी को अपनी जीत पर इतराना नहीं चाहिए बल्कि उन सारे कार्यों को पूरा करना होगा जो पहले कार्यकाल में अधूरे रह गए थे.
मित्रों, मैं एक बार भारत के परम प्रतापी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को याद दिलाना चाहूँगा कि उनको कौन-कौन से कामों को प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखना है. मैं जहाँ तक समझता हूँ कि प्रधानमंत्री जी को अपनी प्राथमिकता सूची में जनसँख्या-नियन्त्रण को सबसे ऊपर रखना चाहिए. मैं मानता हूँ कि यह अकेले समस्त समस्याओं की जननी है. प्रत्येक साल हमारी जनसँख्या २ करोड़ बढ़ जाती है. दुनिया की कोई भी सरकार हर साल दो करोड़ अतिरिक्त लोगों के लिए सुविधाएँ और रोजगार उपलब्ध नहीं करवा सकती भले ही वो कितनी भी अमीर क्यों न हो फिर भारत तो एक गरीब देश है. इसके साथ-साथ पिछली जनगणनाओं में हम देख रहे हैं कि हिन्दुओं की देश की जनसँख्या में भागीदारी लगातार घट रही है और मुसलमानों की लगातार बढ़ रही है. हम जानते और मानते हैं कि जब तक देश में हिन्दू ज्यादा हैं तभी तक देश और इसकी संस्कृति सुरक्षित है नहीं तो फिर तलवार के बल पर देश का इस्लामीकरण कर दिया जाएगा. दुनिया का इतिहास भी इस बात की तस्दीक करता है. इसलिए मोदी सरकार को कड़े कानून बनाकर जनसँख्या-वृद्धि पर लगाम लगानी चाहिए. और मैं समझता हूँ कि ऐसा अन्य कोई नेता या पार्टी नहीं कर सकती थी बल्कि ऐसा सिर्फ और सिर्फ मोदी जी ही कर सकते थे और कर सकते हैं क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है.
मित्रों, इसके बाद मोदी जी को अनुच्छेद ३७० की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए. न जाने पंडित नेहरु ने क्या खाकर या पीकर इस अनुच्छेद को संविधान का हिस्सा बनाया था. क्या विडंबना है कि रोहिंग्या या पाकिस्तानी तो जम्मू-कश्मीर में मजे में बस सकते हैं लेकिन एक गैर कश्मीरी भारतीय वहां नहीं बस सकता क्योंकि अनुच्छेद ३७० ऐसा करने नहीं देता. जबकि जम्मू-कश्मीर के जमीनी हालात इस बात की मांग करते हैं कि जम्मू-कश्मीर में गैर मुसलमानों को बसाकर वहां की जनसांख्यिकी को बदला जाए. जिस दिन वहां हिन्दू मतदाता ज्यादा हो जाएँगे आतंकवाद खुद-ब-खुद रूक जाएगा. वैसे इस बार के चुनाव प्रचार में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अनुच्छेद ३७० को समाप्त करने का वादा भी काफी जोर-शोर के साथ किया है और जनता ने भी उनको ऑफर किया था कि ३७० हटाओ ३७० सीटें पाओ.
मित्रों, इसके साथ ही मोदी जी को रोजगार उत्पन्न करने और व्यवसाय के लिए आसान ऋण देने पर भी ध्यान देना चाहिए. मैं नहीं जानता कि मुद्रा-ऋण के आंकडे कहाँ तक सही हैं लेकिन मैंने खुद अनुभव किया है कि हाजीपुर में यह योजना तेल के माथा तेल की नीति का अनुशरण करते हुए चलाई जा रही है. कहने का तात्पर्य यह है कि नए लोगों को बिलकुल भी ऋण नहीं दिया जा रहा बल्कि उन लोगों को मुद्रा-ऋण दिया जा रहा है जिनका पहले से ही रोजगार है. मोदी सरकार को इस स्थिति को बदलना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उन लोगों को इसका लाभ मिले जिनके लिए वास्तव में यह योजना लाई गई थी.
मित्रों, मोदी सरकार को जलवायु-परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निबटने की विस्तृत योजना बनानी होगी. पिछले सालों में हमने देखा है कि भारत का पूर्वी हिस्सा जो अतिवृष्टि के लिए जाना जाता था जल संकट और सूखे जैसी स्थितियों का सामना कर रहा है जबकि राजस्थान जहाँ दशकों में कभी एकाध बार बरसात होती थी वहां प्रत्येक साल बाढ़ आ रही है. अभी कल-परसों मुझे बिहार के वैशाली जिले के जन्दाहा प्रखंड में जाने का सुअवसर मिला और मैंने पाया कि स्थिति बड़ी भयावह है. सारे हैण्डपम्प सूख चुके हैं और लोग एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहे हैं. सरकार चाहे तो चेक डैम और नए तालाबों का निर्माण करवाकर और पुराने कुओं और तालाबों का जीर्णोद्धार कर इस स्थिति को बदल सकती है. अगर अविलम्ब ऐसा नहीं किया गया तो देश में बहुत जल्द खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जाएगा क्योंकि जब पीने को ही पानी नहीं होगा तो खेती के लिए कहाँ से आएगा.
मित्रों, इसके अलावा समान नागरिक संहिता को लागू करना भी समय की मांग है. एक देश में दो समुदायों के लिए दो कानून बेहद मूर्खतापूर्ण तो है ही इससे भविष्य में देश के टुकड़े-टुकड़े होने का मार्ग भी प्रशस्त होता है. जब तक समाज के एक वर्ग को बहुविवाह की अनुमति होगी तब तक जनसँख्या-नियंत्रण के सारे उपाय विफल होंगे इसमें कोई शक नहीं. इसके साथ ही देश में लगातार हिन्दुओं की जनसँख्या-प्रतिशत में कमी होने के पीछे एक कारण समान नागरिक संहिता का नहीं होना भी है.
मित्रों, राम मंदिर हिन्दुओं के लिए सिर्फ एक स्वप्न नहीं है बल्कि स्वाभिमान का प्रतीक भी है. कोई और देश होता तो कब का राम मंदिर बन चुका होता लेकिन अपने देश की तो बात ही निराली है. यहाँ वर्षों तक हिन्दुओं को झूठी धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर बेवकूफ बनाया गया और एक प्रधानमंत्री ने तो यहाँ तक कह दिया कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार देश के अल्पसंख्यकों का है. बाबरी मस्जिद हिन्दुओं की हार का प्रतीक थी और उसे आज नहीं तो कल टूटना ही था लेकिन आज उससे भी ज्यादा जरूरी है राम मंदिर का बनना. राम भारत और भारतवासियों के रोम-रोम में बसते हैं. राम अत्याचारी नहीं हैं बल्कि अत्याचार के खिलाफ लड़ते हैं, राम सबके सुख-समृद्धि और सबको न्याय के प्रतीक हैं फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य.
मित्रों, मैं समझता हूँ कि यह आलेख पर्याप्त रूप से लम्बाई को प्राप्त हो चुका है. अभी तो मोदी सरकार का दोबारा गठन भी नहीं हुआ है और हम भी कहीं जा तो रहे नहीं. इसलिए आगे भी हम मोदी जी को मुफ्त की सलाह देते रहेंगे. वैसे यह मुफ्त की सलाह पूरी तरह से मुफ्त है भी नहीं आखिर मेरा समय और श्रम तो लगता ही है जिसे मैं देशहित को ध्यान में रखते हुए व्यय करता हूँ अपने कई बेहद जरूरी कामों और अपने हितों की कीमत पर.

शुक्रवार, 17 मई 2019

क्या गाँधी भगवान थे और गोडसे दानव?


मित्रों, हम भारतीयों में एक अजीब आदत है. वो यह कि हम भयंकर अतिवादी हैं. हम या तो किसी भी भगवान बना देते हैं या फिर दानव. इतिहास गवाह है कि महात्मा बुद्ध के समय से ही बहुत सारे ऐसे महापुरुष भारत में पैदा हुए जिन्होंने अपने अनुयायियों को सख्ती से ताकीद किया कि मुझे इन्सान ही रहने देना भगवान नहीं बना देना परन्तु उनके मरने के बाद भारतीयों ने उन्हें भगवान बना दिया. आश्चर्य की बात तो यह है कि बुद्ध और कबीर ने आजीवन मूर्ति पूजा का विरोध किया और आज हर जगह उनकी मूर्तियाँ नजर आती हैं. यहाँ तक कि गाँधी और अंबेडकर को भी हमने नहीं छोड़ा.
मित्रों, गाँधी जी की आत्मकथा तो मैंने पढ़ी ही हैसाथ ही गाँधी दर्शन का भी अध्ययन किया है. मैंने जहाँ तक अनुभव किया है गाँधी में भी वो सारी कमजोरियां थीं जो एक इन्सान में होती हैं. गाँधी ने लिखा है कि जब उनके पिता अंतिम सांसें ले रहे थे तब वे अपनी पत्नी के साथ रतिक्रिया में लीन थे. इसी तरह गाँधी जी ने अपने ब्रम्हचर्य के साथ प्रयोग के बारे में लिखकर विस्तार से बताया है कि वे किस तरह ६०-७० साल की उम्र में नंगी लड़कियों के साथ सोते थे. इतना ही नहीं भारत के बंटवारा के लिए भी काफी हद तक गाँधी जी भी जिम्मेदार थे. दरअसल उन्होंने १९१६ में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता करके मुस्लिम लीग को मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था के रूप में न केवल मान्यता दे दी बल्कि इस रूप में उसे स्थापित होने का सुअवसर भी दे दिया.
मित्रों, बाद में भी जिन्ना और नेहरु के प्रति उनके झुकाव का नुकसान भारत को उठाना पड़ा. वास्तव में उम्र ढलने के साथ गाँधी जिद्दी हो गए थे. उनकी इसी जिद के चलते सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने का बावजूद इस्तीफा देना पड़ा था और उन्होंने जिद करके न केवल उस पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपये दिलवाए जो तब तक कश्मीर पर कब्ज़ा कर चुका था बल्कि नेहरु को जबरन प्रधानमंत्री भी बनवा दिया जबकि कांग्रेस कार्यसमिति सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी. क्या विडंबना है कि मो. अली जिन्ना गाँधी को हिन्दुओं का नेता मानते थे मगर गाँधी खुद को सर्वधर्मसमभाव का पुजारी मानते थे. सवाल उठता है कि अगर गाँधी सबके नेता थे तो फिर वे हिन्दू-मुस्लिम दंगों को क्यों नहीं रोक पाए? जब मुस्लिम लीग ने १६ अगस्त १९४६ को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस की घोषणा की तब मुसलमानों ने गाँधी की क्यों नहीं सुनी? मैं समझता हूँ कि मेरे साथ-साथ आपने भी पढ़ा होगा कि आइन्स्टीन ने गाँधी की मृत्यु के बाद क्या कहा था यही कि आनेवाली पीढियां आसानी से यह विश्वास नहीं करेगी कि कोई इस तरह का हाड़-मांस का आदमी भी कभी धरती पर हुआ करता था. माना कि आइन्स्टीन गाँधी के अनन्य प्रशंसक थे लेकिन वे गाँधी को इन्सान ही मानते थे भगवान नहीं.
मित्रों, मैंने गोडसे को भी पढ़ा है. उनकी पुस्तक मैंने गाँधी वध क्यों किया शायद आपलोगों ने भी पढ़ी होगी. उसमें गोडसे कहते हैं कि वे गाँधी के आलोचक नहीं प्रशंसक हैं लेकिन गाँधी के कारण देश को जो क्षति हो रही थी उससे वे परेशान थे. यहाँ तक कि गाँधी पर गोली चलाने के दिन भी उसने पहले गाँधी का चरणस्पर्श किया था और बाद में उनपर गोली चला दी थी. गाँधी की हत्या तो गलत थी लेकिन उसके बदले में महाराष्ट्र में सैंकड़ों चितपावन ब्राम्हणों की जो सामूहिक हत्या कर दी गई वो कैसे सही थी? गलत तो वो भी था. जिस गाँधी की जिंदगी अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए बीती उसी की मौत का बदला हिंसा से लिया गया.
मित्रों, तात्पर्य यह कि न तो गाँधी जी भगवान थे और न ही नाथूराम राक्षस था बल्कि हमने एक को भगवान और दूसरे को राक्षस बना दिया. यहाँ तक कि हमने अपने आँख और कान बंद कर लिए और नाथूराम की आवाज को दबा दिया जबकि नाथूराम न तो पेशेवर हत्यारा था और न ही उसकी गाँधी जी के साथ कोई निजी दुश्मनी थी और न ही गाँधी को मारने में उसका कोई निजी स्वार्थ था. मैं यह नहीं कहता कि गाँधी की हत्या करके उसने कोई महान कार्य किया लेकिन महात्मा गाँधी और इंदिरा गाँधी की मौत का बदला हमने जिस तरह नरसंहार के द्वारा लिया मैं समझता हूँ वो भी सही नहीं था. न जाने हम कब यह समझेंगे कि दुनिया न तो पूरी तरह से ब्लैक है और न ही वाइट बल्कि दुनिया ग्रे है अर्थात वो थोड़ी काली भी है और थोड़ी उजली भी. श्रीलंका में जिस तरह प्रभाकरन के बेटे को बिस्कुट खिलाने के बाद गोली मार दी गई वो भी तो गलत था न, उसका बाप आतंकवादी था इसमें उस अबोध बच्चे का क्या दोष था?

गुरुवार, 16 मई 2019

ध्रुव त्यागी की हत्या पर इतना सन्नाटा क्यों है भाई?


मित्रों, आपको शोले फिल्म का एक दृश्य जरूर याद होगा.उसमें मौलाना के बेटे की डाकू हत्या कर देते हैं और तब मौलाना चुपचाप खड़े गांववालों से पूछते हैं कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
मित्रों, परसों रात में भारत की राजधानी दिल्ली में एक हिन्दू बाप स्कूटी पर अपनी बेटी को लिए घर जा रहा था. तभी कुछ मुसलमानों से उसकी बेटी के साथ छेडछाड की. वो बेचारा उसकी शिकायत लेकर उसके बाप के पास पहुंचा तो उसका बाप अपने बेटे का पक्ष लेकर उसी से लड़ने लगा और अपनी बुढिया माँ को जानवरों को काटने में काम आनेवाला चाकू ले आने को कहा. बुढिया बड़े ही उत्साह में हथियार ले आई और फिर ध्रुव त्यागी को डरे हुए लोगों ने मिलकर मार डाला. इतना ही नहीं बाप को बचाने गए बेटे को भी चाकुओं के वार से छलनी कर उनलोगों ने अच्छे पडोसी होने धर्म बखूबी निभाया.सवाल उठता है कि उस महान मुस्लिम परिवार में किसी ने हत्या का विरोध क्यों नहीं किया बल्कि सभी इस कुकर्म में शामिल क्यों हो गए? क्या इस्लाम यही शिक्षा देता है? क्या इस्लाम में हत्या करना पवित्र और महान कार्य है? क्या ध्रुव त्यागी को इसलिए पूरे परिवार ने रमजान के महीने में घेर कर मार डाला क्योंकि वो उनकी नज़रों में काफ़िर था?
मित्रों, आपको अखलाख तो याद होगा. वही जिसने अपने हिन्दू पडोसी की गाय चुराकर उसे मार डालने का महान कार्य किया था और हिन्दुओं ने चौरकर्म और गोहत्या जैसे महान कार्य में बाधा डाली थी और वो भी उस कालखंड में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार थी. इसी क्रम में मारपीट में उसकी मौत हो गई थी और तब पूरे भारत में अवार्डवापसी का क्रम शुरू हो गया था. लोग कहने लगे थे कि मुसलमान भारत में डरे हुए हैं. आज उन्हीं डरे हुए लोगों ने भारत की राजधानी दिल्ली में हत्या की है तो मानों वही शोले वाला सन्नाटा पसर गया है. कोई कुछ नहीं बोल रहा. सारे धर्मनिरपेक्षतावादी मानों कछुए की तरह अपने खोल में समा गए हैं. अब कोई नहीं बोल रहा कि भारत के मुसलमान डरे हुए हैं.
मित्रों, मैं पूछता हूँ कि ध्रुव त्यागी का अपराध क्या था? क्या भारत में हिन्दू होना सबसे बड़ा अपराध है या मुसलमानों के पड़ोस में बसना सबसे बड़ा अपराध है? या फिर अपनी बेटियों की ईज्जत बचाना हिन्दुओं के लिए अपराध है? जब भारत में हिन्दुओं के साथ ऐसा हो रहा है तो पाकिस्तान में तो क्या नहीं होता होगा?
मित्रों, सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि न तो राहुल गाँधी, न ही अरविन्द केजरीवाल ने अभी तक इस घटना पर कुछ बोला है पीड़ित परिवार से मिलने की बात तो दूर रही. जबकि अखलाख की हत्या के समय इन्होने आसमान सर पे उठा लिया था. ऐसा भेदभाव क्यों है भाई? क्या इसलिए नहीं है क्योंकि हम हिन्दू एकजुट नहीं हैं और जाति-पाति और स्वार्थ में बंटे हुए हैं? बंगाल में जो लोग ममता के पीछे पागल हैं वो भी हिन्दू हैं, बिहार में जो घोटालाशिरोमणि लालू को वोट कर रहे हैं वो भी हिन्दू ही हैं. इसी तरह पूरे भारत में हिन्दू खेमों में बंटे हुए हैं जबकि मुसलमान एकजुट थे और एकजुट हैं. उनके सामने बस एक ही लक्ष्य है कि हिंदुत्ववादी सरकार को हराओ.
मित्रों, अब आते हैं मूल सन्दर्भ पर. श्रीलंका में ईस्टर के दिन जो भयंकर हत्याकांड हुआ उस पर भी भारत के धर्मनिरपेक्षता वादी चुप ही रहे. क्यों? न्यूज़ीलैंड पर शोर और श्रीलंका पर सन्नाटा. यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है? तथापि हमें यह देखकर आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी हो रही है कि श्रीलंका में इस तरह की कोई प्रजाति नहीं पाई जाती है. श्रीलंका बम विस्फोटों में पकडे गए लोगों को वहां वकील नहीं मिल रहे जबकि भारत में तो वकीलों की लाईन लग जाती. लोग लड़ पड़ते कि हम इनका मुकदमा लड़ेंगे.भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हम आसानी से समझ सकते हैं कि भारत १००० सालों तक गुलाम क्यों रहा.

मंगलवार, 14 मई 2019

लोकसभा चुनाव:गए माघ २९ दिन बांकी


मित्रों, हुआ यह कि उस साल बिहार में काफी ठण्ड थी,कंपकंपानेवाली. आपलोग भी जानते हैं कि माघ की ठण्ड हाड़ गलानेवाली ठण्ड होती है. साथ ही यह ठण्ड का आखिरी महीना भी होता है. ऐसे में माघ के पहले दिन एक बार एक बुढिया से जब यह पूछा गया कि तू इस ठण्ड में जिंदा तो बच जाएगी न तो उसने यही जवाब दिया था कि अब क्या, गए माघ २९ दिन बांकी. ठीक उसी तरह लोकसभा चुनावों के बारे में अगर हम यह कहें कि सूई तो निकल ही चुकी है धागे का भी सिर्फ अंतिम सिरा ही बचा हुआ है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. 2019 का महासमर अब समाप्ति की ओर अग्रसर है. कुल 543 सीटों में से अब मात्र 59 सीटें ऐसी बची हैं जिन पर मतदान होना शेष है. 23 मई को किसको कितनी सींटें मिलनेवाली है यह अभी तो काल भी नहीं बता सकता जो हमारा पल-पल का हिसाब रखता है लेकिन पूरा भारत एकमत होकर इस समय यही कह रहा है कि आएगा तो मोदी ही.
मित्रों, जहाँ तक हमारा सवाल है तो हमने तो चुनाव से बहुत पहले ही कहा था कि आएगा तो मोदी ही. इतना ही नहीं हमारा यह भी मानना है कि एक बार फिर से भाजपा को अकेले ही बहुमत आएगा. कहीं कोई संदेह और खरीद-फरोख्त की गुंजाईश इस बार भी जनता छोड़ने नहीं जा रही. इस बीच खबर यह भी आ रही है कि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री के पद पर अपना दावा ठोंक दिया है. अब ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरकत को क्या नाम दिया जाए? पानी में मछली और बंटवारे के लिए लठ्ठम लठ्ठा. अरे बहन जी अभी तो एक चरण का मतदान भी शेष है कुछ सब्र कर लिया होता. वैसे भी कांग्रेस के सुपरस्टार नेता मणिशंकर अय्यर ने फिर से एक बार शानदार वापसी की है और इस बार वे कदाचित इस प्रण के साथ वापस आए हैं कि अबकी बार ४०० पार, कौन कांग्रेस? नहीं भाई भाजपा. दरअसल मणिशंकर चाचा हैं तो कांग्रेस में लेकिन अंदरखाने वे भाजपा से मिले हुए हैं. इसलिए आते ही उन्होंने उस कांग्रेस पार्टी को अपने पुराने नीच वाले बयान को दोहराकर फिर से संकट में डाल दिया है जिसने अभी-अभी बड़ी मुश्किल से सैम पित्रोदा के हुआ तो हुआ वाले बयान से पीछा छुड़ाया था.
मित्रों, इन दिनों इन बुड्ढों ने जिस तरह से कांग्रेस का बेडा गर्क कर रखा है उसे देखते हुए मुझे तो लगता है कि कांग्रेस को भी अविलम्ब से मार्गदर्शक मंडल बना ही देना चाहिए वरना ये बुड्ढे अपने श्राद्ध से पहले पार्टी का ही श्राद्ध करवा डालेंगे. खैर अब तो जो नुकसान कांग्रेस को होना था हो चुका. देखना यह है कि २३ मई के बाद राहुल थाईलैंड जाते हैं या जेल. वैसे हमने तो कानों कान सुना है कि प्रियंका अपने पूरे परिवार सहित १९ मई को
ही स्विट्जर्लैंड के लिए निकल लेनेवाली है. खैर हमारा क्या हम तो कहीं नहीं जानेवाले जी. वो बिहार में कहते हैं न कि झोली में दाम न सराय में डेरा. हम तो पहले भी लूट लाते थे और कूट खाते थे और आगे भी इसी परंपरा का निर्वाह करते रहेंगे. बस कभी हमारे देश का सिर दुनिया में कहीं भी न झुके हमारा तो बस इतना-सा ख्वाब है.

शुक्रवार, 3 मई 2019

विपक्ष का एक सूत्री एजेंडा


मित्रों, हमें तो पहले दिन से ही शक था कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष चाहता क्या है. अब जब कांग्रेस के ताश की गड्डी के दूसरे कथित तुरुप के पत्ते प्रियंका गाँधी ने यह स्वीकार कर लिया है कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार जीतने के लिए नहीं उतारे हैं बल्कि भाजपा के वोट काटकर भाजपा को हराने के लिए उतारे हैं तो जैसे एकबारगी सच का सूरज सामने आ गया. तात्पर्य यह कि कांग्रेस और पूरे-के-पूरे विपक्ष के पास देश के विकास को लेकर कोई कार्ययोजना नहीं है क्योंकि यह कभी न तो उनके एजेंडे में था और न ही अब है.
मित्रों, सवाल उठता है कि पूरा का पूरा विपक्ष बस इसी एक एजेंडे को लेकर क्यों चल रहा कि मोदी हटाओ, मोदी हराओ? मैं आपको बताता हूँ कि ऐसा क्यों है. दरअसल मोदी ने पहले से चले आ रहे इस समझौते को भंग कर दिया है कि जब मैं जीतूँ तो तुम्हें बचाऊंगा और जब तुम जीतो तो मुझे बचा लेना. इस तरह दोनों पक्ष बारी-बारी से जीतते रहेंगे और घोटाले करते रहेंगे. मोदी की सरकार के समय पहली बार भ्रष्ट नेता जेल जा रहे हैं जबकि पहले जांच का नाटक चलता था इसलिए उन सभी नेताओं में हडकंप है जिन्होंने घोटाले कर रखे हैं. कुछ लोग कह सकते हैं कि विपक्ष भी जिन राज्यों में सत्ता में है अगर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के घोटालों की जाँच करवाने लगे तो? अगर विपक्षी पार्टी की सरकारें ऐसा करती हैं तो हम उनका स्वागत करेंगे क्योंकि हम मानते हैं कि देश सर्वोपरि है न कि कोई नेता. हमारा स्पष्ट रूप से मानना है कि किसी नेता ने अगर कभी गड़बड़ी की है तो उसे सार्वजानिक जीवन में नहीं होना चाहिए बल्कि उसकी सही जगह जेल है.
मित्रों, विपक्ष के मोदी हटाओ एजेंडे का दूसरा कारण है मोदी का मूल-मंत्र सबका साथ सबका विकास. भारत के इतिहास में पहली बार गरीबों को भेजा गया पैसा सीधे गरीबों तक पहुँच रहा है और वो भी बिना किसी भेदभाव के. विपक्ष डर रहा है कि इस तरह अगर मोदी गरीबों के दिलों में जगह बना लेगा तो उनकी गन्दी सांप्रदायिक और जातीय राजनीति का क्या होगा? प. बंगाल में उनके तानाशाहीपूर्ण शासन का क्या होगा जहाँ भाजपा को वोट देने का मतलब मृत्यु को आमन्त्रण देना है.
मित्रों, इन दिनों पूरे देश में अगर लोकतंत्र कहीं खतरे में है तो तीन इलाकों में है-एक प. बंगाल, दूसरे छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र-तेलंगाना-उड़ीसा के माओवादी इलाकों में और तीसरे केरल में. एक में कहा जा रहा है कि ख़बरदार जो भाजपा को वोट दिया, दूसरे इलाके में वोट गिराने पर ही रोक है और तीसरे इलाके में भी वही स्थिति है जो बंगाल में है यानि भाजपा को वोट दिया तो जान से गए. मगर आश्चर्य है कि न तो मीडिया और न ही विपक्षी नेता इन दानवों के खिलाफ कोई आवाज उठा रहे. बल्कि वे उस व्यक्ति का समर्थन कर रहे हैं जो नायक नहीं खलनायक है और बीएसएफ द्वारा भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता के चलते बर्खास्त किया गया है, जिसने शराबखोरी के चलते अपने पूरे परिवार का सत्यानाश कर लिया. जी हाँ मैं बात कर रहा तेजबहादुर यादव की. आम तौर पर फौज या पुलिस दल में भगोड़े, अनुशासनहीन और बर्खास्त किए जाने वाले आदमी की कोई पूछ नहीं होती. लेकिन चुनाव का मौसम है और अगर ऐसे में तेज बहादुर के सहारे बंदूक दागी जा सकती है तो फिर भला इससे विरोधी दलों को इनकार कैसे हो सकता है. वो भी तब जब निशाने पर नरेंद्र मोदी हों. लेकिन तेज बहादुर में नायक या अपना प्रतिनिधि तलाशने में लगी पार्टियों ने राजनीति को उस स्तर पर पहुंचा दिया है, जहां यह फर्क करना मुश्किल है कि आखिर किस तरह के फौजी को आप अपना हीरो मानेंगे. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की सेवा और सुरक्षा करने वाले जवान को या फिर उस शख्स को, जिसने अपनी पूरी नौकरी के दौरान लगातार अनुशासनहीनता का परिचय दिया हो. तेज बहादुर के बारे में देश का लोगों का तब ध्यान गया, जब उसने 2017 के जनवरी महीने में अपने फेसबुक अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया, वो भी बीएसएफ की वर्दी पहने हुए. तेज बहादुर ये बयान कर रहा था कि बीएसएफ में कितना खराब खाना परोसा जा रहा है, जली हुई रोटी और पतली दाल का हवाला देकर. उस वीडियो ने सनसनी मचा दी और सोशल मीडिया में वायरल हो गया. ये पहला मौका था, जब फौज या किसी अर्द्धसैनिक बल में काम करने वाले किसी जवान ने इस तरह की हरकत की हो. ध्यान जाना स्वाभाविक था. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिए. इस वाकये से आलोचना के घेरे में आई बीएसएफ ने एक स्वतंत्र संस्था से अपने यहां परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता की जांच करवाई. डीआरडीओ से जुड़े संगठन डीआईपीएएस ने यह जांच की. इस संगठन ने जो अपनी रिपोर्ट सौंपी, उसमें साफ तौर पर ये बताया गया कि बीएसएफ के मेस या चौकियों में परोसे जाने वाले भोजन में कोई खराबी नहीं है और उसकी गुणवत्ता बेहतर है.
मित्रों, सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर यादव ने ऐसा क्यों किया. इसके लिए ये आवश्यक है कि बीएसएफ से फरवरी 2018 में बर्खास्त हो चुके इस शख्स के करियर की पड़ताल की जाए. रिकॉर्ड के तौर पर तेज बहादुर का संबंध हरियाणा के महेंद्रगढ़ से है और उसके पिता का नाम शेर सिंह है. शेर सिंह के पांच बेटों में तेज बहादुर सबसे छोटा है. तेज बहादुर ने 20 जनवरी 1996 को बीएसएफ ट्रेनी रिक्रूट के तौर पर ज्वाइन की. शुरुआती ट्रेनिंग के बाद उसे 30 अक्टूबर 1996 को बीएसएफ की 29वीं बटालियन में बतौर कांस्टेबल शामिल किया गया. बटालियन में शामिल होने के पहले और ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे. ट्रेनिंग के दौरान नए जवानों को सबसे पहले अनुशासित होना सिखाया जाता है. ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर बिना अनुमति के गायब हो गया था, जिसे फौज की भाषा में भगोड़ा होना कहा जाता है. इस वजह से बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 19ए के तहत तेज बहादुर को 25 सितंबर 1996 को 14 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. लेकिन ये तो बस शुरुआत थी.
मित्रों, इसके बाद भी तेज बहादुर की अनुशासंहिना का सिलसिला रुका नहीं. नियमित अंतराल पर वो एक के बाद एक गंभीर किस्म की अनुशासनहीनता करता रहा और उसकी सजा भी पाता रहा. मसलन 28 सितंबर 2003 को उसे 7 दिन की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. ये सजा बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 40 के तहत सुनाई गई यानी दिशा-निर्देशों को न मानना और इस तरह अनुशासन तोड़ना. इसके 4 साल बाद फिर से तेज बहादुर ने अनुशासनहीनता बरती और इस बार बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 26 और 40 के तहत उसे 27 सितंबर 2007 को 28 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. अमूमन 3 ऐसी गंभीर हरकतों के बाद फौज या बीएसएफ जैसे संगठन से बर्खास्त कर दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन अपने परिवार का अकेला पालनहार होने की बात कर तेज बहादुर ने दया की भीख मांगी और इस तरह वो बर्खास्तगी से बचा. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. तेज बहादुर ने 3 साल बाद फिर से एक बड़ा बखेड़ा किया. जब उसकी बटालियन मार्च 2010 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर किशनगंज के पास तैनात थी, उस वक्त उसने अपने कंपनी कमांडर को न सिर्फ मां-बहन की गालियां दीं, बल्कि आगे जाकर गश्त करने के आदेश को मानने से भी मना कर दिया. हद तो ये हुई कि उसने अपने कंपनी कमांडर इंस्पेक्टर मोहन सिंह को गोली मारने की धमकी तक दे डाली. इस मामले में एक बार फिर से तेज बहादुर का कोर्ट मार्शल हुआ और बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 20ए और सी के तहत उसे न सिर्फ 89 दिन की सख्त कैद की सजा सुनाई गई, बल्कि उसकी सेवा अवधि में भी 3 साल की कटौती कर दी गई.

मित्रों, ये किस्सा ये बताने के लिए काफी है कि जिस तेज बहादुर को देशभक्त वीर जवान के आदर्श मॉडल के तौर पर पेश किया जा रहा है, उसका अपना व्यक्तित्व कितना दागदार रहा है. जहां तक फेसबुक पर खाने की शिकायत वाला वीडियो पोस्ट कर सनसनी मचाने वाली तेज बहादुर की हरकत का सवाल है, उसके पीछे की कहानी भी रोचक है. बीएसएफ के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि तेज बहादुर की सीमा की कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी करने की इच्छा नहीं होती थी. ऐसे में जब उसे जनवरी 2017 में जम्मू सेक्टर के तहत नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास बटालियन के एडमिन बेस पर रखा गया, तो वो नाराज हो गया और उसने अपनी पोस्टिंग कहीं कम दबाव वाली जगह पर करने की मांग अपने अधिकारियों के सामने रखी. जब उसकी ये मांग नहीं मानी गई, तो आदत से मजबूर उसने एक बार फिर से ड्रामा किया और घटिया भोजन की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल की. तेज बहादुर के इस ड्रामे के बाद जब बीएसएफ ने इस मामले में जांच-पड़ताल शुरू की, तो घबराये तेज बहादुर ने भूख हड़ताल कर डाली और कह दिया कि अगर उसको स्वैच्छिक सेवानिवृति नहीं दी गई, तो वो आमरण अनशन करेगा. जाहिर है उसे साफ पता था कि जांच-पड़ताल के बाद उसे एक बार फिर सजा होगी और भविष्य अंधकारमय रहने वाला है, ऐसे में अगर बर्खास्तगी की जगह वीआरएस मिल जाता, तो पेंशन और बाकी सुविधाएं नौकरी छोड़ने के बाद उसे मिलती, जिसका हकदार वो बर्खास्तगी के बाद नहीं होता. बीएसएफ अधिकारियों ने तेज बहादुर की इस ब्लैकमेलिंग पर ध्यान नहीं दिया और मार्च से अप्रैल 2017 के दौरान उसका कोर्ट मार्शल हुआ समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट यानी एसएसएफसी में. इस कानूनी प्रक्रिया के बाद उसे कुल 6 आधार पर अनुशासनहीनता और कर्तव्य में लापरवाही का दोषी पाया गया. इसी के बाद आखिरकार फरवरी 2018 में उसकी बीएसएफ से विदाई हो गई, लेकिन शान-शौकत से नहीं, बल्कि बर्खास्तगी के साथ, जिसकी भूमिका वो खुद नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही बनाने में लगा हुआ था.

मित्रों, सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर का ये करियर जो किसी भी आदर्श जवान के लिए प्रेरणा नहीं, बल्कि शर्मिंदगी का सबब हो सकता है. उसको इस तरह से महिमामंडित किया जाना क्या सही है. राजनीति में सब कुछ जायज है, शायद यही इसका एकमात्र जवाब हो सकता है. जब देश की सीमा की सुरक्षा करने वाले बल से बर्खास्त सिपाही को यूपी की सियासत में तेज बहादुर यादव के तौर पर पेश कर नायक तलाशने की असफल ही सही, लेकिन सनसनीखेज कोशिश की जाए. अब तो कांग्रेस पार्टी एक और झूठ बोलने पर उतारू है कि मनमोहन सरकार में सर्जिकल स्ट्राइक रोजाना की बात थी और उनकी सरकार में यह अनगिनत बार हुआ था. सवाल उठता है कि फिर जाकिर नायक उनकी सरकार में हीरो कैसे था और उसकी पहुँच १० जनपथ तक कैसे थी, सवाल उठता है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता उस समय बार-बार कांग्रेस पार्टी के नेताओं की निजी पार्टियों की शोभा क्यों बढा रहे थे? चीन ने तब क्यों मसूद अजहर पर प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया? कांग्रेस के नेता तब क्यों एक आतंकवादी को फांसी से बचाने के लिए रात के दो बजे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे थे? तब क्यों एक बार भी जैशे मोहम्मद के कमांडर का पद खाली नहीं हुआ? तब क्यों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत के प्रधानमंत्री को रोती रहनेवाली देहाती महिला कहकर संबोधित कर रहे थे? तब क्यों पाकिस्तान कंगाल नहीं हुआ और चीन ने भारत के नक़्शे में तब क्यों अरुणाचल और जम्मू और कश्मीर को नहीं दर्शाया?
मित्रों, वास्तव में यह २०१९ का पूरा चुनाव राम और रावण के बीच का चुनाव है. राम तब भी अकेले थे और अब भी अकेले हैं. दूसरी तरफ उस रावण के तो महज दस सर थे इस रावण के कई दर्जन हैं क्योंकि मोदी हराओ, मोदी हटाओ अभियान में सैकड़ों दल एक साथ लगे हुए हैं. सवाल उठता है कि भारत की जनता किसको चुनेगी राम को जिसका लक्ष्य है-दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा. या फिर उस रावण को जो सीरिया से लेकर,भारत और श्रीलंका तक अटूट अट्टहास करता हुआ घोषणा कर रहा है कि दानव हूँ भगवान नहीं हूँ, रावण हूँ मैं राम नहीं हूँ, इंसानी खून की नदियों में स्नान करना जिसका जूनून है, जिसके शब्दकोश में इंसानियत शब्द है ही नहीं सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार है. अवरोध ही अवरोध है हिन्दू विरोध है.  जिसका सपना भारत का विकास नहीं विनाश है, सर्वनाश है. रावण की तो २० भुजाएँ थी इसकी अनगिनत हैं इतनी जितनी हमारी गिनती में समा ही नहीं सकती. सवाल उठता है कि इस रावण का विनाश कैसे होगा? दोस्तों इस रावण का विनाश कठिन भी है और आसान भी. कठिन है रावण के लालच से खुद को बचाना और आसान है मतदान केंद्र तक जाना और कमल का बटन दबाना. और यह बात प. बंगाल, केरल और माओवाद प्रभावित इलाकों पर भी लागू होती है. बस आज थोड़ी-सी हिम्मत करनी पड़ेगी,वक़्त को बदले के लिए थोडा-सा वक़्त निकलना होगा फिर राम के बदले रावण को वनवास पर जाना होगा, राम का राज होगा, राम-राज्य होगा.

बुधवार, 1 मई 2019

आतंक के खिलाफ भारत की ऐतिहासिक जीत


मित्रों, आज हर भारतीय के लिए गर्व करने का दिन है, गौरव करने की बेला है. आज संयुक्त राष्ट्र संघ ने पाकिस्तान के सबसे बड़े आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित कर दिया है. इससे पहले भी कई बार भारत और भारत के मित्रों द्वारा इस दिशा में प्रयास किए गए लेकिन हर बार पाकिस्तान के परम मित्र और हमारे चिर शत्रु चीन ने वीटो लगाकर ऐसा होने नहीं दिया. जिस चीन को झुकाना आज से ५ साल पहले हिमालय को झुकाने से भी ज्यादा दुष्कर कार्य माना जाता था उसे आज अंततः भारत ने झुका दिया है. निश्चित रूप से इस परिघटना को हम न केवल भारत की ऐतिहासिक जीत और चीन-पाकिस्तान की करारी कूटनैतिक हार मान सकते हैं बल्कि गर्व के साथ कह भी सकते हैं.
मित्रों, यह बात दुनिया में किसी से भी छिपी हुई नहीं है कि पाकिस्तान १९८० के दशक से ही भारत के खिलाफ अपने जेहादी आतंकवादियों के माध्यम से छद्म युद्ध छेड़े हुए है. भारत को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जितनी क्षति पहुंचाई है उतनी क्षति अन्य किसी भी देश को आतंकवादियों ने नहीं पहुंचाई है. उस पर हमारी हालत ५ साल पहले यह थी कि २००८ के २६/११ के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री को रुदन करनेवाली देहाती महिला कह रहा था. मतलब हालत चोरी और सीनाजोरी का था. आरोप तो यह भी लगा था कि मुम्बई हमले को स्वयं तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रायोजित किया था ताकि हमले का आरोप हिन्दुओं पर मढ़कर भगवा आतंकवाद की काल्पनिक परिकथा को वास्तविक ठहराया जा सके.
मित्रों, आज मात्र पांच सालों के बाद हालात बिलकुल उलट है क्योंकि आज केंद्र में भारत के हितों के साथ किसी भी परिस्थिति में समझौता न करनेवाली सरकार सत्ता में है. जो लोग यह आरोप लगा रहे थे कि मोदी इतनी ज्यादा विदेश यात्रा क्यों कर रहे हैं आज की सफलता उनके लिए करारे तमाचे की तरह है. आज चीन वीटो शक्ति होते हुए भी भारत के सामने वेबस है तो इसके लिए साधुवाद की पात्र हमारी केंद्र सरकार है. यह जीत न केवल आतंकवाद के खिलाफ मानवता की बड़ी जीत है बल्कि इस बात की उद्घोषणा भी है कि दुनिया के क्षितिज पर एक नई महाशक्ति का उदय हो रहा है और दुनिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि सूरज हमेशा पूरब से उगता है पश्चिम से नहीं.
मित्रों, इस समय भारत में लोकसभा का चुनाव प्रगति पर है और हम आशा करते हैं कि पूरा भारत एकजुट होकर फिर से उद्दाम देशभक्त और माँ भारती के अनन्य सेवक नरेन्द्र मोदी का राज्याभिषेक करेगा ताकि अन्दर-बाहर दोनों ही दिशाओं से भारत को सुरक्षित बनाया जा सके और १९८० के दशक का अंतर्राष्ट्रीय भिखारी भारत एक बार फिर से दुनिया का सबसे समृद्ध देश बने जैसा कि वो इतिहासकारों के अनुसार १८१३ ई. तक था. जय भारत, जय माँ भारती. तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें ना रहें.