शनिवार, 22 जुलाई 2023

जलते मणिपुर के गुनाहगार

मित्रों, आज मणिपुर में गृहयुद्ध की स्थिति है. प्रदेश की ९० प्रतिशत जमीन पर काबिज ईसाई मणिपुर से हिन्दू मैतेई लोगों को खदेड़ देना चाहते हैं. जब तक ईसाई मार रहे थे और हिन्दू मर रहे थे तब तक तो सोनिया गाँधी जो ईटली से आई हुई कैथोलिक ईसाई है चुप रही लेकिन जैसे ही हिन्दुओं ने पलटवार शुरू किया उसके पेट में मरोड़ शुरू हो गया. न सिर्फ मणिपुर से हिन्दुओं को खदेड़ने की साजिश है बल्कि मिजोरम से भी मिजो ईसाई हिन्दुओं को भगा देने की धमकी दे रहे हैं. ऐसे में हिन्दुबहुल भारत में हिन्दू जाए तो कहाँ जाए? कोई दूसरा हिन्दू देश तो है नहीं. मित्रों, लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत में आजादी के बाद से जैसे-जैसे ईसाईयों की संख्या बढती गई अलगाववाद भी बढ़ता गया. स्वामी विवेकानन्द के इस कथन को हम पूर्वोत्तर में सत्य होता हुआ देख सकते हैं कि भारत में सिर्फ धर्मान्तरण नहीं हो रहा राष्ट्रान्तरण हो रहा है. फिर कांग्रेस की डबल ईंजन की सरकारों की अल्पसंख्यकवादी नीति ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया. फिर भी १९७१ तक पूर्वोत्तर की स्थिति कमोबेश नियंत्रण में थी. मित्रों, क्या आप बता सकते हैं कि १९७१ के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम उर्फ़ भारत-पाकिस्तान युद्ध से भारत को क्या लाभ हुए? आप नहीं बता सकते क्योंकि भारत को इस खामखा के युद्ध से कोई लाभ नहीं हुआ उलटे हानि हुई और वो भी जबरदस्त. सर्वप्रथम भारत की अर्थव्यवस्था पर युद्ध के खर्च का भारी बोझ पड़ा लेकिन इसके बदले भारत को एक ईंच भी जमीन नहीं मिली वह भी तब जबकि भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के ९३ हजार सैनिकों को बंदी बना लिया था. परिणाम भयंकर और अभूतपूर्व महंगाई. पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत में १९७१ के बाद पहले शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हुई फिर वामपंथियों और कांग्रेस पार्टी की कृपा से पूरा पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत घुसपैठियों से भर गया. अब तो दिल्ली, मुंबई और कश्मीर तक आपको घुसपैठिए नजर आ जाएंगे. सन १९७० तक मणिपुर में जहाँ 2-4 प्रतिशत कुकी ईसाई घुसपैठिए थे आज घुसपैठ और धर्मान्तरण के गंदे कांग्रेसी खेल के चलते मणिपुर में कुकी ईसाईयों की संख्या २१ प्रतिशत हो चुकी है. इतना ही नहीं कांग्रेस की हिंदुविरोधी नीतियों के कारण जहाँ हिन्दू मैतेई ईसाई बहुल पहाड़ी स्थानों में जमीन नहीं खरीद सकते वहीँ ईसाई हिन्दू बहुत घाटियों में आराम से जमीन खरीद सकते हैं. साथ ही कांग्रेस पार्टी ने ईसाई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर आरक्षण और अन्य लाभ दे दिए जो अनुसूचित जातियों और जनजातियों को दिए जाते हैं वो वहीँ हिन्दू मैतेई अपने ही हिन्दूबहुल देश में मुंहतका बनकर रह गए. मित्रों, फिर मणिपुर और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार बनी और निर्णय लिया गया कि मणिपुर के मैतेई हिन्दुओं के साथ पिछले ५० सालों से होनेवाले अन्याय और गैर बराबरी को दूर किया जाए और उनको भी उच्च न्यायालय के आदेशानुसार अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया जाए जिससे मैतेई हिन्दू भी आरक्षण का लाभ उठा सकें और ईसाई बहुल क्षेत्रों में जमीन भी खरीद सकें. लेकिन अब तक मणिपुर के ईसाई चीन और कांग्रेस परी की मदद से इतने शक्तिशाली हो चुके थे कि जब चाहे तब भारतीय सेना का मार्ग रोकने लगे थे. मणिपुर के ईसाई बहुल ईलाकों की तुलना हम अफगानिस्तान के तालिबानी क्षेत्रों से कर सकते हैं क्योंकि यहाँ भी अत्याधुनिक हथियारों से युक्त सेना बन चुकी है साथ ही तालिबानी क्षेत्रों की तरह गांजे और अफीम की खेती भी जमकर होती है. जैसे ही सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेशानुसार मैतेई हिन्दुओं को आरक्षण देने की घोषणा की गई ईसाईयों ने मैतेई हिन्दुओं के साथ-साथ भारतीय सेना और सुरक्षा बलों पर हमले शुरू कर दिए और हिंसा की आग में पिछले ५० सालों से जल रहे मणिपुर में हिंसा की आग और भी तेजी से भड़क उठी जिसे हिन्दू विरोधी कांग्रेस ने और भी भड़काया, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से तो उसका समझौता है ही. मित्रों, इस बीच केंद्र सरकार ने मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में उग्रवादियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया आखिर कब तक भारतविरोधी शक्तियों को पाला जाए और बर्दाश्त किया जाए. बस तभी से कांग्रेस पार्टी के पेट में दर्द शुरू है वो देश-विदेश में भारत को बदनाम करने के अभियान में जुटी हुई है. एक पूरा-का-पूरा टूल किट गैंग सक्रिय है जिसमें न्यायपालिका तक शामिल है अन्यथा बंगाल में चुनाव के दौरान हुई हिंसा, हत्याएं, बलात्कार और महिलाओं को नंगा करके घुमाने की घटनाएँ न्यायपालिका को नजर नहीं आती लेकिन मणिपुर की नजर आ जाती है. राजस्थान की कांग्रेस सरकार का मंत्री सदन में खड़े होकर ख़ुद कह रहा है कि उनकी सरकार प्रदेश की महिलाओं की सुरक्षा करने में असफल हो गई है। उन्होंने यहाँ तक कह दिया, ‘मणिपुर के बजाय हमें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।’ लेकिन मी लार्ड को फिर भी राजस्थान में कोई अत्याचार नजर नहीं आता. मैं यह नहीं कहता कि मणिपुर में दो कुकी महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ वो सही था लेकिन जब न्यायपालिका कांग्रेस और भाजपा शासित राज्यों के बीच भेदभाव करने लगेगी तो उस पर सवाल तो उठेंगे ही क्योंकि लोक से बड़ा न तो संविधान है और न ही तंत्र. कितनी विचित्र बात है कि केंद्र में ९ सालों से भाजपा की सरकार है लेकिन सिस्टम और न्यायपालिका पर आज भी कांग्रेस का कब्ज़ा है और जब तक न्यायपालिका में कोलेजियम सिस्टम रहेगा उनका कब्ज़ा बना रहेगा. मोदी सरकार ने प्रारंभ में कोलेजियम को समाप्त करने की कोशिश भी की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा होने नहीं दिया. अब मोदी सरकार ने भी मानों हार मान ली है जिस तरह से किरण रिजीजू को कानून मंत्री के पद से हटाया गया उससे तो ऐसा ही लगता है. मित्रों, अब तक आपको भी कांग्रेस के टूल किट गैंग और मणिपुर पर हंगामे की क्रोनोलॉजी समझ में आ गई होगी इसलिए भावनाओं में आकर बहिए नहीं क्योंकि उनको भी पता है कि हिन्दू भोले और दयालु होते हैं और वे अबतक इसका फायदा भी उठाते रहे हैं. इसी तरह कांग्रेस ने २००४ में भी आपको कथित ताबूत घोटाले के नाम पर भड़काया था और वाजपेयी जैसे ईमानदार चुनाव हार गए थे. फिर भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार सत्ता में आई थी और देश को कई साल पीछे धकेल दिया था. इस समय भी कांग्रेस उसी खेल को दोहरा रही है. भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति इस समय पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बनी हुई है. भारत बहुत जल्द जर्मनी और जापान को पछाड़ कर वैश्विक अर्थव्यवस्था में नंबर तीन पर काबिज होने जा रहा है और यह हम नहीं विश्व बैंक और तमाम रेटिंग एजेंसियां कह रही हैं. लगता है जैसे हम जागती आँखों से सपने देख रहे हैं. और उधर इसी बात से दिन-रात चीन के गुणगान करनेवाली कांग्रेस पार्टी की नींद उडी हुई है. तो हमें सावधान और सचेत रहना है अन्यथा चोरों का गिरोह जिसने आपको चकमा देने के लिए इंडिया नाम से गठबंधन बनाया है भारत के विश्वगुरु बनने के सपने को एक बार फिर से चकनाचूर करने के लिए तैयार बैठा है. पुनश्च- मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नस्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को बर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें बर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है। आप भी ढूंढते हैं न सस्ते मजदूर? खैर... आप मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से बर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है। आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं। इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! "पुष्पा राज, झुकेगा नहीं साला" सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, "तो क्या हुआ? हम करेंगे।" कोर्ट ने कहा, "मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।" ये कहते हैं, "कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं। मैती, मैतेई या मैतई... ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 20% है, पर जमीन 90% है। 90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको यदि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं... कितनी अच्छी बात है न? अब मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है।