मित्रों, हमें तो पहले दिन से ही शक था कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष चाहता क्या है. अब जब कांग्रेस के ताश की गड्डी के दूसरे कथित तुरुप के पत्ते प्रियंका गाँधी ने यह स्वीकार कर लिया है कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार जीतने के लिए नहीं उतारे हैं बल्कि भाजपा के वोट काटकर भाजपा को हराने के लिए उतारे हैं तो जैसे एकबारगी सच का सूरज सामने आ गया. तात्पर्य यह कि कांग्रेस और पूरे-के-पूरे विपक्ष के पास देश के विकास को लेकर कोई कार्ययोजना नहीं है क्योंकि यह कभी न तो उनके एजेंडे में था और न ही अब है.
मित्रों, सवाल उठता है कि पूरा का पूरा विपक्ष बस इसी एक एजेंडे को लेकर क्यों चल रहा कि मोदी हटाओ, मोदी हराओ? मैं आपको बताता हूँ कि ऐसा क्यों है. दरअसल मोदी ने पहले से चले आ रहे इस समझौते को भंग कर दिया है कि जब मैं जीतूँ तो तुम्हें बचाऊंगा और जब तुम जीतो तो मुझे बचा लेना. इस तरह दोनों पक्ष बारी-बारी से जीतते रहेंगे और घोटाले करते रहेंगे. मोदी की सरकार के समय पहली बार भ्रष्ट नेता जेल जा रहे हैं जबकि पहले जांच का नाटक चलता था इसलिए उन सभी नेताओं में हडकंप है जिन्होंने घोटाले कर रखे हैं. कुछ लोग कह सकते हैं कि विपक्ष भी जिन राज्यों में सत्ता में है अगर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के घोटालों की जाँच करवाने लगे तो? अगर विपक्षी पार्टी की सरकारें ऐसा करती हैं तो हम उनका स्वागत करेंगे क्योंकि हम मानते हैं कि देश सर्वोपरि है न कि कोई नेता. हमारा स्पष्ट रूप से मानना है कि किसी नेता ने अगर कभी गड़बड़ी की है तो उसे सार्वजानिक जीवन में नहीं होना चाहिए बल्कि उसकी सही जगह जेल है.
मित्रों, विपक्ष के मोदी हटाओ एजेंडे का दूसरा कारण है मोदी का मूल-मंत्र सबका साथ सबका विकास. भारत के इतिहास में पहली बार गरीबों को भेजा गया पैसा सीधे गरीबों तक पहुँच रहा है और वो भी बिना किसी भेदभाव के. विपक्ष डर रहा है कि इस तरह अगर मोदी गरीबों के दिलों में जगह बना लेगा तो उनकी गन्दी सांप्रदायिक और जातीय राजनीति का क्या होगा? प. बंगाल में उनके तानाशाहीपूर्ण शासन का क्या होगा जहाँ भाजपा को वोट देने का मतलब मृत्यु को आमन्त्रण देना है.
मित्रों, इन दिनों पूरे देश में अगर लोकतंत्र कहीं खतरे में है तो तीन इलाकों में है-एक प. बंगाल, दूसरे छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र-तेलंगाना-उड़ीसा के माओवादी इलाकों में और तीसरे केरल में. एक में कहा जा रहा है कि ख़बरदार जो भाजपा को वोट दिया, दूसरे इलाके में वोट गिराने पर ही रोक है और तीसरे इलाके में भी वही स्थिति है जो बंगाल में है यानि भाजपा को वोट दिया तो जान से गए. मगर आश्चर्य है कि न तो मीडिया और न ही विपक्षी नेता इन दानवों के खिलाफ कोई आवाज उठा रहे. बल्कि वे उस व्यक्ति का समर्थन कर रहे हैं जो नायक नहीं खलनायक है और बीएसएफ द्वारा भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता के चलते बर्खास्त किया गया है, जिसने शराबखोरी के चलते अपने पूरे परिवार का सत्यानाश कर लिया. जी हाँ मैं बात कर रहा तेजबहादुर यादव की. आम तौर पर फौज या पुलिस दल में भगोड़े, अनुशासनहीन और बर्खास्त किए जाने वाले आदमी की कोई पूछ नहीं होती. लेकिन चुनाव का मौसम है और अगर ऐसे में तेज बहादुर के सहारे बंदूक दागी जा सकती है तो फिर भला इससे विरोधी दलों को इनकार कैसे हो सकता है. वो भी तब जब निशाने पर नरेंद्र मोदी हों. लेकिन तेज बहादुर में नायक या अपना प्रतिनिधि तलाशने में लगी पार्टियों ने राजनीति को उस स्तर पर पहुंचा दिया है, जहां यह फर्क करना मुश्किल है कि आखिर किस तरह के फौजी को आप अपना हीरो मानेंगे. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की सेवा और सुरक्षा करने वाले जवान को या फिर उस शख्स को, जिसने अपनी पूरी नौकरी के दौरान लगातार अनुशासनहीनता का परिचय दिया हो. तेज बहादुर के बारे में देश का लोगों का तब ध्यान गया, जब उसने 2017 के जनवरी महीने में अपने फेसबुक अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया, वो भी बीएसएफ की वर्दी पहने हुए. तेज बहादुर ये बयान कर रहा था कि बीएसएफ में कितना खराब खाना परोसा जा रहा है, जली हुई रोटी और पतली दाल का हवाला देकर. उस वीडियो ने सनसनी मचा दी और सोशल मीडिया में वायरल हो गया. ये पहला मौका था, जब फौज या किसी अर्द्धसैनिक बल में काम करने वाले किसी जवान ने इस तरह की हरकत की हो. ध्यान जाना स्वाभाविक था. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिए. इस वाकये से आलोचना के घेरे में आई बीएसएफ ने एक स्वतंत्र संस्था से अपने यहां परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता की जांच करवाई. डीआरडीओ से जुड़े संगठन डीआईपीएएस ने यह जांच की. इस संगठन ने जो अपनी रिपोर्ट सौंपी, उसमें साफ तौर पर ये बताया गया कि बीएसएफ के मेस या चौकियों में परोसे जाने वाले भोजन में कोई खराबी नहीं है और उसकी गुणवत्ता बेहतर है.
मित्रों, सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर यादव ने ऐसा क्यों किया. इसके लिए ये आवश्यक है कि बीएसएफ से फरवरी 2018 में बर्खास्त हो चुके इस शख्स के करियर की पड़ताल की जाए. रिकॉर्ड के तौर पर तेज बहादुर का संबंध हरियाणा के महेंद्रगढ़ से है और उसके पिता का नाम शेर सिंह है. शेर सिंह के पांच बेटों में तेज बहादुर सबसे छोटा है. तेज बहादुर ने 20 जनवरी 1996 को बीएसएफ ट्रेनी रिक्रूट के तौर पर ज्वाइन की. शुरुआती ट्रेनिंग के बाद उसे 30 अक्टूबर 1996 को बीएसएफ की 29वीं बटालियन में बतौर कांस्टेबल शामिल किया गया. बटालियन में शामिल होने के पहले और ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे. ट्रेनिंग के दौरान नए जवानों को सबसे पहले अनुशासित होना सिखाया जाता है. ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर बिना अनुमति के गायब हो गया था, जिसे फौज की भाषा में भगोड़ा होना कहा जाता है. इस वजह से बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 19ए के तहत तेज बहादुर को 25 सितंबर 1996 को 14 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. लेकिन ये तो बस शुरुआत थी.
मित्रों, इसके बाद भी तेज बहादुर की अनुशासंहिना का सिलसिला रुका नहीं. नियमित अंतराल पर वो एक के बाद एक गंभीर किस्म की अनुशासनहीनता करता रहा और उसकी सजा भी पाता रहा. मसलन 28 सितंबर 2003 को उसे 7 दिन की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. ये सजा बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 40 के तहत सुनाई गई यानी दिशा-निर्देशों को न मानना और इस तरह अनुशासन तोड़ना. इसके 4 साल बाद फिर से तेज बहादुर ने अनुशासनहीनता बरती और इस बार बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 26 और 40 के तहत उसे 27 सितंबर 2007 को 28 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. अमूमन 3 ऐसी गंभीर हरकतों के बाद फौज या बीएसएफ जैसे संगठन से बर्खास्त कर दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन अपने परिवार का अकेला पालनहार होने की बात कर तेज बहादुर ने दया की भीख मांगी और इस तरह वो बर्खास्तगी से बचा. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. तेज बहादुर ने 3 साल बाद फिर से एक बड़ा बखेड़ा किया. जब उसकी बटालियन मार्च 2010 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर किशनगंज के पास तैनात थी, उस वक्त उसने अपने कंपनी कमांडर को न सिर्फ मां-बहन की गालियां दीं, बल्कि आगे जाकर गश्त करने के आदेश को मानने से भी मना कर दिया. हद तो ये हुई कि उसने अपने कंपनी कमांडर इंस्पेक्टर मोहन सिंह को गोली मारने की धमकी तक दे डाली. इस मामले में एक बार फिर से तेज बहादुर का कोर्ट मार्शल हुआ और बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 20ए और सी के तहत उसे न सिर्फ 89 दिन की सख्त कैद की सजा सुनाई गई, बल्कि उसकी सेवा अवधि में भी 3 साल की कटौती कर दी गई.
मित्रों, ये किस्सा ये बताने के लिए काफी है कि जिस तेज बहादुर को देशभक्त वीर जवान के आदर्श मॉडल के तौर पर पेश किया जा रहा है, उसका अपना व्यक्तित्व कितना दागदार रहा है. जहां तक फेसबुक पर खाने की शिकायत वाला वीडियो पोस्ट कर सनसनी मचाने वाली तेज बहादुर की हरकत का सवाल है, उसके पीछे की कहानी भी रोचक है. बीएसएफ के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि तेज बहादुर की सीमा की कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी करने की इच्छा नहीं होती थी. ऐसे में जब उसे जनवरी 2017 में जम्मू सेक्टर के तहत नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास बटालियन के एडमिन बेस पर रखा गया, तो वो नाराज हो गया और उसने अपनी पोस्टिंग कहीं कम दबाव वाली जगह पर करने की मांग अपने अधिकारियों के सामने रखी. जब उसकी ये मांग नहीं मानी गई, तो आदत से मजबूर उसने एक बार फिर से ड्रामा किया और घटिया भोजन की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल की. तेज बहादुर के इस ड्रामे के बाद जब बीएसएफ ने इस मामले में जांच-पड़ताल शुरू की, तो घबराये तेज बहादुर ने भूख हड़ताल कर डाली और कह दिया कि अगर उसको स्वैच्छिक सेवानिवृति नहीं दी गई, तो वो आमरण अनशन करेगा. जाहिर है उसे साफ पता था कि जांच-पड़ताल के बाद उसे एक बार फिर सजा होगी और भविष्य अंधकारमय रहने वाला है, ऐसे में अगर बर्खास्तगी की जगह वीआरएस मिल जाता, तो पेंशन और बाकी सुविधाएं नौकरी छोड़ने के बाद उसे मिलती, जिसका हकदार वो बर्खास्तगी के बाद नहीं होता. बीएसएफ अधिकारियों ने तेज बहादुर की इस ब्लैकमेलिंग पर ध्यान नहीं दिया और मार्च से अप्रैल 2017 के दौरान उसका कोर्ट मार्शल हुआ समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट यानी एसएसएफसी में. इस कानूनी प्रक्रिया के बाद उसे कुल 6 आधार पर अनुशासनहीनता और कर्तव्य में लापरवाही का दोषी पाया गया. इसी के बाद आखिरकार फरवरी 2018 में उसकी बीएसएफ से विदाई हो गई, लेकिन शान-शौकत से नहीं, बल्कि बर्खास्तगी के साथ, जिसकी भूमिका वो खुद नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही बनाने में लगा हुआ था.
मित्रों, सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर का ये करियर जो किसी भी आदर्श जवान के लिए प्रेरणा नहीं, बल्कि शर्मिंदगी का सबब हो सकता है. उसको इस तरह से महिमामंडित किया जाना क्या सही है. राजनीति में सब कुछ जायज है, शायद यही इसका एकमात्र जवाब हो सकता है. जब देश की सीमा की सुरक्षा करने वाले बल से बर्खास्त सिपाही को यूपी की सियासत में तेज बहादुर यादव के तौर पर पेश कर नायक तलाशने की असफल ही सही, लेकिन सनसनीखेज कोशिश की जाए. अब तो कांग्रेस पार्टी एक और झूठ बोलने पर उतारू है कि मनमोहन सरकार में सर्जिकल स्ट्राइक रोजाना की बात थी और उनकी सरकार में यह अनगिनत बार हुआ था. सवाल उठता है कि फिर जाकिर नायक उनकी सरकार में हीरो कैसे था और उसकी पहुँच १० जनपथ तक कैसे थी, सवाल उठता है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता उस समय बार-बार कांग्रेस पार्टी के नेताओं की निजी पार्टियों की शोभा क्यों बढा रहे थे? चीन ने तब क्यों मसूद अजहर पर प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया? कांग्रेस के नेता तब क्यों एक आतंकवादी को फांसी से बचाने के लिए रात के दो बजे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे थे? तब क्यों एक बार भी जैशे मोहम्मद के कमांडर का पद खाली नहीं हुआ? तब क्यों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत के प्रधानमंत्री को रोती रहनेवाली देहाती महिला कहकर संबोधित कर रहे थे? तब क्यों पाकिस्तान कंगाल नहीं हुआ और चीन ने भारत के नक़्शे में तब क्यों अरुणाचल और जम्मू और कश्मीर को नहीं दर्शाया?
मित्रों, वास्तव में यह २०१९ का पूरा चुनाव राम और रावण के बीच का चुनाव है. राम तब भी अकेले थे और अब भी अकेले हैं. दूसरी तरफ उस रावण के तो महज दस सर थे इस रावण के कई दर्जन हैं क्योंकि मोदी हराओ, मोदी हटाओ अभियान में सैकड़ों दल एक साथ लगे हुए हैं. सवाल उठता है कि भारत की जनता किसको चुनेगी राम को जिसका लक्ष्य है-दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा. या फिर उस रावण को जो सीरिया से लेकर,भारत और श्रीलंका तक अटूट अट्टहास करता हुआ घोषणा कर रहा है कि दानव हूँ भगवान नहीं हूँ, रावण हूँ मैं राम नहीं हूँ, इंसानी खून की नदियों में स्नान करना जिसका जूनून है, जिसके शब्दकोश में इंसानियत शब्द है ही नहीं सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार है. अवरोध ही अवरोध है हिन्दू विरोध है. जिसका सपना भारत का विकास नहीं विनाश है, सर्वनाश है. रावण की तो २० भुजाएँ थी इसकी अनगिनत हैं इतनी जितनी हमारी गिनती में समा ही नहीं सकती. सवाल उठता है कि इस रावण का विनाश कैसे होगा? दोस्तों इस रावण का विनाश कठिन भी है और आसान भी. कठिन है रावण के लालच से खुद को बचाना और आसान है मतदान केंद्र तक जाना और कमल का बटन दबाना. और यह बात प. बंगाल, केरल और माओवाद प्रभावित इलाकों पर भी लागू होती है. बस आज थोड़ी-सी हिम्मत करनी पड़ेगी,वक़्त को बदले के लिए थोडा-सा वक़्त निकलना होगा फिर राम के बदले रावण को वनवास पर जाना होगा, राम का राज होगा, राम-राज्य होगा.
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