शनिवार, 28 दिसंबर 2019

बिहार सचमुच एक नजीर है नीतीश जी


मित्रों, एक समय था जब बिहार सचमुच दुनिया के लिए एक नजीर या उदाहरण था. देश की आजादी के समय और तत्काल बाद बिहार प्रतिव्यक्ति आय में देश में दूसरे स्थान पर था. जबकि प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के समय सुशासन में बिहार देश में अव्वल था. कमोबेश बिहार की स्थिति १९९० तक ठीक-ठाक थी जब तक यहाँ कांग्रेस का शासन था. फिर लालू जी बिहार की मुख्यमंत्री बने और बिहार की बर्बादी शुरू हो गयी. सबसे पहले तो कानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब हो गयी और फिर पूरे बिहार की हर चीज ख़राब हो गयी लेकिन लालू जी फिर भी सामाजिक समीकरण के बल पर चुनाव जीतते रहे. फिर आया छोटे भाई नीतीश कुमार जी का शासन. शुरू के ५ साल कुछेक गलतियों को छोड़कर अच्छे रहे. हालाँकि बिहार की शिक्षा-व्यवस्था की हत्या की प्रक्रिया नीतीश जी के पहले कार्यकाल में ही शुरू हो गई थी. नीतीश जी ने नौकरशाही और लोकशाही में संतुलन साधने के स्थान पर सबकुछ नौकरशाही को सौंप दिया. बाद में शराबबंदी के बाद नौकरशाही और भी निरंकुश हो गयी. अब स्थिति इतनी ख़राब है कि बिहार में शासन-प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं है.

मित्रों, पहले नीतीश जी जनता दरबार भी लगाते थे लेकिन आज के बिहार में ऐसी कोई व्यवस्था है ही नहीं जहाँ जाकर कोई शिकायत करे. अभी कल ही नीतीश जी लखीसराय के सूर्यगढ़ा में एक सभा को संबोधित करने गए थे. लोगों ने नारे लगाना शुरू कर दिया कि डीलर बहाली में घोटाला हुआ है तो भड़क गए और मंच से कोई आश्वासन देने के बजाए नारे लगानेवालों को जेल भेजने की धमकी देने लगे. इससे पहले भी नीतीश जी कभी पत्रकारों के सवाल पर तो कभी जनता की मांग पर भड़कते रहे हैं. ईधर तीन-चार सालों में तो उन्होंने जनता की बातों पर कान देना ही बंद कर दिया है. उल्टे सवाल उठने पर भड़क जाते हैं.

मित्रों, कुछ ऐसे ही घमंड के पहाड़ पर कुछ दिन पहले तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुबर दास भी चढ़े हुए थे. फिर उनकी क्या गति हुई आप सभी जानते हैं. अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए नीतीश जी ने कल-परसों में यह भी कह डाला है कि विकास में मामले में बिहार दुनिया के लिए एक नजीर है. पता नहीं नीतीश जी किस विकास की बात कर रहे हैं? बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी ख़राब है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल है. रोज कई-कई डाके-चोरी और हत्या के समाचार तो सिर्फ हाजीपुर से आ जाते हैं. आज सुबह ही कांग्रेस नेता राकेश यादव की हत्या हुई है। इतनी ख़राब हालत तो लालू-राबड़ी के जंगलराज के समय भी बिहार की कानून-व्यवस्था की नहीं थी. भ्रष्टाचार का बिहार में वो आलम है कि क्या मजाल किसी कार्यालय में बिना रिश्वत दिए कोई काम हो जाए. यहाँ तक कि बैंक जो केंद्र सरकार के हाथों की चीज हैं भी बिहार में बिना १० प्रतिशत रिश्वत लिए मुद्रा लोन तक नहीं देते. उद्योगों का तो कहना ही क्या? जब ख़राब कानून-व्यवस्था के चलते बिहार के व्यवसायी ही राज्य छोड़कर अपनी जान बचाकर भाग रहे हैं तो बाहर से कोई क्यों आने लगा? शिक्षा-व्यवस्था सिर्फ परीक्षा-व्यवस्था बनकर रह गयी है. सरकारी अस्पताल खुद ही बीमार हैं. प्रशासनिक तत्परता की हालत ऐसी है कि राजधानी पटना में कुछ दिन पहले हुई बरसात के समय राहत कार्य नहीं चलाया जा सका दूर-दराज के इलाकों की तो बात करना ही बेमानी है.

मित्रों, ऐसी हालत में नीतीश कुमार जी कैसे कह सकते हैं कि बिहार का विकास दुनिया के लिए एक नजीर या उदाहरण है. हाँ, अगर वे ऐसा कहते कि बिहार का विनाश दुनिया के लिए एक नजीर है तो जरूर वह सच होता. कुछ इसी तरह के सब्जबाग कुछ दिन पहले तक झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास भी अपनी पार्टी नेतृत्व को दिखा रहे थे लेकिन चुनाव-परिणामों ने खुद ही उनकी पोल खोलकर रख दी है. तो क्या नीतीश जी का भी यही हश्र होनेवाला है?  घमंड तो रावण का भी टूटा था. आज नीतीश जी मंच से जनता को धमकी दे रहे हैं कल वे शायद मंचासीन होने की स्थिति में भी नहीं रह जाएंगे.

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

मुसलमानों के कन्धों पर कांग्रेस की बन्दूक

मित्रों, जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी है. जाहिर है कि उसे राजनीति के सारे दांव-पेंच भी आते हैं. इसके साथ ही उसके लिए अनैतिक भी कुछ भी नहीं है. कन्धा किसी का भी हो वो उसके ऊपर अपना बन्दूक रखकर गोलियां दागने से हिचकती नहीं है. फिर चाहे वह कन्धा दलितों का हो या फिर पाकिस्तान-चीन का ही क्यों न हो. इन दिनों कांग्रेस ने एक और कंधे का जुगाड़ कर लिया है और वो कन्धा है मुसलमानों का. चूंकि यह पंथ पहले से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रस्त है इसलिए बारूद को बस एक चिंगारी दिखाने की आवश्यकता थी जो इन दिनों कांग्रेस दिखा रही है.
मित्रों, इससे पहले भी कांग्रेस पार्टी के नेता कई बार नरेन्द्र मोदी जी का पुतला जलाने के प्रयास में अपने हाथ जला चुके हैं. लेकिन अब कांग्रेस ने कुछ बड़ा करने की सोंची है. पुतले फूंकते-फूंकते अब वो उब चुकी है और अब वो देश को जलाना चाहती है. कुछ ऐसा ही १९४६ में भी मुसलमानों ने किया था. तब मुस्लिम लीग उनकी सरपरस्ती कर रही थी और कांग्रेस उसके खिलाफ थी लेकिन अब कांग्रेस ही मुस्लिम लीग बन गयी है और मुसलमानों के मन में भय और अलगाव के बीज डालकर ठीक उसी तरह अपना उल्लू सीधा करना चाहती है जैसे १९४६ में मुस्लिम लीग ने किया था.
मित्रों, ऐसा करते समय कांग्रेस यह भूल गयी है कि यह १९४६ वाला भारत नहीं है. आज भारत गुलाम नहीं है और न ही यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू सोये हुए हैं कि कांग्रेस उनको १९४६-४७ की तरह बरगला लेगी. कितने आश्चर्य की बात है कि जिस एनआरसी को राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए असम समझौते के द्वारा १९८५  में मंजूरी दी थी आज वो बदले हुए परिप्रेक्ष्य में उसी की मुखालफत कर रही है. वो समझती है कि मुसलमानों के पूरे वोट बैंक पर कब्ज़ा करने बाद हिन्दुओं को ख़राब अर्थव्यवस्था के नाम पर भड़काकर वो आसानी से चुनाव जीत जाएगी. दरअसल उसे पता है कि जबकि हिन्दुओं को भावनात्मक मुद्दों पर एकजुट नहीं किया जा सकता लेकिन मुसलमानों को आसानी से किया जा सकता है. उसे पता है कि दोनों कौम के सोंचने का तरीका अलग-अलग है इसलिए वो एक साथ दोनों दांव चल रही है और सफल भी हो रही है. ऐसा करके ही उसने अभी झारखण्ड का चुनाव जीता है.
मित्रों, लगता है कि इतनी-सी बात भाजपा समझने को तैयार नहीं है कि मुसलमान उसको कभी वोट नहीं देंगे चाहे वो कितने भी हज हाउस क्यों न बनवा दे. आचार्य चाणक्य का एक श्लोक है-*यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।* *ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि॥* अर्थात जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का अनुसरण करते हैं, उनका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिश्चित तो नष्ट के समान ही है। इसलिए भाजपा को चाहिए कि वो पहले अपने वर्तमान वोट बैंक को सुदृढ़ करे. ऐसा न कर सकने के कारण ही उसे झारखण्ड से पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा. दूसरी तरफ मैं मुसलमानों को सचेत करना चाहूँगा कि वो कांग्रेस की बन्दूक का कन्धा न बनें. क्योंकि जब उनकी क्रिया की प्रतिक्रिया आनी शुरू होगी तब कांग्रेस का कुछ नहीं बिगड़ेगा और उनके सारे नेता मजे में विदेश-भ्रमण पर होंगे. इसलिए वे ऐसा कोई भी काम न करें जो देश के बहुसंख्यक वर्ग को उकसाने वाला हो. अगर वे वास्तव में ऐसा समझते हैं कि यह देश उनका भी उतना ही है जितना हिन्दुओं का है तो वे भी इस देश से उतना ही प्यार करना शुरू कर दें जितना हिन्दू करते हैं और जब भी राष्ट्र गान बजे तो सम्मान में खड़े हो जाएँ क्योंकि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय झंडे का सम्मान राष्ट्र का सम्मान होता है और इनका अपमान राष्ट्र का अपमान होता है. जब देशवासी ही अपने देश के राष्ट्रगान और राष्ट्रीय झंडे का सम्मान नहीं करेंगे तो हम विदेशियों से इनके सम्मान और अपने सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. कांग्रेस को समझाना तो बेकार है क्योंकि वो अगर विलेन की भूमिका में है तो सब कुछ जानते-बूझते हुए है. भाजपा को अवश्य समझाया जा सकता है कि वो सुब्रमण्यम स्वामी की अर्थव्यवस्था से सम्बंधित चेतावनियों को हल्के में कतई न ले क्योंकि वे फालतू में कुछ भी नहीं बोलते. अन्यथा राम मंदिर बनवाने से जो राजनैतिक लाभ मिल सकता था नहीं मिल पाएगा और ऐसा झारखण्ड में हो भी चुका है. साथ ही भाजपा हिन्दुओं और मुसलमानों को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश कतई न करे क्योंकि हिन्दू पढ़े-लिखे और समझदार हैं जाहिल नहीं हैं.

मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

मोदी जी कृपया जमीन पर आ जाईए


मित्रों, भारत के प्रखर और यशस्वी संन्यासी स्वामी विवेकानंद कहा करते थे पहले भूखे के पेट में खाना डालो फिर उसे धर्म समझाओ क्योंकि भूख और प्यास से बढ़कर कोई अन्य धर्म नहीं है. दुर्भाग्यवश इतनी-सी बात हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को समझ नहीं आ रही है. वे इस बात को समझकर भी समझने को तैयार नहीं हैं कि देश के लोगों को रोजगार चाहिए, निजीकरण नहीं. वे बस एक ही बात की रट लगाए बैठे हैं कि व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है इसलिए रेलवे, एयर इंडिया, डाक विभाग, बीएसएनएल सबको बेच दो और जो पहले से इनमें नौकरी में हैं उनको घर बिठा दो. इसी तरह से झारखण्ड में घमंड के चने के झाड़ पर बैठे मुख्यमंत्री रघुबर दास कहा करते थे कि वे रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री नहीं बने हैं. बेचारे कल रात से खुद बेरोजगार हो गए.
मित्रों, वर्ष २०१५ की बात है. हम मुकदमा जीत चुके थे. हमें जमीन पर दखल कब्ज़ा करवाना था. हम एसपी दफ्तर के चक्कर काट रहे थे लेकिन तत्कालीन एसपी फ़ोर्स भेजने सम्बन्धी कागजात पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे थे. हमने जब उनको तकादा किया तो नाराज हो गए और कहा कि वे हस्ताक्षर नहीं करेंगे तो हम उनका क्या बिगाड़ लेंगे. हमें भी ताव आ गया और हमने भी उनको कह दिया कि एसपी हैं तो आसमान में नहीं उड़िए हम तुरंत आपको जमीन पर ला देंगे. दरअसल कोर्ट ने हमें दखलदहानी की जो तारीख दे रखी थी उसमें अब मात्र दो दिन बचे थे. अगर हम उस दिन यह काम नहीं करवा पाते तो पता नहीं कोर्ट फिर से कब तारीख देती. शायद कई साल बाद. थक-हारकर हमने डीजीपी साहब को फोन लगाया और उनसे सारी व्यथा कह सुनाई. तभी उन्होंने एसपी को फोन किया और दो घंटे बाद एसपी साहब का फोन आया कि कागज ले जाईए आर्डर कर दिया है.
मित्रों, ठीक इसी तरह रघुबर दास भी आसमान में उड़ने लगे थे. वे यह भी भूल गए थे कि तीनों भुवन के स्वामी होकर असली रघुबर भगवान राम ने कभी अभिमान नहीं किया तो वे क्यों कर रहे हैं? परिणाम आपलोगों के सामने है. जिस जनता ने उनको आसमान पर बिठाया उसी जनता ने उनको जमीन पर ला पटका. इसी तरह मोदी जी और अमित शाह जी को समझ जाना चाहिए कि लोकतंत्र में सबकुछ जनता के हाथों में होता है. वो आप पर रीझ सकती है तो खीझ भी सकती है. उनको यह भी समझ लेना चाहिए कि सिर्फ भावनात्मक मुद्दों पर लगातार चुनाव नहीं जीते जा सकते जमीन पर लोगों को काम नजर भी आना चाहिए. आप लोगों से पिछले साढे ५ सालों में एक विशेषज्ञ वित्त मंत्री तक नहीं ढूँढा गया आप क्या खाक अच्छे दिन लाएंगे? आखिर कब तक आप कामचलाऊ वित्त मंत्री से काम चलाएंगे? अगर यही आपकी जिद है तो करिए. आज झारखण्ड में अपनी जिद के कारण हारे हैं कि हम तो रघुबर को भी सेनापति रखेंगे कल पूरे भारत से जाएंगे. हम पिछले कई सालों से कहते आ रहे हैं कि वित्त मंत्रालय भारत का उदर है अगर यह ख़राब हो गया तो पूरे देश की दशा ख़राब हो जाएगी लेकिन आपलोग तो सुनते नहीं. उड़िए और खूब उड़िए आसमान में लेकिन यह न भूलिए कि हर पांच साल बाद लौट कर फिर से जमीन पर ही आना है इसलिए कुछ काम भी कर लीजिए. मोदी जी आपके मंत्री नितिन गडकरी जी जो अनुभव में आपसे कहीं आगे हैं कह रहे हैं कि देश में लिक्विडिटी की कमी है. कम-से-कम उनकी तो सुन लीजिए. एक अकेले अम्बानी या अडानी पूरे परिवारसहित भी आपको एकतरफा वोट कर देते हैं तो क्या आप जीत जाएंगे? याद रखिए राम मंदिर, हिंदुत्व आदि मुद्दे जनता को तभी भावेंगे जब उनके पेट में अनाज और जेब में पैसा होगा. अन्यथा भूखी होने पर जनता आपके सारे विधेयकों और कानूनों को खा जाएगी. और हाँ, भूख का कोई धर्म नहीं होता. हमारी नहीं तो कम-से-कम उस नरेन्द्र की तो सुन लीजिए जिसे दुनिया विवेकानंद के नाम से जानती है.

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

दुष्प्रचार की शिकार है नागरिकता संशोधन कानून

 
मित्रों, यकीन मानिए वर्ष १९९१ तक मुझे पता ही नहीं था कि शुक्रवार को जुमा भी कहा जाता है. जब अमिताभ बच्चन साहब ने १९९१ में हम फिल्म में किमी काटकर से यह याद दिलाते हुए चुम्मा माँगा कि पिछले जुमे को उसने चुम्मे का वादा किया था तब हमने जाना कि शुक्रवार को जुमा भी कहा जाता है. बाद में जब जगन्नाथपुर से महनार आया तब यह भी जाना कि हर शुक्रवार को मुसलमान मस्जिद में जमा होते हैं. साथ में नमाज पढ़ते हैं और मौलाना की तकरीर सुनते हैं. तब मेरा अड्डा महनार चौक के पास स्थित मस्जिद के ठीक सामने मोहन सिंह की किताब की दुकान हुआ करती थी. मुझे तब बहुत अच्छा लगता था कि लोग इकठ्ठे होकर भगवान की इबादत कर रहे हैं.
मित्रों, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब जब भी शुक्रवार का दिन आता है मैं डर जाता हूँ कि न जाने कहाँ से दंगों, लूटपाट और आगजनी की खबर आ जाए. दरअसल इन दिनों मस्जिदों में नफरत भरी तकरीर सुनने के बाद मुसलमान अलग ही मूड में होते हैं खासकर मुस्लिमबहुल इलाकों में. उस पर अगर उनकी पीठ पर विपक्षी दलों का हाथ हो तब तो कहना ही क्या. अब आज की तारीख को ही ले लीजिए. हाँ, भई आज भी जुमा है और मोदी विरोधियों के कुप्रचार के चलते इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा भी गरमाया हुआ है. पिछले कई दिनों से इसको लेकर न जाने क्यों चिल्ल-पों मचा हुआ है जबकि सच्चाई तो यह है कि यह कानून भारत के किसी नागरिक के बारे में है ही नहीं. लेकिन विरोध करना है तो करना है और मुसलमान ठहरे मोदी और भाजपा के स्वाभाविक विरोधी इसलिए बिना बात के भी विरोध करते रहते हैं. ऐसे माहौल में माहौल को और भी ख़राब करने के ख्याल से विपक्षी दलों और मुस्लिम नेताओं ने देशभर के मुसलमानों से आह्वान किया है कि आज जुमे की नमाज के बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करें. अब अगर प्रदर्शन होगा तो पुलिस पर पत्थर भी फेंके जाएंगे और जवाब में पुलिस गोली भी चलाएगी. तब मरेगा कौन? जैसे अगलगी में कुत्ता नहीं जलता वैसे ही नेता तो कभी नहीं मरेगा और न ही नेता के बच्चे मरेंगे क्योंकि वे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे होंगे. इसलिए कृपया सोंच-समझकर ही प्रदर्शनों में भाग लें. क्योंकि नेता आपको गुमराह कर रहे हैं, आपको अपने हाथों की कठपुतली समझ रहे हैं. आप ही बताईए जब नागरिकता संशोधन कानून भारत के नागरिकों के लिए है ही नहीं तो फिर इससे आपकी नागरिकता को कैसे खतरा हो सकता है? आपको डराया जा रहा है कि CAA ही NRC है जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है. दोनों दो चीजें हैं. NRC आई है मगर सिर्फ असम में और उसमें भी इतनी त्रुटियाँ हैं कि वहां की सरकार ने भी इसे लागू करने से मना कर दिया है.
मित्रों, हर चीज का दो तरह से इस्तेमाल हो सकता है, अच्छा और बुरा और जनसमर्थन भी इसका अपवाद नहीं है. जनता को नेता भेड-बकरी समझते हैं, जिधर हांक दिया चल देंगे. लेकिन क्या हम सिर्फ भीड़ का हिस्सा हैं? क्या हमारे पास खुद का विवेक नहीं है? अगर है तो हमें पहले नागरिकता संशोधन विधेयक का विस्तृत अध्ययन करना चाहिए फिर सोंचना चाहिए कि क्या हमें इसका विरोध करना चाहिए. लेकिन ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त होंगे और अपने जेहन को नेताओं के पास बंधक नहीं छोड़ा होगा, जब हमारी एक अदद इन्सान के तौर पर पहचान होगी. अगर ऐसा नहीं होगा तो हममें और एक रोबोट में कोई अंतर नहीं है. हमने बेकार में एक इन्सान के तौर पर जन्म लिया.
मित्रों, करुनायतन भगवान बुद्ध ने कहा था कि अप्पो दीपो भव अर्थात खुद ही दीपक बनो और खुद ही अपना गुरु बनो. वास्तविकता भी यही है कि इन्सान के खुद के जेहन से बड़ा कोई गुरु हो ही नहीं सकता. कोई दूसरा व्यक्ति या कोई किताब जो कहेगी उसे कोई इन्सान अगर बिना अपने विवेक की कसौटी पर कसे आँखें मूँदकर मान लेता है तो फिर वो इन्सान हो ही नहीं सकता, जानवर है. लेकिन आज के भारत में हो क्या रहा है? एक तरफ अंधसमर्थक हैं तो दूसरी तरफ अंधविरोधी. यह पूरा युग ही जैसे अंधयुग है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम जागें और दूसरों को भी जगाएँ अन्यथा कोई भी आपका इस्तेमाल कर सकता है और मतलब निकल जाने पर दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक सकता है. इस बीच केंद्र सरकार की ओर से कुल 13 सवालों के जवाब दिया गया है, जो आम लोगों को CAA के बारे में मुकम्मल जानकारी देते हैं. इन सवालों के अलावा मोदी सरकार की ओर से सभी अखबारों में CAA से जुड़ी जानकारी का विज्ञापन दिया गया है.





सोमवार, 16 दिसंबर 2019

मेरे देश को मत जलाओ

मित्रों, हमारे देश में कुछ वर्ग के लोग अपने अधिकारों को लेकर काफी जागरूक हैं. जरा-सा मौका मिला नहीं कि सड़कों पर उतर आते हैं. फिर शुरू होती है तोड़-फोड़ और आगजनी. ज्यादातर मामलों में राष्ट्रीय संपत्ति को भी जमकर नुकसान पहुँचाया जाता है. कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर लोग मेरे देश को जलाते रहते हैं.
मित्रों, चाहे जाटों को आरक्षण मांगना हो या गुर्जरों को जब भी ऐसा होता है ये रेलवे लाईन पर खाट-हुक्का लेकर पूरे कुनबे के साथ आ धमकते हैं. जैसे रेलवे लाईन रेलवे लाईन न होकर हड़ताली मोड़ या जंतर-मंतर हो. लेकिन राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का जहाँ तक सवाल है इस मामले में सबसे आगे होते हैं मुसलमान. हर शुक्रवार को इनका इस्लाम खतरे में होता है और ये अलग ही मूड में होते हैं. खुद तो भोर में अजान देकर अपने पडोसी गैर मुसलमानों की नींद रोज ख़राब कर देते हैं लेकिन क्या मजाल कि इनके मोहल्ले में कोई हिन्दू दिन-दोपहर को मंदिर में आरती करे. ये तुरंत तोड़-फोड़ शुरू कर देते हैं जैसे इनके मजहब के पास और कोई काम ही नहीं हो सिवाय तोड़-फोड़ करने के.
मित्रों, अभी-अभी केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया है जिसका भारतीय मुसलमानों से कुछ भी लेना-देना नहीं है लेकिन भारतीय मुसलमान इतनी-सी बात को समझने को तैयार नहीं है और असम से लेकर दिल्ली तक बस-ट्रेन जला रहे हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं है कि ट्रेनों-बसों-सडको के बंद होने से यात्रियों को कितनी परेशानी होगी इनको तो बस इस्लाम की कथित रक्षा करनी है जबकि वास्तविकता यह है कि इस्लाम को किसी दूसरे से कोई खतरा नहीं है बल्कि खुद इनसे ही खतरा है. कई ट्रेनों-बसों यहाँ तक कि रेलवे स्टेशनों तक को इनलोगों ने फूंक डाला है जैसे ये राष्ट्रीय संपत्ति को शत्रु-राष्ट्र की संपत्ति समझते हों. इसके साथ ही हिन्दुओं के घरों, गाड़ियों और मंदिरों पर भी हमले किए गए हैं. हाँ, एक मामले में ये लोग जरूर बहुत जागरूक हैं-अपने अधिकारों के मामले में. लेकिन इनको कौन समझाए कि भारत के संविधान में सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं दिए गए हैं बल्कि अनुच्छेद ५१ (क) में मौलिक कर्त्तव्य भी बताए गए हैं और उनमें राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना भी शामिल है.
मित्रों, अंत में मैं भारत की समस्त डेढ़ अरब जनसँख्या से करबद्ध प्रार्थना करना चाहूँगा कि कृपया मेरे देश को मत जलाईए. आप जिस ट्रेन को खेल-खेल में जला डालते हैं अगर उसको आपको अपने पैसों से बनवाना पड़े तो आपको इसके लिए कई जन्म लेने पड़ेंगे. साथ ही आप तोड़-फोड़ करके जो दूसरे इंसानों को परेशान करते हैं उससे सिवाय इंसानियत के और कुछ आहत नहीं होती. साथ ही ऐसा करके आप खुद अपने ही इन्सान होने पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हैं. मुझे नहीं इस बात से कुछ भी लेना-देना कि आपका नाम क्या है या आपका धर्म-जाति क्या है मुझे तो बस अपने प्यारे राष्ट्र से मलतब है जिसका कण-कण मेरे लिए काशी-काबा से कहीं बढ़कर पवित्र है.

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

आरक्षण सही तो CAB गलत कैसे?

मित्रों, मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है कि किसी भी सरकार के किसी भी कदम का विरोध औचित्यपूर्ण और तार्किक होना चाहिए. सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना न केवल मूर्खतापूर्ण हो सकता है बल्कि कई बार सारी सीमाओं को पार कर सीमापार बैठे हमारे दुश्मनों को लाभ पहुँचानेवाला भी साबित होता है.
मित्रों, अगर हम CAB अर्थात CITIZENSHIP AMENDMENT BILL यानि नागरिकता संशोधन विधेयक को ही लें तो इसका विरोध करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं लगता. बल्कि इसका स्वागत होना चाहिए. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इस्लाम दुनिया का सबसे असहिष्णु मजहब है अपितु अगर हम ऐसा कहें कि यह आतंकवादियों का मजहब बनकर ज्यादा प्रसिद्धि पा रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. मैं यहाँ धर्म शब्द का प्रयोग इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि तब दुनिया में अधर्म कुछ भी नहीं रह जाएगा. धर्म शब्द एक बहुत पवित्र शब्द है और इसकी अपनी गरिमा है.
मित्रों, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि १९४६ के १६ अगस्त को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के माध्यम से दंगों की शुरुआत मुसलमानों ने की थी. बाद में भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का जीना दुश्वार कर दिया गया जिसके चलते उनकी आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई. दूसरी तरफ भारत में स्थितियां इसके उलट रही. कांग्रेस और अन्य छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी दलों ने हिन्दू विवाह अधिनियम और अन्य समान कानूनों के माध्यम से हिंदुस्तान में हिन्दुओं को ही दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया. हालात कुछ ऐसे बने कि हिंदुस्तान में हिन्दू होना जैसे अपराध हो गया और निर्भया के साथ जानलेवा बलात्कार करनेवाले मुसलमान को सरकारें ईनाम देने लगी. पूरी दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें पिछले ७५ सालों में अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ी है और बहुसंख्यकों की घटी है.
मित्रों, ऐसे माहौल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आनेवाले हिन्दुओं और अन्य धर्मों के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देता भी तो कौन देता? इनमें से कुछ तो पिछले ३० सालों से दिल्ली से जयपुर तक दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. निश्चित रूप से CAB ऐसे दबे-कुचले सताए गए लोगों की जिंदगी में बहार बनकर आया है. सवाल यह भी है कि हिन्दू अपना धर्म बचाने के लिए भारत नहीं आएँगे तो जाएंगे कहाँ? क्या उनको भारत के १ अरब से भी ज्यादा हिन्दू उनके हाल पर छोड़कर तमाशा देखते रहेंगे? क्या ऐसा करना उचित होगा? मैं समझता हूँ कि ऐसा करना न तो १९४७ या १९७१ में उचित था और न अब उचित है.
मित्रों, जहाँ तक इस अधिनियम से मुसलमानों को बाहर रखने का प्रश्न है तो निस्संदेह उनकी स्थिति हिन्दुओं और अन्य शरणार्थियों से अलग है. वे पीड़ित नहीं है और न ही धर्म के आधार पर सताए गए हैं बल्कि वे भारत आए हैं और आते हैं रोजगार की अच्छी संभावनाओं के कारण. जबकि भारत खुद ही दुनिया के सबसे गरीब और बेरोजगार देशों में से एक है, भारत सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वो पहले अपने नागरिकों का ख्याल रखे. अगर मुसलमानों ने १९४७ में देश का बंटवारा नहीं करवाया होता तब स्थितियां निश्चित रूप से अलग होती लेकिन जो घटित हो चुका है उसे बदला तो नहीं जा सकता. इसलिए अच्छा होगा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमान अपने देश में ही अपना भविष्य तलाशें.
मित्रों, कुछ लोग इस अधिनियम को भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन मानते हैं. लेकिन ऐसा बताते हुए वे यह भूल जाते हैं कि पूरी दुनिया में सिर्फ भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ कदम-कदम पर जाति आधारित आरक्षण है. अगर हम समानता केअधिकार की दृष्टि से देखें तो आरक्षण भी इसका सरासर उल्लंघन है लेकिन वह लागू है और लगातार उसकी मात्रा भी बढती जा रही है. कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार में ही ऐसा प्रावधान किया गया है कि औचित्यपूर्ण आधार पर इस अधिकार का उल्लंघन किया जा सकता है. दूसरी बात यह कि CAB का उन मुसलमानों से कुछ भी लेना -देना नहीं है जो १९४७ में देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान या बांग्लादेश नहीं गए अथवा १९ जुलाई १९४८ से पहले पाकिस्तान से भारत आ गए थे.
मित्रों, दूसरी तरफ बेवजह इस कानून को लेकर पूर्वोत्तर में उबाल आया हुआ है जबकि यह कानून पूर्वोत्तर में लागू ही नहीं होने जा रहा. ये कौन लोग हैं जो पूर्वोत्तर के लोगों को उकसा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं? ठीक ऐसी ही स्थिति तब हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत केस प्रारंभिक जांच के बाद ही दर्ज हो. तब इन जातियों के लोगों में यह अफवाह फैला दी गयी थी कि सरकार आरक्षण समाप्त करना चाहती है. आज जो लोग असम में आग लगा रहे हैं उनको यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि देश उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं और आज नहीं तो कल उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.