मित्रों, हमारे देश में कुछ वर्ग के लोग अपने अधिकारों को लेकर काफी जागरूक हैं. जरा-सा मौका मिला नहीं कि सड़कों पर उतर आते हैं. फिर शुरू होती है तोड़-फोड़ और आगजनी. ज्यादातर मामलों में राष्ट्रीय संपत्ति को भी जमकर नुकसान पहुँचाया जाता है. कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर लोग मेरे देश को जलाते रहते हैं.
मित्रों, चाहे जाटों को आरक्षण मांगना हो या गुर्जरों को जब भी ऐसा होता है ये रेलवे लाईन पर खाट-हुक्का लेकर पूरे कुनबे के साथ आ धमकते हैं. जैसे रेलवे लाईन रेलवे लाईन न होकर हड़ताली मोड़ या जंतर-मंतर हो. लेकिन राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का जहाँ तक सवाल है इस मामले में सबसे आगे होते हैं मुसलमान. हर शुक्रवार को इनका इस्लाम खतरे में होता है और ये अलग ही मूड में होते हैं. खुद तो भोर में अजान देकर अपने पडोसी गैर मुसलमानों की नींद रोज ख़राब कर देते हैं लेकिन क्या मजाल कि इनके मोहल्ले में कोई हिन्दू दिन-दोपहर को मंदिर में आरती करे. ये तुरंत तोड़-फोड़ शुरू कर देते हैं जैसे इनके मजहब के पास और कोई काम ही नहीं हो सिवाय तोड़-फोड़ करने के.
मित्रों, अभी-अभी केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया है जिसका भारतीय मुसलमानों से कुछ भी लेना-देना नहीं है लेकिन भारतीय मुसलमान इतनी-सी बात को समझने को तैयार नहीं है और असम से लेकर दिल्ली तक बस-ट्रेन जला रहे हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं है कि ट्रेनों-बसों-सडको के बंद होने से यात्रियों को कितनी परेशानी होगी इनको तो बस इस्लाम की कथित रक्षा करनी है जबकि वास्तविकता यह है कि इस्लाम को किसी दूसरे से कोई खतरा नहीं है बल्कि खुद इनसे ही खतरा है. कई ट्रेनों-बसों यहाँ तक कि रेलवे स्टेशनों तक को इनलोगों ने फूंक डाला है जैसे ये राष्ट्रीय संपत्ति को शत्रु-राष्ट्र की संपत्ति समझते हों. इसके साथ ही हिन्दुओं के घरों, गाड़ियों और मंदिरों पर भी हमले किए गए हैं. हाँ, एक मामले में ये लोग जरूर बहुत जागरूक हैं-अपने अधिकारों के मामले में. लेकिन इनको कौन समझाए कि भारत के संविधान में सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं दिए गए हैं बल्कि अनुच्छेद ५१ (क) में मौलिक कर्त्तव्य भी बताए गए हैं और उनमें राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना भी शामिल है.
मित्रों, अंत में मैं भारत की समस्त डेढ़ अरब जनसँख्या से करबद्ध प्रार्थना करना चाहूँगा कि कृपया मेरे देश को मत जलाईए. आप जिस ट्रेन को खेल-खेल में जला डालते हैं अगर उसको आपको अपने पैसों से बनवाना पड़े तो आपको इसके लिए कई जन्म लेने पड़ेंगे. साथ ही आप तोड़-फोड़ करके जो दूसरे इंसानों को परेशान करते हैं उससे सिवाय इंसानियत के और कुछ आहत नहीं होती. साथ ही ऐसा करके आप खुद अपने ही इन्सान होने पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हैं. मुझे नहीं इस बात से कुछ भी लेना-देना कि आपका नाम क्या है या आपका धर्म-जाति क्या है मुझे तो बस अपने प्यारे राष्ट्र से मलतब है जिसका कण-कण मेरे लिए काशी-काबा से कहीं बढ़कर पवित्र है.
मित्रों, चाहे जाटों को आरक्षण मांगना हो या गुर्जरों को जब भी ऐसा होता है ये रेलवे लाईन पर खाट-हुक्का लेकर पूरे कुनबे के साथ आ धमकते हैं. जैसे रेलवे लाईन रेलवे लाईन न होकर हड़ताली मोड़ या जंतर-मंतर हो. लेकिन राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का जहाँ तक सवाल है इस मामले में सबसे आगे होते हैं मुसलमान. हर शुक्रवार को इनका इस्लाम खतरे में होता है और ये अलग ही मूड में होते हैं. खुद तो भोर में अजान देकर अपने पडोसी गैर मुसलमानों की नींद रोज ख़राब कर देते हैं लेकिन क्या मजाल कि इनके मोहल्ले में कोई हिन्दू दिन-दोपहर को मंदिर में आरती करे. ये तुरंत तोड़-फोड़ शुरू कर देते हैं जैसे इनके मजहब के पास और कोई काम ही नहीं हो सिवाय तोड़-फोड़ करने के.
मित्रों, अभी-अभी केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया है जिसका भारतीय मुसलमानों से कुछ भी लेना-देना नहीं है लेकिन भारतीय मुसलमान इतनी-सी बात को समझने को तैयार नहीं है और असम से लेकर दिल्ली तक बस-ट्रेन जला रहे हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं है कि ट्रेनों-बसों-सडको के बंद होने से यात्रियों को कितनी परेशानी होगी इनको तो बस इस्लाम की कथित रक्षा करनी है जबकि वास्तविकता यह है कि इस्लाम को किसी दूसरे से कोई खतरा नहीं है बल्कि खुद इनसे ही खतरा है. कई ट्रेनों-बसों यहाँ तक कि रेलवे स्टेशनों तक को इनलोगों ने फूंक डाला है जैसे ये राष्ट्रीय संपत्ति को शत्रु-राष्ट्र की संपत्ति समझते हों. इसके साथ ही हिन्दुओं के घरों, गाड़ियों और मंदिरों पर भी हमले किए गए हैं. हाँ, एक मामले में ये लोग जरूर बहुत जागरूक हैं-अपने अधिकारों के मामले में. लेकिन इनको कौन समझाए कि भारत के संविधान में सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं दिए गए हैं बल्कि अनुच्छेद ५१ (क) में मौलिक कर्त्तव्य भी बताए गए हैं और उनमें राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना भी शामिल है.
मित्रों, अंत में मैं भारत की समस्त डेढ़ अरब जनसँख्या से करबद्ध प्रार्थना करना चाहूँगा कि कृपया मेरे देश को मत जलाईए. आप जिस ट्रेन को खेल-खेल में जला डालते हैं अगर उसको आपको अपने पैसों से बनवाना पड़े तो आपको इसके लिए कई जन्म लेने पड़ेंगे. साथ ही आप तोड़-फोड़ करके जो दूसरे इंसानों को परेशान करते हैं उससे सिवाय इंसानियत के और कुछ आहत नहीं होती. साथ ही ऐसा करके आप खुद अपने ही इन्सान होने पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हैं. मुझे नहीं इस बात से कुछ भी लेना-देना कि आपका नाम क्या है या आपका धर्म-जाति क्या है मुझे तो बस अपने प्यारे राष्ट्र से मलतब है जिसका कण-कण मेरे लिए काशी-काबा से कहीं बढ़कर पवित्र है.
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