शनिवार, 10 दिसंबर 2016

नोटबंदी, तुगलक और मोदी



मित्रों, क्या आप बता सकते हैं कि दुनियाभर में इतिहास क्यों पढ़ा-पढाया जाता है?  इतिहास कोई साहित्य नहीं है जिसका केवल रसानंद लिया जाए बल्कि इतिहास सबक सीखने के लिए भी है. इतिहास गवाह है कि हमारे देश पर १३२५ से १३५ ई. तक मुहम्मद बिन तुगलक नामक व्यक्ति ने शासन किया था. उसने सांकेतिक मुद्रा सहित कई प्रयोग किए थे लेकिन उनको सही तरीके से लागू न करवा पाने के चलते बुरी तरह असफल हुआ था.
मित्रों, कई लोग ८ नवम्बर के बाद हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना तुगलक से करने लगे हैं. हमने घर बनाने में नकद की कमी से परेशान रहने के बावजूद पहले भी कहा है कि नोटबंदी अच्छा कदम है लेकिन तभी जब मोदी बैंक प्रबंधकों पर नियंत्रण कर सकें. दुर्भाग्यवश ऐसा होता दिख नहीं रहा है. कुछेक बैंक वाले पकडे भी जा रहे हैं लेकिन उनकी संख्या काफी कम है. बैंकवालों ने बड़ी संख्या में नए फर्जी खाते खोलकर मोदी सरकार की कालेधन के खिलाफ मुहिम को विफल साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है. सरकार को चाहिए कि सारे बैंकों और बैंक अधिकारियों की जांच की जाए. साथ-ही-साथ आय कर अधिकारियों और जजों की संपत्ति की भी जाँच होनी चाहिए क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत है हू विल गार्ड द गार्ड.
मित्रों, अभी कुछ दिन पहले हमें अपुष्ट सूत्रों से जानने को मिला कि भारत के ११०० पंजीकृत राजनैतिक दलों में से ४०० ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. फिर इनके गठन का उद्देश्य क्या है?  क्या सूचना के अधिकार से बाहर होने के चलते राजनैतिक दल काले धन को सफ़ेद करने की फैक्ट्री बन गए हैं? सवाल उठता है कि जबकि बांकी सारे दलों की रैलियां नकद नहीं होने के चलते स्थगित हो गयी हैं भाजपा रैलियों के लिए कहाँ से और कैसे खर्च कर रही है?
मित्रों, कई लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि जब सारी नकदी बैंक में आ गयी तो नोटबंदी से लाभ क्या हुआ. मगर वे यह भूल जाते हैं कि अब सारा पैसा सरकार के पास आ गया है और सरकार के लिए एक-एक खाते की जाँच करना कोई मुश्किल काम नहीं है जबकि हर घर पर छापा मारना नामुमकिन था. 
मित्रों,सारे सवालों के बावजूद कम-से-कम मैं अभी मोदी की तुलना तुगलक से करने की मूर्खता नहीं करूंगा और वेट एंड वाच की नीति का पालन करूंगा.आलेख का अंत मैं एक संस्कृत कहावत से करना चाहूँगा कि अगर कोई राजकीय योजना विफल होती है तो या तो राजा के सलाहकार मूर्ख हैं या फिर राजा अयोग्य.

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

जयललिता शून्य से शून्य तक



मित्रों, जब कोई नेता मरता है तो कसम से समझ में नहीं आता कि उसको किस रूप में याद करूँ। जयललिता को ही लीजिए। उनका नाम जेहन में आते ही मुझे सबसे पहले याद आता है कि कभी आय से ज्यादा धन रखने के अपराध में जेल गई थीं। आज से 20 साल पहले उनके पास से कई क्विंटल सोना-जवाहरात बरामद हुए थे। बाद में जयललिता ने इसका बदला भी लिया करूणानिधि को जेल भेजकर।
मित्रों, फिर हमारे जेहन में आता है तमिल राष्ट्रवाद। भुलाए नहीं भूलता कि जयललिता के लिए तमिलनाडु पहली प्राथमिकता था और अंतिम भी। जयललिता ने चुनाव जीतने के लिए हर पैंतरे का भरपुर उपयोग किया। लगभग हर चीज जनता को मुफ्त में दिया। खासकर तमिलनाडु की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था आज भी देश में सर्वोत्तम है। इन सबके बावजूद गरीबों को गरीब बनाकर रखा। चुनाव जीतने के लिए जयललिता भूल गई कि वो जन्मना ब्राह्मण है। वो भूल गई कि उनका भी कोई अपना है,अपना परिवार है। अस्पताल में उनके परिजनों को उनका दूर से दर्शन तक नहीं होने दिया गया। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है मृत्योपरांत उनका अंतिम संस्कार भी इस डर से नहीं किया गया कि कहीं ऐसा करने से द्रविड़ वोटबैंक नाराज न हो जाए या फिर लोग जान न जाएँ कि जयललिता का कोई परिवार भी है।
मित्रों, फिर याद आता है हमें कि किस तरह जयललिता ने स्व. एमजी रामचंद्रन की पत्नी को अपदस्थ कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा किया था। फिर किस तरह वो शशिकला के संपर्क में आई जो महत्त्वाकांक्षा में कहीं-न-कहीं उनसे भी बढ़कर थी। उसने उनको जहर देना शुरू कर दिया। फिर पोल खुलने के बाद दोनों अलग हो गए। बाद में न जाने क्यों जयललिता ने उसको फिर से अपने साथ कर लिया।
मित्रों, फिर याद आता है कि किस तरह उसने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को बिना वजह गिरा दिया था।
मित्रों, आज जयललिता जीवित नहीं है। पनीर सेल्वम एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन क्या वे सचमुच पार्टी में सर्वोच्च हैं? नहीं पहले जो जगह जयललिता की थी आज उस जगह पर शशिकला विराजमान हो चुकी हैं। कदाचित् जयललिता सरीखी वैसे नेताओं का अंत इसी तरह विधि ने लिखा होता है जो अपने परिवार से दूर रहकर राजनीति करते हैं। पहले कांशीराम के साथ भी लगभग ऐसा ही कुछ हुआ था। एनटी रामाराव के मामले में स्थिति जरूर उल्टी रही।
मित्रों, आप चाहे देवता बनकर जीयें या दानव बनकर उनको एक-न-एक दिन मरना तो होता ही है। जयललिता भी मरी,हम सब भी मरेंगे। खाली हाथ आए थे,खाली हाथ चले जाएंगे। रह जाएगी बस यादें और करनी।

  

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

बाबाजी तुम क्या चीज हो?



मित्रों, अपने देश में पहेली पूछने और बूझने की लम्बी परंपरा रही है. मगर वास्तविकता तो यह है आदमी खुद ही बहुत बड़ी पहेली है. मसलन हम किसी को समझते कुछ और हैं और वो निकलता कुछ और ही है. कई बार तो एक ही इंसान के इतने सारे रूप सामने आते हैं कि देखनेवाला हतप्रभ हो जाता है कि इनमें से कौन-सा रूप सही है और कौन-सा गलत.
मित्रों, अपने बाबा रामदेव को ही लीजिये. पहले पता चला कि वे एक योगी-संन्यासी हैं. फिर पता चला कि आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माता और व्यापारी हैं. फिर पता चला कि राजनीतिज्ञ हैं. फिर पता चला कि वे चैनल के मालिक हैं. फिर पता चला कि वे बहुत बड़े देशभक्त हैं और कालेधन के प्रबल विरोधी भी. फिर पता चला कि बहुत बड़े धनकुबेर हैं. और अब पता चल रहा है कि वे कालेधन और भ्रष्टाचार के प्रतीक लालू प्रसाद यादव के समधी बनने जा रहे हैं. पता नहीं आगे बाबाजी और क्या-क्या बनेंगे?
मित्रों, हमारी नजर में संन्यासी रामकृष्ण परमहंस थे जो कंचन और कामिनी को हाथ तक नहीं लगाते थे. हमने तो यहाँ तक सुना है कि पैसे को हाथ लगाते हुए उनकी कलाई ही मुड़ जाती थी. संन्यास के मतलब ही होता है पूर्ण वैराग्य. फिर बाबा रामदेव किस तरह के सन्यासी हैं. गेरुआ वस्त्र पहन लिया लेकिन उनको अकूत पैसा चाहिए. उनके परिवार के लोग आज भी उनके साथ रहते हैं और उनकी कई कम्पनियों में साझीदार हैं. उनको रथयात्रा तक पसंद नहीं पैदल चलना तो दूर की बात है. हमेशा पुष्पक विमान में उड़ते रहते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि या तो बाबा विशुद्ध गृहस्थ हैं और उनको संन्यासी कहना कदाचित संन्यास आश्रम का ही अपमान है. बाबा खुद को कालाधन का सबसे बड़ा विरोधी बताते हैं और लालू से गुप्त मुलाकात करने निजी विमान से जाते हैं तो कभी लालू के गाल पर मक्खन लगाते हैं.
बाबा रे बाबा, इतना कन्फ्यूजन. दिमाग का फ्यूज न उड़ जाए. हमारी समझ में तो बिलकुल भी नहीं आ रहा कि ये बाबा जी हैं क्या जो न केवल पूरे भारत को बाबा जी समझ रहे हैं बल्कि बाबाजी बना भी रहे हैं. अगर आप की समझ में ये निर्गुण, निराकार आ रहे हैं तो कृपया हमें भी समझाईए अन्यथा हमारे साथ मिलकर कुरुक्षेत्र निवासी बाबाजी से यह बतलाने की कृपा करने के लिए प्रार्थना करिए कि हे माधव, हे सखे, हे केशव आप चीज क्या हो?

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

कालेधन पर जुरमाना अभी भी २०० प्रतिशत ही है कृपया रायता न फैलाएँ



मित्रों, इस साल जब जेटली ने २०१६ के बजट पेश किया था तब उन्होंने इनकम टैक्स में २ नए अधिनियम जोड़े थे। अगर कोइ व्यक्ति अपनी इनकम को कम करके बताता है तो उस पर ५० प्रतिशत टैक्स पेनाल्टी का प्रावधान था। यानि ३० प्रतिशत टैक्स के ऊपर ५० प्रतिशत यानि टोटल ४५ प्रतिशत। और यदि कोइ व्यक्ति पकड़ा जाता है तो यही पेनाल्टी २०० प्रतिशत लगनी थी। यानि ९० प्रतिशत। जब मोदी जी विमुद्रीकरण किया तो उन्होंने इसी २०० प्रतिशत की पेनाल्टी का जिक्र किया था। नए प्रावधानों के अनुसार आयकर अधिनियम, 1961 और वित्त अधिनियम, 2016 का और संशोधन करने वाला यह विधेयक ‘धन विधेयक’ है।

मित्रों, इसमें प्रस्ताव किया गया है कि अगर लोग अपनी अघोषित नकद की घोषणा करते हैं, तो उन्हें कर एवं जुर्माने के रूप में 50 प्रतिशत देना होगा, जबकि ऐसा नहीं करने और पकड़े जाने पर 85 से ९० प्रतिशत कर एवं जुर्माना लगेगा। संशोधित आयकर कानून में यह भी प्रावधान है कि घोषणा करने वालों को अपनी कुल जमा राशि का 25 प्रतिशत प्रधानमंत्री मंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) में लगाना होगा, जहां कोई ब्याज नहीं मिलेगा। साथ ही इस राशि को चार साल तक नहीं निकाला जा सकेगा।

मित्रों, इसमें यह भी प्रावधान है कि घोषणा करने वालों को अपनी कुल जमा राशि का 25 प्रतिशत सरकार द्वारा लायी जा रही एक ‘गरीबी-उन्मूलन योजना’ में निवेश करना होगा। इसमें लगाए गए पैसे पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। साथ ही इस राशि को चार साल तक नहीं निकाला जा सकेगा। जो लोग गलत तरीके से कमाई गई राशि अपने पास 500 और 1,000 के पुराने नोट में दबाकर रखे हुए थे और जो उसकी घोषणा करने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना 2016 के तहत इसका खुलासा करना होगा। उन्हें अघोषित आय का 30 प्रतिशत की दर से कर भुगतान करना होगा। इसके अलावा अघोषित आय पर 10 प्रतिशत जुर्माना लगेगा। साथ ही पीएमजीके उपकर नाम से 33 प्रतिशत अधिभार (30 प्रतिशत का 33 प्रतिशत) लगाया जाएगा। इतना ही नहीं इस संशोधन विधेयक के द्वारा मोदी सरकार ने कांग्रेस राज में बनाए गए आयकर कानून में मौजूद कई कमियों को भी दूर करने का प्रयास किया है  जिसका फायदा अब तक कालाधनधारक उठा रहे थे

मित्रों, इस प्रकार हम पाते हैं कि संशोधित विधेयक में पहले से भी ज्यादा कड़े प्रावधान किए गए हैं फिर भी कुछ लोग जाने-अनजाने में इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं कि मोदी सरकार ने यूटर्न ले लिया है या कालेधन के मुद्दे पर फिरकी ले रही है। ऐसे लोगों से अनुरोध है कृपया वे रायता न फैलाएँ। गंदे लोगों की इस तरह की गन्दी हरकतों का काफी बड़ा खामियाजा देश पहले ही काफी भुगत चुका है। इसलिए आपलोगों से करबद्ध प्रार्थना है कि देश में पहली बार सिर्फ देश की चिंता करनेवाली सरकार आई है कृपया उसे निर्बाध रूप से काम करने दें।